अगेती खेती के लिए ठण्डे वातावरण में यानि जब दिन का तापमान और रात्रि का न्यूनतम तापमान लगभग 0 से 20 सेल्सियस होता है, तभी ऐसे वातावरण में पोलीहाऊस के माध्यम से सब्जियों की स्वच्छ और स्वस्थ पौध तैयार की जा सकती है| सब्जियों की अगेती फसल लेने के लिए बेमौसमी पौध द्वारा सब्जी का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है|
सब्जियों की अगेती फसल उत्पादन द्वारा बाज़ार में भाव भी अधिक मिलता है, जिससे किसानों को अधिक आर्थिक लाभ मिल सकता है| प्लास्टिक विधि से सब्जियों के बीजों की कम मात्रा के प्रयोग द्वारा उनकी लागत में कमी आती है| स्वस्थ पौध को एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाया जा सकता है| एक पोलीटनल लगभग 4 से 5 वर्ष तक सब्जियों की पौध तैयार करने में सक्षम हैं|
अगेती खेती के लिए सब्जियों की पौध तैयार करना
अगेती खेती सर्दी के मौसम में बेलवाली सब्जियों को अगेती खेती लेने के कारण कम तापमान पर बीजाई कर दी जाती है, जो सर्दी के कारण उग नहीं पाती और अगर थोड़ी बहुत उगती है| तो उसकी बढ़वार नहीं होती है, ऊपर से पाला पड़ने पर पौध जल जाती है और अपेक्षित उपज प्राप्त नहीं होती है| इन समस्याओं को देखते हुए सब्जियों की नर्सरी असाधारण वातावरण में वैज्ञानिक तकनीक अपना कर करनी चाहिए|
जिस में पोली ग्रीन हाऊस, पोली लो टनल, पौलीथनि बैग और प्लास्टिक ट्रे में अगेती खेती के लिए सब्जियों की नर्सरी तैयार करनी चाहिए, जिसमें उत्तम गुणवत्ता युक्त पौधे होंगे और बेमौसम में भी तैयार हो जाने के कारण किसान की फसल मण्डी में अगेती पहुंचेगी, जिससे उनको अधिक लाभ मिल सकेगा|
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अगेती खेती के लिए सब्जियों की पौध के लिए लो टनल पौली हाऊस
यह सभी जानते है और सत्य भी है, कि बहुत से कवक, कीड़े, विषाणु से फैलने वाले रोग और सूत्र कृमि का प्रसार नर्सरी से पौध के साथ मुख्य खेत में होता है| सफेद मक्खी, एफिड तथा थ्रिप्स कीट विषाणु रोग फैलाने का कारण है, जिन से टमाटर एवं मिर्च मौजेक और पत्ती मरोड विषाणु फैलता है| इस लिए आवश्यक है, कि संरक्षित जगह या दशा में पौध तैयार करके ही रोपाई की जाए|
अगेती खेती हेतु बीजों को प्रतिकूल परिस्थितियों, जैसे- अत्याधिक सर्दी गर्मी और वर्षा काल में बोया जाना हो तो नर्सरी की रक्षा के लिए उसके ऊपर अर्धवर्ताकार 75 सेंटीमीटर ऊंचा सुरंगनुमा ढांचा बनाया जाता है| इसको तैयार करने के लिए 6 गेज मोटा जस्तेदार तार अर्द्धवर्ताकार रूप में मोड़ा जाता है, जिसके दोनों सिरों पर 15 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर गांठ होती है|
इस तरह के तारों को 60 से 70 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाने पर 6 से 7 मीटर लम्बी क्यारी के लिए ऐसे 12 तार के फ्रेमों की आवश्यकता होगी| इन फ्रेमों के ढांचों पर ऊपर, मध्य में नायलॉन की डोरी से बांधकर एक दूसरे से जोड़ते हैं और क्यारी के दोनों सिरों पर गड़े बांस के छोटे खम्बों से नायलॉन रस्सी से बांध देते हैं|
इस ढांचे को एक सिरे की जमीन से दूसरे सिरे की जमीन तक 24 मेश के नायलॉन जाल में ढ़क देते हैं| नायलॉन जाल के किनारों को गीली मिट्टी से दबा देते हैं, जिससे जाल तेज हवा आदि से न खुलने पाये, जाल के दोनों सिरों को भी बांस के खम्बों से बांध देना चाहिए| वर्षाकाल और ठण्डक के मौसम में नायलॉन जाल के ऊपर 200 गेज मोटी पारदर्शी पोलिथीन चादर डाल देनी चाहिए| इसे भी नायलॉन की रस्सी से प्रत्येक फ्रेम के लूप से होकर आड़े तिरछे करके बांध दिया जाता है|
वर्षा न होने पर पोलिथीन की चादर को हटा देना चाहिए और जाड़े के मौसम में पौध तैयार करने में पोलिथीन सीट से क्यारियों को ढ़कना अत्यधिक उपयोगी होता है| नायलॉन की जाली न लगाने की दशा में नर्सरी की क्यारियों को समय-समय पर कीटनाशकों जैसे – रोगोर 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी, मैलाथियान 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या एण्डोसल्फान 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी और मैन्कोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर नर्सरी की बीजाई के 10 से 12 दिन के बाद, 10 दिन के अन्तराल पर लगातार छिड़काव करते रहना चाहिए| इससे अगेती खेती नर्सरी की अवस्था में लगने वाले कीटों और रोगो की रोकथाम की जा सकती है|
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अगेती खेती के लिए सब्जियों की पौध के लिए नर्सरी तैयार करना
पॉली हाउस या ग्लास हाउस को ग्रीन हाउस के नाम से भी जाना जाता है, यह हरित गृह पोलीथीन या कांच से बना आवरण होता है, जो पौधे की वृद्धि के लिये अनुकूल वातावरण और परिस्थितियाँ उपलब्ध कराता है| हरित गृह जलवायु संबन्धी विषम परिस्थितियों को नियन्त्रित या अगेती खेती हेतु वश में करने का एक वैज्ञानिक साधन है|
बागवानी के व्यावसायीकरण ने हरित गृह को बागवानी की एक खास जरूरत बना दिया है, जिसमें बैमौसम नर्सरी तैयार करना और सब्जी उत्पादन लेकर आमदनी को कई गुणा बढ़ाया जा सकता है, परम्परागत कृषि विधियों की अपेक्षा हरित गृह में फसलों को उगाने से खुले वातावरण की तुलना में दो से चार गुणा तक अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है| पोली हाउस के अन्दर जैसे-खीरा, गोभी, फल वर्गीय सब्जियों की अग्रिम पौध तैयार कर अगेती खेती ली जाती है|
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अगेती खेती के लिए सब्जियों का पौध-उत्पादन
1. जमीन से 10 से 15 सेंटीमीटर उपर उठी हुई व 1 मीटर चौड़ी और आवश्यकतानुसार लम्बाई की क्यारियाँ बनायें|
2. बीजाई से लगभग 15 दिन पूर्व मिट्टी में प्रचुर मात्रा में अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद मिलायें|
3. अगेती खेती हेतु मई से जुलाई के मध्य सफेद पोलीथीन से क्यारियों को 20 से 25 दिन तक ढ़क कर सौर तापीकरण द्वारा कीट व रोगाणुओं को नष्ट कर देना चाहिए|
4. अगेती खेती के लिए बीज को 50 डिग्री सेंटीग्रेट गर्म पानी में 5 मिनट तक डुबोकर रोगाणु नष्ट कर लेने चाहिए तत्पश्चात उनको छाया में सुखाकर बीजाई करनी चाहिए|
5. अगेती खेती हेतु नर्सरी में बीज 10 सेंटीमीटर दूरी पर पंक्तियों में बोएं, ये आवश्यक है|
6. अगेती खेती हेतु कवकनाशी से बीज का उपचार करने के लिये 2 ग्राम थीरम या कैप्टान प्रति किलो बीज की दर से उपचार करके बुआई करनी चाहिए|
7. हर रोज सुबह के समय हल्की सिंचाई करें और ध्यान रखें, कि कहीं पानी का ठराव न हों|
8. पौधशाला के प्रबन्ध पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, इसलिए जल निकास की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए और सिंचाई, निराई व कीट एवं व्याधियों का सामयिक नियन्त्रण करना चाहिए|
9. अगर मौसम खराब हो एवं धूप न निकले तो पोली हाउस को बंद रहने दें, क्योकि छोटे पौधे नाजुक होते हैं, इसलिए पाली हाउस को शाम 4 बजे बंद कर दें तथा सुबह 8 से 10 बजे अच्छी धूप आने के पश्चात खोलें|
10. बहुत अधिक ठण्ड पड़ने पर पाली हाउस के अन्दर एक अतिरिक्त पोलीथिन से नर्सरी को ढ़क देना चाहिए|
11. इस प्रकार अगेती खेती हेतु किसान भाई फरवरी में भी सब्जी की पौध विशेषकर बैंगन, टमाटर, मिर्च, शिमला मिर्च और गोभी आदि तैयार कर सकते हैं|
12. खीरा, पेठा, लौकी इत्यादि बेल वाली सब्जियों की पौध पोली बैंगन में 15 से 18 दिनों में तैयार हो जाती है|
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अगेती खेती के लिए सब्जियों की पौध में नाशीजीव प्रबंधन
1. कद्दूवर्गीय सब्जियों में फसल की शुरूआती अवस्था में लालड़ी का प्रकोप होता है, जो पत्तियों को खाकर पौधों को क्षति पहुँचाते हैं, अधिक प्रकोप होने पर क्यूनालफास 0.05 प्रतिशत का छिड़काव करें|
2. यदि नर्सरी में जड़ सड़न का प्रकोप दिखाई दे, तो पूर्ण रूप से ग्रसित पौधों को खेत से निकाल कर जला दें, यदि प्रकोप अधिक हो तो ट्राइकोडर्मा 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर जड़ो को भिगो दें|
4. पॉली हाउस के चारों तरफ अच्छी तरह सफाई रखें, पानी के निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए|
5. आर्द्रगलन की समस्या होने पर बीज को उगने के बाद 0.2 प्रतिशत 2 ग्राम प्रति लीटर पानी कैप्टान से नर्सरी की क्यारियों का उपचार करें|
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अगेती खेती के लिए सब्जियों की पौध हेतु मिट्टी रहित नर्सरी तैयार करना
ग्रीन हाउस में मिट्टी रहित माध्यम पर प्लास्टिक ट्रे में अगेती खेती के लिए भी पौध तैयार की जाती है और इस प्रकार इस में 25 दिन में पौधे रोपने के लिये तैयार हो जाते हैं, एवं पौध की जड़ों का विकास बहुत अच्छा होता हैं| इससे खेत में पौधों का स्थापन जल्दी व अच्छा होता है| जिन ट्रे में पौध तैयार की जाती है, उनमें कम ज्यादा खांचे बने होते हैं, 100 के करीब बने खाचों वाली ट्रे में मिट्टी रहित माध्यम डालकर भर दिया जाता है और फिर उनमें एक-एक बीज चोभ दिया जाता है|
जब पौध लगाने को तैयार हो जाए तो पानी रोक कर हार्डनिंग करनी चाहिए और दो दिन पहले खेत में बिना लगाये डाल कर छोड़ देनी चाहिये, जिससे फिर लगाने में पौधे मरते कम तथा जल्दी स्थापित होते हैं। बिना मिट्टी के माध्यम में जड़ो का विकास ज्यादा होता है|
सामग्री का महत्त्व- पौध तैयार करने के लिए तीन प्रकार के पदार्थ का प्रयोग किया जाता है, जो इस प्रकार है, जैसे-
1. नारियल का बुरादा
2. वर्मीकुलाइट
3. परलाईट
इन पदार्थों का उपयोग आयतन के आधार पर 3:1:1 के अनुपात के रूप में मात्रा का प्रयोग किया जाता है| सामग्री बनाते समय वजन के आधार पर इन वस्तुओं का प्रयोग निषेध है, नही तो ये वस्तुएँ अधिक महंगी होने के कारण इनमे खर्चा अधिक आता है| तीनों पदार्थों को आयतन के आधार पर प्लास्टिक के टब में डालकर हल्के से पानी का छिड़काव कर सामग्री तैयार कि जाती है| सामग्री के प्रयोग से किसी भी प्रकार की फफूद, बैक्टीरिया, विषाणु, जड़ों का सूत्रकृमि रोग इत्यादि के संक्रमण की पौध में संभावना नहीं होती|
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अगेती खेती के लिए सब्जियों की पौध हेतु प्लास्टिक प्रौ-टे का प्रयोग
महगें संकर बीज की बीजाई के लिए प्लास्टिक प्रौ-ट्रेस का प्रयोग काफी महत्त्वपूर्ण है, एक प्लास्टिक प्रौ-ट्रेस का वजन लगभग 50 से 60 ग्राम होता है| एक प्लास्टिक ट्रे में 14 कटोरियां लम्बाई में और 7 कटोरियां चौड़ाई में होती है, जिनके फलस्वरूप 98 बीजों को एक ट्रे में बोया जा सकता है, जिससे 98 पौधे तैयार किये जाते हैं| प्लास्टिक की ट्रे में ऊपर बताए गये मिश्रण को कटोरियों में डालकर भर दिया जाता है, तथा उसके बाद अंगूठे से सामग्री को दबा देते हैं, जिससे कटोरी का 3/4 भाग मिश्रण से पूरी तरह भरा रहे|
यह अवस्था बीजाई के लिए अनुकूल है, एक कटोरी में केवल एक ही बीज डालें व कुल 98 बीजों को एक प्लास्टिक ट्रे में बोया जा सकता है| बीजाई के पश्चात् कटोरी के शेष भाग 1/4 को मिश्रण डालकर दबा दें, बोई गई परोट्रेस को सिंचाई के लिए पोलीटनल में रखा जाता है| फोगर सिंचाई विधि द्वारा इन प्लास्टिक की ट्रेज को एक दिन में दो बार यानि की सुबह-शाम पानी दिया जाता है|
रात्रि के समय पोलीटनल की भारी चद्दर को नीचे गिरा देना चाहिए, ताकि किसी भी प्रकार से ठण्ड के कुप्रभाव से उगते हुए बीजों को सुरक्षा प्रदान की जा सके| परोट्रेस में बीज का जमाव 7 से 10 दिन में शुरू हो जाता है| इस अवस्था में छोटे पौधों पर साईकोसिल नामक दवा का 5 पीपीएम के घोल का एक छिड़काव करना अति आवश्यक है
अगेती खेती के लिए सब्जियों की पौध पर साईकोसिल का छिड़काव
जिन कटोरियों में बीज का फुटाव नहीं हुआ है, वहाँ पर दोबारा बीजाई करें, उगते हुए बीजों की दो पहलवान पत्तों की अवस्था में साईकोसिल 5 पीपीएम के घोल का एक छिड़काव अवश्य करें| साईकोसिल के प्रयोग से पौधे की लम्बाई अधिक बढ़वार नहीं ले पाती है| इसके प्रयोग से पौधे बौने कद में होते है| बिजाई के 20 से 25 दिन पश्चात् परोट्स में स्वस्थ पौधा तैयार हो जाते है|
जिनकी अगेती खेती के लिए खेत में रोपाई कर सकते हैं| साईकोसिल के प्रयोग से पौधों में ठण्ड को सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है| जब पौधे 12 से 15 सेंटीमीटर की ऊँचाई के हो जायें या उन पर 5 से 6 पत्ते प्रति पौधा निकल आने पर, खेत में इन्हें रोप देना चाहिए|
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अगेती खेती के लिए सब्जियों की बिजाई का उचित समय
अगेती सब्जियों की पौध तैयार करने के लिए सितम्बर से फरवरी के महीने तक सब्जियों की ठण्ड के मौसम में अगेती खेती के लिए पौध तैयार की जा सकती है, टमाटर तथा शिमला मिर्च की बिजाई सितम्बर से अक्तूबर के महीने में करें, बेल वाली सब्जियाँ जैसा कि खीरा और चप्पन कद्दू की बिजाई सितम्बर से नवम्बर तक की जा सकती है और खरबूजा, ककड़ी, घीया, करेला, तोरी, पेठा व तरबूज की बिजाई नवम्बर से फरवरी माह तक की जाती है|
प्लास्टिक परोट्रे में बिजाई के पश्चात् पोलीटनल का उपयोग लाभप्रद, टिकाऊ, सस्ता और ठण्ड से बचाकर अगेती खेती हेतु पौध तैयार करने पर, अगेती खेती की जा सकती है| पौधे तैयार होने पर टमाटर और शिमला मिर्च को 75 सेंटीमीटर कतार से कतार की दूरी और 30 से 45 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी पर लगाया जाता है| पोलीटनल में रोपाई करते समय बेल वाली सब्जियों के लिए कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर रखें|
अगेती खेती के लिए सब्जियों की रोपाई हेतु पौध निकालने का तरीका
अगेती पौध को प्लास्टिक ट्रे से बाहर निकालने के लिए नमी का होना अति आवश्यक है, वरना सूखी अवस्था में पौध को ट्रे से निकालने में असुविधा होती है| पौध निकालने के लगभग 5 से 6 घण्टे पहले प्लास्टिक परो ट्रेज में सिंचाई करना आवश्यक है| पौध की रोपाई खेत में दोपहर के पश्चात् करें, पौध निकालते समय अंगूठे और उगंली का प्रयोग करते हुए तने को पकड़कर आराम से बाहर निकालें, एक पौध में सभी आवश्यक जड़े गोलाकार की शक्ल में दिखाई देती हैं| इन जड़ों को सुरक्षित रखना बहुत आवश्यक है|
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अगेती खेती के लिए सब्जियों की पौध रोपाई का तरीका
जिस स्थान पर अगेती पौध की रोपाई करनी हो, उस जगह पर एक खुरपे से गड्ढ़ा बना दिया जाता है| इस गड्ढ़े में एक पौधे को गड्ड़े की निचली सतह पर रख दिया जाता है और इस गड्ड़े के चारों और मिट्टी द्वारा पौध के तने तक भर दिया जाता है| पौधे के चारों तरफ मिट्टी इस प्रकार से दबाएं कि एक झीलनुमा आकार की शक्ल दिखाई दे|
टपका विधि द्वारा अगेती रोपाई के तुरन्त पश्चात् सिंचाई करें, फर्टीगेशन विधि द्वारा रोपाई के 15 दिन के पश्चात् पानी में घुलनशील खादों के प्रयोग से नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश की मांग को पूरा किया जा सकता है| प्रत्येक 15 दिन के पश्चात् इस कार्य को दोहरायें|
अगेती खेती के लिए सब्जियों के पौधों की देखभाल
रोपाई किये गए स्थान पर पौध रोपाई के पश्चात् टपका सिंचाई से पानी उपलब्ध न हुआ हो, उस स्थान पर ड्रिपर की सहायता से बूंद-बूंद पानी का प्रबंध करना आवश्यक है| जिन स्थानों पर पौधों की कमी हो या पौध न लग पाई हो, नये पौध की रोपाई उस खाली स्थान पर अवश्य करें| अगेती पौध रोपाई के पश्चात् प्रतिदिन पोलीटनल में जाकर फसल को संभालना अति आवश्यक है| अवकाश के दिनों में भी सुचारू रूप से पौधों की सिंचाई और निगरानी अति आवश्यक है|
अगेती खेती के लिए सब्जियों की पौध सिंचाई की देखभाल
अगेती पौध के लिए मौसम के आधार पर टपका विधि द्वारा प्रत्येक पौध की सिंचाई करना महत्त्वपूर्ण है| गर्मियों के मौसम में 2 बार सिंचाई करें और सर्दियों के मौसम में एक दिन छोड़कर सिंचाई करना जरूरी है| खेत से खरपतवारों को खुरपी द्वारा समय-समय से निकालते रहें, ताकि पौध को दिये गए तत्वों का ह्रास न हो|
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अगेती खेती के लिए सब्जियों की पौध हेतु पोली बैग से पौधे तैयार करना
सर्दियों में कद्दू वर्गीय सब्जियों को पोलीथीन के लिफाफे में बीजाई करके अगेती खेती ली जा सकती है| अच्छे जमाव हेतु बीजों को पोली बैग में बीज कर, लो-टनल यानि पाली हाउस में पौध को तैयार करते हैं| संकर किस्मों की पौध पॉलीबैग में तैयार करने पर बहुत कम बीज की आवश्यकता होती हैं| पाली बैगों को लो-टनल में रखने के लिये अधिक लागत और स्थान की आवश्यकता होती है|
व्यावसायिक स्तर पर सब्जियों की अगेती खेती के लिये पौध तैयार करने के लिए हमारे देश में सस्ते पॉली हाउस बनाने की तकनीक उपलब्ध हैं| पॉली हाउस बनाने के लिये बांस और 400 गेज मोटी पारदर्शी पोलीथीन शीट से छोटा झोपड़ीनुमा घर अपनी आवश्यकतानुसार बना सकते हैं| इन पाली हाउसों को चारों तरफ से पोलीथीन शीट से बन्द कर देते हैं| जिस से अन्दर का तापक्रम बाहर के तापक्रम से 8 से 10 सेंटीग्रेट अधिक हो जाता है, तथा दिसम्बर से जनवरी में इन अगेती सब्जियों के बीज अंकुरित हो जाते हैं|
अगेती खेती हेतु पौध तैयार करने के लिये 200 गेज मोटी पोलीथीन सीट के बने 15 x 10 सेंटीमीटर आकार वाले बैगो की आवश्यकता होती है| इन पोली बैगो में नीचे की और छेद कर देते हैं, जिससे वायु संचार और उचित जल निकास होता रहता है| इन पोली बैगों में मोटी रेत, गोबर की खाद और पत्ती की खाद को 2:1:1 के मिश्रण बना कर भर लेते हैं| कद्दूवर्गीय बीजों का आवरण सख्त होने के कारण करेला, लौकी, पेठा, तरबूज आदि के बीजों को बोने से पहले रातभर पानी में भिगो कर रखना चाहिए| प्रत्येक बैग में 1 सेंटीमीटर की गहराई पर 2 से 3 बीज बोकर हल्की सिंचाई कर दी जाती है|
जमाव के बाद पौधों को एफिड या लाल मूंग से बचाने के लिये मैलाथियान 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या कार्बरिल 2 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव पौधे में 2 पत्तियाँ आ जाने पर किया जाता है| यदि दोनों बीज बैग में जम जाते है, तो एक पौधे को जो कम स्वस्थ हो निकाल देना चाहिये, चार पत्तियाँ आने की अवस्था पर पौध की रोपाई मुख्य खेत में कर दी जानी चाहिए|
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