वर्तमान में अधिक भारत दुग्ध उत्पादन में विश्व में लगभग पिछले एक दशक से प्रथम स्थान पर बना हुआ है| भारत में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन दूध की उपलब्धता मात्र 256 ग्राम है, जो अभी भी न्यूनतम आवश्यकता से कम है| दूध अपने आप में पूर्ण आहार है, हमारे देश में दूध का विशेष महत्व हैं|
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अधिक दूध उत्पादन के लिए सुझाव
स्वच्छ एवं अधिक दूध उत्पादन के लिये आवश्यक है, कि दूध में सूक्ष्म जीवाणुओं विशेषकर बैक्टीरिया का संक्रमण कम से कम है| दूध देने वाली गायों, भैसों एवं बकरियों में थनैला रोग हो जाता हैं| थनैला रोग के प्रमुख कारण स्ट्रेप्टोको काई, स्टैफलोकाकाई, ई-कोलाई, स्यडोमानस, वैसलीस, कीरिनी, वैक्टीरियम इत्यादि जीवाणु होते हैं| इसलिए थनैला रोग की यथा शीघ्र पहचान तथा इलाज करना आवश्यक है|
दूध दुहते समय या उसके बाद पशुपालकों द्वारा प्रयोग करने बीच हवा, पानी, धूल कण, गोबर, मिट्टी के सम्पर्क से दूध में जीवाणु संक्रमण की संभावना रहती है| पशुशाला में बाहर से सीधी हवा नहीं आनी चाहिये न ही धूल आदि उड़ती हो, दोहन क्रिया प्रातः काल या सायं काल उस समय करनी चाहिये| जब हवा की गति धीमी हो पशुशाला में मक्खी, मकड़ी इत्यादि न होने चाहिये|
दूध की दोहन क्रिया के मध्य दूध को स्वच्छ मलमल के कपड़े से ढंककर रखें, जिससे धूल, मक्खी आदि दूध में न गिरें| दूध को स्वच्छ मलमल के कपड़े से छान कर या शीघ्र उबाल लें एवं उसके बाद ढंक कर रखें| ठंडा होने पर रेफ्रिजरेटर में रखें, जिन बर्तनों में दूध निकाला जाता है, उनको भी स्वच्छ होना चाहिये| इन बर्तनों को सर्फ आदि गर्म पानी में बनायें घोल से अच्छी प्रकार धोकर धूप में सुखाना चाहिये|
दूध निकालने से पहले बर्तनों को एक गर्म पानी से धोना चाहिये, दूध दोहने वाले बर्तन कम चौड़े मुंह के होने चाहिये| जिसमें धूल, मिट्टी गोबर आदि गिरने की संभावना कम रहें, प्रति पशु दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिये आवश्यक है, कि ऐसी नस्ल के पशु रखें जाये, जो अधिक से अधिक दूध देते हो| उदाहरण के लिये गायों में साहीवाल, सिंधी, गीर, कांक्रोच, रोज, राठी, थारपरकर में दूध उत्पादन हरियाणा नस्ल भी अपेक्षा अधिक होता है| भैसों में मुर्रा, नीली, रावी, सूरत, जाफरावादी अच्छा दूध देती है|
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अधिक दूध उत्पादन के लिये पशुओं को उचित आहार जिसमें पयाप्त मात्रा में प्रोटीन, वसा, कैल्शियम, फास्फोरस एवं अन्य सूक्ष्म तत्व विटामिन आदि होना चाहिये| सूखे चारे के साथ-साथ 30 से 50 प्रतिशत तक हरा चारा जैसे बरसीम, जई, लोबिया, मक्का, अगोला, रिजका इत्यादि अवश्य दें, अधिक दूध उत्पादन के लिये प्रति पशु 60 ग्राम मिनरल मिकचर प्रति दिन देना आवश्यक हैं|
दूध देने वाले पशुओं के आस पास का वातावरण शान्ति होना चाहिये, विशेषकर दूध दुहने के समय पर पशुशाला के अन्दर कुत्ते बिल्ली इत्यादि का प्रवेश पर पूरी तरह रोक होनी चाहिये| पशुओं को खूब पानी पीने के लिये उपलब्ध हो, अधिक सर्दी, गर्मी और आर्दता के दिनों में पशुओं का दूध उत्पादन कुछ कम हो जाता हैं| इसलिए इनके बचाव करना आवश्यक है|
सर्दी एवं ठंड से बचाव के लिये पशुशाला के अन्दर धूप, बिछावन और खिड़कियों पर बोरा लगाना चाहिये, गर्मी और आद्रता से बचाव के लिये पंखों का उपयोग पशुशाला के अन्दर पर्याप्त संख्या में एवं बाहर खुले स्थान पर छायादार वृक्ष लगाना चाहिये| भैसों को सुबह शाम नहलाना या 3 से 5 घण्टे तालाब के पानी में बैठाना या 4 से 5 घण्टे बाद नहलाना लाभप्रद होता है|
प्रचुर मात्रा में हरा चारा, पीने का पानी एवं विटामीन- सी देने से पशुओं की गर्मी सहने की क्षमता बढ़ती है| आम की गुठली का चुरा खिलाने से भी गर्मी सहने की क्षमता बढ़ती है| संक्रमण बीमारियों जैसे- खुरपका, मुंहपका, गलाघोटू, एन्थरैक्स का टीका समय से लगवायें|
जिससे बीमारियों का बचाव हो सके, बीमारियों के कारण दूध उत्पादन बहुत कम हो जाता है| बीमार पशुओं का स्वास्थ पशुओं से अलग रखना चाहिये| मादा पशु गाय, भैंस के गर्म होने पर उसकी सावधानी से पहचान कर समय रहते कृत्रिम या प्राकृतिक विधि द्वारा अच्छी नस्ल के द्वारा ग्याभिन करायें| जिससे आने वाली पीढ़ी में और अधिक दूध उत्पादन की क्षमता बढे|
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