अलसी की जैविक खेती, यह तिलहनी फसल है जो एक या दो पानी में तैयार हो जाती है| अलसी किसानों को कम लागत में समुचित आर्थिक लाभ पहुंचाती है| इसके भूसे और छोटे रेशों का उपयोग कलात्मक कागज एवं हार्डबोर्ड बनाने के लिए कच्चा माल के तौर पर भी उपयोग किया जाता है| खुरदुरे अलसी के रेशे का उपयोग पालीमर में बदलकर कम लागत की छतों के लिए टाइल्स बनाने में होता है|
भारी और दोमट भूमि अलसी की जैविक खेती के लिए सर्वथा उपयुक्त होती है| खेत में पलेवा के बाद दो तीन बार हल चलाना चाहिए| तत्पश्चात् खेत को खरपतवार रहित करके पाटा लगा देना चाहिए| इस बात का ध्यान रहे कि बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी रहे जिससे अंकुरण अच्छा होता है|
अलसी की जैविक खेती के लिए उपयुक्त भूमि
अलसी की जैविक खेती के लिए भारी, दोमट एवं चिकनी मिट्टी जिसमें पानी का निकास अच्छा होता हो, उत्तम मानी गई है|
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अलसी की जैविक खेती के लिए भूमि की तैयारी
अलसी की जैविक खेती हेतु भूमि को तैयार करने के लिए खेत में देसी हल से 2 से 3 बार जुताई करनी चाहिए, ताकि खेत से खरपतवार निकल जाए और मिट्टी भुरभुरी हो जाए|
अलसी की जैविक खेती के लिए उन्नतशील किस्में
जवाहर अलसी 23- सिंचित क्षेत्रों की यह किस्म 120 से 125 दिन में पककर तैयार होती है, दहिया और उकठा रोग के लिये प्रतिरोधी एवं 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज है|
सुयोग (जे एल एस- 27)- सिंचित क्षत्रों की यह किस्म 115 से 120 दिन में पकती है| गेरूआ, चूर्णिल आसिता तथा फल मक्खी के लिये मध्यम रोधी, औसत पैदावार 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर देती है|
जवाहर अलसी 9- असिंचित क्षत्रों की यह किस्म 115 से 120 दिन की अवधि में तैयार होती है, दहिया, उकठा, चूर्णिल आसिता एवं गेरूआ रोगो के लिये रोधी और इसकी औसत पैदावार 11 से 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
जे एल एस 66- असिंचित क्षत्रों की यह किस्म 115 दिन की अवधि में तैयार होती है, चूर्णिल आसिता, उकठा, अंगमारी एवं गेरूआ रोग रोधी, औसत पैदावार 12 से 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
जे एल एस 67- असिंचित क्षत्रों की यह किस्म 110 दिन की अवधि में तैयार होती है, चूर्णिल आसिता, उकठा, अंगमारी एवं गेरूआ रोग रोधी, औसत पैदावार 11 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
जे एल एस 73- असिंचित क्षत्रों की यह किस्म 112 दिन की अवधि में तैयार होती है, चूर्णिल आसिता, उकठा, अंगमारी एवं गेरूआ रोग रोधी, औसत पैदावार 10 से 11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
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अलसी की जैविक खेती के लिए बुआई की तकनीक
बुआई का समय- बुआई के लिए अक्टूबर का पहला पखवाड़ा उपयुक्त है|
बुआई का ढंग- बीज को 23 सेंटीमीटर की पंक्तियों में 4 से 5 सेंटीमीटर गहरा बोना चाहिए|
बीज की मात्रा- बुआई के लिए 40 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है|
अलसी की जैविक खेती के लिए खाद प्रबंधन
अलसी की जैविक खेती हेतु केंचुआ खाद 10 टन या देसी खाद 15 टन या कम्पोस्ट 5 टन प्रति हेक्टेयर बुआई के समय डालें एवं तरल जैविक खाद वर्मीवाश के तीन छिड़काव बुआई के 30, 45 और 60 दिन के बाद खड़ी फसल में 1:10 खाद व पानी की मात्रा में करें| जीवाणु खाद (राइजोबियम + पी.एस.बी.कल्चर) से बीज उपचार भी फसल उत्पादन में लाभदायक पाया गया है|
अलसी की जैविक फसल में सिंचाई प्रबंधन
फसल में फूल आने पर एक सिंचाई तथा फलियाँ बनने के समय दूसरी सिंचाई करनी चाहिए| खरपतवार नियंत्रण बुआई के 30 और 60 दिनों बीच खरपतवार अवश्य निकालें|
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अलसी की जैविक फसल में कीट रोकथाम
फली मक्खी
लक्षण- इसकी इल्ली अण्डाशय को खाती है, जिससे कैप्स्यूल और बीज नहीं बनते हैं|
रोकथाम-
1. कृषिगत नियंत्रण प्रतिरोधी और सहनशील किस्में बोयें|
2. यांत्रिक नियंत्रण गिरी हुई कलियॉ एकत्र कर जला देवें|
अलसी की जैविक फसल में रोग रोकथाम
रतुआ- गुलाबी रंग के धब्बे, पत्तों, तनों व फलियों की सतह पर प्रकट होते हैं, जो बाद में काले फफूद में परिवर्तित हो जाते है|
रोकथाम-
1. अनुमोदित किस्में लगाएं|
2. फलीदार फसल को इस फसल के बीच लगाएं|
3. लक्षण प्रकट होते ही 15 से 20 दिन पुरानी लस्सी (छाछ) व वर्मीवाश के 5 लीटर मिश्रण 1:1 अनुपात को 100 लीटर पानी में डालकर छिड़काव दस दिन के अंतराल पर करें|
4. चौलाई (अमारेंथस) या पुदीना (मेथा) के पत्तों का चूर्ण 25 से 30 ग्राम प्रति लीटर पानी में डालकर छिड़काव करें|
सूखा रोग- इसके आक्रमण से छोटे-छोटे पौधे मर जाते हैं| बड़े पौधे पीले पड़कर मुरझा जाते है|
रोकथाम- प्रतिरोधी किस्में उगाएं|
चूर्णसिता रोग- रोग से प्रभावित पौधों पर फफूद की सफेद से मटमैली रूई की हल्की तह नजर आती है|
रोकथाम-
1. अलसी की जैविक खेती में दूध में हींग मिलाकर 5 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें|
2. इस रोग के नियंत्रण के लिए 2 किलोग्राम लकड़ी की राख का मिश्रण बनाकर पत्तों के ऊपर डालें| 3. अदरक के चूर्ण को 20 ग्राम प्रति लीटर पानी में डालकर घोल बनाएं और 15 दिन के अंतराल पर तीन बार छिड़कने से चूर्ण असिता एवं अन्य फफूद वाली बीमारियों का प्रकोप कम होता है|
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