अश्वगंधा (Ashwagandha) एक महत्वपूर्ण एवं प्राचीन औषधीय फसल है, जिसका उपयोग देशी चिकित्सा, आयुर्वेद व यूनानी पद्धति में होता है| इसे असवगंधा, नागौरी असगंध नामों से भी जाना जाता है| इसकी ताजी जड़ों से तीव्र गंध आती है, इसलिए इसे अश्वगंधा कहते हैं| शुष्क क्षेत्र की बेकार मिटटी को हरित रूप से सुंदरीकृत करने, उत्पादक बनाने हेतु यह एक व्यवहारिक फसल है|
अश्वगंधा की जड़ों की मांग और आपूर्ति या उत्पादन में लगभग तीन गुणा से ज्यादा का अन्तर है| इसकी सूखी जड़ों का प्रयोग टॉनिक बनाने, गठिया रोग, त्वचा की बीमारियां, फेफड़ों के सूजन, पेट के फोड़ों एवं मंदाग्नि के उपचार में किया जाता है| लिकोरिया और पुरूषों में वीर्य संबंधी रोग दूर करने व कमर तथा कूल्हों के दर्द निवारण हेतु भी किया जाता है|
हरी पत्तियों का प्रयोग जोड़ों की सूजन दूर करने एवं क्षय के इलाज के लिए किया जाता है| इसका प्रयोग हर्बल चाय, पाउडर और गोलियां बनाने में करते हैं| अश्वगंधा के छाल का काढ़ा अस्थमा रोग में लाभदायक है| इस लेख में अश्वगंधा की खेती के लिए उपयुक्त भूमि, किस्में, देखभाल एवं पैदावार आदि का विस्तार से उल्लेख किया गया है|
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अश्वगंधा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
अश्वगंधा की खेती शुष्क व उपोषण जलवायु में सफलतापूर्वक की जा सकती है| अश्वगंधा को खरीफ के मौसम में देर से लगाते हैं, जमीन में अच्छी मात्रा में नमी और शुष्क मौसम होना चाहिए|
अश्वगंधा की खेती के लिए भूमि का चयन
अश्वगंधा की खेती किसी भी प्रकार की जमीन में की जा सकती है, परन्तु भुरभुरी, हल्की काली, बलुई दोमट या लाल मिट्टी जिसका पी एच मान 7.0 से 8.0 हो तथा जल निकास का उचित प्रबंध हो सर्वोतम होती है| अधिक लवणीय तथा जलभराव वाली भूमि में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए|
इसको बरानी खेती के रूप में उगा सकते हैं, यदि रबी के मौसम में 1 से 2 वर्षा हो जाती है तो पैदावार में गुणात्मक सुधार होता है| अधिक आर्द्रता और छायादार स्थान पर इसकी बढ़वार कम होती है| इसलिए शुष्क जलवायु उपयुक्त है|
अश्वगंधा की खेती के लिए खेत की तैयारी
अश्वगंधा की खेती के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से, इसके बाद कल्टीवेटर से दो जुताई की जाती है| प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाना चाहिए जिससे मिट्टी भुरभुरी बन जाये|
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अश्वगंधा की खेती के लिए पोषक तत्व प्रबंधन
आमतौर पर अश्वगंधा को काश्तकार शुष्क क्षेत्रीय बेकार पड़ी भूमि में बरानी के रूप में उगाते हैं| किसान किसी तरह की रसायनिक खाद नहीं डालते, परन्तु यदि बुवाई से पहले 15 किलोग्राम नत्रजन और 15 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाकर बुवाई करें, तो फसल अच्छी होती है|
अश्वगंधा की खेती के लिए उन्नत किस्में
अश्वगंधा की अनुसंशित किस्मों में डब्लू एस- 20, डब्लू एस आर और पोषित प्रमुख है|
अश्वगंधा की खेती के लिए बीज की मात्रा
अश्वगंधा की खेती यदि छिटकवा विधि से बीज की बुवाई की जाती है, तब 10 से 12 किलोग्राम और पौध तैयार कर रोपण करने पर 5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर रोपाई हेतु उपयुक्त होता है|
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अश्वगंधा की खेती के लिए बीज उपचार
अश्वगंधा की खेती हेतु बीज उपचार अत्यंत आवश्यक है, इससे बीज जनित रोगों और कीटों के प्रकोप से छुटकारा मिलता है| इसके लिए कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम तथा 1 ग्राम मैंकोजेब को प्रति किलोग्राम बीज की दर से बुवाई से पहले बीज उपचारित करें|
अश्वगंधा की फसल बुवाई
अश्वगंधा की खेती के लिए तैयार खेत में बीज को समान रूप से छिटक कर मिट्टी में मिला देना चाहिए| पौधरोपण के लिए नर्सरी में तैयार 5 से 6 सप्ताह के पौधों को लगाया जाता है| प्रति वर्ग मीटर 60 पौधों को पंक्ति से पंक्ति 20 से 25 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 9 से 10 सेंटीमीटर पर लगाया जाता है|
पौध रोपण का कार्य शाम के वक्त करना चाहिए एवं पौधों को लगाने के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए, जिससे पौधे मिट्टी में आसानी से स्थापित हो जाये| सिंचाई प्रबंधन से इसको बरानी खेती के रूप में उगाया जाता है, इसलिए सिंचाई की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती है| जीवन निर्वहन के लिए महसूस होने पर हल्की सिंचाई कर सकते हैं|
अश्वगंधा की खेती में खरपतवार रोकथाम
अश्वगंधा की बुवाई के 20 से 25 दिन बाद पौधों की दूरी ठीक कर देनी चाहिए और जो भी खरपतवार उसमें उग आए हों उन्हें निकाल देना चाहिए| दूसरी निराई-गुड़ाई बुवाई के दो महीने बाद करते हैं| फसल में खरपतवार नहीं रहना चाहिए|
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अश्वगंधा की खेती में पौधा संरक्षण
बुवाई के लगभग 30 दिन के बाद मैकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल तैयार कर छिड़काव करना चाहिए| लगभग 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहना चाहिए| माहू के प्रकोप की दशा में ऑक्सीडेमेटान मिथाइल 25 ई सी दवा की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें|
अश्वगंधा फसल खुदाई
अश्वगंधा की फसल 150 से 190 दिन में पक कर तैयार हो जाती है, यह लगभग जनवरी से मार्च के मध्य का समय होता है| इस समय फल और पत्तियाँ पीली पड़ने लगती है| चूँकि जड़ की ही उपयोगिता है, इसलिए उपलब्ध संसाधनों से जड़ सहित खुदाई करें|
अश्वगंधा की जड़ सुखाना
इसकी खुदाई के बाद जड़ों को साफ कर 9 से 10 सेंटीमीटर के टुकड़ों में काट कर धूप या छाया में सुखा लेना चाहिए| जड़ों को इतना सुखाएँ कि उसमें 10 से 12 प्रतिशत तक नमी रह जाये|
अश्वगंधा की खेती से पैदावार
उचित देख-भाल में खेती करने पर प्रति हेक्टेयर 6 से 7 क्विंटल जड़ और 50 किलोग्राम बीज प्राप्त होता है|
विशेष- किसान भाई इसकी खेती के लिए किसी भी आयुर्वेदिक दवा कम्पनी या अन्य संस्था से अनुबन्धं कर सकते है, ताकि विपणन की समस्या न हो और लाभ भी अधिक मिल सके|
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