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असिंचित क्षेत्रों में धान की फसल के कीट और उनका नियंत्रण कैसे करें

January 2, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

भारत में सिंचित व असिंचित क्षेत्रों में धान की खेती दोनों परिस्थितियों में की जाती है| धान की विभिन्न उन्नतशील प्रजातियाँ जो कि अधिक उपज देती हैं| उनका प्रचलन असिंचित क्षेत्रों में भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है| परन्तु मुख्य समस्या कीट ब्याधियों की है, यदि समय रहते इनकी रोकथाम कर ली जाये तो अधिकतम उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है|

लेकिन धान की फसल को विभिन्न क्षतिकर कीटों जैसे- तना छेदक, गुलाबी तना छेदक, पत्ती लपेटक, धान का फूदका एवं गंधीबग आदि से बचना होगा| इस लेख में असिंचित क्षेत्रों में धान की फसल के कीट एवं उनका प्रबंधन कैसे करें का विस्तृत उल्लेख किया गया है| धान की खेती के लिए यहाँ पढ़ें- धान (चावल) की खेती कैसे करें

यह भी पढ़ें- धान में खरपतवार एवं निराई प्रबंधन कैसे करें

दीमक का प्रकोप

पहचान एवं हानि की प्रकृति- यह एक समाजिक कीट है और समूह बनाकर रहते है| श्रमिक कीट पंखहीन छोटे पीले, सफेद रंग के होते है एवं समूह के लिए सभी कार्य करते है| असिंचित क्षेत्रों में श्रमिक कीट उग रहे बीजों की, पौधों की जड़ों को खाकर नुकसान पहुंचाते हैं| ये पौधों को रात में जमीन की सतह से भी काटकर गिरा देती है| पौधे अनियमित आकार के कुतरे हुए दिखाई देते हैं|

धान का मूलधुन

आर्थिक क्षति स्तर- 5 प्रतिशत प्रकोपित पौधे|

पहचान एवं हानि की प्रकृति- प्रौढ़ छोटा भूरे रंग का 3 से 4 मिलीमीटर लम्बा कीट होता है| सूड़ियॉ पाद रहित सफेद रंग की होती है| सूड़ियाँ जड़ के मध्य में रहकर हानि करती है| जिसके फलस्वरूप असिंचित क्षेत्रों के पौधे गोलाई में पीले पड़ जाते है| अधिक प्रकोप होने पर पौधों का ओज घट जाता है एव पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है|

यह भी पढ़ें- उर्वरकों एवं पोषक तत्वों का कृषि में महत्व

पत्ती लपेटक कीट

आर्थिक क्षति स्तर- 5 प्रतिशत प्रकोपित पौधे|

पहचान एवं हानि की प्रकृति- सूड़ियाँ प्रारम्भ में पीले रंग की और बाद में हरे रंग की हो जाती है| प्रौढ़ कीट लगभग 1 सेंटीमीटर लम्बा पीले हल्के भूरे रंग का पतंगा होता है| जिसके अगले पंखों पर 3 टेढ़ी मेढ़ी रेखाएं होती है| इनकी सूड़ियां पत्तियों को लम्बाई में मोड़कर अन्दर से उनके हरे भग को खुरच कर खाती है|

गन्धी बग

आर्थिक क्षति स्तर- 1 से 2 कीट प्रति पौधा|

पहचान एवं हानि की प्रकृति- ये लगभग 14 से 17 मिलीमीटर लम्बे और 3 से 4 मिलीमीटर चौड़े भूरे रंग के विशेष गंध वाले कीट होते है| इस कीट के शिशु और प्रौढ़े दोनों ही बालियों की दुग्ध अवस्था में दानों में बन रहे दूध को चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं| जिससे असिंचित क्षेत्रों के प्रकोपित दानों में चावल नहीं बनता हैं|

यह भी पढ़ें- धान में सूत्रकृमि एवं प्रबंधन कैसे करें

सैनिक कीट

आर्थिक क्षति स्तर- 4 से 5 सूंड़ी प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफल|

पहचान एवं हानि की प्रकृति- इस कीट की सुंडियां भूरे रंग की लगभग 30 से 35 मिलीमीटर लम्बी और 6 से 7 मिलीमीटर चौड़ी होती है, जो दिन के समय किल्लों के मध्य या मिटटी की दरारों में छिपी रहती है| सूड़ियां शाम को कल्लों से निकलकर और ऊपर चढ़कर बालों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर नीचे गिरा देती है|

असिंचित क्षेत्रों में धान की फसल के कीटों का एकीकृत प्रबन्धन

1. असिंचित धान के लिए ग्रीष्म ऋतु की जुताई और मेढ़ों की छटाई करनी चाहिए|

2. असिंचित धान के लिए स्वस्थ और जीवनाशी सहिष्णु किस्मों का चयन करना चाहिए|

3. सैनिक कीट बाहुल्य क्षेत्रों में कम समय में पकने वाली किस्मों का चयन करना चाहिए|

4. शोधित बीज का ही प्रयोग करना चाहिए|

5. असिंचित धान की समय से रोपाई करना चाहिए|

6. असिंचित क्षेत्रों में छुटपुट रोपाई को हतोत्साहित करना चाहिए|

7. रोपाई के पूर्व क्लोरपाइरीफास 20 ई सी, 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में बने घोल में रात भर डुबोकर पौध शोधन करना चाहिए|

8. पौध की पत्तियों को ऊपर से 1/3 भाग काट कर रोपाई करें|

यह भी पढ़ें- सीधी बुवाई द्वारा धान की खेती कैसे करें

9. असिंचित धान के लिए खेत और मेड़ों को घासमुक्त तथा साफ सुथरा रखें|

10. भूरा फुदका और सैनिक कीट बाहुल्य क्षेत्रों 20 पंक्तियों के बाद एक पंक्ति छोड कर रोपाई करनी चाहिए|

11. उर्वरकों की संस्तुति मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए|

12. दीमक बाहुल्य क्षेत्र में कच्चे गोबर और हरी खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए|

13. असिंचित धान के लिए पिछली फसलों के अवशेषों का नष्ट करना चाहिए|

14. दीमक के घरों को खोजकर नष्ट करना चाहिए एवं रानी और उनके सहयोगियों को मार देना चाहिए|

15. नीम की खली 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के पूर्व खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में धीरे-धीरे कमी आती है|

16. सप्ताह के अन्तराल पर फसल का निरीक्षण करना चाहिए|

17. कीटों के प्रकातिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डो को इक्कठा कर बैम्बू केज कम परचर में डालना चाहिए|

यह भी पढ़ें- धान की खेती में जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन

18. दीमक के लिए बैवेरिया वैसियाना 1.15 डब्लू पी की 4 से 5 किलोग्राम मात्रा को 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से या क्लोरपाइरीफास 20 ई सी, 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में बने घोल से प्रकोपित क्षेत्र की भूमि का शोधन करना चाहिए|

19. धान के मूलधुन का प्रकोप दिखाई देने पर क्लोरपाइरीफास 20 ई सी, 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में बने घोल से प्रकोपित क्षेत्र की भूमि का शोधन करना चाहिए|

20. धान की पत्ती लपेटक कीट से एक से दो ग्रसित पत्ती प्रति पूंजा होने पर इण्डोसल्फान 35 ई सी या क्वीनालफास 25 ई सी की 1.50 लीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|

21. असिंचित धान में 1 से 2 गन्धी बग किट प्रति पूंजा दिखाई देते ही नीम आधारित कीटनाशकों का प्रयोग करें या प्रातः ओस समाप्त होने के बाद किसी कीटनाशी धूल का बूरकाव करना चाहिए|

22. असिंचित धान में सैनिक कीट की 4 से 5 सूंड़ी प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफल में दिखाई देने तथा कार्यिकी परिपक्वता आते ही कटाई कर लेनी चाहिए या शाम को सूर्यास्त के समय फेनवेलरेट 0.4 डी या फेन्थोएट 2 प्रतिशत धूल की 25 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए|

23. अच्छे पानी निकास वाले खेत के दोनों सिरों पर रस्सी पकड़कर पौधों के ऊपर से तेजी से गुजारने से बंका कीट की सूड़ियां पानी में गिर जाती है, इस पानी का निकाल देने से इनकी संख्या काफी कम हो जाती है|

24. असिंचित धान में वर्षा के जल निकास का समुतिच प्रबन्ध रखे|

यह भी पढ़ें- आलू में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

प्रिय पाठ्कों से अनुरोध है, की यदि वे उपरोक्त जानकारी से संतुष्ट है, तो अपनी प्रतिक्रिया के लिए “दैनिक जाग्रति” को Comment कर सकते है, आपकी प्रतिक्रिया का हमें इंतजार रहेगा, ये आपका अपना मंच है, लेख पसंद आने पर Share और Like जरुर करें|

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