आम के पौधों पर नर्सरी से लेकर फल लगने तक विभिन्न हानिकारक कीटों की रोकथाम होना बहुत जरूरी है| आम के पौधों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट की 500 के लगभग प्रजातियों में से 45 प्रतिशत के लगभग भारत में पायी जाती हैं| इनमें से लगभग एक दर्जन कीट की प्रजातियाँ आम की फसल को गंभीर हानि पहुंचाती हैं| इनमें आम का गुजिया, भुनगा, फल की डासी मक्खी, तना व शाखा बेधक, शूट गाल सिला, गालमिज और गुठली की सुंडी मुख्य हैं| इस लेख में आम के प्रमुख कीट और उनकी रोकथाम कैसे करें की विस्तृत जानकारी दी गई है| आम की वैज्ञानिक तकनीक से बागवानी की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- आम की खेती कैसे करें
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भुनगा कीट
आम का भुनगा या फुदका या लस्सी कीड़ा आम को सर्वाधिक हानि पहुंचाता है| सामान्यतया इस भुनगे की तीन प्रजातियां पायी जाती हैं एवं ये प्रजातियां सबसे अधिक हानिकारक है| समय-समय पर इस कीट का भीषण प्रकोप उत्तर भारत के आम के क्षेत्रों में देखा गया है| यह कीट आम की नई पत्तियों तथा प्ररोहों पर अंडे देते है|
भुनगे द्वारा हानि- वयस्क तथा शिशु कीट कोमल प्ररोहों पत्तियों तथा पुष्पक्रमों का रस चूसते हैं| निरन्तर रस चूसे जाने के कारण इनका प्रभाव यदि अप्रैल से मई माह में भी बना रहे तो यह फलों के मुलायम डण्ठलों का भी रस चूसते हैं| जिससे बौर को कमजोर करते हैं तथा छोटे और बड़े फल गिरने लगते हैं| नई पत्तियों के बीच की नस में छेद कर अण्डा देने के कारण वे मुड़ जाती हैं एवं आकार में छोटी रह जाती हैं तथा कीट का अधिक प्रभाव होने पर भूरे रंग की होकर सूखने लगती है|
इसके अतिरिक्त ये भुनगे मधु जैसा चिपचिपा पदार्थ भी विसर्जित करते हैं| जिसके फलस्वरूप पूरे पेड़ पर मधु द्रव फैल जाता हैं और पत्तियों, प्ररोहों तथा फलों पर काली फफूंद उगने लगती है| इस तरह सतह पूरी तरह फफूंद से ढ़क जाती है| इससे आम के पेड़ों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है| प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होने से पौधों की सामान्य वृद्धि नहीं हो पाती है और फलन प्रभावित होती है|
विभिन्न भुनगों की पहचान- सभी आम के प्रमुख कीट भुनगे सिर की ओर से चौड़े होते हैं तथा शरीर धीरे-धीरे पूंछ तक पतला होता चला जाता है| इनकी पिछली टाँगे अधिक विकसित होती हैं, जो भुनगों को फुदकने में इनकी सहायता करती हैं| इडियोस्कोपस क्लाइपीएलिस भुनगा रंग में भूरा-हरा सा होता है और आकार में सबसे छोटा लगभग 3 मिलीमीटर तक लम्बा होता है|
जबकि इडियोस्कोपस नाइटीड्यूलस भुनगा गहरे भूरे रंग का होता है और इसके अगले पंखों पर दो सफेद रंग की धारियां होती हैं| इसकी लम्बाई 4 से 4.8 मिलीमीटर तक होती है| अमराईटोडस एटकिनसोनाई सबसे बड़े आकार का लगभग 5 मिलीमीटर लम्बा होता हैं और इसका रंग गहरा सलेटी होता है|
भुनगे का जीवन-चक्र- शीतकाल वयस्क अवस्था में व्यतीत करने के बाद मादा भुनगा नयी पत्तियों, मुलायम प्ररोहों तथा पुष्प मंजरी में पतली झिरी बना कर अण्डे देती है| ये मादा लगभग 100 से 200 तक अण्डे देती है| ये अण्डे सफेद, दीर्धाकार, एक ओर चपटे तथा दूसरी ओर नुकीले से होते हैं| इनसे 4 से 7 दिनों में बच्चे निकलते हैं, जो पांच बार केंचुली उतारने के बाद वयस्क अवस्था में पहुंच जाते हैं|
फरवरी से मार्च के महीनों में इनका जीवन-चक्र 12 से 22 दिनों में पूरा हो जाता है| इन तीनों भुनगों में से इडियोस्कोपस कलाइपेएलिस भुनगे की संख्या सबसे तेजी से बढ़ती है| इडियोस्कोपस नाइटीड्यूलस भुनगा भी फूलों के मौसम में तथा नयी पत्तियाँ निकलने के समय बच्चे देते हैं|
अमराइटोडस एटकिनसोनाई अधिकतर नयी पत्तियाँ निकलने के समय बच्चे दते हैं| फूलों के समय इनका प्रभाव कम होता है| इस तरह वर्ष में ये लगभग तीन बार बच्चे देती है| अधिक गर्मी तथा अधिक सर्दी के दिनों में ये पत्तियों की निचली सतह या छाल की झिर्रियों या छेदों में विश्राम करते पाये जाते हैं|
रोकथाम के उपाय-
प्राकृतिक रोकथाम- अनेक प्रकार के कीट, मकडियाँ तथा परजीवी फफूंदी आम के कीट भुनगे को नियंत्रित करते हुए पाये गये हैं| केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान में किये गये शोध के दौरान 12 तरह की मकड़ियाँ, 13 तरह के कीट और तीन तरह की परजीवी फफूंद भुनगों को नष्ट करते देखे गए हैं| इनमें से अण्डे का परजीवी कीट टेट्रास्टाइकस और पालीनिमा, परजीवी फफूंदी वर्टीसीलियम लेकेनाई और बिवेरिया बैसियाना, तथा इनको खाने वाले कीट मलाहाबोनीनेन्सिज और क्राइसोपा लैक्सीपरडा प्रमुख हैं|
रासायनिक रोकथाम- कृषि संस्थानों द्वारा समय-समय पर अनेक रसायनों द्वारा इस कीट को नियंत्रित करने के लिए प्रयोग किये गये तथा यह पाया गया कि निम्नलिखित कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करने से तीनों तरह के भुनगों को नियंत्रित किया जा सकता है| जैसे ही भुनगे का प्रकोप शुरू हो एवं इनकी संख्या 5 से 10 प्रति बौर हो तो प्रथम छिड़काव इमिडाक्लोप्रिड (0.005 प्रतिशत) जब पुष्प गुच्छे 7 से 10 सेंटीमीटर के हो तब दूसरा छिड़काव पुष्प गुच्छ खिलने से पूर्व या फल बैठने के बाद (आवश्यकतानुसार) प्रोफेनोफॉस (0.05 प्रतिशत) या थायामेथोक्जाम (0.008 प्रतिशत) का करें|
यदि आवश्यकता हो तो तीसरा छिड़काव कार्बरिल (0.2 प्रतिशत) का फल बड़े होने के बाद करें| ध्यान रहे कि फूल पूरे खिले होने की अवस्था में छिड़काव न किया जाय अन्यथा परागण करने वाले कीट भी नष्ट हो जायेंगे| इन रसायनों को फसूंदनाशक दवाओं के साथ मिलाकर भी छिड़काव किया जा सकता है| ये भी ध्यान रखना चाहिये कि हर छिड़काव में दवाएं बदल कर छिड़काव करें, अन्यथा कीड़ों में एक ही दवा का लगातार छिड़काव करने से उनको सहन करने की क्षमता आ जाती है और ऐसी परिस्थिति में दवा असर नहीं करती है|
जो बाग बहुत पुराने तथा घने हैं और जिनकी देख-भाल ठीक से नहीं हो रही हो उनमें भुनगे बहुतायत से देखे जाते हैं| केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान द्वारा किये गये सर्वेक्षण से पता चलता है, कि जिन बागों में पेड़ कम दूरी पर लगाये गये हैं और जिसके कारण पेड़ बड़े होकर आपस में मिल गए हैं तथा घने हो जाते हैं, उनमें इनकी संख्या अधिक होती है| इसलिए पेड़ों को निश्चित दूरी पर लगाना चाहिए| इसके अलावा बाग में गहरी जुताई करके खरपतवार आदि नष्ट करना चाहिए| बाग को साफ सुथरा रख कर हम कीटों से बचाव कर सकते हैं|
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गुजिया कीट
गुजिया (मिली बाग) आम का एक प्रमुख नाशीकीट है| यह कीट भारत, बंगला देश, चीन तथा पाकिस्तान में पाया जाता है| भारत में यह गंगा के मैदानी इलाकों में अधिक पाया जाता है तथा विभिन्न प्रकार के पौधों पर आक्रमण करता है| आम के अलावा सेब, बेर, चेरी फालसा, अंजीर, अंगूर, अमरूद, जामुन, लीची, शहतूत, पपीता, नाशपाती, आडू, अनार आदि पर भी इसका प्रकोप होता है| इस कीट की आमतौर पर पायी जाने वाली प्रजाति का नाम ड्रोसिका मैन्जीफेरी है|
यह पूरे देश में आम के बागानों को गम्भीर हानि पहुंचाता है| इस कीट के निम्फ अण्डों से तुरन्त निकलने के बाद पेड़ के तने पर चढ़ना प्रारम्भ कर देते हैं| इनके झुण्ड के झुण्ड कोमल शाखाओं और बौर पर देखे जा सकते हैं| गुजिया के अनगिनत निम्फ (नवजात) और वयस्क पौधों का रस चूस कर उन्हें खोखला कर देते हैं| अत्यधिक रस चूसे जाने के कारण प्रभावित भाग मुरझा कर अन्त में सूख जाते हैं| निम्फ तथा वयस्क एक चिपचिपा द्रव्य भी निकालते हैं|
जिससे कैपनोडियम मैन्जीफेरी नामक फफूंद को वृद्धि में सहायता मिलती है| मादा, अप्रैल से मई में पेड़ों से नीचे उतर कर भूमि की दरारों में प्रवेश कर सफेद थैलियों में 400 से 500 तक अंडे देती है| अण्डे भूमि में नवम्बर seदिसबर तक सुप्तावस्था में रहते हैं| छोटे-छोटे गुलाबी रंग के नवजात भूमि में अण्डों से निकल कर दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह में आम के पौधों पर चढ़ना प्रारम्भ कर देते हैं|
कुछ निम्फ आस-पास के पेड़ों पर भी चढ़ते देखे जा सकते है| अच्छी धूप निकलने के समय ये अधिक क्रियाशील होते हैं| नवजात और वयस्क मादा कीट जनवरी से मई तक बौर व नर्म पत्तों से खूब रस चूस कर उनको सुखा देते हैं| गुजिया कीट, फसल को फल और फूल के मौसम में प्रभावित करता है| यदि समय पर इसका नियंत्रण नहीं किया जाता, तो उस वर्ष की पूरी फसल चौपट हो जाती है|
रोकथाम के उपाय-
1. खरपतवार और अन्य घासों को खुदाई या जुताई द्वारा नवम्बर माह में बागों से निकाल देने से सुप्तावस्था में रहने वाले अण्डे धूप, गर्मी व चीटियों द्वारा नष्ट कर दिए जाते है|
2. दिसम्बर माह के तीसरे सप्ताह में वृक्ष के तने के आस-पास क्लोरपाइरीफॉस चूर्ण (1.5 प्रतिशत) 250 ग्राम प्रति वृक्ष मिट्टी में मिला देने से अण्डों से निकलने वाले निम्फ मर जाते हैं|
3. अल्काथीन या पालीथीन की 20 सेंटीमीटर की पट्टी पेड़ के तने के चारों ओर भूमि की सतह से 50 सेंटीमीटर ऊंचाई पर दिसम्बर के चौथे सप्ताह में गुजिया के निकलने से पहले लपेटने से निम्फ का वृक्षों पर ऊपर चढ़ना रुक जाता है| पट्टी के प्रयोग से पहले तने पर मिट्टी के लेप के बाद ग्रीस को प्रयोग में लाया जाता है| इसके सूख जाने के बाद इसके ऊपर अल्काथीन की पट्टी बांधी जाती है|
पट्टी के दोनों सिरे सुतली से बांधने चाहिए| इसके बाद थोड़ी ग्रीस पट्टी के निचले सिरे पर लगाने से गुजिया को पट्टी के नीचे से चढने को रोका जा सकता है| यह पट्टी बाग में स्थित सभी आम के पेड़ों तथा अन्य वृक्षों पर भी बांध देनी चाहिए| पालीथीन की चादर पर इसके नवजात फिसल कर नीचे गिर जाते हैं| उनके पांव इस पर जम नहीं पाते|
4. अगर किसी कारणवश उपरोक्त विधि न अपनाई गई हो तथा गुजिया पेड़ पर चढ़ गई हो तो ऐसी अवस्था में कार्बोसल्फॉन (0.05 प्रतिशत) या डायमेथोएट (0.06 प्रतिशत) का छिड़काव निम्फ की प्रारम्भिक अवस्था में करना चाहिए|
5. जैविक कारक भी इस कीट के प्राकृतिक नियंत्रण में सहायक पाये गये हैं| परभक्षी कीट, रोडोलिया फुमिडा, मीनोकाइलस सेक्समैक्यूलेटस एवं सुमनियस रेनडाई गुजिया कीट को खाते हैं| पालीथीन पट्टी के नीचे जब गुजिया कीट जमा हो जाते हैं, तो उनके बीच में यह कीट गुजिया कीट का शिकार करते देखे गये हैं|
6. बेवेरिया बैसियाना, एक परजीवी फफूंद भी गुजिया कीट को नष्ट करने में सहायक पायी गयी है| इस फफूंद का प्रकोप गुजिया कीट पर अधिकतर बागों में देखा गया है| इस फफूंद से ग्रसित गुजिया गुलाबी-नारंगी रंग की होती है, जो उचित नमी होने पर सफेद पाउडर से ढ़क जाती हैं|
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पुष्प गुच्छ मिज
आम के बौर का मिज, इरोसामिया इण्डिका आम के प्रमुख नाशी कीटों में से एक है| इस कीट का प्रकोप एक गम्भीर चुनौती है| इस कीट के वयस्क हानिकारक नहीं होते है| मादा कीट द्वारा फूलों के भागों पर, अविकसित फलों पर और बौर को घेरती हुई नई पत्तियों पर दिये अण्डों से 2 से 3 दिनों में बच्चे निकल कर पौधों के मुलायम भागों में प्रवेश कर जाते हैं| इनके द्वारा पौधों के मुलायम भागों के अन्दर के भाग को खाने से प्रभावित भाग सूख कर गिर जाते हैं|
पूर्ण विकसित शिशु व कीट भूमि में गिर कर प्यूपा में बदल जाते हैं| इस कीट के एक वर्ष में 3 से 4 वंश होते हैं| प्रतिकूल मौसम होने पर लार्वा भूमि में सुप्तावस्था में चले जाते हैं तथा अगले वर्ष जनवरी में अनुकूल मौसम के आगमन पर ही प्यूपा में बदलते हैं| आम के पौधों पर मिज का प्रकोप अधिक होता है तथा इससे तीन चरणों में हानि होती है| इसका पहला आक्रमण कली के खिलने की अवस्था में होता है|
नए विकसित बौर में अण्डे दिये जाने और लार्वा द्वारा बौर के मुलायम डंठल में प्रवेश करने से बौर पूर्ण रूप से नष्ट हो जाते हैं| पूर्ण विकसित लार्वा बौर के डंठल में से निकलने के लिए छिद्र बनाते हैं| इसका दूसरा आक्रमण फलों के बनने की अवस्था में होता है| इन फलों में अण्डे देने तथा लार्वा के प्रवेश करने के फलस्वरूप फल पीले पड़ कर गिर जाते हैं|
तीसरा प्रकोप बौर को घेरती हुई पत्तियों पर होता है| पहला आक्रमण अत्यन्त गंभीर है, चूंकि इससे पूरा बौर नष्ट हो जाता है| इसके प्रकोप के फलस्वरूप बौर का विकास रुक जाता है और लार्वो के डंठल में प्रवेश करने से बौर टेढ़ा हो जाता है| फूलों के विकसित होने तथा फलों के बनने से पहले ही बौर सूख जाता है|
रोकथाम के उपाय-
1. आम के बागों की गुड़ाई या जुताई करने से भूमिगत लार्वा तथा प्यूपा धूप और गर्मी से नष्ट हो जाते हैं| अतः अक्टूबर से नवम्बर माह में यह कार्य करना चाहिए|
2. अप्रैल से मई में क्लोरपाइरीफॉस चूर्ण का मिट्टी में प्रयोग करने से भी भूमिगत लार्वा तथा प्यूपा नष्ट करने में सफलता मिलती है|
3. फेनीट्रोथियान (0.05 प्रतिशत) या डायमेथोएट (0.06 प्रतिशत) का कली खिलने की अवस्था में 15 दिनों के अन्तर पर दो छिड़काव करने से इस कीट पर नियंत्रण रखा जा सकता है|
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डासी मक्खी
ओरियेन्टल डासी मक्खी (डेक्स डोरसेलिस) आम के फल को क्षति पहुंचाने वाला अत्यन्त गंभीर नाशी-कीट है| ओरियन्टल क्षेत्र में आस्ट्रेलिया से पाकिसतान तक इसका प्रकोप पाया जाता है| इसके प्रकोप की वजह से आम के निर्यात में गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है| इसकी तीन प्रजातियाँ आम के विकसित फलों को क्षति पहुंचाती हैं| अपने देश में यह कीट दक्षिण भारत में पूरे वर्ष क्रियाशील रहता है|
दूसरी ओर, उत्तर भारत में नवम्बर से मार्च तक शीतकाल में प्यूपा की अवस्था में यह शीतकालीन सुप्तावस्था में रहता है| बसन्त ऋतु के अन्त में अप्रैल के माह में जो अन्य फल पकने वाले होते हैं, उन पर इस मक्खी का प्रकोप दिखायी पड़ता है| ग्रीष्म काल में इसकी संख्या में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है| इस कीट का आम के अलावा दूसरे फलों पर भी प्रकोप होता है|
मार्च में अमरूद के फलों पर इसका जीवन-चक्र चलता है| उसके बाद अप्रैल से मई में लोकाट, आडू आदि फलों पर और जून में नाशपाती तथा अंजीर पर तथा अन्त जून से अगस्त में आम के फलों पर होता है| अगस्त के बाद इसका प्रकोप अधिकतर अमरूद पर होता है, परन्तु नाशपाती, अंजीर, सेब, संतरे तथा पके केलों पर भी इसका प्रकोप देखा गया है|
इस कीट की संख्या में अगस्त से सितम्बर तक धीरे-धीरे कमी होती है तथा अक्तूबर से दिसम्बर तक यह नगण्य हो जाती है| मादा मक्खी के विकसित फलों में छेद कर दिये अण्डों से निकली गिडार फल के गूदे का भक्षण कर उसे पकने से पहले ही सड़ा देती है| इसका जीवन-चक्र ग्रीष्मकाल में 10 से 27 दिनों में पूरा होता है| यह मौसम की स्थिति पर भी निर्भर रहता है|
रोकथाम के उपाय-
1. फलों को पकने से पहले ही तोड़ने तथा इस कीट के प्रकोप की अधिकता को कम करने के लिए समस्त गिरे हुए तथा मक्खी के प्रकोप से ग्रसित फलों को इकट्ठा कर नष्ट करने से अत्यधिक सफलता मिलती है|
2. वृक्षों के आस-पास शीतकाल में गुड़ाई या जुताई करने से भूमिगत प्यूपों को नष्ट किया जा सकता है|
3. कार्बारिल 0.2 प्रतिशत + प्रोटीन हाड्रोलाइजेट अथवा गुड़ का शीरा 0.1 प्रतिशत का मई के पहले सप्ताह में अण्डे देने से पहले की अवस्था में छिडकाव किये जाने से वयस्क डासी मक्खी को नियंत्रित किया जा सकता है| यह छिड़काव 21 दिनों के बाद दोबारा किया जा सकता है|
4. इस मक्खी को नियंत्रित करने के अन्य उपाय मिथाइल यूजिनाल 0.1 प्रतिशत + मेलाथियान 0.1 प्रतिशत के 100 मिलीलीटर धोल को बोतलों में आम के बागानों में लटकाने से अप्रैल से जून के माह तक या भिगोए प्लाई के टुकड़े को प्लास्टिम बोतल में लटकाने से किया जा सकता है|
5. यौनगंध ट्रैप के लिए प्लाईवुड के 5x5x1 सेंटीमीटर आकार के गुटके को 48 घंटे तक 6:4:1 के अनुपात में अल्कोहल : मिथाइल यूजिनाल : मैलाथियान के घोल में भिगोकर लगाना चाहिए| यौनगंध ट्रैप को दो माह के अंतर पर बदलना तथा एकत्रित मक्खियों को निकालकर फेंक देना चाहिए| एक हैक्टर के लिये 10 ट्रैप की आवश्यकता होती है|
6. निर्यात किये जाने वाले आम को वेपर हीट ट्रीटमेन्ट द्वारा उपचारित किया जाना चाहिए|
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स्केल कीट
कुछ समय पूर्व स्केल कीट का भारत के किसी भी प्रदेश में आम को क्षति पहुंचाने वाले कीटों में कोई महत्व नहीं था| किन्तु अब ये उत्तर भारत के कुछ भागों तथा सीमावर्ती इलाकों में इसके प्रकोप में निरन्तर वृद्धि होती देखी गयी है| इस कीट के निम्फ और वयस्क पौधों की पत्तियों तथा अन्य मुलायम भागों का रस चूस कर उनकी जीवन शक्ति कम कर देते हैं|
इसके अतिरिक्त, ये कीट शहद की तरह का एक चिपचिपा पदार्थ भी निकालते हैं| जिससे एक प्रकार की फफूंद की वृद्धि में सहायता मिलती है| इस फफूंद के द्वारा पौधों की पत्तियाँ तथा अन्य भाग पूर्णरूप से एक कालिमा से ढक जाते हैं| प्रकोप की अत्यधिक गम्भीरता की अवस्था में पौधों के विकास तथा फल के उत्पादन की क्षमता पर बुरा प्रभाव होता है|
इस कीट की प्रमुख प्रजातियों में क्लोरोपल्वीनेरिया पौलीगोनेटा उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में आम व्यवसाय में एक गंभीर समस्या का रूप ले रही है| इसकी अन्य प्रजातियाँ हैं एस्पीडियोटस डेसट्रक्टर, सेरोप्लास्टिस एसपी एवं रस्टोकोकस है|
रोकथाम के उपाय-
अधिक प्रभावित भागों को काट कर पृथक करके, नष्ट करने और बाद में डायमेथोएट 0.06 प्रतिशत का 20 दिनों के अन्तराल पर दोबारा छिड़काव करने से इस कीट का नियंत्रण सफलतापूर्वक किया जा सकता है|
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तना बेधक
तना बेधक, बैटोसेरा रूफोमैक्यूलाटा सम्पूर्ण भारत तथा बंगला देश में आम, अंजीर, कटहल, शहतूत, पपीता, सेब आदि को हानि पहुँचाता है| इस कीट के गिडार पेड़ों के तनों में प्रविष्ट होकर उनके अन्दर के भागों को खा कर क्षति पहुंचाते हैं| गिडार तने में ऊपर की ओर सुरंग बना कर बढ़ते जाते हैं| जिसके फलस्वरूप पौधों की शाखाएँ सूख जाती हैं|
कीट का अधिक प्रकोप होने से वृक्ष मर भी सकता है| इस आम के कीट की मादा अण्डे पेड़ों के तने तथा शाखाओं की दरारों में देती हैं| गिडार तने के अन्दर प्यूपा में बदल जाते हैं| वयस्क कीट मई से जून में वर्षा के प्रारम्भ में बाहर आते हैं तथा जुलाई से अगस्त तक इनका निकलना चलता रहता है| इसका वर्ष में केवल एक ही वंश होता है|
रोकथाम के उपाय-
1. प्रभावित शाखाओं को गिडार तथा प्यूपे सहित काट कर नष्ट कर देना चाहिए|
2. छिद्रों को साफ कर उनमें डी डी वी पी (0.05 प्रतिशत) का धोल गिडार द्वारा निर्मित छिद्रों में डाल कर छिद्रों को बन्द कर इन कीटों का सफलतापूर्वक नियंत्रण किया जा सकता है|
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छाल खाने वाला कीट
इस कीट की इन्दरबेला क्वाड्रीनोटेटा प्रजाति हमारे देश में विभित्र प्रकार के पौधों (फल वाले, जंगलात के एवं उद्यान के पौधों) को क्षति पहुंचाती है| पुराने, छायादार तथा उपेक्षित बागानों में इस कीट का प्रकोप अधिक देखा गया है| इस आम के कीट के अविकसित लार्वे पेड़ों की छाल का भक्षण कर पौधों को द्रव्य के प्रवाह से प्रभावित कर उनको दुर्बल कर देते हैं|
एक मादा कीट 300 से 400 के लगभग अण्डे पेड़ों की छाल में देती है| लार्वे एक प्रकार का रेशम का जाल, अपने मल तथा वृक्ष की खाई हुए छाल का भक्षण करके बनाते हैं| पुराने वृक्षों को नये पेड़ों की अपेक्षा अधिक हानि की संभावना रहती है| इस कीट का वर्ष में केवल एक ही चक्र होता है|
रोकथाम के उपाय-
इस कीट का नियंत्रण तना बेधक कीट को नियंत्रित करने के लिए प्रयुक्त उपायों से किया जा सकता है|
शूट गाल सिला
यह कीट उत्तरी भारत में खासतौर पर उत्तर प्रदेश, उत्तरी बिहार और पश्चिमी बंगाल के तराई वाले इलाकों में एक गंभीर नाशीकीट है| इस आम के कीट के नवजातों द्वारा पत्तियों की कलिकाओं से रस चूसने के फलस्वरूप, उनका पत्तियों के रूप में विकास नहीं हो पाता, अपितु यह शंखाकार (नुकीले) अनियमित वृद्धि में होकर अन्त में सूख जाती हैं| इनकी गांठे साधारणतः सितम्बर से अक्टूबर में देखी जा सकती हैं| नुकीली गाठों के बनने के फलस्वरूप इसमें फल नहीं बन पाते| इस कीट का वर्ष में केवल एक ही वंश होता है|
रोकथाम के उपाय-
1. छाल तथा उनके भीतर स्थित निम्फ को इकट्ठा करके नष्ट करने से इस कीट का नियंत्रण किया जा सकता हैं|
2. कीट का सफलतापूर्वक नियंत्रण क्वीनालफॉस 0.05 प्रतिशत का 15 दिनों के अन्तराल पर 2 छिड़काव अगस्त के मध्य से करने पर किया जा सकता है|
3. छिड़काव में एक ही कीटानाशक दवा का दुबारा प्रयोग ठीक नहीं है| इससे कीटों में एक ही दवा को सहन करने की क्षमता हो जाती है|
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जाले वाला कीट
कुछ समय से यह कीट आम को हानि पहुंचाने वाले कीटों में से एक प्रमुख कीट बन गया है| इस कीट का प्रकोप अप्रैल माह से प्रारम्भ होता है तथा दिसम्बर तक चलता है| इस कीट की अरथेगा इवाडुसैलिस नामक प्रजाति आम को हानि पहुंचाती है| अण्डे अकेले या झुण्ड में पत्तियों द्वारा बने हुए जाले या घोसले में दिये जाते हैं| अण्डों से निकलने के बाद लार्वे पत्तियों की सतह को खुरचकर खा लेते हैं| उसके बाद लार्वे नर्म शाखाओं तथा पत्तियों को लार से चिपका कर घोंसले की तरह के आकार बना लेते हैं और पत्तियों के हरे भाग का भक्षण करते हैं|
लार्वे जाले में ही प्यूपा में परिवर्तित हो जाते हैं| लार्वे को जब छेड़ा जाता है, तो वे भूमि पर एक झटके के साथ गिरते हैं| प्यूपा 5 से 6 माह सुप्तावस्था में रहते हैं| इस कीट का प्रकोप छायादार तथा घने बागानों में जिनमें पौधों के बीच की दूरी बहुत कम हो अत्यधिक होता है| आमतौर से एक घोंसले में 1 से 9 लार्वा तक पाये जाते हैं|
रोकथाम के उपाय-
1. इस कीट की संख्या की वृद्धि रोकने के लिए प्रभावित शाखाओं से कीट नियंत्रण द्वारा जालो को नीचे गिरा कर एकत्रित कर जला देना चाहिए तथा अप्रैल से लेकर जुलाई माह तक छंटाई करने तथा जलाने से सफलता मिलती है|
2. जनवरी में वृक्षों के चारों ओर की जमीन की गुड़ाई (जब इस कीट का अंतिम वंश प्यूपों में परिवर्तित हो जाता है) करने से भी इसके नियंत्रण में सहायता मिलती है|
3. यदि कीट का प्रकोप अधिक है, तो कार्बारिल 0.2 प्रतिशत अथवा क्वीनालफॉस 0.05 प्रतिशत की 15 दिनों के अन्तराल पर दो बार छिड़काव से भी इस कीट को | सफलतापूर्वक नियंत्रित किया जा सकता है|
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शाखा बेधक
इस आम के कीट (क्यूमेसिया ट्रांसवरसा) की सुंडियां नई शाखाओं अथवा प्ररोहों को नुकसान पहुंचाती हैं| वयस्क मादा कीट पत्तों पर अण्डे देते हैं| अण्डों से सुंडिंया निकल कर मध्य नाड़ी में घुस कर अन्त में शाखा में ऊपर से नीचे की ओर छेद करना शुरू करती हैं तथा 10 से 15 सेंटीमीटर तक खोखला कर देती हैं| ग्रसित शाखायें मुरझा कर अन्त में सूख जाती हैं|
रोकथाम के उपाय-
1. इस कीट की रोकथाम के लिए अधिक प्रभावित प्ररोहों को काट कर नष्ट कर देना चाहिये|
2. कार्बारिल (0.2 प्रतिशत) या या क्वीनालफॉस (0.05 प्रतिशत) के 2 से 3 छिड़काव 15 दिनों के अन्तर पर करने चाहिए| नयी पत्तियों तथा शाखओं के निकलने के समय ही पहला छिड़काव करना चाहिए|
विशेष
1. कीटनाशकों के प्रयोग में सावधानियाँ बरतें|
2. कीटनाशी दवा का छिड़काव उस समय न करें जब फूल पूर्णरूप से खिले हों, ऐसा करने से परागणकर्ता कीट मर जाते हैं|
3. कीटनाशी दवा का प्रयोग बदल-बदल कर करना चाहिए अन्यथा कीटों में दवा के प्रति सहनशीलता बढ़ जाती है|
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