जिस प्रकार आम के बागो को अनेक प्रकार के कीट एवं रोग हानी पहुंचाते है| उसी प्रकार अनेक प्रकार के विकार भी आम के बागों को प्रभावित करते है| आम के विकार इस प्रकार है, जैसे- गम्मा विकार, अनियमित फलन, फलों का गिरना, ब्लेक टिप या कोयलिया विकार, झुमका विकार, आंतरिक विगलन विकार, पाले का प्रकोप और क्लोराइड की अधिकता आदि प्रमुख है|
यदि बागान बन्धु अपने बागों से इच्छित उपज प्राप्त करना चाहते है, तो इन सब का प्रबन्धन करना आवश्यक है| इस लेख में आम उत्पादकों के लिए आम के बागों के विकार एवं उनका प्रबंधन कैसे करें की जानकारी का विस्तृत उल्लेख किया गया है| आम की वैज्ञानिक तकनीक से बागवानी की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- आम की खेती कैसे करें
गुम्मा विकार
गुम्मा विकार दो प्रकार के होते हैं| वानस्पतिक गुम्मा और पुष्पीय गुम्मा, जिनके लक्षण इस प्रकार है, जैसे-
वानस्पतिक गुम्मा- वानस्पतिक गुम्मा विकार अधिकतर नये पौधों में होता है| प्रभावित पौधों में वानस्पतिक बढ़त विकृत हो जाती है, पर्व संधियाँ फूल जाती हैं और पर्व छोटे रह जाते हैं| ऐसे विकृत वानस्पतिक गुम्मे में पत्तियाँ छोटी तथा पतली होती हैं और पौधे के ऊपरी भाग में गुच्छे का रूप धारण करती हैं| इस लक्षण को बन्ची टॉप कहते हैं| बड़े पौधों में भी इस प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं, किन्तु यह छोटे पौधों की तुलना में काफी कम पाए जाते हैं|
पुष्पीय गुम्मा- पुष्पीय गुम्मे में बौर के मुख्य पर्व छोटे रह जाते हैं और पुष्प गुच्छे की गौण शाखाओं की लम्बाई भी कम रह जाती है, जिससे फूल गुच्छों के रूप में दिखते हैं| पुष्प कलियाँ वानस्पतिक कलिकाओं में बदल जाती हैं| साथ ही पतली छोटी पत्तियाँ निकलती हैं, जिससे बौर काफी कसा हुआ नजर आता है| ऐसे बौरों में फूल की कलियाँ बहुत कम खुलती हैं तथा हरी ही रह जाती हैं| कुछ पुष्पीय गुम्मे घने नहीं होते हैं बल्कि इसमें पर्व लम्बे होते हैं| अतः ये सामान्य बौर से अधिक लम्बे होते हैं और इसमें फूल दूर-दूर लगते हैं| पुष्पगुच्छों में आमतौर पर फल नहीं लग पाते हैं|
प्रबंधन-
1. इस आम के विकार से ग्रसित बौर प्ररोह या डालियों को छाँट कर नष्ट कर देना चाहिए जिससे यह विकार बढ़ता नहीं है|
2. नेपथिलिक एसिटिक एसिड 200 पी पी एम का अक्टूबर के पहले सप्ताह में छिड़काव करने तथा दिसंबर के आखिरी सप्ताह या जनवरी में निकले हुए बौर को तोड़ कर नष्ट करने से इस आम के विकार में कमी आती है|
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अनियमित फलन
यह विकार भी आम की उत्पादकता कम करने में प्रभावी है| विशेष तौर पर उत्तरी भारत में इस विकार को द्विवर्षीय फलन भी कहते हैं| उत्तर भारत में उगाई जाने वाली व्यावसायिक किस्में, विशेष कर दशहरी, लंगड़ा व चौसा, अनियमित फलन विकार से ग्रसित होती हैं| जबकि दक्षिण भारतीय किस्में तोतापुरी, रेड स्माल, नीलम, तोतापरी आदि नियमित फलन देती हैं| इस विकार में पेड़ एक वर्ष अधिक फल (फलन वर्ष) व दूसरे वर्ष बहुत कम या बिल्कुल ही फल नहीं (अफलन वर्ष) देते हैं|
ऐसा समझा जाता है, कि जब पेड़ एक वर्ष अधिक फल देता है, तो उसमें पोषक तत्वों की कमी आ जाती है और इस कारण पेड़ नई कोपलें उगाने में सक्षम नहीं रह जाता| परिणामतः दूसरे वर्ष फलन कम या नहीं हो पाती है| इस विकार का कारण पैतृक, पादप दैहिकी, वातावरण जनित, पोषण की कमी व वृद्धि नियामक का असंतुलन माना जाता है| इस विकार में कमी लाने के लिए नीचे लिखे उपचारों की संस्तुति की गयी है|
प्रबंधन-
1. फलन वर्ष में पछेती (मार्च से अप्रैल) आये हुए बौरों (पुष्प गुच्छों) को तोड़ देना चाहिये|
2. पैक्लोब्यूट्राजॉल (कल्टार) का जो एक अन्तः प्रवाही वानस्पतिक पादप वृद्धि नियामक है| प्रति वृक्ष 3.2 मिलीलीटर प्रति मीटर छाया क्षेत्र की दर से तने से 1.5 से 2 मीटर दूरी पर बनायी गयी नाली में प्रयोग करना चाहिये|
3. इस आम के विकार से बचाव के लिए नियमित फलन वाली किस्मों का विस्तृत तौर पर उद्यानीकरण करना चाहिए|
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फलों का गिरना
आम के फल अपने जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में गिरते हैं, जिससे बागवानों को आर्थिक हानि होती है| पेड में बौरों की तुलना में फलों के लगने का अनुपात बहुत कम होता है| अधिकांश फल बैठने के बाद गिर जाते हैं| आम के फल बहुत छोटी अवस्था (पिन हेड), फल बनने के बाद एवं पूर्ण विकसित, तीनों अवस्थाओं में गिरते हैं|
विकसित फलों का गिरना अधिक आर्थिक हानि पहुँचाता है| फलों के गिरने की गति विभिन्न किस्मों में अलग-अलग होती है| लंगड़ा किस्म में फल अधिक गिरते हैं| फलों के गिरने के बहुत से कारण हैं| जिनमें भ्रूण का पतन, पोषण में कमी और हार्मोन का असंतुलन मुख्य हैं|
प्रबंधन- फलों को गिरने से रोकने के लिए एन ए ए या प्लेनोफिक्स (20 पी पी एम) या एलार (बी-नाईन) (100 पी पी एम) का छिड़काव आम के फलों के मटर के आकार के समय लाभकारी सिद्ध हुआ है|
ब्लैक टिप या कोयलिया
यह आम का विकार उन्हीं बागों में देखा गया है, जो किसी ईंट के भट्ठे के आस-पास स्थित होते हैं| जैसे ही आम थोड़ा बड़ा होता है, इसमें विकार के लक्षण दिखाई देते हैं| फल के निचले हिस्से में पहले निशान दिखाई देता है, जो धीरे-धीरे बढ़ता है, फिर काला पड़ जाता है तथा फल के निचले हिस्से में फैल जाता है|
फल का वह भाग कड़ा हो जाता है तथा फल का बढ़ना रुक जाता है| कुछ किस्मों, जैसे दशहरी में फलों का निचला छोर पतला हो जाता है और ज्यादा हरा दिखता है| फल की बढ़त भी रुक जाती है| इसका विशेष लक्षण है, कि निचले छोर के साईनस पर दो तीन या उससे अधिक जगहों पर पांडुरता आ जाना है|
प्रबंधन-
1. इस आम के विकार की रोकथाम के लिए बोरेक्स (1 प्रतिशत) का छिड़काव तब करें जब फल मटर के दाने के बराबर हों, इसके बाद दो छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर और करने चाहिए|
2. आम का बाग ईंट के भट्ठों के 5 से 6 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दक्षिण दिशा में लगाने से रोग को काफी हद तक कम किया जा सकता है|
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झुमका विकार
इस आम के विकार में छोटे-छोटे कई फल मंजरी के सिरे पर बनते हैं, जो कि देखने में झुमके की तरह के लगते हैं| ऐसे फलों का रंग सामान्य फलों की अपेक्षा कुछ अधिक गहरा होता है और इन फलों का आकार भी नीचे की ओर कुछ घूमा होता है| ऐसे फल मंजरी के सिरे पर अधिक दिनों तक रहते हैं| इनके अधिक समय तक बौर पर लगे रहने से ऐसा प्रतीत होता है, कि फसल अच्छी होगी किन्तु इनकी बढ़त रुक जाती है और फिर थोड़े दिनों के उपरांत ये फल गिर जाते हैं| ऐसे फलों में बीज भी विकसित नहीं होता है|
प्रबंधन-
1. जब फूल खिले हों तो किसी भी प्रकार के कीटनाशक या फफूंदीनाशक का छिड़काव नहीं करना चाहिए|
2. फूल खिलने की अवस्था में परागण सहायक कीटों की अधिक संख्या रखने का प्रयास करना चाहिए|
आंतरिक विगलन विकार
सबसे पहले फलों के निचले हिस्से में जलसिक्त सलेटी रंग के धब्बे बन जाते हैं और बाद में ये धब्बे बढ़ कर गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं| इसमें उत्तक विघटन की प्रकिया शुरू हो जाती है, जिससे गूदा दिखने लगता है और फल फट जाता है तथा अन्दर के उत्तक दिखाई देते हैं, जिसमें सड़न प्रतीत होती है| साथ ही फटे भाग से पीले रंग की बूंदें निकलने लगती हैं| गुठली भी भूरे रंग की दिखती है और संक्रमित फल पेड़ से गिर जाते है|
प्रबंधन-
1. इस आम के विकार को नियंत्रण में रखने के लिए बोरेक्स का 500 ग्राम प्रति वृक्ष के हिसाब से थाले में प्रयोग या बोरेक्स (1 प्रतिशत) का पत्तियों पर छिड़काव करना लाभदायक है|
2. जब फलों का आकार मटर के दाने के बराबर होता है तब पहला छिड़काव करना चाहिए और इसके बाद 15 दिनों के अंतराल पर दो और छिड़काव करने चाहिए|
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पाले का प्रकोप
छाल का फटना, जो कि शुरुआत में दिखाई नहीं देता पर पेड़ जब मरने या सूखने लगता है, तभी दिखाई पड़ता है| फटी हुई छाल से गोंद का रिसाव, नई टहनियों का मर जाना और पत्तियों, छोटी कलियों व बौरों का जला सा प्रतीत होना तथा अंततः पेड़ का पूरी तरह सूख जाना इसके विशेष लक्षण होते है|
प्रबंधन-
1. आम के छोटे पौधों को पाले से बचाने के लिए सूखी घास से पौधों को कुछ इस तरह ढ़कना चाहिए कि पूर्व की दिशा से धूप और हवा बराबर मिलती रहे|
2. पाले के समय यदि सिंचाई की जाए तो पौधों को पाले की क्षति से बचाया जा सकता है|
3. फुहारे के रूप में सिंचाई और पौधों पर ऊपर से सिंचाई अधिक ठंड के समय लाभदायक है|
4. बाग में धुँआ या हीटर का प्रयोग अधिक ठंड में पौधों को पाले से बचाता है|
क्लोराइड की अधिकता
इस आम के विकार का मुख्य लक्षण पत्तियों का सिरे से सूखना आरंभ होकर पत्तियों के किनारों का सूखना होता है| ऐसा प्रतीत होता है, कि पत्तियों के सिरे झुलस गए हैं| सूखे हिस्से लाल ईंट के रंग के नजर आते हैं| यह विकार दूर से ही पहचाना जा सकता है|
प्रबंधन-
1. ऐसी खाद का प्रयोग न करें जिसमें क्लोराइड हो, इसकी जगह पोटेशियम सल्फेट का उपयोग करें|
2. फफूंदीनाशक कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव ऐसे पौधों पर नहीं करना चाहिए|
3. गिरी हुई पत्तियों को एकत्र करके खेत से हटा देना चाहिए|
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