ईसबगोल (Isabgol) एक महत्वपूर्ण नगदी फसल है, जो शुष्क क्षेत्रों में किसानों के लिये अल्प समय में आय का स्त्रोत् बन रहा है| इसबगोल की फसल की कटाई करते समय इसकी पत्तियाँ हरी रहती है| जो कि पशुओं के हरे चारे के रूप में काम आती है| इसके बीज के ऊपर पाया जाने वाला पतला छिलका ही औषधी उत्पाद है| जो कि भूसी के रूप में उपयोग में लिया जाता है| ईसबगोल में 30 प्रतिशत भूसी 65 प्रतिशत गोली, 3
प्रतिशत खली और 2 प्रतिशत खारी होती है|
भूसी के अतिरिक्त तीनों भाग पशुओं के चारे के रूप में खिलाये जाते है| ईसबगोल की भूसी में अपने वजन के कई गुना पानी सोखने की क्षमता होती है| इसकी भूसी को पेट की सफाई, कब्ज, अल्सर, बवासीर, दस्त (दही के साथ मिलाकर खाने पर) जैसी भारीरिक बीमारियों में औषधी के रूप में प्रयोग किया जाता है| ईसबगोल का प्रिटिंग, खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में भी उपयोग किया जाता है|
ईसबगोल की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
इसकी खेती ऊष्ण जलवायु में आसानी से की जा सकती है| इसकी खेती के लिए सीमान्त भूमि जिसका पी एच मान 7 से 8 के मध्य हो, अच्छी मानी जाती है| इसके लिए ठण्डी एवं शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है| इसके बीज के अंकुरण के समय 20 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड, वृद्धि के लिए 30 से 35 सेंटीग्रेड तापमान की जरूरत होती है| फसल पकने के समय वातावरण साफ एवं शुष्क होना आवश्यक है| क्योंकि फसल को बरसात की हल्की बौछार भी भारी नुकसान पहुंचा सकती है|
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ईसबगोल की खेती के लिए भूमि का चयन
जहा तक ईसबगोल की खेती के लिए मिट्टी का सवाल है, बलुई दोमट मिटटी जिसमें जीवाश्म की मात्रा अधिक हो, सर्वोत्तम मानी जाती है| परन्तु बलुई मिट्टी मे भी समुचित मात्रा में देशी खाद का प्रयोग कर के इसकी खेती की जा सकती है|
ईसबगोल की खेती के लिए खेत की तैयारी
खरीफ की फसल की कटाई के बाद खेत की सफाई करके दो से तीन जुताई कर मिट्टी को भुरभरी बनायें| यदि दीमक की समस्या अधिक हो तो फॉरेट 10 जी 20 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से अन्तिम बुवाई के समय भूमि में मिलावें|
ईसबगोल की खेती के लिए उन्नत किस्में
ईसबगोल की प्रमुख किस्में जी आइ- 2, ए आर आइ- 89 गुजरात- 1, ट्रांबेसलेक्सन (1 से 10) ई सी- 24 व 145 है| उपरोक्त में से जी आइ- 2 किस्म 118 से 125 दिन में पकती है एवं 13 से 15 क्विंटल प्रति हैक्टर पैदावार देती है तथा भूसी की मात्रा 18 से 30 प्रतिशत तक की होती है| इसलिये इसकों शुष्क क्षेत्र में अधिक उपयोग में लिया जाता है|
ईसबगोल की खेती के लिए बीज की मात्रा
ईसबगोल की छिड़क कर बुवाई करने के लिये प्रति हैक्टर में 4 से 5 किलोंग्राम बीज की आवश्यकता होती है व लाईन में बुवाई करने के लिये प्रति हैक्टर 5 से 7 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है|
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ईसबगोल की खेती के लिए बीज एवं बुवाई
ईसबगोल बीज बोने का उत्तम समय अक्टुबर के अन्तिम सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक होता है| इसकी बुवाई बीजों को छिड़क कर एवं कतारों में की जा सकती है| कतारों में बुवाई के लिये 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है| लाईनों में बुवाई करने से निराई-गुड़ाई में सुविधा रहती है| बीज को 3 ग्राम थाईरम प्रति किलोग्राम के हिसाब से उपचारित करके तथा बीजों को मिट्टी में मिलाकर बुवाई करें तथा देरी से बुवाई करने से बचें| क्योंकि इससे उत्पादन में कमी एवं कीट व बीमारियों का प्रकोप हो सकता है|
ईसबगोल की खेती के लिए खाद एव उवर्रक
ईसबगोल के अधिक उत्पादन के लिए के गोबर की खाद 15 से 20 टन प्रति हैक्टर खेत की जुताई के समय मे मिलाएं इसके अलावा नत्रजन 50 किलोग्राम, फास्फोरस 40 किलोग्राम एवं पोटास 25 किलोग्राम की आवश्यकता होती है| नत्रजन की आधी एवं फास्फोरस एवं पोटास की पूरी मात्रा बुआई के समय 3 ईच गहरा मिटटी मे मिलाना चाहिए तथा बाकी नत्रजन बुआई के एक महिने बाद छिडकाव करके सिंचाई करे|
ईसबगोल की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन
शुष्क क्षेत्र मे सिंचाई का अधिक महत्व रहता है, इसलिए पहली सिंचाई बीज की बुआई के बाद हल्की सिंचाई करे| दुसरी सिंचाई बुआई के एक सप्ताह बाद करे| इसके अलावा शुष्क क्षेत्र मे मौसम के हिसाब से दस दिन पर सिंचाई करते रहें| हर सिंचाई के बाद हल्की निराई-गुडाई करने से रोग एव कीटो का प्रकोप कम हो जाता है|
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ईसबगोल की खेती में कीट रोकथाम
शुष्क क्षेत्र में कीट एव रोगों का प्रकोप प्रायः नही होता है| फसल के लगने वाले रोग समान्यतः डाउनी मिल्डयू, झुलसा एवं पाउड्री मिल्ड्यू होते है| चूर्णी फफूंद के रोकथाम के लिये 50 प्रतिशत घुलनशील गन्धक का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिडकें| ईबगोल का प्रमुख कीट मोयला (ऐफिड्स) है|
जिसकी रोकथाम हेतु डाईमिथॉइट 30 ई सी एक हजार मीलीलीटर प्रति हैक्टर की दर से खड़ी फसल पर छिड़काव करें| यदि फसल में तुलासिता रोग के लक्षण दिखाई दें तो मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें|
ईसबगोल फसल की कटाई
ईसबगोल फसल की कटाई का उत्तम समय बालियों का लाल होना व हाथ से मसलने पर दाना अलग होने का समय उत्तम होता है| इसकी बालियों को हर दो तीन दिन में पकने की स्थिति के अनुसार तुडाई कर लेनी चाहिये| बालियों को तोड़कर एक जगह इकट्ठा करें| मड़ाई करने से पूर्व हल्का पानी का छिड़काव करें| पानी के छिडकाव से बीज को छिलके से अलग होने में आसानी होती है| मड़ाई के बाद बीज को चार से पांच दिन तक सुखाएं तथा बाद में जूट की बोरियों में संग्रहित कर लें|
ईसबगोल की फसल से पैदावार
उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से ईसबगोल की खेती करने पर प्रति हैक्टर 12 से 15 क्विंटल बीज प्राप्त होता है| इसके अलावा चार से पांच क्विंटल चारा भी प्राप्त होता है| जिसको शुष्क क्षेत्र में हरे चारे के रूप में काम में लिया जाता है|
निष्कर्ष
शुष्क क्षेत्र में ईसबगोल एक बहुपयोगी फसल है, जिसे व्यवसायिक रूप में अधिक से अधिक आय प्राप्त की जा सकती है| वर्तमान में ईसबगोल की फसल के विपणन हेतु गुजरात की ऊँझा मण्डी प्रसिद्ध है| जहां पर इसका मूल्य पांच हजार से छ: हजार रुपये प्रति क्विंटल मिलता है|
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