उत्तम फसलोत्पादन के लिए आमतौर पर छोटे किसान वैज्ञानिक विधियों का ध्यान नहीं रखते और बीज, खाद, जुताई, बुआई, सिंचाई इत्यादि क्रियाओं में छोटी-छोटी किन्तु महत्वपूर्ण बातों को नजर अन्दाज कर देते हैं, जिससे न तो उत्तम पैदावार मिलती है तथा न ही उत्तम गुणवत्ता वाले कृषि उत्पाद ही मिल पाते हैं| कटाई के बाद उत्पाद की उचित व्यवस्था और बाजार की सही जानकारी न होने के कारण उन्हें अपनी उपज का सही मूल्य भी नहीं मिल पाता|
इसलिए यहाँ इस लेख में कुछ महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया जा रहा हैं| जिसको अपनाकर किसानों को न केवल उत्तम उत्पादन मिल सकता है, वरन् बाजार में उनके उत्पाद की उत्तम कीमत भी मिल सकती है| जो इस प्रकार है, जैसे-
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उत्तम फसल उत्पादन के मूल मंत्र
1. समय पर बुआई करें, ताकि खेती से अधिकतम और उत्तम उत्पादन प्राप्त हो|
2. उत्तम फसलोत्पादन के लिए बीजोपचार (बीज का टीकाकरण) अवश्य करें, ताकि कम खर्च में फसलें निरोग एवं स्वस्थ रहें|
3. प्रमाणित और उन्नत के साथ अपने क्षेत्र की प्रचलित किस्म के बीज ही बोयें ताकि 15 से 20 प्रतिशत उपज बढ़ सके|
4. उत्तम फसलोत्पादन के लिए मिट्टी की जांच करवाकर सिफारिश के अनुसार संतुलित उर्वरक प्रयोग करें, जिससे उर्वरकों पर कम खर्च हो|
5. बीज की मात्रा सिफारिश के अनुसार प्रयोग करें, तथा कतार में बुआई करें ताकि प्रति ईकाई भूमि में पौधों की उचित संख्या से अच्छी बढ़वार एवं अधिक उपज प्राप्त हो सके|
6. उत्तम उत्पादन के लिए जुताई-बुआई ढलान की आड़ी दिशा में करें, ताकि वर्षा का ज्यादा पानी जमीन के अन्दर जा सके|
7. उत्तम फसलोत्पादन हेतु खेत में फसल अदल-बदल की बोयें, जिससे कीट व रोग और खरपतवारों के प्रकोप में कमी हो सके|
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8. दलहनी व तिलहनी फसलों में जिप्सम का प्रयोग करें, ताकि भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ सके तथा गुणवत्ता ठीक रहे|
9. उत्तम फसलोत्पादन के लिए फव्वारा, ड्रिप (टपका) एवं भूमिगत पाइपलाईन सिंचाई विधियों का इस्तेमाल करें, ताकि पानी की बचत हो|
10. फसल की आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करें और आवश्यकता से अधिक पानी न दें, ताकि कम पानी में अच्छी पैदावार मिल सके|
11. मित्र कीटों का सरंक्षण करें, प्रकाश पाश एवं फेरोमोन पाश प्रयोग करें, जिससे समय पर हानिकारक कीटों की निगरानी हो सकें ताकि दवाई का प्रयोग कम हो तथा बिना दवा के कीटों पर नियंत्रण हो सके|
12. उत्तम फसलोत्पादन के लिए जैविक खेती अपनाएं, ताकि उत्पादन लागत कम हो व उत्तम उत्पाद प्राप्त हो|
13. सिफारिश के अनुसार अगेती या पछेती किस्में अपनायें ताकि विषम परिस्थितियों में भी आमदनी उत्तम हो|
14. खाद, बीज और दवा खरीदते समय बिल अवश्य लें एवं विश्वसनीय स्त्रोत से ही बीज खरीदें ताकि धोखाधड़ी से बचा जा सके तथा आदानों की गुणवत्ता सुनिश्चित हो सके|
15. कृषि कार्यक्रमों में भागीदारी बढ़ाए, ताकि नवीनतम जानकारी के अनुसार समस्या का समाधान मिल सके|
16. उत्तम फसलोत्पादन के लिए उन्नत कृषि यन्त्रों का प्रयोग कर समय, श्रम और पैसे की बचत करें|
17. उत्तम उत्पादन के लिए साठी धान या अगेती धान न उगाएँ ताकि पानी बचे और जमीन की उर्वरा शक्ति सहीं बनी रहे|
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18. लेजर लैंड लेवलर द्वारा भूमि का समतलीकरण करने से 10 से 15 प्रतिशत सिंचाई जल की बचत होती है, इससे उत्पादन संसाधनों की दक्षता बढ़ी है तथा फसलों की उत्पादकता में 10 प्रतिशत का लाभ होता है|
19. जल संचयन करें- वर्षा के मौसम में खेतों में मेंड़ बनाने और ढलान के विरुद्ध करने से मिट्टी में जल के संरक्षण में सहायता मिलती है, इससे सिंचाई जल की आवश्यकता कम हो जाती है| किसान वर्षा जल को संग्रहित करने के लिए खेतों के छोटे तालाब भी तैयार कर सकते हैं, जिससे जल की कमी की अवस्था में फसलों को जीवन रक्षक सिंचाई दी जा सके| फसलों के मेंड़ एवं कूड में बुआई करने से भी खेत में जल संग्रहण में सहायता मिलती है, इससे खरपतवारों में कमी आती तथा उन्हें निकालना भी आसान हो जाता हैं|
20. सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली को अपनाएं- इस प्रकार की सिंचाई प्रणाली में जल को ले जाने में होने वाले क्षति में कमी, वाष्पन से होने वाले हानि, जल के बह जाने और जल के मिट्टी में गहराई पर रिस जाने से होने वाली हानि में कमी आती है तथा जल का सही उपयोग होता है| इस विधि से ऊर्जा की बचत होती है एवं खरपतवारों और रोगों का प्रकोप भी कम हो जाता हैं|
21. संरक्षण खेती अपनाएं- उत्तम उत्पादन के लिए, शून्य जुताई व बीज ड्रिल प्रयोग करके खेतों में फसलों को स्थिर रखा जा सकता है तथा अगले वर्ष रोपाई आसानी से की जा सकती है| इससे मिट्टी की ऊपरी सतह ढकी रहती है तथा इस प्रकार धूप से होने वाले नमी के नुकसान को कम किया जा सकता है|
बाद की सिंचाई के दौरान मिट्टी के ठोस हो जाने से भूमि सतह पर जल समान रुप से फैलता है, तथा इस प्रकार जल की कुल आवश्यकता कम हो जाती है, क्योंकि जोते गए खेत की तुलना में इस विधि को अपनाने से जल से जमीन के अन्दर रिसने से होने वाली हानि में कमी आती हैं|
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22. भूमि के अंदर जल इंजेक्शन तकनीक के माध्यम से भू-जल पुनर्भरण करें- ऐसा अनुसान है, कि वर्षा के दिनों में लगभग 30 प्रतिशत वर्षा का जल बह कर व्यर्थ चला जाता है, खेतों में भूमिगत जल भरण के लिए इंजेक्शन वेल (छेद) बनाकर पुनर्भरण करके दक्षता से उपयोग किया जा सकता है|
23. मिट्टी समृद्धिकरण के लिए गोबर की खाद और हरी खाद का उपयोग करें- कम्पोस्ट और पशुओं से प्राप्त होने वाले अवशेष कार्बनिक पदार्थ के महत्वपूर्ण स्त्रोत हैं, जो आमतौर पर सड़कों के किनारे ढेर के रूप में पड़े रहते हैं| इसके साथ ही खेतों में हरी खाद देना भी मिट्टी को समृद्ध बनाने का एक प्राकृतिक साधन है| इससे मिट्टी की लवणता के नियंत्रण में भी सहायता मिलती है| किसान अपने खाली समय का उपयोग जो उन्हें रबी की फसल की कटाई तथा खरीफ फसलों की बुआई या रोपाई के बीच मिलता है, ढैंचा जैसी हरी खाद वाली फसलें उगाकर सदुपयोग कर सकते हैं|
24. फसल अवशेषों का सदुपयोग करें- उत्तम उत्पादन के लिए फसल अवशेषों को खेतों में नहीं जलाना चाहिए क्योंकि इससे मूल्यवान कार्बनिक पदार्थ नष्ट हो जाते हैं एवं वायु पर्यावरणीय समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं| सरंक्षण कृषि द्वारा इन्हें मिट्टी में पुनः मिलाने, पलवार बिछाने और खेत में फैलाने से खेत की मिट्टी कार्बनिक पदार्थों से सम्पन्न हो जाती है|
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25. फसल-चक्र अपनाए- अनाज वाली फसलों के बाद फलीदार फसलें उगाने से मिट्टी की उर्वरता को सुधारने या बनाए रखने में सहायता मिलती है, जिससे मिट्टी की बनावट तथा संरचना में भी सुधार होता हैं| यह विधि अपनाने से मिट्टी पोषक तत्वों के रासायनिक स्त्रोतों यानि कृत्रिम उर्वरकों पर निर्भरता काफी कम हो जाती हैं| उचित फसल-चक्र अपनाए अपने खेत में निरंतर एक ही फसल न उगाएं, उचित फसल क्रम अपनाएं तथा साथ ही साथ सरंक्षण कृषि को अपनाने से खरपतवारों, कीटनाशकजीवों और रोगों के प्रकोप को कम करने में सहायता मिलती है|
26. मिट्टी की जांच और मिट्टी सुधारों का उपयोग करें- मिटटी की दशा में गिरावट ऐसी समस्या है, जो बार-बार उभरती है| इसलिए किसानों को समय-समय पर अपनी मिट्टी की जांच कराते रहना चाहिए, भले ही उसमें गिरावट के कोई लक्षण दिखाई दें या न दें, परीक्षणों की रिपोर्ट के आधार पर गुणवत्तापूर्ण मिट्टी सुधार कार्यक्रमों का उपयोग करना चाहिए|
27. सिफारिश के अनुसार उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें- उर्वरकों के संतुलित उपयोग से उत्तम उपज प्राप्त करने तथा उत्पाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करने में सहायता मिलती है| इससे मिट्टी का स्वास्थ्य भी उत्तम बना रहता है|
28. जैव उर्वरकों का प्रयोग करें- जैव उर्वरक पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित जैविक खेती निवेश है, और ये रासायनिक उर्वरकों की तुलना में सस्ते भी पड़ते हैं| दलहनी फसलों के लिए राइजोबियम, गेहूं, मक्का, सरसों तथा कपास के लिए जोटोबैक्टर, मोटे अनाजों एवं मक्का के लिए एजोस्पिरिलम, धान के लिए टोलिपोथ्रिक्स का उपयोग किया जा सकता है|
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29. मिट्टी परीक्षण के आधार पर सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपयोग करें- खेत में लगातार एक ही फसल उगाने से सूक्ष्म पोषक तत्वों को आवश्यकता से अधिक दोहन होता है| उत्तम उत्पादन के लिए अपनी मिट्टी की जांच कराएं और परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपयोग करें|
30. समेकित नाशीजीव का प्रबंधन करें और आवश्यकता के अनुसार पौधों की सुरक्षा वाले रसायनों का उपयोग करें- अपनी फसल पर कीड़ों-मकोड़ों एवं रोगों को देखकर घबराएं नहीं, कीट या रोग की उचित सीमाओं की पहचान के लिए अपने निकटतम कृषि अधिकारी या विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से परामर्श लें तथा उनकी अनुशंसाओं के अनुसार पौधों को सुरक्षा प्रदान करने वाले रसायनों का उपयोग करें|
31. विभिन्न रसायनों को एक साथ न मिलाएं- उत्तम उत्पादन के लिए यह सुझाव है, की कीटों, नाशकजीवों एवं रोगों के नियंत्रण के लिए विभिन्न फार्म रसायनों को आपस में मिलाने से पहले तकनीकी विशेषज्ञों से परामर्श करें, कीटनाशी बेचने वालों के सुझावों पर निर्भर न रहें|
32. जैव एजेंटो का उपयोग करें- जैव एजेंट पर्यावरण मित्र या पर्यावरण के लिए अनुकूल होते हैं, इन जैव एजेंटों का सर्वाधिक उपयोग करें| इसी प्रकार कार्बनिक तत्व भी कीटों एवं नाशकजीवों और रोगों के नियंत्रण में बहुत प्रभावी होते हैं तथा ये भी पर्यावरण मित्र होने के साथ-साथ सस्ते पड़ते हैं, प्रतिकूल परिस्थितियों में ही रसायनों का उपयोग करें|
33. मानवीय और यांत्रिक विधियों का प्रयोग करें- उत्तम उत्पादन के लिए यदि खरपतवारों, कीटनाशक जीवों और रोगों का गहन संक्रमण होता है, तो मानवीय और यांत्रिक विधियों को अपनाना भी महत्वपूर्ण है|
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34. कटाई के उपरांत आवश्यक प्रबंधन करें- फसलों की कटाई के बाद उनकी साज-संभाल से शुद्धता और गुणवत्ता बनाए रखने में मदद मिलती है तथा इस प्रकार उत्तम उत्पाद का बेहतर मूल्य मिलता है| इससे उत्पाद को किन्हीं अनचाही परिस्थितियों से सुरक्षा प्रदान करने में भी सहायता मिलती है|
35. उत्पाद की सही सफाई तथा श्रेणीकरण करें- इससे उत्तम उत्पाद की भौतिक दिखावट में सुधार होता है एवं खरीदार का ध्यान उत्पाद की ओर आकर्षित होता है| जिससे बेहतर मूल्य प्राप्त होता है, ऐसा करने के वांछित स्वच्छता बनाए रखने में मदद मिलती है| यदि श्रेणीकृत उत्पादों के नमूनों को एक बार जन-समुदाय द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है, तो उत्पाद की पूरी खेप को बाजार में बिना लाए बेचा जा सकता है|
36. बिक्री से पूर्व पैकेजिंग अपनाए- जहां तक हो सके अपने उत्पाद को किसी उचित मूल्य वाली लागत प्रभावी पैकेजिंग सामग्री से पैक करें, पैकेजिंग करने से उत्पाद की साज संभाल करने तथा उसके परिवहन के दौरान होने वाली क्षति से भी रक्षा की जा सकती हैं|
37. उत्तम भंडराण सुविधा का लाभ उठाएं- अपने उत्पाद को ऐसी उत्तम भंडारण संरचना में भंडारित करें, जिसमें नमी न हो और कीड़े-मकोड़े तथा रोग आसानी से न लग सकें|
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38. प्राथमिक प्रसंस्करण विधियां अपनाएं- प्रसंस्कारण से उत्पाद के मूल्य और उसकी भण्डारण आयु में वृद्धि होती है, अपनी स्वयं की व्यवस्था या स्वयं सहायता समूह के माध्यम से बिक्री के पूर्व अपने उत्पाद को स्वयं प्रसंस्कृत करने का प्रयास करें, इससे रोजगार के अतिरिक्त अवसर भी सृजित होते हैं|
39. बाजार संबंधी सूचनाओं को जानें और आवश्यक विचार-विमर्श भी करें- अपने आप को बाजार संबंधी सूचना से जोड़ें रखें, बाजार में कृषि जिंसों के मूल्यों में आमतौर पर बहुत अधिक उतार-चढ़ाव होता रहता है| जब कृषि उत्पादों का मूल्य उच्च हो तो अवसर का सबसे अधिक लाभ उठाने का प्रयास करें| बाजार की मांग के अनुसार अपनी आपूर्ति नियमित करें एवं अपना माल तब तक बाजार में बेचने के लिए न लाए|
जब तक आपको यह सुनिश्चित न हो जाए कि मौजूदा बाजार मूल्य आपकी अपेक्षाओं के अनुरूप हैं या नहीं, अपेक्षाओं के अनुरुप होने पर ही अपने माल की बिक्री करें| फसल कटाई के समय सभी किसान बाजार में अपनी फसल की बिक्री हेतु ले जाते हैं, उस समय भाव आमतौर पर कम मिलते हैं| इसलिए किसानों को अपनी फसल को स्टोर में रखना चाहिए, ताकि बाद में अधिक भाव पर बेचा जा सके| भण्डारण के लिए बैंकों की तरफ से ऋण सुविधा भी मिलती है, उसका लाभ उठाएं|
उपरोक्त बातों को अपनाकर किसान उत्तम उत्पादन प्राप्त कर सकता है, एवं कृषि उत्पाद की बाजार में बिक्री से अधिक आमदनी प्राप्त कर सकता है|इससे किसान को व्यक्तिगत रूप से कम खर्च करके अधिक आय प्राप्त होती है और परिवार की समृद्धि भी सुनिश्चित होती है|
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