भारत में कपास फसल का संपूर्ण क्षेत्रफल लगभग 10.26 मिलियन हेक्टेयर है| भारत में बी.टी. कपास फसल की उत्पादकता केवल 580 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है| जबकि विश्व की सामान्य उत्पादकता 740 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है| कपास की फसल की कम पैदावार के लिए जैविक तथा भौतिक कारण उत्तरदायी हैं| जैविक कारणों में कीट, पतंगे कपास फसल की कम पैदावार के प्रमुख कारण हैं|
आजादी के बाद हमने कृषि के क्षेत्र में हरित क्रांति का सूत्रपात किया तभी आज हम एक अरब से अधिक लोगों के भोजन की आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ हुए हैं| लेकिन इस प्रक्रिया में हमने पौध संरक्षण रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग किया जिसके परिणाम स्वरूप हमारी फसलों के मित्र एवं शत्रु कीटों का संतुलन बिगड़ गया|
लेकिन अभी कुछ वर्षों से कीट प्रबन्धन की आवश्यकता समझी गई तथा इसको क्रियान्वित करने का भरपूर प्रयत्न किया जा रहा है| कीट प्रबन्धन के लिए अतिआवश्यक है, कि किसानों को फसलों में लगने वाले रोगों के लक्षण व कीटों की पहचान के साथ-साथ उनके प्राकृतिक शत्रु कीटों की भी पहचान हो| वस्तुस्थिति यह है कि मित्र-कीट हानिकारक कीटों से अधिक संख्या में होते हैं|
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आमतौर पर किसान मित्र एवं शत्रु कीटों का भेद नहीं कर पाते, इसलिऐ कभी-कभी किसान मित्र कीटों को नाशीजीव समझकर रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग कर देते हैं| विश्व में कपास फसल की लगभग 1326 प्रजातियां कीटों की पाई जाती हैं और इनमें से भारत में 166 प्रजातियां पाई जाती हैं| उनमें से एक दर्जन से ज्यादा प्रमुख कीट आर्थिक नुकसान पहुँचाते हैं|
लेख में कपास फसल की अलग-अलग अवस्थायें तथा कीट और रोग प्रकोप की जानकारी का उल्लेख है, जिसको जानना किसान बन्धुओं के लिए अति आवश्यक है| यदि आप कपास फसल में एकीकृत कीट प्रबंधन की विधियां जानना चाहते है, तो यहां पढ़ें- कपास में एकीकृत कीट प्रबंधन कैसे करें
कपास फसल की विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार कीट और रोगों का प्रकोप
1. कपास फसल अवस्था 1 से 30 दिन (वानस्पतिक अवस्था)- कीट रोग प्रकोप जैसे- चेपा, जैसिड, थ्रिप्स, मकड़ी, सफेद मक्खी, मिली बग, ब्लैक आर्म, कोणदार पत्ती धब्बा फ्युजेरियम विल्ट, जड़ गलन आदि प्रमुख है|
2. कपास फसल अवस्था 31 से 60 दिन (स्क्वायर बनने की अवस्था)- कीट रोग प्रकोप जैसे- चेपा, जैसिड, थ्रिप्स, मकड़ी, सफेद मक्खी, मिली बग, ब्लैक आर्म, कोणदार पत्ती धब्बा फ्युजेरियम विल्ट, जड़ गलन आदि प्रमुख है|
3. कपास फसल अवस्था 61 से 120 दिन (फूल व टिण्डा बनने की)- कीट रोग प्रकोप जैसे- सफेद मक्खी, मिली बग, चित्तीदार सूण्डी, तम्बाकू वाली लट, हरी सूण्डी, गुलाबी सूण्डी, ब्लैक आर्म, फ्युजेरियम विल्ट, ग्रेमिल्यू पत्ती धब्बा आदि प्रमुख है|
4. कपास फसल अवस्था 121 से 180 दिन (टिण्डा फटने की शुरुआत से पकने तक)- कीट रोग प्रकोप जैसे- मिलीबग, कोणदार पत्ती धब्बा, फ्युजेरियम आदि प्रमुख है|
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कपास फसल की विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार रस चूसने वाले कीट
कपास का गुझिया या चूरड़ा कीट- यह कीट कुछ ही वर्षों से कपास फसल में क्षति करने के लिहाज से मुख्य कीट हो गया है| यह उत्तरी और मध्य भारत में काफी क्षति करता है| प्रभावित पौधे कमजोर, झाड़ीनुमा एवं छोटे रह जाते हैं तथा इन पर टिण्डे (फल) कम, कुरुप और छोटे आकार में लगते हैं| कीट पौधों पर एक प्रकार का मधुस्राव करते हैं, जिस पर काली फफूदी उगने से प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया प्रभावित होती है और चीटियाँ आकर्षित होती हैं| इस कीट को एक पौधे से दूसरे पौधों तक पहुँचते भी देखा गया है|
आर्थिक क्षति स्तर- 10 व्यस्क या निम्फ प्रति पत्ती|
कपास का फुदका कीट या तेला कीट- कपास फसल में यह व्यस्क कीट लगभग 3 मिलीमीटर लम्बा, हरा पीला और पंखों पर पीछे की ओर दो काले धब्बे होते हैं| ये कीट तिरछे तिरछे चलते हैं, एक वयस्क मादा पीले रंग के 15 अण्डे पत्तियों की निचली सतह पर नसों के अन्दर देती है|
अण्डों से निम्फ 6 से 10 दिन में निकल आते हैं और निम्फ से वयस्क बनने में 7 से 21 दिन लगते हैं| शिशु एवं वयस्क पत्ती की निचली सतह से रस चूसकर फसल को हानि पहुँचाते हैं| इनके प्रकोप से पत्ते टेढ़े होकर नीचे की तरफ मुड़ जाते हैं| अधिक प्रकोप होने पर पत्ते लाल होकर सूखकर गिर जाते हैं|
आर्थिक क्षति स्तर- 2 व्यस्क या निम्फ प्रति पत्ती|
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श्वेत मक्खी ( बेमैसिया टेबैकी )- यह कीट कपास फसल की वानस्पतिक वृद्धि के समय से टिण्डे बनने तक फसल को प्रभावित करते हैं और कपास की पत्तियों के मरोड़िया (लीफ कर्ल) रोग को एक पौधे से दूसरे स्वस्थ पौधों में फैलाते हैं| श्वेत मक्खी छोटी लगभग 1 से 1.3 मिलीमीटर लेकिन आर्थिक क्षति की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं|
व्यस्क एवं निम्फ पौधों के मुलायम भागों से रस चूसते हैं, इस कारण से पौधे कमजोर हो जाते हैं और कपास फसल के प्रजनक भागों की वृद्धि कम हो जाती है| कीट मधु स्राव भी करते हैं, जिस पर काली फफूदी उगने से पत्तियों और खुले टिण्डों की कपास का रंग काला हो जाता है तथा पौधों की भोजन बनाने की क्षमता कम हो जाती है|
आर्थिक क्षति स्तर- 8 से 10 व्यस्क या निम्फ प्रति पत्ती|
माहू या चेपा- कपास फसल में यह व्यस्क एवं निम्फ छोटे आकार के 2 से 3 मिलीमीटर लम्बे, मुलायम शरीर युक्त और इनका रंग हरा धूसर होता है तथा ये पत्तियों की निचली सतह पर झुंड में बसते हैं, पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे पत्तियाँ ऐंठने लगती हैं और बाद में झड़ जाती हैं| प्रभावित पौधों पर रोग कारक विषाणु पनपते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया भी प्रभावित होती है|
आर्थिक क्षति स्तर- 10 फीसदी प्रभावित पौधे|
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मिली बग- कपास फसल में मिली बग एक सर्वभक्षी कीट है, जो मालवेसी, सोलोनेसी तथा लेग्यूमिनोसी परिवार के पौधों को अधिक पसंद करता है| मिलीबग के पोषक पौधे अंगूर, अंजीर, खजूर, सेब, केला, नींबू प्रजाति, कपास और कुछ सजावटी पौधे हैं| मिली बग का शरीर 3 से 3.7 मिलीमीटर लम्बा होता है| मेकोनेलीकोकस हिरस्यूट्स के अण्डे और कॉलर का रंग पीला होता है| अपरिपक्व व नयी मादाएं स्लेटी-गुलाबी रंग की होती हैं, जिनका शरीर सफेद मोम से ढका रहता है|
प्रौढ़ मादाओं का शरीर मुलायम और 2.5 से 4.0 मिलीमीटर लम्बा, अण्डाकार तथा थोड़ा सा चपटा होता है| मादाओं के शरीर पर 9 खण्डों की श्रृंगिका और पृष्ठीय भाग में गुदा से मुखांग तक पूरे शरीर पर नलियां पाई जाती हैं, जो टांगों और लम्बी सीटी पर नहीं होती, नर कीट में एक जोड़ी साधारण पंख, लम्बी श्रृंगिका तथा सफेद मोम के बन्द तन्तु पीछे की तरफ उभरे दिखाई पड़ते हैं| कपास में आक्रमण से पौधों की वृद्धि रुक जाती है और टिण्डे देरी से खिलते हैं|
परिणामस्वरुप कपास फसल की उपज एवं गुणवत्ता प्रतिकूल प्रभावित होती हैं| कीट द्वारा पौधों के मुलायम ऊतकों में राल पहुंचाने से पत्तियां सिकुड़कर मुड़ जाती हैं| मिली बग्स और चींटियों का सहजीवन मिली बग अपने मीठे मधुस्राव से चींटियों को प्रलोभन देकर बदले में उनसे स्वयं के परिवहन में सहायता और परभक्षी, परजीवी तथा अन्य प्राकृतिक शत्रुओं से रक्षा करवाती हैं| मिली बग के समूह में उपथित कचरा और अतिरिक्त मधु स्राव जो मिली बग झुण्ड को नुकसान कर सकता है, उसे चींटियाँ साफ करने का कार्य करती हैं|
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कपास की धूसर कीट- कपास फसल में यह व्यस्क कीट 4 से 5 मिलीमीटर लम्बा, धुंधला धूसर और पंख मटमैले सफेद पारदर्शी होते हैं, निम्फ पंख विहीन होते हैं| व्यस्क एवं बच्चे अविकसित बीजों से रस चूसते हैं तथा बीज ठीक से पक नहीं पाते और कम वजन के होते हैं|
जिनिंग के समय कीटों के पिचककर मरने से रुई की गुणवत्ता प्रभावित होती है और बाजार मूल्य कम हो जाता है| अन्य कीटों के नियंत्रण करने के साथ इसका नियंत्रण हो जाता है|
कपास का लाल कीट- कपास फसल में यह कीट 1.5 से 2.0 मिलीमीटर लम्बा, गहरे लाल रंग का होता है और इसके पेट पर सफेद रंग की धारियाँ पाई जाती हैं| आगे वाले पंखों पर एक-एक काला धब्बा होता है, निम्फ पंख विहीन, लाल रंग के होते हैं| फसल जब 60 से 80 दिनों की होने पर ये कीट दिखाई देता है|
निम्फ और व्यस्क दोनों पौधों की पत्तियों एवं हरे टिण्डों से रस चूसते हैं| प्रभावित टिण्डों पर पीले निशान या धब्बे दिखते हैं| साथ ही बॉल्स में बन रही रुई भी धब्बेदार हो जाती है, अन्य कीटों के नियंत्रण करने के साथ इसका नियंत्रण भी हो जाता है|
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