कपास में सूक्ष्म पोषक तत्व किसान भाइयों किसी भी फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए पोषण हेतु आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा मिट्टी में होना आवश्यक है| अगर मिट्टी में ये पोषक तत्व फसल की आवश्यकतानुसार नहीं है और फसल लगाने के पूर्व या जब भी फसल इनकी कमी देखी जाएं तो इनकी उचित मात्रा देना अच्छी फसल लेने के लिए परम आवश्यक है|
पौधे को कुल 17 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, इनमे से आठ पोषक तत्वों अर्थात् जस्ता, लोहा मैगनीज, तांबा, बोरान, क्लोरीन मोलिब्डेनम और निकिल की केवल बहुत थोड़ी सी मात्रा प्राप्त रहती है| अतः इन पोषक तत्वों को सूक्ष्म पोषक तत्व कहते हैं|
आज से चार पांच दशक पूर्व किसान खाद के तौर पर केवल कम्पोस्ट खाद का इस्तेमाल करते थे और वर्ष में एक खेत में एक ही फसल लेने से इन सूक्ष्म तत्वों की कमी फसल में महसूस नहीं होती थी| आजकल समय की मांग को देखते हुए किसानों ने सघन फसल चक्र व साथ ही साथ फसल की अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों को अपना लिया है| जिससे मिटटी इन फसलों की पोषक तत्वों की मांग पूरी नहीं कर पाती|
कपास में सूक्ष्म पोषक तत्व या फसलों की पोषक तत्वों की मांग को किसान रसायनिक खादों के उपयोग से पूरी करते हैं| अक्सर किसान मुख्य पोषक तत्व जैसे की नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश तो फसल को दे देते है| लेकिन सुक्ष्म तत्वों पर आवश्यक ध्यान न देने से फसल पर इनकी कमी के चिन्ह दिखाई देने लगते है तथा पैदावार प्रभावित होती है|
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कपास उत्तर भारत में पंजाब हरियाणा, राजस्थान में मुख्य रुप से और उत्तर प्रदेश में भी कुछ क्षेत्रों में इसका उत्पादन छोटे पैमाने पर करते है| इन राज्यों में कपास गेहूं फसल चक्र में सिंचित स्थिति में उगाई जाती है| दोनों फसलों की किसान भाई उन्नत किस्में लेते है और सुविधानुसार रासायनिक खादों का इस्तेमाल करते हुए अकसर सुक्ष्म पोषक तत्वों को व कम्पोस्ट खाद को कम महत्व देते हैं|
जिससे फसलों में द्वितीय एक सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी अक्सर देखी जाती है| जिससे पैदावार प्रभावित होती है| द्वितीय पोषक तत्वों में कैल्सियम, मैगनीसियम व सल्फर आते हैं| इन पोषक तत्वों की फसल मुख्य पोषक तत्व नत्रजन, फासफोरस व पोटाश से कम व सुक्ष्म पोषक तत्वों से अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है|
उत्तर भारत की मिटटी में कैलिसियम की मात्रा तो होती है लेकिन फसल में अक्सर मैगनीसियम व सल्फर की कमी देखने को मिलती है| इस लेख में कपास में सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधन कैसे करें जिससे कपास की अधिक पैदावार प्राप्त की जा सके का उल्लेख है| कपास की खेती की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कपास की खेती कैसे करें
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कपास में सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधन
मैगनीसियम- यह क्लोरोफिल का एक अवयव है और पौधे की प्रकाश संश्लेषण क्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है एवं एंजाइम अभिक्रिया के लिए आवश्यक होता है| कपास में सूक्ष्म इस पोषक तत्व की कमी से पत्तियों की शिराओं में लालपन आ जाता है| खेत में बुवाई से पहले 8 से 10 टन प्रति एकड़ की दर से गोबर की खाद डालनी चाहिए या इसको फसल में मैग्नीसियम सल्फेट के छिड़काव द्वारा दिया जा सकता है|
सल्फर- सल्फर पौधों में प्रोटिन का मुख्य अवयव होता है, क्योंकि कपास एक रेशे के साथ-साथ तेल प्रदान करने वाली फसल है| इसलिए इस फसल में इसकी आवश्यकता अधिक होती है और कपास में सूक्ष्म इस पोषक तत्व की कमी की वजह से फसल में टिण्डे कम बनते है| जिससे उत्पादन प्रभावित होता है, इसकी पूर्ति गोबर की खाद या सिंगल सुपर फास्फेट या जिंक सल्फेट द्वारा की जा सकती है|
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जस्ता- कपास में सूक्ष्म पोषक तत्व जस्ते की कमी से नई पत्तियों की शिराएं के मध्य में पर्णहीनता दिखाई देती है| पत्तियां आमतौर पर छोटे आकार की और गुच्छेनुमा हो जाती है| इसकी पुर्ती के लिए फसल में या तो बुवाई से पूर्व मिट्टी में 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति एकड़ डालना चाहिए या खड़ी फसल में 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट ओर 0.25 प्रतिशत चूने के घोल का छिड़काव करना चाहिए|
मैंगनीज- कपास में सूक्ष्म इस पोषक तत्व के कम होने के चिन्ह सर्वप्रथम बीच वाली पत्तियों की शिराओं के मध्य हल्के हरे भूरे रंग के धब्बें तथा आरम्भिक पत्तियों में हरित हीनता दिखाई पड़ती है| जिसे “ग्रे-स्पैक” के नाम से जाना जाता है| जिससे मैंगनीज की कमी की स्थिति में 1.0 प्रतिशत मैगनीज सल्फेट और 0.5 प्रतिशत चूने के घोल के छिड़काव से पूरा किया जा सकता है|
बोरान- कपास में सूक्ष्म पोषक तत्व बोरान की कमी के लक्षण अंतिम कलिकाए और नई पत्तियों रंगहीन होकर बाद में मर जाती है| तने छोटे रह जाते है और पौधे पूर्ण वृद्धि नहीं कर पाते है| फसल में बोरान का अभाव 0.3 प्रतिशत बोरेक्स के घोल के छिड़काव से दूर किया जा सकता है|
अन्य सूक्ष्म तत्वों की बहुत अल्प मात्रा की आवश्यकता होती है| उससे किसान गोबर की खाद के प्रयोग से दूर कर सकते है| अगर किसान गोबर की खाद का उपयोग समय-समय पर करेगें तो फसल में सुक्ष्म पोषक तत्वों का अभाव नहीं होगा एवं किसान कपास की अधिक पैदावार ले पाएगें|
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