क्षारीय जल (Alkaline water) में उपस्थित धनायनों में कैल्शियम एवं मैग्नीशियम की अपेक्षा सोडियम आयन अधिक मात्रा में होता है और ऋणायनों में कार्बोनेट तथा बाई कार्बोनेट आयनों की मात्रा क्लोराइड एवं सल्फेट आयन की तुलना में अधिक होती है, यानि की ऐसे जल में सोडियम कार्बोनेट और सोडियम बाई कार्बोनेट लवणों की प्रचुरता होती है| ऐसे जल में फ्लोराइड, क्लोराइड, नाइट्रेट आदि आयन भी अधिक होते हैं, जो इस जल को सिंचाई के लिए अनुपयुक्त बनाते हैं|
इस तरह के जल से सिंचाई करने पर मिट्टी सोडियम संतृप्त होने लगती है तथा उनकी क्षारीयता यानि विनमयशील सोडियम प्रतिशत (ई एस पी) बढ़ने लगती है| जिसके कारण मिट्टी में वायु के आवागमन और अन्त:स्पंदन दर के साथ-साथ अन्य भौतिक गुणों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| क्षारीय पानी द्वारा सिंचित मिट्टी सूखने पर अत्यधिक कठोर हो जाती है और गीली होने पर इनके कण बिखर जाते हैं|
जिससे मृदा कणों में स्थित रन्ध्रावकाश अवरूद्ध हो जाते हैं एवं जिससे पादप जड़ों की श्वसन क्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| अपर्याप्त श्वसन की वजह से ही गेहूं की फसल के नये पौधों में पहली सिंचाई के बाद ही पीलापन नजर आने लगता है| अधिक कार्बोनेट और बाई कार्बोनेट वाले जल से सिंचाई करने पर पौधों में विषाक्तता के विशिष्ट लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं|
पौधों के विकास की प्रारम्भिक अवस्था में ही पत्तियां जलने लगती हैं और उन पर काले-काले धब्बे पड़ने लगते हैं| विभिन्न प्रयोगों के परिणामों से पता चलता है, कि लम्बे समय तक क्षारीय जल के प्रयोग से मिट्टी में क्षारीयता बढ़ती है, तथा फसल उपज घटती है| इसलिए हम उचित प्रबंधन विधियां अपनाकर क्षारीय जल को कृषि में स्थाई रूप से उपयोग कर सकते हैं| लवणीय जल का खेती में उपयोग के लिए यहां पढ़ें- लवणीय जल का खेती में सुरक्षित उपयोग कैसे करें
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क्षारीय पानी का खेती में स्थायी और सुरक्षित उपयोग प्रबंधन विधियां
कृषि में क्षारीय जल का लम्बे समय तक सुरक्षित प्रयोग हेतु हमें उचित फसल प्रबंधन, सिंचाई प्रबंधन, खाद और उर्वर प्रबंधन एवं जिप्सम का उपयोग करना होगा| इसके अलावा मिट्टी संरचना के आधार पर क्षारीय जल का कृषि में सुरक्षित उपयोग करने हेतु कुछ दिशा-निर्देश तैयार किये गये हैं, जिनका विवरण निचे तालिका में दिया गया है, जैसे-
क्षारीय पानी को प्रयोग करने के सम्बन्ध में सिंचाई हेतु दिशा-निर्देश-
मिट्टी संरचना (प्रतिशत) | सोडियम अधिशोषण अनुपात | अवशिष्ट सोडियम की सीमा (मिली तुल्य प्रति लीटर) |
महीन संरचना (30 से अधिक) | 10 | 2.5 से 3.5 |
कम महीन संरचना (20 से 30) | 10 | 3.5 से 5.0 |
कम मोटी संरचना (10 से 20) | 15 | 5.0 से 7.5 |
मोटी संरचना (10 से कम) | 20 | 7.5 से 10.0 |
इसलिए हम इन दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखकर और उचित प्रबंधन विधियों को अपनाकर हम मिट्टी में क्षारीयता स्तर बढ़ाये बिना क्षारीय जल से सिंचाई कर लम्बे समय तक फसल उत्पादन कर सकते हैं|
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क्षारीय पानी का खेती में स्थाई और सुरक्षित प्रबंधन
क्षारीय जल क्षेत्रों में हम उच्च और मध्यम क्षारीयता को सहन करने वाली फसलों तथा उनकी किस्मों का व उपयुक्त फसल चक्र का चुनाव करके उचित फसल पैदावार ले सकते हैं| क्षारीय वातावरण में उगाने के लिए उपयुक्त फसलें और उनकी किस्मों का विवरण निचे तालिका में दिया गया है, जैसे-
क्षारीय वातावरण में उगाने हेतु फसल और उनकी प्रमुख किस्में फसल प्रमुख किस्में-
खेती | मुख्य किस्में |
धान | सीता, ऊसर 1, जया, आई आर- 8, 20, 24, सी.एस. आर. 4 और 5 आदि |
गेहूं | राज 3077, डब्ल्यू एच- 157 और के आर ल- 1-4 आदि |
सरसों | वरूणा, पूसा बोल्ड और सी एस- 52 आदि |
जौ | डी एच- 4, 106, 120 और वी एच एस- 12 आदि |
कपास | मलजारी, विक्रम 70 और आई एस- 452 आदि |
बाजरा | एम एच- 269 और एम एच- 280 आदि |
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क्षारीय पानी के प्रयोग वाले क्षेत्रों में कुछ विशेष सस्य क्रियाएं
क्षारीय जल के प्रयोग वाले क्षेत्रों में कुछ विशेष सस्य क्रियाएं करने से फसलों की उपज में बढ़ोत्तरी की जा सकती है| निम्नांकित सस्य क्रियाएं अपनाकर अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है, जैसे-
1. वर्षा जल का भूमि से अधिक से अधिक जल संग्रह तथा संरक्षण, क्षारीय पानी से सफल खेती के लिए अतिआवश्यक है|
2. शुक (वर्षा 35 सेंटीमीटर के कम) क्षेत्रों में रबी में केवल सहनशील फसलें उगायें|
3. अर्द्धशुष्क (वर्षा 35 से 55 सेंटीमीटर) क्षेत्रों में ज्वार-गेहूं, ग्वार-गेहूं, बाजरा-गेहूं तथा कपास-गेहूं फसल चक्र उपयुक्त पाये गये हैं|
4. 55 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में धान-गेहूं, धान-सरसों, धान-बरसीम, ज्वार (चारा)-सरसों, टैंचा (हरी खाद) गेहूं, सूडान घास-जई इत्यादि फसल चक्र लाभकारी पाये गये हैं| किन्तु सिंचाई के साथ पर्याप्त मात्रा में जिप्सम का प्रयोग आवश्यक है|
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क्षारीय पानी के साथ जिप्सम का प्रयोग
फसलों में क्षारीय जल से सिंचाई करने पर उत्पन्न क्षारीयता के प्रभाव को कम करने के लिए जिप्सम का प्रयोग किया जाता है| अवशिष्ट सोडियम कार्बोनेटयुक्त सिंचाई जल के लिए जिप्सम की आवश्यक मात्रा का निर्धारण जिले की मिट्टी और पानी जांच करने वाली प्रयोगकशाला में सिंचाई जल का नमूना भेजकर किया जा सकता है|
यदि सिंचाई जल में अवशिष्ट सोडियम कार्बोनेट की मात्रा 2.5 मिलीलीटर तुल्य प्रति लीटर से कम हो तो खेत में जिप्सम डालने की आवश्यकता नहीं होती है| लेकिन इससे अधिक प्रति एक मिलीलीटर तुल्य प्रति लीटर अवशिष्ट सोडियम कार्बोनेट सार्द्रता होने पर लगभग 90 किलोग्राम कृषि ग्रेड जिप्सम प्रति हेक्टेयर प्रति 7.5 सेंटीमीटर गहरी सिंचाई हेतु खेत में मिलाना चाहिए|
खेत में जिप्सम मिलाने का उचित समय मई-जून का महीना होता है| सिंचाई जल में जिप्सम मिलाने की क्रिया को सरल और व्यवहारिक बनाने के लिए जिप्सम बेड का प्रयोग भी करना चाहिए| इसमें सिंचाई जल को विशेष रूप से बनी हौज से गुजारा होता है, जिसमें जिप्सम की पर्याप्त मात्रा बोरी में भरकर पड़ी रहती है| इससे पूरे खेत में सिंचाई जल के साथ जिप्सम की एक समान मात्रा पहुंचायी जा सकती है|
क्षारीय पानी और सिंचाई व्यवस्था
क्षारीय जल से सिंचाई करते समय अधिक पानी एक बार देने के बजाय कम अंतराल पर दो सिंचाइयां करनी ठीक रहता हैं| हल्की सिंचाई एवं दो सिंचाइयों के बीच कम अन्तराल रखने से अधिक लाभ होता है| नहरी और क्षारीय पानी मिलाकर या बारी-बारी से उपयोग करना अच्छा रहता है| खेत में बुआई से पूर्व पलेवा अच्छे या नहर के पानी से ही करना चाहिए एवं फसल की सिंचाई के लिए क्षारीय पानी का प्रयोग करना चाहिए|
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क्षारीय पानी और खाद और उर्वरक प्रबंधन
क्षारीय जल से सिंचाई करने वाले क्षेत्रों में लगभग 25 प्रतिशत अधिक नाइट्रोजन का प्रयोग करना चाहिए| 20 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर प्रयोग करने से प्रभावित क्षेत्रों में उपज में काफी वृद्धि होती है| समय-समय पर हरी खाद या गोबर की खाद का प्रयोग करने से क्षारीय पानी से होने वाली कुछ सीमा तक कम की जा सकती है|
निष्कर्ष
निम्न गुणवत्ता वाले जल को कृषि में सुरक्षित और स्थाई उपयोग करने के लिए हमें जल तथा मिट्टी गुणवत्ता की जांच करा कर और उचित दिशा-निर्देशों का पालन कर उपयुक्त फसल, सिंचाई, खाद व उर्वरक प्रबंधन विधियां तथा कुछ विशेष सस्य क्रियाओं को अपनाना होगा| इस प्रकार हम इस निम्न गुणवत्ता वाले सिंचाई जल से अपने खेतों की मिट्टी को उपजाऊ बनाए रखते हुए सामान्य फसल उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं और हमारे देश की फसल तथा जल उत्पादकता को भी बढ़ा सकते हैं|
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