कद्दूवर्गीय फसलों में खरबूजा एक महत्वपूर्ण फसल है| खरबूजे की खेती (Melon farming) मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार और मध्य प्रदेश के गर्म तथा शुष्क क्षेत्रों में की जाती है| हमारे देश के उत्तर-पश्चिम में खरबूजा की खेती व्यापक रूप से की जाती है| इसकी खेती नदियों के किनारे मुख्य रूप से होती है| खरबूजा एक स्वादिष्ट फल है, जो गर्मियों में तरावट देता है और इसके बीजों का उपयोग मिठाई को सजाने में किया जाता है|
यह पेट विकार में लाभदायक है| इसमें विटामिन सी एवं शर्करा की मात्रा अधिक होती है| यदि कृषक इसकी खेती उन्नत किस्मों के साथ वैज्ञानिक तकनीक से करें तो खरबूजे की फसल से अच्छी गुणवतापूर्ण उपज प्राप्त की जा सकती है| इस लेख में खरबूजे की उन्नत खेती कैसे करें का विस्तृत वर्णन किया गया है| कद्दू वर्गीय अन्य सब्जियों की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कद्दू वर्गीय सब्जियों की उन्नत खेती कैसे करें
खरबूजे की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
खरबूजा एक नकदी फसल है| गर्म एवं शुष्क जलवायु वाले प्रदेश इसकी खेती के लिए उत्तम है| यह गर्मी के मौसम की फसल है| बीज के जमाव एवं पौधों के बढ़वार के लिए 22 से 26 डिग्री सेल्सियस तापक्रम अच्छा होता है| फल पकते समय मौसम शुष्क तथा पछुआ हवा बहने से फलों में मिठास बढ़ जाती है| हवा में अधिक नमी होने से फल देरी से पकते है तथा रोग लगने की संभावना भी बढ़ जाती है|
खरबूजे की खेती के लिए भूमि का चुनाव
खरबूजे की खेती अनेक प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है| परन्तु अच्छी फसल के लिए बलुई दोमट भूमि उत्तम होती है| भारी मिट्टियाँ इसके लिए उपयुक्त नहीं रहती| सामान्यतः खरबूजे की खेती नदियों के किनारों की रेतीली भूमि में की जाती है| लेकिन समतल सींचित खेतों एवं सूखे तालाबों के क्षेत्रों में भी खरबूजे खेती की जा सकती है|
व्यवस्थित एवं लाभप्रद खेती के लिए पानी के अच्छे निकास वाली बलुई दोमट भूमि और रेतीली मिट्टी सर्वोत्तम है| फसल की बढ़िया वानस्पतिक वृद्धि एवं उपज के लिए खेत में पर्याप्त जीवांश मात्रा का होना बहुत ही जरूरी है| खेत की मिटटी का पी एच मान 6 से 7 खरबूजे के लिए सर्वोत्तम रहता है|
खरबूजे की खेती के लिए खेत की तैयारी
खरबूजे की बुआई हेतु खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2 से 3 जुताईयां कल्टीवेटर से करनी चाहिए| प्रत्येक जुताई के बाद पाटा चलाकर मिट्टी को भुर-भुरा कर लेना चाहिये| उचित जल निकास के लिए खेत को समतल कर लेना चाहिये तथा आखिरी जुताई के समय ही खेत में 200 से 250 कुंटल सड़ी गोबर की खाद को अच्छी प्रकार मिला देना चाहिये|
खरबूजे की खेती के लिए उन्नत किस्में
खरबूजे की फसल से भरपूर पैदावार के लिए स्थानीय किस्मों की जगह उन्नत और अधिक पैदावार देने वाली किस्मों का चयन करना चाहिए| कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार है, जैसे- पूसा मधुरस, अर्का राजहंस, अर्का जीत, काशी मधु, दुर्गापुरा मधु, आर एम- 43, आर एम- 50, एम एच वाई- 3, एम एच वाई- 5, हरा मधु, पंजाब सुनहरी, गुजरात खरबूजा- 1 और गुजरात खरबूजा- 2 आदि प्रमुख है| खरबूजा की किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- खरबूजे की उन्नत किस्में
खरबूजे की खेती के लिए बुआई का समय
मैदानी क्षेत्रों में खरबूजे की बुआई 15 से 25 फरवरी के बीच में तथा पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रैल से मई तक की जाती है| नदियों के कच्छार में इसकी बुआई नवम्बर में या जनवरी के अंतिम सप्ताह में करते है| दक्षिण एवं मध्य भारत में इसकी बुआई अक्टूबर से नवम्बर में की जाती है|
खरबूजे की खेती के लिए बीज और उपचार
एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए औसतन 1 से 1.5 किलोग्राम खरबूजे के बीज की आवश्यकता पड़ती है| 100 बीज का औसतन वजन लगभग 2.5 ग्राम होता है| बीज को बोने से पूर्व कैप्टान या थिराम से उपचारित कर लेना चाहिये|
खरबूजे की खेती के लिए बुवाई की विधि
खरबूजे की बुआई के लिए 2 से 2.5 मीटर की दूरी पर नालियां बनानी चाहिये| बीज की बुआई नाली के किनारे पर करने के लिये 60 से 80 सेंटीमीटर की दूरी पर थाले में 2 से 3 बीज लगाने चाहिये| बीज को 1.5 से 2.0 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिये| थाले में बोये गये बीज 4 से 5 दिनों में अंकुरित हो जाते हैं| नदियों के किनारे इसकी बुआई गड्डों में करते हैं| इसके लिये 60 x 60 x 60 सेंटीमीटर का गड्डा बनाकर उसमें 1:1:1 के अनुपात में गोबर की खाद, मिट्टी तथा बालू मिलाते है|
इसके बाद एक गड्डे में 2 से 3 बीज की बुआई करते हैं| बूंद-बूंद सिंचाई की व्यवस्था होने पर खेत में लेटरल को सीधी कतार में बिछाकर बीजों को ड्रिपर्स के पास बोते हैं| बुवाई के 15 से 20 दिन बाद प्रत्येक जगह 1 से 2 स्वस्थ पौधे छोड़कर बाकी को निकाल देना चाहिए|
खरबूजे की खेती के लिए पौषक तत्व प्रबंधन
खरबूजे की अगेती फसल की मांग ज्यादा रहती है| इसके लिए आरम्भ में पौधों की वृद्धि तेज होनी चाहिये, जिससे उस पर जल्दी पुष्प एवं फल आ जाये| खेत में 200 से 250 कुंटल अच्छी प्रकार सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालना चाहिये| इसके अतिरिक्त उर्वरक के रूप में 80 किलोग्राम नत्रजन, 75 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर खेत में डालना चाहिये|
नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय देना चाहिये| बची हुई नत्रजन की मात्रा दो बराबर भागों में टॉप ड्रेसिंग के रूप में जड़ के पास बुआई के 20 एवं 40 दिन बाद देनी चाहिये, जिससे कुल उपज बढ़ जाती है|
खरबूजे की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन
सफल अंकुरण के लिए खेत में पर्याप्त नमी का होना अत्यन्त आवश्यक है| थालों में लगाये गये पौधों को नालियों से सिंचाई करते है| शुरुआत में हर सप्ताह पानी देने की आवश्यकता पड़ती है| पौधों की बढ़वार एवं फलों के बढ़ने के समय खेत में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए| फलों के पूरी तरह बढ़ जाने के बाद सिंचाई को कम कर देना चाहिए, जिससे फलों में मिठास बढ़ जाती है| खरबूजे की पूरी फसल अवधि में कुल मिलाकर 5 से 6 बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है|
सिंचाई जल की उपलब्धता होने पर बूंद-बूंद तकनीकी अपनाकर खरबूजा उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है, साथ ही इस विधि में सिंचाई जल की बचत भी होती है| शुष्क क्षेत्रीय जलवायु में खरबूजे की खेती के लिए सिंचाई की बूंद-बूंद तकनीक सर्वोत्तम रहती है| इस प्रणाली में 4 लीटर प्रति घण्टे के ड्रिपर से 3 से 4 दिन के अन्तराल पर 2 से 3 घण्टे सिंचाई करनी चाहिए|
खरबूजे की फसल में निराई गुड़ाई
सिंचाई करने के बाद नालियों और थालों में खरपतवार उग आते हैं| इन्हें समय-समय पर खेत से निकालते रहना चाहिये| सिंचाई करने के बाद मिट्टी सख्त हो जाती है| अतः सिंचाई के बाद हल्की गुड़ाई करनी चाहिये, इससे खेत की पपड़ी टूट जाती है और पौधों की जड़ो को हवा मिल जाती है, जिससे पौधों का विकास तेजी से होता है| गुड़ाई के समय पौधों की जड़ों पर हल्की मिट्टी चढ़ा देनी चाहिये|
खरबूजे की फसल की देखभाल
खरबूजे की फसल में को भी कद्दू वर्गीय सब्जियों को हानि पहुँचाने वाले कीट या नाशीजीव ही प्रभावित करते हैं| इस फसल को हानि पहुँचाने वाले कीटों में कद्दू का लाल भृंग, ऐपीलेकना भृंग या हाड़ा बिटल, माहू या एफिड फल मक्खी, बरुथी छिछड़ी माईट्स आदि प्रमुख है| इनके प्रकोप से फसल को बचाने के लिए समय पर नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है|
वहीं रोगों में कद्दू वर्गीय फसलों में लगने वाले प्रमुख रोग जैसे- छाछिया या चूर्णिल आसिता, तुलासिता या मृदुरोमिल आसिता, श्याम वर्ण या रूक्ष रोग, पर्णचित्ती, अंगमारी या झुलसा रोग, जड़ विगलन या म्लानि, फल विगलन जैसे फफूंदी रोग, जीवाण्विक, वीषाणु रोग और सूत्रकृमि जनित रोग हानि पहुँचाते हैं| इनमें से कुछ रोग खरबूजे की फसल को भी हानि पहुँचा सकते हैं, इसलिए समय पर रोग नियंत्रण जरूरी है| उपरोक्त कीट और रोगों की रोकथाम की सम्पूर्ण जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कद्दूवर्गीय सब्जी की फसलों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें
खरबूजे की फसल से फलों की तुड़ाई
साधारणतः फलों के पकने पर इनके रंग में परिवर्तन होने लगता है, और उनसे तेज खुशबू भी आने लगती है, तथा पके हुए फल डंठल से आसानी से अलग हो जाते हैं| खरबूजों की तुड़ाई के लिए सुबह का समय उपयुक्त होता है|
खरबूजे की खेती से पैदावार
खरबूजे की उपज निम्न कारकों जैसे- जलवायु, मृदा, खाद एवं उर्वरक तथा सिंचाई आदि, पर निर्भर करती है| लेकिन उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से खेती करने पर सामान्यत: खरबूजे की औसत पैदावार 150 से 250 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है|
यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|
Leave a Reply