खीरा फसल में हानिकारक कीटों और रोगों का नियंत्रण आधिक उत्पादन लेने के लिए आवश्यक है| वैसे तो खीरा फसल को बहुत से कीट, रोग और माइट्स नुकसान पहुचाते है| लेकिन खीरा फसल के कुछ प्रमुख कीट कद्दू का लाल कीट, सफेद मक्खी, खीरे का फतंगा और लाल मकड़ी आदि मुख्य रूप से अधिक आर्थिक क्षति पहुचाते है| वहीं प्रमुख रोगों में चूर्णिल आसिता, मृदुरोमिल आसिता और खीरा मोजैक वायरस से खीरा फसल को काफी नुकसान होता है|
यदि उत्पादक खीरा फसल से अपनी इच्छित पैदावार चाहते है, तो इन सबका प्रबंधन उनको करना ही होगा| इस लेख में खीरा फसल के प्रमुख कीट एवं रोग और उनकी रोकथाम कैसे करें की विस्तृत जानकारी उपलब्ध है| खीरे की उन्नत खेती की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- खीरा की उन्नत खेती कैसे करें
खीरा फसल के कीटों की रोकथाम
कद्दू का लाल कीट (रेड पम्पकिन बिटिल)- इस कीट की सूण्ड़ी जमीन के अन्दर पायी जाती है| इसकी सूण्डी व वयस्क दोनों खीरा फसल में क्षति पहुँचाते हैं| प्रौढ़ पौधों की छोटी पत्तियों पर ज्यादा क्षति पहुँचाते हैं| ग्रब (इल्ली) जमीन में रहती है, जो पौधों की जड़ पर आक्रमण कर हानि पहुँचाती है| ये कीट जनवरी से मार्च के महीनों में सबसे अधिक सक्रिय होते है|
अक्टूबर तक खेत में इनका प्रकोप रहता है| फसलों के बीज पत्र तथा 4 से 5 पत्ती अवस्था इन कीटों के आक्रमण के लिए सबसे अनुकूल है| प्रौढ़ कीट विशेषकर खीरा फसल की मुलायम पत्तियां अधिक पसन्द करते है| अधिक आक्रमण होने से पौधे पत्ती रहित हो जाते है|
रोकथाम के उपाय-
1. सुबह ओस पड़ने के समय राख का बुरकाव करने से भी प्रौढ़ पौधों पर नहीं बैठता जिससे नुकसान कम होता है|
2. जैविक विधि से नियंत्रण के लिए अजादीरैक्टिन 300 पी पी एम 5 से 10 मिलीलीटर लीटर या अजादीरैक्टिन 5 प्रतिशत 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से दो या तीन छिड़काव करने से लाभ होता है|
3. इस कीट का अधिक प्रकोप होने पर कीटनाशी जैसे डाईक्लोरोवास 76 ई सी, 1.25 मिलीलीटर प्रति लीटर या ट्राइक्लोफेरान 50 ई सी, 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से जमाव के तुरन्त बाद और दुबारा 10 वें दिन पर पर्णीय छिड़काव करें|
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खीरे का फतंगा (डाइफेनीया इंडिका)- वयस्क मध्य आकार के और अग्र पंख सफेदी लिए हुए एवं किनारे पर पारदर्शी भूरे धब्बे पाये जाते है| सुंडी लम्बे, गहरे हरे और पतली होती है| ये खीरा फसल की पत्तियों के क्लोरोफिल युक्त भाग को खाते हैं, जिससे पत्तियों में नसो का जाल दिखाई देता हैं| कभी-कभी फूल एवं फल को भी खाते हैं|
रोकथाम के उपाय-
1. नियमित अंतराल पर सूड़ियों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए|
2. जैविक विधि से नियंत्रण के लिए बैसिलस थूजेंसिस किस्म कुर्सटाकी 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से एक या दो बार 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें|
3. अधिक प्रकोप होने पर कीटनाशी जैसे क्लोरेंट्रानीलीप्रोल 18.5 एस सी 0.25 मिलीलीटर प्रति लीटर या डाईक्लारोवास 76 ई सी, 1.25 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से भी छिड़काव कर सकते हैं|
सफेद मक्खी- यह सफेद और छोटे आकार का एक प्रमुख कीट है| पूरा शरीर मोम से ढका होता है, इसलिए इससे सफेद मक्खी के नाम से जाना जाता है| इस कीट के शिशु और प्रौढ़ खीरा फसल के पौधों की पत्तियों से रस चूसते हैं एवं विशाणु रोग फैलाते हैं, जिसके कारण पौधों की बढ़ोत्तरी रूक जाती है, पत्तियाँ तथा शिराएं पीली पड़ जाती हैं|
रोकथाम के उपाय-
1. मक्का, ज्वार या बाजरा को मेड़ फसल पर अन्तः सस्यन के रूप में उगाना चाहिए जो अवरोधक का कार्य करते हैं जिससे सफेद मक्खी का प्रकोप कम हो जाता है|
2. जैव कीटनाशक जैसे वर्टीसिलियम लिकैनी 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या पैसिलोमाइसेज फेरानोसस 5 ग्राम प्रति लीटर पानी का प्रयोग भी किया जा सकता है|
3. अधिक प्रकोप होने पर कीटनाशकों जैसे इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या थायामेथेक्जाम 25 डब्लू जी 0. 35 ग्राम प्रति लीटर या फेनप्रोथ्रिन 30 ई सी 0.75 ग्राम प्रति लीटर डाइमेथोएट 30 ई सी 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या स्पाइरोमेसिफेन 23 एस सी, 0.8 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें|
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माइट (लाल मकड़ी)- लाल माइट बहुत छोटे कीट हैं| जो पत्तियों पर एक ही जगह बनाकर बहुत अधिक संख्या में रहते हैं| इनका प्रकोप ग्रीष्म ऋतु खीरा फसल में अधिक होता है| इसके प्रकोप के कारण पौधे अपना भोजन नहीं बना पाते जिसके फलस्वरूप पौधे की वृद्धि रूक जाती है और उत्पादन में भारी कमी हो जाती हैं|
रोकथाम के उपाय-
1. पावर छिड़काव मशीन द्वारा पानी का छिड़काव करने से फसल पर से मकड़ी अलग हो जाती हैं, जिससे प्रकोप में कमी आती है|
2. मकड़ीनाशक जैसे स्पाइरोमेसीफेन 22.9 एस सी 0.8 मिलीलीटर प्रति लीटर या डाइकोफाल 18.5 ई सी 5 मिलीलीटर प्रति लीटर या फेनप्रोथ्रिन 30 ई सी 0.75 ग्राम प्रति लीटर की दर से 10 से 15 दिनों के अंतराल पर छिडकाव करें|
खीरा फसल के रोगों की रोकथाम
चूर्णी फफूंद (चूर्णिल आसिता)- यह रोग विशेष रूप से खीरा की खरीफ वाली फसल पर लगता है| प्रथम लक्षण पत्तियाँ और तनों की सतह पर सफेद या धुंधले धूसर धब्बों के रूप में दिखाई देते है| तत्पश्चात् ये धब्बे चूर्णयुक्त हो जाते हैं, ये सफेद चूर्णिल पदार्थ अन्त में समूचे पौधे की सतह को ढंक लेते हैं| जिसके कारण फलों का आकर छोटा हो जाता है एवं बीमारी की गम्भीर स्थिति में पौधों से पत्ते भी गिर जाते है|
रोकथाम के उपाय-
1. इसकी रोकथाम के लिए रोग ग्रस्त पौधों को खेत में इकट्ठा करके जला देते हैं|
2. फफूंदनाशक दवा जैसे 0.05 प्रतिशत ट्राइडीमोर्फ अर्थात् 1/2 मिलीलीटर दवा एक लीटर पानी या फ्लूसिलाजोल का 1 ग्राम प्रति लीटर या हेक्साकोनाजोल का 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या माइक्लोब्लूटानिल का 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के साथ 7 से 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें|
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मृदुरोमिल आसिता- यह रोग खीरा फसल में वर्षा के उपरान्त जब तापमान 20 से 22 डिग्री सेंटीग्रेट हो, तब तेजी से फैलता है| उत्तरी भारत में इस रोग का प्रकोप अधिक है| इस रोग से पत्तियों पर कोणीय धब्बे बनते हैं, जो कि बाद में पीले हो जाते हैं| अधिक आर्द्रता होने पर पत्ती के निचली सतह पर मृदुरोमिल कवक की वृद्धि दिखाई देती है|
रोकथाम के उपाय-
1. बीजों को एप्रोन नामक कवकनाशी से 2 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए|
2. इसके अलावा खीरा फसल में मैंकोजेब 0.25 प्रतिशत 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी घोल का छिड़काव करें|
3. खीरा फसल की पूरी तरह रोगग्रस्त लताओं को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए।
4. अगर बीमारी गम्भीर अवस्था में है तो मैटालैक्सिल मैंकोजेब का 2.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से या डाइमेयामर्फ का 1 ग्राम प्रति लीटर मैटीरैम का 2.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से 7 से 10 के अंतराल पर 3 से 4 बार छिड़काव करें|
खीरा मोजैक वायरस- इस खीरा फसल रोग का फैलाव, रोगी बीज के प्रयोग एवं कीट द्वारा होता है| इससे पौधों की नई पत्तियों में छोटे, हल्के पीले धब्बों का विकास सामान्यतः शिराओं से शुरू होता है| पत्तियों में मोटलिंग, सिकुड़न शुरू हो जाती है| पौधे विकृत और छोटे रह जाते है| हल्के, पीले चित्तीदार लक्षण फलों पर भी उत्पन्न हो जाते हैं|
रोकथाम के उपाय-
1. इसकी रोकथाम के लिए विषाणु-मुक्त बीज का प्रयोग तथा रोगी पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर देना चाहिए|
2. विषाणु वाहक कीट के नियंत्रण के लिए डाई मेथोएट 0.05 प्रतिशत रासायनिक दवा का छिड़काव 10 दिन के अन्तराल पर करें, लेकिन फल लगने के बाद रासायनिक दवा का प्रयोग न करें|
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