गन्ने में रोग और कीट नियंत्रण अधिक उपज के लिए आवश्यक है| क्योंकि गन्ना की फसल एक लम्बी अवधि वाली प्रमुख नगदी फसल है| गन्ने की फसल का भरपूर उत्पादन प्राप्त करने के लिए गन्ने की उन्नत सस्य क्रियाओं में रोग और कीट नियंत्रण का विशेष महत्व है| इस लेख में गन्ने में रोग और कीट नियंत्रण कैसे करें| जिससे किसान भाइयों को अच्छा उत्पादन प्राप्त हो का उल्लेख है| गन्ना की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गन्ना की खेती- किस्में, प्रबंधन व पैदावार
गन्ने की फसल में रोग नियंत्रण
लाल सड़न- यह रोग गन्ना उद्योग और किसानों के लिए बहुत ही हानिकारक है| इस रोग में गन्ने की ऊपर से तीसरी पत्ती सुखने लगती है| गन्ने का तना रंगहीन और गांठों पर छोटे-छोटे बिन्दु बन जाते हैं, बाद की अवस्था में तना सूख, सिकुड़ तथा खोखला हो जाता है| रोग ग्रस्त गन्ने को चीरने पर गुद्दा लाल रंग की होती है और एल्कोहल जैसी गंध आती है|
नियंत्रण-
1. गन्ने की पेड़ी स्वस्थ और रोगरहित होनी चाहिए|
2. गन्ने की पेडी को बोने से पहले 0.25 प्रतिशत के एगलॉल या ऐरेटॉन घोल में 5 मिनट के लिए डुबाना चाहिए|
3. लाल सड़न रोग से रोगरोधी किस्मों की बुवाई करें|
4. लाल सड़न रोग से ग्रसित क्षेत्र में तीन साल तक गन्ने की बुवाई नहीं करनी चाहिए|
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कन्डुआ- यह रोग वर्षभर प्रभावी रहता है, लेकिन इसका प्रभाव अप्रैल से जुलाई तक ज्यादा प्रभावकारी रहता है| पेडी की फसल में इसका प्रयोग ज्यादा होता है| रोगग्रस्त गन्ने की पत्तियाँ नुकीली तथा दूर-दूर निकलती हैं|
नियंत्रण-
1. रोगरोधी किस्मों की बुआई करें|
2. बोने से पहले गन्ने के टुकड़ों को 2.5 प्रतिशत आर्गेनोमरक्युरियल फफूदनाशी के घोल में डुबाकर बोना चाहिए|
3. कन्दुआ रोग से ग्रसित गन्ने के पौधे को खेत से सावधानी से निकालकर जला देना चाहिए|
उक्ठा- इस रोग के लक्षण प्रथम दृष्टया पत्तियां पीली तथा कुम्हलाने लगती हैं| इस रोग का प्रकोप वर्षाकाल के बाद प्रकट होता है| इसका तना भूरा या लाल भूरे रंग का खोखला हो जाता है|
नियंत्रण-
1. गन्ने के सेट्स पूर्णतया स्वस्थ खेत से लेने चाहिए|
2. रोगग्रसित गन्ने की पत्तियों और जड़ों को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए|
3. कोई भी पेडी रोगग्रसित खेत में नहीं रखनी चाहिए|
4. गन्ना बोने से पहले 0.25 प्रतिशत एगलॉल या ऐरेटॉन के घोल में 5 मिनट डुबाना चाहिए|
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घासी प्ररोह- इस रोग से ग्रसित गन्ने में बहुत ज्यादा मात्रा में कल्ले निकलते हैं, जिनकी पत्तियाँ पतली और नुकीली होती हैं तथा इंटरनोड की दूरी कम हो जाती है|
नियंत्रण-
1. रोग ग्रसित सेट्स नहीं बोना चाहिए|
2. 54 डिग्री सेंटीग्रेड पर आठ घण्टे गर्म हवा द्वारा इसका उपचार किया जा सकता है|
3. एग्रोमाइसिन या टेरामाइसिन के 0.005 प्रतिशत घोल में गन्नों को उपचारित करना लाभकारी होता है|
मोजैक- गन्ने में इस रोग के लक्षण मई के बाद पूरे वर्षाकाल में पौधों की पत्तियों पर चमकीले लाल रंग की धारियों के द्वारा जो लम्बी और छोटी होती है, पूरी पत्ती पर दिखाई देते हैं|
नियंत्रण-
1. गन्ने की फसल में रोग ग्रसित से पौधे को निकालकर जला दें|
2. जिस खेत में पानी की निकासी अच्छी हो उस खेत में गन्ना बोएं|
3. डायमेक्रान 0.02 प्रतिशत के घोल का छिड़काव करें|
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गन्ने की फसल में कीट नियंत्रण
तना छेदक- मादा मोथ क्रीम कलर के अण्डे पत्ती की निचली सतह पर देती है| छोटे लार्वे भद्दे सफेद रंग के जिनका सिर भूरे लाल रंग का होता है, पहले कोमल पत्ती की त्वचा को एक-दो दिन खाते हैं| उसक बाद वे तने के पास पहुँच कर उसमें छेद बना देते हैं| लार्वा कोमल उतकों को खाते हैं, जिससे बीच की पत्ती सूख जाती है| उस पत्ती को निकालते हैं, तो दुर्गन्धयुक्त गन्ध आती है| इसके प्रकोप से नये कल्ले भी प्रभावित होते हैं|
नियंत्रण-
1. मई-जून में खेत की सिंचाई करनी चाहिए, जिससे आर्द्रता ज्यादा होने से कीड़ों की संख्या को रोकने में सहायता होती है|
2. एण्डोसल्फान 35 ई सी की 1.5 लीटर या न्युवाक्रान 40 ई सी की 1.5 लीटर मात्रा 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें|
जड़ भेदक- मादा मोथ द्वारा अण्डे पत्ती की निचली सतह पर दिए जाते हैं| नये लार्वा नीचे जाकर जड़ों में आधार बनाकर नीचे की तरफ सुरंग बना देते हैं| लार्वा बीच के उत्तकों को खाकर डेड हर्ट उत्पादित कर देते हैं| यह कीड़ा सूखी अवस्था में मई से जून के महीनों में ज्यादा सक्रिय होता है| डेड हर्ट आसानी से नहीं निकलता तथा न ही इसमें किसी तरह की दुर्गन्ध आती है|
नियंत्रण-
1. गन्ने की फसल में मई से जून महीने में सिंचाई अवश्य करनी चाहिए|
2. न्यूक्रान 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर 600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए|
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गुरदासपुर बोरर- इसका मोथ हल्के भद्दे भूरे रंग का होता है, जो पत्तियों के ऊपर सफेद रंग के अण्डे देता है| सुंडिया उपरी इन्टरनोड में एक आम छेद के द्वारा घुस जाती है| लार्वा सामूहिक रूप से 10 से 12 दिन तक गन्ने के कोमल ऊतकों को खाते रहते हैं| गन्ने का उपरी सिरा सूख जाता है| 12 दिन के बाद अलग-अलग लार्वा वहाँ से निकलकर गन्ने के अन्य भागों में चले जाते हैं| इस तरह से मुख्य तने में जाकर तने को खोखला कर देते हैं, जिससे हवा द्वारा या हल्का धक्का लगने पर पौधा टूट जाता है|
नियंत्रण-
1. सूखे हुए उपरी सिरे को काटकर अलग कर जला देना चाहिए|
2. फसल पर 1.5 लीटर एण्डोसल्फान 35 ई सी या न्यूवाक्रान 40 ई सी 1000 लीटर पानी में मिलाकर गन्ने के उपरी भाग में छिड़काव चाहिए|
टापबोरर- इस कीट का मोथ सफेद रंग का होता है| लार्वा गन्दा सफेद रंग का सिकुड़ा हुआ होता है, अण्डे पत्तियों की निचली सतह पर देता है| हैचिग लार्वा स्वतंत्रता पूर्वक घूमते रहते हैं, उसके बाद बीच वाली नस के द्वारा सुरंग बनाकर एक्सिस तक पहुंच जाते हैं| तने में 4 से 5 जगह के छेद कर देते हैं| उत्तकों को खाकर तीन चार इन्टरनोड को ग्रसित करके डेड हर्ट बना देते हैं|
नियंत्रण-
1. गन्ने फसल में अण्डों को एकत्र कर नष्ट कर दें|
2. कार्बोफ्युरान 3 किलोग्राम जुलाई में सिंचाई के बाद खेत में प्रयोग करें या न्युवाक्रान 40 ई सी 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए|
पायरिला- नीम्फ तथा प्रौढ़ पत्ती के नीचे का रस चूस लेते हैं| चूसी गयी पत्तियों का रंग पीला-सफेद हो जाता है| पायरिला गन्ने की उत्पादकता एवं गन्ने की रिकवरी को भारी मात्रा में हानि पहुंचाता है| पायरिला शहद की तरह सीक्रीटा निकालता है, जो काली फंगस को आकर्षित करता है| यह फंगस पूरी पत्ती को ढक लेती है, जो पूरी तरह प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करती है| यह कीड़ा अप्रैल से मई और अगस्त से सितम्बर में ज्यादा गन्ने की फसल को प्रभावित करता है|
नियंत्रण-
1. अण्डों को एकत्रित करके नष्ट कर देना चाहिए|
2. बी एच सी धूल 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए|
3. एण्डोसल्फान 35 ई सी, 1.25 लीटर या क्यूनालफॉस 0.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करना चाहिए|
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ब्लैकबग- यह कीड़ा करीब 10 मिलीमीटर लम्बा होता है| इसके शरीर से दुर्गन्धयुक्त गंध आती है| काला प्रौढ़ और गुलाबी प्रौढ़ निम्फ लीफ शीथ का रस चूसता है| प्रभावित फसल कमजोर तथा उसकी बढ़वार रूक जाती है|
नियंत्रण-
1. रेटून फसल लेने पर मुख्य फसल को काटकर पत्तियों को जला देना चाहिए|
2. न्यूवाक्रान 40 ई सी या थायोडान 35 ई सी का 2.0 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से फसल पर छिड़काव करना चाहिए|
सफेद मक्खी- प्रौढ़ और निम्फ दोनों पत्तियों की निचली सतह के रस को चूसते रहते हैं, जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं| पूरी फसल पीली और बीमार दिखने लगती है तथा बढ़वार रूक जाती है| इस कीड़े के प्रकोप से रिकवरी कम हो जाती है, जूस में पानी की मात्रा ज्यादा हो जाती है और गुड़ की गुणवत्ता गिर जाती है| कीड़े का प्रकोप जुलाई से अगस्त में होता है और अधिकतम प्रकोप सितम्बर से अक्टूबर में होता है|
नियंत्रण-
1. गन्ने की फसल में पानी भराव की स्थिति न होने दें|
2. यदि कीड़े का प्रकोप ज्यादा है, तो रेटून फसल को नहीं बोना चाहिए|
3. न्युवाक्रान 40 ई सी, 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें|
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