गेहूं की उत्तम पैदावार के लिए मैंगनीज का प्रबंधन, हमारे देश में गेहूं, धान के बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है| भारत में आज कुल 8.59 करोड़ टन से अधिक गेहूं का उत्पादन हो रहा है| गेहूं की औसत उत्पादन 28.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जो कि अनुसंधान संस्थानों के फार्मों पर प्राप्त तथा नई किस्मों की उत्पादन क्षमता 50 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अत्यधिक कम है|
विभिन्न क्षेत्रों में गेहूं की मिट्टी सम्बन्धित कम उत्पादकता के अनेक कारणों में से मिट्टी के उपलब्ध मैंगनीज की मात्रा में निरन्तर ह्रास प्रमुख है| गेहूं का उत्पादन कम उपलब्ध मैंगनीज क्षेत्रों में किया जा रहा है, जिससे उत्पादन में कमी आ रही है| इस लेख में उल्लेख है, की गेहूं की उत्तम पैदावार के लिए मैंगनीज का प्रबंधन क्यों आवश्यक है और कैसे करें|
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मैंगनीज की कमी
अपने देश में मैंगनीज की कमी पहली बार 80 के दशक में पंजाब प्रान्त में गेहूं की फसल में देखी गयी| पूरे देश में करीब 4 प्रतिशत मिट्टियाँ मैंगनीज की कमी से प्रभावित हैं| पंजाब में वर्ष 2002 से पहले केवल 3 प्रतिशत मृदायें उपलब्ध मैंगनीज में अपर्याप्त थीं, जो वर्ष 2011 तक बढ़ कर लगभग 11 प्रतिशत हो गयीं। अधिकांशतः मैंगनीज की गम्भीर कमी बलुई, क्षारीय, कैल्केरियस और अधिक पारगम्य मिट्टियाँ जिसमें धान गेहूं फसल चक्र का निरन्तर कई वर्षों से खेती की जा रही है, में पायी गयी है|
धान की खेती के लिए मिट्टी को जलमग्न रखने के दौरान, मैंगनीज की उपलब्धता बढ़ जाती है| नतीजन वह मिट्टी की निचली, परतों में रिसाव प्रक्रिया के द्वारा चली जाती है, जिसके कारण धान के बाद गेहूं की फसल उगाने पर उसमें मैंगनीज की कमी हो जाती है|
मैंगनीज की आवश्यकता
गेहूं की उत्तम पैदावार हेतु मैंगनीज पौधों के लिए एक अनिवार्य सूक्ष्म तत्व है| यह पौधों में प्रकाश संश्लेषण, नाइट्रोजन उपापचय तथा चयापचय के लिए आवश्यक दूसरे यौगिकों के निर्माण के लिए आवश्यक है| यह तत्व लिग्निन जैव संश्लेषण और कई कोशिकीय प्रक्रियाओं में भी शामिल होता है| इसके अतिरिक्त माइटोकान्ड्रिया में मैंगनीज सुपरआक्साइड डिसम्यूटोज द्वारा सुपरआक्साइड की सफाई करता है|
गेहूं की उत्तम पैदावार में बाधक मैंगनीज की कमी से पौधों में फ्रक्टोज एवं संरचनात्मक कार्बोहाइड्रेट की कमी हो जाती है, जिसके कारण कमजोर और मुलायम पत्तियों का निर्माण होता है| तदनुसार, पौधे कम तापमान और रोगजनक संक्रमण के लिए अतिसंवेदनशील हो जाते हैं|
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उत्तरदायी कारक
गेहूं की उत्तम पैदावार में बाधक मैंगनीज की कमी मुख्य रूप से कार्बनिक, बलुई, उच्च पी एच मान, रेतीली, कार्बनिक पदार्थ कम, अधिक चूना प्रयुक्त मिट्टियों में होती है| मिट्टी मैंगनीज की उपलब्धता सूखी और अच्छी तरह से वातित मिट्टी में कम होती है| परन्तु उसी मिट्टी को जब जलमग्न कर दिया जाता है, उसी स्थिति में पौधों की उपलब्ध मैंगनीज की मात्रा बढ़ कर पर्याप्त हो जाती है|
उगाई जाने वाली प्रजातियों का मैंगनीज के प्रति संवेदनशील होना, मिट्टी के प्राकृतिक रूप से उपलब्ध मैंगनीज की मात्रा का कम होना, धान-गेहूं चक्र का लगातार प्रयोग, और उच्च पैदावार वाली किस्मों को उगाकर सघन खेती करना इत्यादि भी मैंगनीज की कमी के प्रमुख कारक हैं|
मैंगनीज की कमी के लक्षण
मैंगनीज की कमी के लक्षण गेहूं की उपरी पत्तियों पर पीली धारियों के रूप में नसों के बीच में प्रकट होते हैं, जबकि नसें स्वयं ही रहती हैं| कुछ पौधों में नसों के बीच भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जो आगे चल के बड़े धब्बों का रूप ले लेते हैं| लक्षण सबसे पहले नये पत्ते से शुरू हो कर सभी पत्तों को प्रभावित करते हैं| तीन पत्ती अवस्था से लेकर झंडा पत्ता उद्भव तक लक्षण कभी भी प्रकट हो सकते हैं|
मैंगनीज की कमी के लक्षण एवं मैग्निशियम की कमी के लक्षण के समान दिखते हैं| लेकिन मैग्निशियम की कमी पुराने पत्ते पर होती है| मैंगनीज पौधों में अत्यधिक स्थिर है, इसलिए इसके कमी में लक्षण सर्वप्रथम नई पत्तियों में देखा जाता है|
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मैंगनीज की कमी का प्रबंधन
ऐसी मिट्टी जिसमें मैंगनीज की उपलब्धता 1 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम मिट्टी (डी टी पी ए निष्कर्षित) या इससे कम होती है| ज्यादातर उन्हीं मिट्टियों में उगने वाली फसलों में मैंगनीज उर्वरकों के प्रयोग से गेहूं की उत्तम उत्पादन में वृद्धि दर्ज की गयी है| मैंगनीज की कमी वाले पौधों के ऊत्तकों में मैंगनीज की सान्र्द्रता आमतौर पर 25 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम ऊत्तक से कम होता है| गेहूं, जौ और जई ऐसी फसलें हैं, जिन्हें मैंगनीज की अधिक आवश्यकता होती है|
फसलों में मैंगनीज की कमी के लक्षण दिखाई देते ही तुरन्त मैंगनीज के कमी को दूर करने का उपाय करना चाहिए| मैंगनीज उर्वरकों के प्रयोग मिट्टी में मिलाकर, नालियों में या खड़ी फसलों पर सीधे छिड़काव कर के किया जाता है| आमतौर पर गेहूं की उत्तम पैदावार के लिए मैंगनीज की कमी का प्रबन्धन सीधे फसलों पर छिड़काव करके करते हैं, क्योंकि मैंगनीज की कमी वाली मिट्टियों में मिट्टी प्रयोग विधि से दी गयी मैंगनीज का निर्धारण पौध अनुपलब्ध रूप में हो जाता है|
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आमतौर पर 0.5 प्रतिशत मैंगनीज सल्फेट (5 ग्राम मैंगनीज सल्फेट प्रति लीटर पानी) के तीन छिड़काव 10 से15 दिनों के अन्तर पर करने से मैंगनीज की कमी का नियंत्रण हो जाता है और गेहूं की उत्तम उत्पादन में तीन गुना तक की वृद्धि पायी गयी है| इसके अलावा मैंगनीज चिलेट जैसे मैंगनीज इथीलीनडाईअमीन टेट्राएसीटेट, मैंगनीज डाईइथालीन ट्राइअमीन पेन्टाएसीटिक एसीड और मैंगनीज लिग्नोसल्फोनेट का भी फसलों पर छिड़काव के लिए प्रयोग किया जा सकता है|
मैंगनीज-चिलेट, मैंगनीज यौगिकों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होते हैं| लेकिन आर्थिक दृष्टिकोण से इसका प्रयोग मंहगा होता है| छिड़काव विधि से मिट्टी प्रयोग के लिए 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और नाली विधि से प्रयोग के लिए 10 से 12.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मैंगनीज की संस्तुति मैंगनीज सल्फेट, मैंगनीज क्लोराइड और मैंगनीज आक्साइड द्वारा की गयी है|
इस प्रकार पौध उपलब्ध मैंगनीज की कमी वाली मिट्टियों में गेहूं की उत्तम पैदावार के लिए मैंगनीज का समुचित प्रबन्धन करके उत्पादक गेहूँ की उत्तम वर्तमान अधिक उपज वाली उन्नत प्रजातियों के आनुवंशिक उत्पादन क्षमता के अनुरूप पैदावार प्राप्त करके आर्थिक लाभ को बढ़ा सकते हैं|
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