गेहूं फसल विश्व में विस्तृत क्षेत्र में उगाई जाने वाली फसल है, भारत में यह द्वितीय मुख्य खाद्य फसल है| गेहूं का उपयोग देश के विभिन्न भागों में विभिन्न रूपों में जैसे- चपाती, पूरी, उपमा, हलवा, बिस्किट आदि में किया जाता है| मुख्य खाद्य पदार्थ के अलावा गेहूं का भूसा पशुओं के चारे के लिये उपयोगी होता है| हमारे देश में गेहूं की बुवाई लगभग 29.25 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल पर की जाती है, जिनसे सालाना उत्पादन लगभग 85.32 मिलियन टन होता है, जो कि अन्य देशों जैसे- जापान, इंडोनेशिया आदि की तुलना में कम है|
हमारे देश में गेहूं की उत्पादकता कम होने के प्रमुख कारणों में से कीट प्रमुख है| जो कि प्रतिवर्ष लगभग 15 से 20 प्रतिशत तक हानि पहुँचाते है, अतः इस क्षति को कम करने के लिये गेहूं की फसल में नाशीकीट प्रबंधन जरूरी है| इस लेख में गेहूं की फसल के प्रमुख कीट एवं उनका समेकित प्रबंधन कैसे करे, का उल्लेख किया गया है| गेहूं की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गेहूं की खेती की जानकारी
यह भी पढ़ें- गेहूं में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें
फसल का माहूँ
गेहूं फसल में इस कीट के शिशु और प्रौढ़ दोनों ही क्षति पहुँचाते हैं| जनवरी से फरवरी माह में अधिक संख्या में पौधों के बालियों से लगे रहते हैं एवं ये पौधों के पत्तियों, तनों और बालियों से रस चूसते हैं| प्रायः क्षति ठंडी जलवायु में ज्यादा होती है| इस कीट के प्रकोप से पौधों की बढ़वार रूक जाती है और गेहूं फसल की पैदावार में भारी कमी हो जाती है|
ये कीट हरे रंग के जू की तरह नई पत्तियों पर दिखाई देते है और पंखयुक्त व अपंखीय दोनों तरह के प्रौढ़ पाये जाते हैं| इस कीट के पंखयुक्त रूप केवल गर्मियों में दिखाई पड़ते हैं| ये कीट बहुत ही तेजी से प्रजनन करते हैं| मादा में अनिषेकजनन पाया जाता है एवं यह सीधे शिशु को जन्म देती है| आमतौर पर एक मादा 25 से 173 शिशु को जन्म देती है| शिशु 7 से 8 दिन में प्रौढ हो जाते हैं| गर्मियों के समय में यह कीट दूब घास या पहाड़ी क्षेत्रों में चले जाते हैं|
सैनिक कीट
गेहूं फसल को इस कीट की सुंडी ही हानि पहुँचाती है, जो कि प्रारम्भ में गेहूं फसल की पत्तियों और तनों को काटकर हानि पहुँचाती है| जब पौधों में बालियाँ निकलती है, तो ये बालियों को काटकर खाती है तथा नीचे गिरा देती है| इस कीट की सूड़ियाँ पौधों की जड़ों के पास दिन के समय छिपी रहती है और रात के समय निकलकर पौधों के विभिन्न भागों को काटतीं है| एक खेत की फसल को नष्ट करने के पश्चात ये झुण्ड में दूसरे खेत पर आक्रमण करतीं है| इसलिए इसे आर्मी वर्म या सैनिक कीट कहते है|
प्रौढ़ कीट भूरे रंग का होता है और इसके भारीर के ऊपर बाल एवं काले धब्बे दिखाई पड़ते है| इसके अगले जोड़ी पंखों के बाहरी किनारो पर छोटे धब्बों की पंक्ति होती है| अण्डे प्रायः गोल सफेद, पीले या हरे सफेद रंग के होते है, जो पौधों की पत्तियों के मोड़, पर्ण आवरण या तने पर दिये जाते हैं| अण्डा 5 से 6 दिनों में फूटता है तथा सुंड़ी निकलती है, जो कि काफी सक्रिय मटमैले सफेद रंग की होती है, जो बाद में हरे रंग की हो जाती है|
पूर्ण विकसित सुंडी 40 से 50 मिलीमीटर लम्बी और 6 से 7 मिलीमीटर चौड़ी होती है| इसके शरीर पर लम्बी धारियाँ होती है तथा सिर लाल रंग का होता है| सुंडी 15 से 21 दिनों में पूर्ण विकसित हो जाती है| पूर्ण विकसित सुंडी जमीन के अन्दर छिद्र बनाकर प्यूपा में बदल जाती है| कोशावस्था गर्मियों में 9 से 13 दिन और सर्दियों में 36 से 48 दिन की होती है| इसके पश्चात प्रौढ़ कीट बाहर निकलता है|
यह भी पढ़ें- मक्का में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें
गुझिया वीविल
गेहूं फसल में यह कीट जून से दिसम्बर माह तक सक्रिय रहते हैं और शेष समय मिटटी में कृमिकोष रूप में व्यतीत करते हैं| इस कीट के प्रौढ़ पौधों के कोमल भागों को खाते हैं, एवं नवोभिद् (सीडलिंग) को मिटटी के ऊपरी भाग से काटकर गिरा देते हैं, जिससे गेहूं फसल के ऊपर काफी प्रभाव पड़ता है तथा पैदावार में भारी कमी होती है|
ये कीट आमतौर पर धूसर रंग के 6.8 मिलीमीटर लम्बे तथा 2.4 मिलीमीटर चौड़े होते हैं, इस कीट के अगले पंख आयताकार एवं पिछले पंख त्रिभुजाकार होते हैं| सिर में सैंडाकार आकृति (स्नाउट) निकली हुयी होती है| इस कीट के ग्रब हल्के पीले रंग के 3 से 5 मिलीमीटर लम्बे होते हैं|
इस कीट की मादा अक्टूबर महीने में निषेचन के 2 से 5 दिन बाद लगातार 6 से 78 अंडे, 5 से 11 किस्तों में देती हैं| अंडे मिटटी में दरारों में, ढेलों के नीचे दिये जाते हैं| अंडे 6 से 7 सप्ताह में फूटते हैं| अंडों के फूटने के बाद अंडों से छोटे-छोटे लार्वा निकलते हैं| लार्वा 10 से 18 दिन पूर्ण रूप से वृद्धि कर लेता है| लार्वा भूमि में 15 से 60 सेंटीमीटर की गहराई पर कृमिकोष बनाते हैं|
गुलाबी बेधक
गेहूं फसल में इस कीट की सुंडियां गेहूं एवं मक्का की फसल की ज्यादा क्षति पहुँचाती हैं| सुंडियां तने में छेदकर देती है| जिससे तने खोखले हो जाते हैं तथा डेडहर्ट बन जाता हैं| पौधों की वृद्धि एवं विकास रूक जाता है और गेहूं फसल की पैदावार में कमी आ जाती है|
इस कीट के प्रौढ़ भूरे रंग के होते हैं, प्रौढ़ का शरीर स्थूल होता है| इन कीटों के लार्वा 25 मिलीमीटर लम्बे, बेलनाकार तथा गुलाबी रंग के होते हैं| इस कीट की मादा रात्रि के समय पत्तियों या मिटटी में अंडे देती है| अंडों से निकलते ही सुंडियां पत्तियों की खोली में छेद कर देती हैं| सुंडियां तने में छेदकर ऊपर की ओर बढ़ती है और तने को खोखला कर देती है, लार्वा 3 से 4 सप्ताह बाद तने में कृमिकोष बनाती है जो 5 से 6 सप्ताह तक का होता है| तत्पश्चात प्रौढ़ कीट बाहर निकलता है|
यह भी पढ़ें- हेलिकोवरपा आर्मीजेरा का एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें
दीमक
यह कीट सभी गेहूं फसल उगाये जाने वाले क्षेत्रों में पाया जाता है| इसके शिशु और व्यस्क श्रमिक हानिकारक होते हैं, जो पौधों की पत्तियों तथा जड़ों को खाकर नष्ट कर देते हैं, जिससे सम्पूर्ण पौधा मुरझा जाता हैं| जिस समय पौधे छोटे एवं कोमल होते है, तो ये उनको मिटटी की सतह के नीचे से काटकर सूखा देते है| इस प्रकार गेहूं की पैदावार में भारी कमी आ जाती है|
आमतौर पर यह देखा गया है, कि असिंचित क्षेत्रों में दीमक फसलों को अधिक नुकसान पहुँचाते है| ये पौधों को रात्रि के समय अधिक नुकसान पहुंचाते है और दिन में यह घरों में छिपी रहती हैं| कच्चा गोबर इसका प्रिय भोजन है, इसलिए जिस खेत में गोबर डाला जाता है, वहाँ इसका प्रकोप अति शीघ्र होता है|
दीमक को साधारणतया सफेद चींटियाँ कही जाती हैं और ये कीट बहुभक्षी स्वभाव के होते है| प्रौढ़ कीट 6 से 8 मिलीमीटर लम्बे होते हैं| अंडों से निकले शिशु 1 मिलीमीटर लम्बे एवं पीले रंग के होते हैं| निम्फ 4 से 10 बार निर्मोचन करके 6 से 13 महीने की अवधि में प्रौढ़ बन जाते हैं|
यह भी पढ़ें- सब्जियों में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें
गेहूं फसल के कीटों का समेकित नियंत्रण
सामान्य प्रबन्धन- उपरोक्त समस्त कीटों के लिए इस प्रकार प्रबन्धन करें, जैसे-
1. गर्मी के दिनों में भूमि की गहरी जुताई करनी चाहिए, जिससे मिट्टी में छिपे कीटों के अण्डे एवं अन्य अवस्थायें नष्ट हो जाये|
2. गेहूं की समय से बुआई करें और फसल चक्र अपनायें|
3. गेहूं फसल में संतुलित उर्वरकों को प्रयोग करें|
4. गेहूं फसल में कीट के प्राकृतिक शत्रुओं का संरक्षण करें|
5. गेहूं की फसल में सिचाई का समूचित प्रबन्ध करें|
6. खेतों से अण्डों एवं सूड़ियों को एकत्र कर नष्ट कर दें|
7. गेहूं की फसल से कीट ग्रसित पौधों को नष्ट करें|
8. प्रकाश प्रपंच खेतों में लगाकर कीटों को नष्ट करें|
9. परजीवी और परभक्षी की आवश्यकता पड़ने पर बाहर से लाकर खेत में छोड़ें|
10. फेरोमोन ट्रैप (गंधपास)8 से 12 ट्रैप्स प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें, यह नर कीटों को अकर्षित कर फंसाते है, इस प्रकार संतति वृद्धि या प्रजनन बाधित होता है|
11. गेहूं की फसल में हानिकारक मित्र कीटों का अनुपात बनायें रखें|
12. गेहूं फसल में सुरक्षित रसायनों को उचित समय पर निर्धारित मात्रा में प्रयोग करें|
13. कीटनाशक रसायनों का प्रयोग अन्तिम उपाय के रूप में करें|
यह भी पढ़ें- जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन
गेहूं फसल के कीटों का विशिष्ट प्रबंधन
माहूँ कीट से बचाव के लिए-
1. गेहूं फसल में खरपतवार जैसे- दूब घास आदि खेत में न उगने दें|
2. गेहूं फसल में उर्वरकों का विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग करें|
3. यदि खड़ी फसल में इस कीट का प्रकोप हो गया है, तो निम्न दवाओं में से किसी एक को दी गई मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर बुरकाव करें, जैसे- मालाथियान 5 प्रतिशत धूल 30 किलोग्राम या कार्बोरिल 10 प्रतिशत धूल 20 किलोग्राम या थायोडॉन 4 प्रतिशत धूल 20 किलोग्राम या फैनिट्रोथियान 5 प्रतिशत धूल 20 किलोग्राम|
4. गेहूं फसल में अधिक प्रकोप होने पर निम्न दवाओं में से किसी एक को दी गई मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए, जैसे- इमिडाक्लोपरिड 17.8 एस एल, 100 मिलीलीटर या क्यूनालफॉस 25 ई सी, 2.0 लीटर या मिथाइल डेमाटान 25 ई सी, 1 लीटर या नुवान 76 ई सी, 200 मिलीलीटर|
5. यदि गेहूं फसल बुवाई के एक महीने बाद 3 प्रतिशत कार्बोफुरान ग्रेनुल्स की 15 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से मिटटी में पौधों की जड़ों के पास मिलाई जाए तो फसल की काफी हद तक सुरक्षा होती है|
यह भी पढ़ें- भिंडी के प्रमुख कीट एवं रोग का समन्वित प्रबंधन कैसे करें
सैनिक कीट से बचाव के लिए-
1. अप्रैल से मई के महीने में गहरी जुताई करें, जिससे मिटटी में उपस्थित प्यूपा नष्ट हो जायेंगे|
2. आक्रमण के प्रारम्भिक अवस्था में पक्षियों को खेत में बैठने के लिए जगह-जगह पर बाँस की पट्टियाँ (बर्ड पर्चर) लगाना चाहिए|
3. गेहूं की फसल पर निम्न कीटनाशियों में से किसी एक का प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करें, जैसे- मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत 30 किलोग्राम या कार्बारिल 10 प्रतिशत धूल 25 किलोग्राम या मालाथियान 5 प्रतिशत धूल 30 किलोग्राम|
4. गेहूं की फसल पर निम्न दवाओं का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से भी प्रभावकारी पाया गया है, जैसे- इन्डॉक्साकार्ब 14.5 एस सी, 1.0 लीटर या क्यूनालफास 25 ई सी, 2.0 लीटर या क्लोरपायरीफास 20 ई सी, 2.5 लीटर|
गुझिया वीविल कीट से बचाव के लिए-
1. गेहूं फसल से प्रौढ़ कीट को पकड़कर नष्ट कर देना चाहिए|
2. गेहूं फसल पर निम्न कीटनाशियों में से किसी एक का प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करें, जैसे- मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत 30 किलोग्राम या कार्बरिल 10 प्रतिशत धूल 25 किलोग्राम या मालाथियान 5 प्रतिशत धूल 30 किलोग्राम|
3. गेहूं फसल पर निम्न दवाओं का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से भी प्रभावकारी पाया गया है, जैसे- इन्डॉक्साकार्ब 14.5 एस सी,1.0 लीटर या क्यूनालफास 25 ई सी, 2.0 लीटर या क्लोरपायरीफास 20 ई सी, 2.5 लीटर|
यह भी पढ़ें- परजीवी एवं परभक्षी (जैविक एजेंट) द्वारा खेती में कीट प्रबंधन
गुलाबी बेधक कीट से बचाव के लिए-
1. फसल कटने के उपरांत पौधे की डंठियों को जलाकर नष्ट कर दें, जिससे उनमें छिपी सॅड़ियाँ मर जायें|
2. गेहूं फसल से अंडों के समूह को पत्तियों से निकालकर नष्ट कर दें|
3. ग्रीष्म ऋतु में मिट्टी पलट हल से जुताई कर खेत को खुला छोड़ दें|
4. प्रकाश प्रपंच का उपयोग कर प्रौढ़ कीट को आकर्षित कर के नष्ट कर दें|
5. फेरोमेन प्रपंच 20 प्रपंच प्रति हेक्टेयर, लगाकर नर कीट को इकट्ठा कर नष्ट कर दें|
6. अधिक प्रकोप होने पर निम्न दवाओं में से किसी एक की दी गई मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव किया जा सकता है, जैसे- इन्डॉक्साकार्ब 14.5 एस सी, 1.0 लीटर या क्यूनालफास 25 ई सी, 2.0 लीटर या क्लोरपायरीफास 20 ई सी, 2.5 लीटर|
7. कार्बोफ्यूरान 3 जी 17 से 18 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग कर इसका नियंत्रण किया जा सकता है|
दीमक कीट से बचाव के लिए-
1. खेत में खूब सड़ी हुयी गोबर की खाद का ही प्रयोग करें, कच्ची गोबर के प्रयोग से खेत में दीमक का प्रकोप अधिक होता है, खेत में बुवाई से पहले अप्रैल से मई माह में गहरी जुताई करें|
2. फसलें के अवशेषों को जलाकर नष्ट कर दें|
3. दीमक गृहों एवं रानी को नष्ट कर दें|
4. आक्रमण के प्रारम्भिक अवस्था में पक्षियों को खेत में बैठने के लिए जगह-जगह पर बाँस की पट्टियाँ (बर्ड पर्चर) लगाना चाहिए|
5. गेहूं के बीज को बोने से पूर्व क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई सी, 400 मिलीलीटर दवा को 1 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति 100 किलोग्राम बीज को उपचारित करें|6. खड़ी फसल में दीमक नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड (प्रोवेडो) का 0.05 प्रतिशत छिड़काव करें|
यह भी पढ़ें- जैविक कीटनाशक कैसे बनाएं
प्रिय पाठ्कों से अनुरोध है, की यदि वे उपरोक्त जानकारी से संतुष्ट है, तो अपनी प्रतिक्रिया के लिए “दैनिक जाग्रति” को Comment कर सकते है, आपकी प्रतिक्रिया का हमें इंतजार रहेगा, ये आपका अपना मंच है, लेख पसंद आने पर Share और Like जरुर करें|
Leave a Reply