गेहूं विश्व में विस्तृत क्षेत्र में उगाई जाने वाली फसल है, भारत में यह द्वितीय मुख्य खाद्य फसल है| हमारे देश में गेहूं की उत्पादकता कम होने के प्रमुख कारणों में से रोग और कीट प्रमुख है| जो कि प्रतिवर्ष लगभग 10 से 20 प्रतिशत तक हानि पहुँचाते है, इसलिए इस क्षति को कम करने के लिये गेहूं की फसल में नाशीजीवी प्रबंधन जरूरी है|
इस लेख में गेहूं में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें की उपयोगी जानकारी यानि की गेहूं की फसल को प्रभावित करने वाले रोग एवं कीट से कैसे बचाएं का उल्लेख है| यदि आप गेहूं की जैविक खेती के बारे में जानकारी चाहते है तो, यहाँ पढ़ें- गेहूं की जैविक खेती कैसे करें
गेहूं में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन
दीमक- किसी भी क्षेत्र के इलाकों में गेहूं की खेती के लिए सबसे हानिकारक कीटों में शामिल है, यह सबसे अधिक अंकुरित अवस्था में पौधों को क्षति पहुंचाती है|
प्रबंधन-
1. गेहूं के बीज का क्लोरपाईरीफॉस 20 ई सी 4 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें|
2. गेहूं के खेत में गोबर की गली सड़ी खाद का ही प्रयोग करें|
3. क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी नामक कीटनाशक 80 मिलीलीटर प्रति 1 किलोग्राम रेत के हिसाब से मिलाकर डालें|
4. गेहूं की बिजाई से पहले गोबर की खाद एवं कीट व्याधिकारक मैटरिजियम के मिश्रण को खेत में डाले|
5. गेहूं बिजाई करने से पूर्व पिछली फसल के अवशेषों को इकटठा करके नष्ट कर दें|
6. खेतों के नजदीक दीमक की बामी (माँउड) को रानी सहित नष्ट करे|
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टिड्डे- अंकुरित फसल के पौधो को नष्ट कर हानि पहुंचाते हैं| जिनका क्षेत्र असीमित है, जैसे- मैदानी, घाटी एवं निचले पर्वतीय क्षेत्रों में बहुत नुकसान करते है|
प्रबंधन-
1. गेहूं बिजाई से पहले गोबर की खाद एवं कीट व्याधिकारक मैटरिजियम एवं ब्यूवेरिया के मिश्रण को खेत में डाले|
2. गेहूं बिजाई करने से पहले पिछली फसल के अवशेषों को इकटठा करके नष्ट कर दें|
3. क्योंकि टिड्डे निकटवर्ती खेतों और मेढ़ों से जहां घास उग रही होती है वहां से गेहूं एवं जौ की फसल में आते हैं, इसलिए इन स्थानों का भी उपचार करें|
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आर्मीवर्म- गेहूं फसल के कोमल तत्वों को खाती है तथा एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र को तबाह करके आगे बढ़ती जाती है|
प्रबन्धन-
1. बिजाई से पहले गोबर की खाद और कीट व्याधिकारक मैटरिजियम एवं ब्यूवेरिया के मिश्रण को खेत में डाले|
2. सुंडियों को इकटठा करके नष्ट कर दें|
3. कीट का प्रकोप बढ़ने पर कीटनाशी का छिड़काव कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर करें|
गेहूं का तेला- यह कीट पत्तों से रस चूसकर हानि पहुंचाता है, जिसके परिणाम स्वरूप दाने बनने में बाधक सिद्ध होता है|
प्रबंधन-
1. गेहूं के खेतो में येलो स्टिकी ट्रेप लगाएं|
2. कीट व्याधिकारक व्यूबेरिया का प्रयोग करे|
3. परभक्षी लेडी बर्ड बीटल, क्राईसोर्पला का संरक्षण करें|
4. प्रकोप बढ़ जाने पर रासायनिक कीटनाशक का इस्तेमाल कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर करें|
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गेहूं में एकीकृत रोग प्रबंधन
पीला रतुआ- हमारे देश में पीला रतुआ गेहूं का प्रमुख रोग है| इसे अंग्रेजी में “येलो रस्ट” कहते हैं, इसका प्रकोप दिसम्बर के अन्त या जनवरी से शुरू हो जाता है| इससे गेहूं की फसल को बहुत अधिक नुकसान होता है| रोग के लक्षण पीले रंग की धारियों के रूप में पत्तियों पर दिखाई देते हैं|
जिनमें से पिसी हुई हल्दी जैसा पीला चूर्ण निकलता है और कही-कही तो पीला पाऊडर जमीन पर भी गिरा हुआ दिखाई देता है| ऐसे खेत में जाने पर कपड़े भी पीले हो जाते हैं, यदि यह रोग कल्ले निकलने की अवस्था में या इससे पहले आ जाए तो फसल में भारी नुकसान होता है|
पीली धारियां मुख्यतः पत्तियों पर ही पाई जाती हैं, लेकिन रोग की व्यापक दशा में पत्तियों के आवरण, तनों तथा बालियों पर भी देखी जा सकती हैं|रोग से प्रभावित पत्तियां शीघ्र ही सूख जाती हैं| तापमान बढ़ने पर मार्च के अंत में पत्तियों की पीली धारियां काले रंग में बदल जाती हैं|
इसका प्रकोप अधिक ठण्ड एवं नमी वाले मौसम में बहुत ही संक्रमित होता है| पीला रतुआ गेहूं में बालियां लगने से पहले ही प्रकट होता है, इसलिए नुकसान अधिक होता है| रोगी पौधों की बालियों में लगे दाने हल्के और सिकुड़े हुए होते हैं, जिससे पैदावार काफी घट जाती है|
प्रबंधन-
1. हमेशा गेहूं की रोग रोधी किस्मों का ही चुनाव करें, क्षेत्र में अनुमोदित किस्मों की ही बुआई करें और ध्यान रखें कि दूसरे क्षेत्रों के लिए अनुमोदित किस्मों को न उगाएं, बुआई समय पर करें|
2. गेहूं की फसल का निरीक्षण ध्यानपूर्वक करें, ऐसा दिसम्बर महीने से ही शुरू कर देना चाहिए|
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3. फसल पर इस रोग के लक्षण दिखने पर दवाई का छिड़काव करें, यह स्थिति अकसर दिसम्बर के अन्त में या जनवरी से फरवरी के आरम्भ में आ जाती है, लेकिन रोग यदि इससे भी पहले दिखाई दे, तो छिड़काव कर देना चाहिए|
4. छिड़काव के लिए प्रॉपीकोनाज़ोल 25 ई सी या टेबुकोनाज़ोल 250 ई सी का 0.1 प्रतिशत की दर से घोल बनाएं अर्थात एक बीघे के लिए 60 मिलीलीटर दवा और 60 से 70 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|
5. रोग के प्रकोप और फैलाव को देखते हुए दूसरा छिड़काव 15 से 20 दिन के अन्तराल पर करें|
6. छिड़काव सही तरीके से करें, ताकि दवा पौधों के सभी हिस्सों में अच्छी तरह से फैल जाए|
7. छिड़काव के लिए पानी की उचित मात्रा का प्रयोग करें, अधिक या कम मात्रा में प्रयोग करने से छिड़काव का पूरा लाभ नहीं मिल पाएगा|
8. गेहूं की फसल में छिड़काव दोपहर बाद करने का प्रयास करें|
9. यदि छिड़काव के बाद दो घण्टे के अन्दर बारिश आ जाती है, तो मौसम ठीक होने पर दोबारा छिड़काव करें, क्योंकि इतने समय में दवाई पूरी तरह से पौधों में प्रवेश नहीं कर पाती तथा वर्षा के साथ धुल जाती है|
10. रोग ग्राही किस्में जैसे- पी बी डब्लयू- 343, पी बी डब्लयू- 502, एच एस- 277, एच डी- 2329, एच डी- 2687 आदि की बुआई न करें|
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भूरा रतुआ- गोल और भूरे रंग के बिखरे हुए धब्बे फसल के पत्तों पर दिखाई देते हैं|
प्रबंधन- रोकथाम के लिए उपरोक्त पीले रतुएं जैसे उपाय आजमाएँ|
काला रतुआ- गहरे भूरे रंग के धब्बे, तने, पत्तों एवं पत्तों के आवरणों पर दिखाई देते हैं, जो बाद में फट जाते है|
प्रबंधन- रोकथाम के लिए पीले रतुएं उपरोक्त जैसे उपाय आजमाएँ|
खुली कांगियारी- इस रोग से प्रभावित पौधे काली बालियां पैदा करते हैं, जिनमें फफूद के बीजाणु पाए जाते हैं, बाद में काले बीजाणु हवा से उड़ जाते हैं एवं केवल तना और बाली का आकार शेष रह जाता है|
प्रबंधन-
1. रोग प्रतिरोधि किस्में जैसे- वी एल- 829, एच पी डब्लू- 155, 251 आदि उपयोग में लाएं|
2. बीज की टिल्ट 25 ई सी के 0.01 प्रतिशत 100 पी पी एम के घोल में 6 घंटे के लिए भिगोएं तथा फिर छाया में सुखाकर बिजाई करें या बीज का वीटावैक्स एवं बैवीस्टीन 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या रेक्सिल 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उचपार करें|
3. रोग-ग्रस्त पौधों को बीमारी के लक्षण प्रकट होते ही निकाल कर जला दें या खेत के बाहर जमीन में दबा दें|
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हिल बन्ट- गेहूं की प्रभावित बालियों में दाने पूरी तरह पकने पर चिपचिपे बीजाणु समूह से भरकर सड़ी मछली जैसी तीव्र गंध देते हैं, लेकिन इसका दानों के आवरणों पर कोई प्रभाव नहीं होता हैं|
प्रबंधन-
बीज का वीटावैक्स 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें|
पत्तों पर कांगियारी- पत्तों पर लम्बी काली धारियां शिराओं के समानान्तर बनती हैं| ये धारियां बाद में फटकर काला चूर्ण (बीजाणु समूह) पदार्थ बाहर निकालती हैं, पौधे छोटे रहे जाते हैं तथा रोग ग्रस्त पत्तों का झड़ना प्रमुख लक्षण है|
प्रबंधन-
1. बीज का बैवीस्टीन एवं बेनलेट 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचार करें|
2. गेहूं की देरी से बिजाई न करें|
3. जिन खेतों में बीमारी का प्रकोप होता है, वहां बिजाई के तुरंत बाद सिंचाई करें|
4. रोग ग्रस्त पौधों को निकाल कर जला दें|
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चूर्णलासिता रोग- रोग से प्रभावित पौधों पर फफूंद की सफेद से मटमैली रूई की हल्की तह नजर आती है|
प्रबंधन- फसल पर कैराथेन 0.05 प्रतिशत या बैवीस्टीन 0.05 प्रतिशत का छिड़काव 15 दिन के अन्तर पर करें|
करनाल बंट- पौधे की किसी बाली के किन्हीं-किन्हीं दानों पर इस बीमारी का प्रकोप होता है, रोग ग्रस्त दाने आंशिक रूप से काले चूर्ण में बदल जाते हैं|
प्रबंधन-
1. गेहूं की अनुमोदित किस्मों का चुनाव करें|
2. गेहूं बीज का बैवीस्टीन 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें|
3. टिल्ट 25 ई सी, 0.1 प्रतिशत का फसल में पहला छिड़काव फलेग पत्ते की अवस्था में और दूसरा छिड़काव पौधों में 50 प्रतिशत बालियां निकलते समय करें, पहले छिड़काव के 10 से 12 दिन पश्चात टिल्ट का छिड़काव केवल बीज फसल के लिये करें|
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