गेहूं में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग फसल में उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाता है| लेकिन कई बार इसका असंतुलित उपयोग फसल को नुकसान भी पहुचता है, इसलिए किसान भाइयों को गेहूं में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग संतुलित और परिस्थितियों के अनुसार करना चाहिए, इस लेख में गेहूं में खाद एवं उर्वरक का उचित प्रयोग दर्शाया गया है, जिससे गेहूं की फसल से उत्तम पैदावार प्राप्त हो सकती है| गेहूं की उन्नत खेती वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गेहूं की खेती की जानकारी
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गेहूं में खाद और उर्वरकों का प्रयोग
मात्रा- उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना उचित होता है| बौने गेहूं की अच्छी उपज के लिए मक्का, धान, ज्वार, बाजरा की खरीफ फसलों के बाद भूमि में 150:60:40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से एवं विलम्ब से 80:40:30 किलोग्राम क्रमशः नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश का प्रयोग करना चाहिए|
मैदानी क्षेत्रों में सामान्य दशा में 120:60:40 किलोग्राम नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश तथा 30 किलोग्राम गंधक प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग लाभकारी पाया गया है| जिन क्षेत्रों में डी.ए. पी. का प्रयोग लगातार किया जा रहा है उनमें 30 किलोग्राम गंधक का प्रयोग लाभदायक रहेगा|
यदि खरीफ में खेत परती रहा हो या दलहनी फसलें बोई गई हों तो नत्रजन की मात्रा 20 किलोग्राम प्रति हेक्टर तक कम प्रयोग करें| अच्छी उपज के लिए 80 से 120 कुन्तल प्रति हैक्टेयर गोबर की खाद का प्रयोग करें| यह भूमि की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखने में मदद करती है|
लगातार धान-गेहूं फसल चक्र वाले क्षेत्रों में कुछ वर्षों बाद गेहूं की पैदावार में कमी आने लगती है| इसलिए ऐसे क्षेत्रों में गेहूं की फसल कटने के बाद एवं धान की रोपाई के बीच हरी खाद का प्रयोग करें या धान की फसल में 13 से 15 टन प्रति हक्टेयर गोबर की खाद का प्रयोग करें|
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अब भूमि में जिंक की कमी प्रायः देखने में आ रही है| गेहूं में बुआई के 20 से 30 दिन के मध्य में पहली सिंचाई के आस-पास पौधों में जिंक की कमी के लक्षण प्रकट होते हैं, जो निम्न है, जैसे-
1. गेहूं में प्रभावित पौधे स्वस्थ पौधों की तुलना में बौने रह जाते है|
2. तीन चार पत्ती नीचे से पत्तियों के आधार पर पीलापन शुरू होकर ऊपर की तरफ बढ़ता है|
3. गेहूं में आगे चलकर पत्तियों पर कत्थई रंग के धब्बे दिखते है|
खड़ी फसल में यदि जिंक की कमी के लक्षण दिखाई दे तो 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 15 किलोग्राम यूरिया को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें| यदि यूरिया की टापड्रेसिंग की जा चुकी है, तो यूरिया के स्थान पर 2.5 किलोग्राम बुझे हुए चूने के पानी में जिंक सल्फेट घोलकर छिड़काव करें (2.5 किलोग्राम बुझे हुए चूने को 10 लीटर पानी में सांयकाल डाल दे और दूसरे दिन सुबह काल इस पानी को निथार कर प्रयोग करे एवं चूना फेंक दे)|
ध्यान रखें- कि जिंक सल्फेट के साथ यूरिया या बुझे हुए चूने के पानी को मिलाना अनिवार्य है| धान के खेत में यदि जिंक सल्फेट का प्रयोग बेसल ड्रेसिंग के रूप में न किया गया हो और कमी होने की आशंका हो तो 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर जिंक सल्फेट की टाप ड्रेसिंग करें|
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गेहूं में खाद और उर्वरक प्रयोग का समय और विधि
उर्वरकीय क्षमता बढ़ाने के लिए खाद एवं उर्वरक का प्रयोग विभिन्न प्रकार की भूमियों में निम्न प्रकार से किया जाये, जैसे-
दोमट या मटियार, कावर एवं मार- नत्रजन की आधी, फास्फेट एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय खुडों में बीज के 2 से 3 सेंटीमीटर नीचे दी जाये नत्रजन की शेष मात्रा पहली सिंचाई के 24 घण्टे पहले या ओट आने पर दे|
बलुई दोमट, राकड़ एवं पडवा बलुई मिट्टी- नत्रजन की 1/3 मात्रा, फास्फेट और पोटाश की पूरी मात्रा को बुआई के समय कूड़ों में बीज के नीचे देना चाहिए| शेष नत्रजन की आधी मात्रा पहली सिंचाई 20 से 25 दिन के बाद क्राउन रूट अवस्था और बची हुई मात्रा दूसरी सिंचाई के बाद देना चाहिए| ऐसी मिट्टियों में टाप ड्रेसिंग सिंचाई के बाद करना अधिक लाभप्रद होता है|
जहां केवल 40 किलोग्राम नत्रजन और दो सिंचाई देने में सक्षम हो, वह भारी दोमट भूमि में सारी नत्रजन बुआई के समय प्लेसमेन्ट कर दें, किन्तु जहॉ हल्की दोमट भूमि हो वहां नत्रजन की आधी मात्रा बुआई के समय (प्लेसमेंट) कूड़ों में प्रयोग करे एवं शेष पहली सिंचाई पर टापड्रेसिंग करे|
उपरोक्त विधि से गेहूं में खाद एवं उर्वरकों के उपयोग कर के किसान बन्धुं अपनी गेहूं की फसल से उत्तम पैदावार प्राप्त कर सकते है|
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