ग्लेडियोलस एक बहुत ही महत्वपूर्ण एवं लोकप्रिय पुष्पीय तथा एक वर्षीय पौधा है| जो मुख्य रूप से घरेलु और अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में कटे फूलों के रूप में प्रसिद्ध है| कन्दीय फूलों में ग्लेडियोलस को क्वीन (कन्दीय फूलों की रानी) कहा जाता है| आकर्षित फूल घरेलू तथा अन्तर्राष्ट्रीय खास कर यूरोपीय देशों में इसकी शरद ऋतु में बहुत मांग है| इसका वानस्पतिक नाम ग्लेडियोलस हाइब्रिड्स एवं इरिडेसी कुल का सदस्य है| इसको स्वार्ड लिलि एवं वाटर-फाल के नाम से भी जाना जाता है|
इसका पुष्प काटने के बाद एक सप्ताह तक तरोताजा बना रहता है| ग्लेडियोलस का उत्पत्ति स्थल दक्षिण अफ्रीका तथा यूरोप को माना जाता है| इसका विभिन्न आकार एवं रंग के फूल के कारण यह कट फ्लावर के रूप में व्यावसायिक तौर पर उगाया जाता है| ग्लेडियोलस की व्यावसायिक खेती मैदानी तथा पर्वतीय क्षेत्रों में की जा रही है| इसके फूलों एवं घन कन्दों की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती चली जा रही है| इसलिए इसे हाई वेल्यू फ्लावर क्राप या अधिक पैसे देने वाला फूल कहा जाता है|
वर्षों वर्ष पहले इस फूल को शीतोष्ण राज्य, खास तौर पर पहाड़ों पर उगने वाली फसल कहा जाता था| विशेष रूप से उत्तरी-पूर्वी राज्य परन्तु अभी सुधरी सस्य क्रियाओं, तकनीक और अच्छे फसल प्रबंध के कारण इसे अब दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक में व्यावसायिक तौर पर उगाया जाता है|
इसके अतिरिक्त ग्लेडियोलस को क्यारियों, गमले तथा गार्डन में आसानी से उगाया जा सकता है| यदि उत्पादक बन्धु ग्लेडियोलस की वैज्ञानिक तकनीक से बागवानी करें तो इसकी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है| इस लेख में ग्लेडियोलस की उन्नत खेती कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख किया गया है|
उपयोग- ग्लेडियोलस के फूलों का प्रयोग शादी विवाह एवं अन्य सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, बुके तथा घरों के अन्दर सजावटी तौर पर एवं नये वर्ष, बड़ा दिन, मदर्स डे, वेलिनटाइन डे, जन्म दिन, होली, दीवाली, दशहरा तथा दूसरे सामाजिक एवं सरकारी कार्यों में होता है| इसका उपयोग अनेक प्रकार की आयुर्वेदिक दवाओं में भी होता है| अधिक मांग एवं उपयोग के कारण यह एक व्यावसायिक फूल बन चुका है| इसकी आकर्षक स्पाइक जिसमें फ्लोरेट्स पर्याप्त मात्रा में होते हैं, जिनमें विभिन्न प्रकार के रंग, आकार तथा फूलों को तरोताजा रखने की क्षमता अच्छी होती है के कारण यह घरेलू या अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रसिद्ध हुआ है|
स्थान- ग्लेडियोलस की खेती के लिए खुला स्थान जहां पूरे दिन धूप रहती हो सबसे अच्छा पाया गया है| यह एक घनकन्दीय वर्ग का पौधा है| इसलिए मिट्टी से जल निकास का प्रबन्ध होना चाहिए| बागों के बीच में इसकी खेती अच्छी नहीं होती है|
उपयुक्त जलवायु
ग्लेडियोलस की खेती सफलतापूर्वक विभिन्न प्रकार के जलवायु में विभिन्न जगहों पर की जा सकती है| मैदानी भागों में इसकी खेती सर्दी के मौसम में तथा पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग अलग-अलग ऊँचाई पर पूरे वर्ष की जा रही है| पाला गिरने वाले क्षेत्रों में इसका पुष्प उत्पादन करने पर पुष्पन के समय पंखुडियों पर फफूंदी रोग के प्रकोप की सम्भावना बढ़ जाती है| पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए तापमान, प्रकाश, आर्द्रता एवं कार्बन डाइऑक्साइड का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है, जैसे-
प्रकाश- इसकी गुणवत्ता युक्त पुष्पोत्पादन के लिए पूरे दिन सूर्य की रोशनी होनी चाहिए| लम्बी दिन की अवधि एवं अधिक प्रकाश की तीव्रता में इसका पुष्पोत्पादन एवं घनकन्दों की उपज बढ़ जाती है| ठण्डक के मौसम में शीत लहर के दौरान कम प्रकाश की अवधि एवं तीव्रता होने पर ग्लेडियोलस की फसल कभी-कभी खराब भी हो जाती है| इसलिए कभी-कभी इस प्रकार के मौसम में अतिरिक्त प्रकाश की आवश्यकता पडती है| प्रकाश की अवधि लम्बे समय तक कम मिलने पर ग्लेडियोलस के प्रति स्पाइक फ्लोरेट की संख्या घट जाती है|
तापमान- ग्लेडियोलस के पुष्पोत्पादन में तापमान का महत्वपूर्ण योगदान है| गर्मी के मौसम में तापमान अधिक होने के कारण रोपण के 60 से 70 दिनों में ही पुष्पोत्पादन हो जाता है, लेकिन पुष्प की गुणवत्ता घट जाती है| जबकि सर्दी के मौसम में इसका पुष्पोत्पादन लगभग 90 से 110 दिनों में होता है| लेकिन पुष्प की गुणवत्ता बढ़ जाती है| ग्लेडियोलस की अच्छी फसल के लिए 10 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान सबसे अच्छा होता है| गर्मी के मौसम में तापमान बढ़ने पर ग्लेडियोलस के फसल की अधिक सिंचाई करनी चाहिए|
आर्द्रता- जब ग्लेडियोलस की खेती गर्मी के मौसम में पहाड़ी क्षेत्रे में करते हैं| उस समय वातावरण में अधिक आर्द्रता एवं मिट्ठी में नमी होने पर इसकी फसल अच्छी होती है| ग्लेडियोलस के घनकन्दों के भण्डारण के समय बहुत अधिक आर्द्रता होने से घनकन्दों के सड़ने का डर बना रहता है| इसलिए शीतगृह के अलावा जब भी इसके घनकन्दों को अन्य स्थान पर रखा जाए, वहां पर हवा का आवागमन होना चाहिए|
कार्बन-डाइऑक्साइड- जलवायु में बहुत अधिक कार्बन-डाइऑक्साइड की सान्द्रता होने पर ग्लेडियोलस की फसल अच्छी नहीं होती है| इसलिए कभी भी ऐसे स्थान पर ग्लेडियोलस की खेती नहीं करनी चाहिए जहां पर कार्बन डाइऑक्साइड उत्पादित करने वाला उद्योग क्षेत्र हो| सामान्य वातावरण में उपलब्ध कार्बन-डाइऑक्साइड गैस की सांद्रता ग्लेडियोलस का सफलतापूर्वक पुष्पोत्पादन के लिए अच्छा है|
ग्लेडियोलस का प्रवर्धन
ग्लेडियोलस का प्रवर्धन घनकन्दों, घनकन्द विभाजन तथा ऊतक संवर्धन विधि द्वारा किया जाता है| जब हम घनकन्दों को पुष्पोत्पादन के लिए लगाते हैं, तो पुष्प डण्डियों के उत्पादन के साथ-साथ ग्लेडियोलस के घनकन्दों एवं लघु घनकन्दों का भी उत्पादन होता है| इसकी गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए घनकन्द रोपण की उपयुक्त गहराई, घनकंद से घनकंद की दूरी, उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरक तथा समय पर सिंचाई का होना बहुत ही आवश्यक है|
पुष्प डण्डियों को काटते समय यह ध्यान देना चाहिए कि पौधे पर कम से कम 4 या 5 पत्तियां अवश्य बनी रहे, ताकि घनकन्दों एवं लघु घनकन्दों की उपज अच्छी हो| घनकन्द विभाजन द्वारा प्रवर्धन के लिए ग्लेडियोलस के घनकन्दों के आँख के साथ काटकर अलग-अलग टुकड़ों में कर लेना चाहिए| विभाजन के बाद टुकड़ों को बाविस्टीन के 0.2 प्रतिशत घोल से 1 घण्टा के लिए उपचारित करने के उपरान्त टुकड़ों को पंक्तियों में उचित दूरी पर रोपण कर देना चाहिए| प्रवर्धन की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- ग्लॅडिओलस का प्रवर्धन कैसे करें, जानिए उपयोगी एवं आधुनिक व्यावसायिक तकनीक
किस्मों का चुनाव
ग्लेडियोलस की अनेक किस्में हमारे देश में कट-फ्लावर के लिए उगायी जाती हैं| किस्मों का चुनाव उनकी बाजार में मांग एवं वातावरण को ध्यान में रखकर करना चाहिए| वैसे तो विश्व में इसकी 33000 प्रजातियाँ है| जबकि हमारे देश में भी इसकी 700 से 800 किस्में उपलब्ध है| कुछ प्रचलित किस्में इस प्रकार है, जैसे-
जल्दी फूल देने वाली किस्म- सुप्रीम, स्नो प्रिंस, सूर्य किरण, मार्निग किस, फ्रेंडशिप, हैप्पी, मैलोडी, पंजाब ग्लांस और सैन्सर आदि प्रमुख है|
मध्यम समय में फूल देने वाली किस्म- पैट्रिसिया, बिस-बिस, सुचित्रा, येलो स्टोन, नीलम, रत्ना बटरलाई, पंजाब ग्लेड- 1, गोल्डन मेलोडी और अमेरिकन ब्यूटी आदि प्रमुख है|
अधिक समय में फूल देने वाली किस्म- मयूर, पूसा सुहागिन, हंटिंग साँग, पंजाब फ्लेम और व्हाइट फ्रेंडशिप आदि प्रमुख है| किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- ग्लेडियोलस की किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार
भूमि का चयन
इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है| बुलई दोमट मिट्टी सबसे उपयोगी पायी गयी है| मिट्टी में जीवांश पदार्थ की अधिक मात्रा होनी चाहिए| चिकनी मिट्टी में जल निकास अच्छा न होने के कारण इसकी खेती सफलतापूर्वक नहीं की जा सकती है| यदि चिकनी मिट्टी में इसकी खेती करनी हो, तो खेत में गोबर की सड़ी खाद तथा बालू मिलाना चाहिए|
ग्लेडियोलस की खेती उस खेत में करना बेहतर होता है| जिसमें पहले ग्लेडियोलस की खेती न की गयी हो| मिट्टी का पी एच मान 5.5 से 7.0 के बीच में होना चाहिए| मिट्टी का पीएच मान 5.5 से कम होने पर मिटटी को चुने से उपचारित करना चाहिए तथा 7 से अधिक पी एच मान होने पर मिट्टी में गोबर की सड़ी खाद अधिक मात्रा में डालनी चाहिए|
खेत की तैयारी
इसकी अच्छी फसल के लिए मिट्टी को दो से तीन बार अच्छी तरह 30 से 40 सेंटीमीटर गहरी जुताई करनी चाहिए| जुताई करने के उपरान्त मृदा परीक्षण के परिणाम के अनुसार सड़ी हुई गोबर की खाद एवं उर्वरक की मात्रा मिट्टी में मिला देना चाहिए| ग्लेडियोलस की खेती के लिए क्यारी बनाने की विधि उपलब्ध सिंचाई सुविधा पर निर्भर करती है|
यदि टपक (ड्रीप) सिंचाई की विधि हो तो क्यारी 1 मीटर चौड़ी तथा 25 से 30 मीटर लम्बी एवं जमीन की सतह से 15 से 25 सेंटीमीटर उठी बनानी चाहिए| दो क्यारी के बीच में 30 सेंटीमीटर चौड़ा रास्ता छोड़ना चाहिए| लेकिन जब खुली सिंचाई की विधि ही उपलब्ध हो उस समय क्यारी 4 मीटर चौड़ी तथा सुविधानुसार लम्बी बनानी चाहिए|
कंद रोपण
ग्लेडियोलस के घनकन्द का रोपण अलग-अलग जलवायु में अलग-अलग समय पर किया जाता है| यही कारण है कि ग्लेडियोलस का पुष्प बाजार में पूरे वर्ष रहता है| मैदानी भागों में ग्लेडियोलस के घनकन्द के रोपण का मुख्य समय मध्य सितम्बर से अक्टूबर है| लेकिन इसके पुष्पन की अवधि को बढ़ाने के लिए सितम्बर से फरवरी तक घनकन्दों का रोपण करते हैं| नवम्बर से फरवरी के बीच में लगाए गये घनकन्दों से उत्पादित पुष्प की गुणवत्ता घट जाती है और घनकन्दों तथा लघु घनकन्दों की उपज एवं गुणवत्ता भी सितम्बर से अक्टूबर में लगाये गये घनकन्दो की अपेक्षा घट जाती है|
पर्वतीय क्षेत्रों में सितम्बर से लेकर जून तक घनकन्दों की रोपाई की जाती है| इस प्रकार पहाड़ी क्षेत्रों से ग्लेडियोलस का पुष्प घरेलू बाजार में पूरे वर्ष बेचा जाता है| घनकन्दों तथा घनकन्दीकाओं को रोपाई से पहले कैप्टान 2 ग्राम का प्रति लीटर पानी के दर से घोल बनाकर एक घंटे तक उपचारित करना चाहिए| यदि मिट्टी में कीड़ों की समस्या हो तो थाईमेट 10 जी का प्रयोग करना चाहिए| घनकन्दों को क्यारियों में पंक्ति से पंक्ति 20 सेंटीमीटर तथा घनकन्द से घनकन्द की दूरी 15 सेंटीमीटर रखनी चाहिए|
घनकन्द का मध्यम आकार होने पर घनकन्द से घनकन्द का पंक्ति में फासला 10 सेंटीमीटर ही रखना चाहिए| लघु घनकन्दिकाओं का आकार बढ़ाने के लिए पंक्ति से पंक्ति का फासला 7 से 8 सेंटीमीटर तथा पंक्ति में लघु घनकन्दिकाओं का फासला 5 सेंटीमीटर रखना चाहिए| घनकन्द की पंक्ति में गहराई 10 से 12 सेंटीमीटर तथा लघु घनकंदीका की गहराई 5 सेंटीमीटर तक रखनी चाहिए|
सिंचाई प्रबंधन
ग्लेडियोलस के घनकन्द के रोपाई से पहले क्यारियां बनाते समय खेत की हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए| ऐसा करने पर ग्लेडियोलस के घनकन्द का रोपण करने पर जमाव अच्छा होता है| ग्लेडियोलस के फसल की पहली सिंचाई उस समय करनी चाहिए जब सभी घनकन्दों के फुटाव जमीन से बाहर आ जाएं| इसकी अच्छी उपज के लिए फसल के दौरान मिट्टी में नमी बनी रहनी चाहिए| पुष्प की कटाई करने के बाद जब इसकी पत्तियां पीली पड़ जाएं उसके उपरान्त सिंचाई बन्द कर देना चाहिए| क्योंकि उस समय घनकन्द खोदने के लिए तैयार हो जाते हैं|
खाद और उर्वरक
इसकी अच्छी फसल के लिए 30 से 40 टन प्रति हैक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी खाद घनकन्द की रोपाई से 15 से 20 दिन पहले मिट्टी में मिला देना चाहिए| उर्वरक की मात्रा मृदा परीक्षण के परिणाम के अनुसार ही उचित मात्रा में डालना चाहिए| सामान्य तौर पर नत्रजन 250 किलोग्राम, फास्फोरस 125 किलोग्राम तथा पोटाश 250 किलोग्राम प्रति हेक्टयर के दर से डालने पर इसका पुष्प तथा घनकन्द की उपज अच्छी होती है| नत्रजन के लिए कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट, पोटाश के लिए म्यूरेट आफ पोटाश तथा फास्फोरस के लिए सिंगल सुपर फास्फेट उर्वरकों को मिट्टी में मिलाना चाहिए|
म्यूरेट आफ पोटाश, सिंगल सुपर फास्फेट की पूरी मात्रा तथा कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट की एक तिहाई मात्रा खेत की तैयारी करते समय मिट्टी में मिला देना चाहिए| नत्रजन की एक तिहाई मात्रा तीसरे पत्ते आने पर तथा शेष बची मात्रा इसके एक महीने बाद क्यारियों में डालकर हल्की गुड़ाई एवं सिंचाई कर देनी चाहिए|
खरपतवार नियंत्रण
क्यारियों को साफ-सुथरा रखना जरुरी है| क्योंकि अधिक खरपतवार के कारण ग्लेडियोलस की फसल पर अनेक प्रकार के कीड़ों के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है| लघु घनकंदिकाओं का रोपण जिस खेत में करते हैं, उसे तो बिल्कुल ही साफ-सुथरा रखना चाहिए| ऐसा न करने पर घनकंदिकाओं का आकार छोटा ही रह जाता है| गोबर की खाद डालने से ग्लेडियोलस के खेतों में खरपतवार बहुत उगते हैं| इन खरपतवारों की सफाई छोटी अवस्था में कर देनी चाहिए| इसकी रोकथाम के लिए ग्लेडियोलस लगाने से दो सप्ताह पहले ग्लाइफोसेट 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के दर से घोल बनाकर खेतों में छिड़काव करना चाहिए|
कीट एवं रोकथाम
थ्रिप्स- ग्लेडियोलस पर आक्रमण करने वाले नवजात थ्रिप्स हल्के पीले रंग के होते हैं और बाद में इसका रंग काला हो जाता है| थ्रिप्स इसकी कलिकाओं का रस चूसते हैं| जिसके कारण थ्रिप्स से प्रभावित पुष्प डण्डियों की कलिकाएं पूर्ण रूप से नहीं खिल पाती हैं| जैसे-जैसे पौधा सूखने लगता है, वैसे-वैसे थ्रिप्स पौधों के नीचे जाने लगते हैं और अंत में यह घनकन्दों में छुप जाते हैं| जब दूसरे वर्ष घनकन्दों का रोपण करते हैं| तो थ्रिप्स घनकन्दों से निकल कर इसके कलिकाओं को प्रभावित करने लगता है|
रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए घनकन्दों को 6 सप्ताह तक 20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भण्डारण कर दिया जाए तो थ्रिप्स मर जाते हैं| इसके रासायनिक उपचार के लिए मैलाथियान 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिए|
एफिड- विभिन्न प्रकार के एफिड ग्लेडियोलस के पौधों को प्रभावित करते हैं| इनका प्रकोप गर्मी के मौसम में सर्वाधिक होता है| यह ग्लेडियोलस के पत्तियों का रस चूसते हैं|
रोकथाम- इनकी रोकथाम के लिए मैलाथियान 2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिए|
लाल मकड़ी- लाल मकड़ी ग्लेडियोलस के पत्तियों के निचले भाग पर आक्रमण करते हैं| इसका बहुत अधिक प्रकोप होने पर पत्तियों के साथ-साथ पूर्ण पौधों पर भी फैल जाते हैं| यह पत्तियों का रस चूसते हैं, जिसके कारण ग्लेडियोलस की पत्तियां चित्तकवरी हो जाती हैं| इससे प्रभावित पौधों से अच्छी गुणवत्ता युक्त पुष्पोत्पादन नहीं मिल पाता है|
रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए डाइकोफॉल 1 मिलीलिटर प्रति लीटर पानी में घोल बानाकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिए|
निमैटोड- ग्लेडियोलस एक कन्दीय वर्ग का पौधा है| निमेटोड इसके जड़ों को क्षति पहुँचाता है| इसके कारण पौधों का बढ़वार अच्छी नहीं होती है| इसका प्रकोप भुरभुरी मिट्टी में ज्यादा होता है| यह धीरे-धीरे ग्लेडियोलस के घनकंदों को भी प्रभवित करने लगता है|
रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए| निमेटोड से प्रभावित मिट्टी में नीम की खली का प्रयोग करना चाहिए| इस प्रकार की मिट्टी में गेंदा की खेती करने से निमैटोड नियंत्रित किया जा सकता है|
रोग एवं रोकथाम
यूजेरियम (फ्यूजेरियम फाइटोपथोरा)- यूजेरियम कवक से होने वाला रोग है| इससे प्रभावित घनकंदों से तैयार पौधों की पत्तियां भूरी होने लगती हैं तथा पौधे मर जाते हैं|
रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए सभी प्रभावित पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए, फसल चक्र अपनाना चाहिए तथा मिट्टी को रासायन से उपचारित करना चाहिए| ग्लेडियोलस के घनकंदो को रोपण करने से पहले कैप्टान 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर 1 घंटा के लिए उपचारित करना चाहिए|
बोट्राइटीज (बोट्राइटीज ग्लेडियोलोरम)- ग्लेडियोलस में होने वाले बोट्राइटीज रोग को ग्रेमोल्ड, नक्रोरॉट इत्यादि नाम से जाना जाता है| इसका सबसे अधिक प्रकोप अधिक आर्द्रता वाले वातावरण में होता है| इससे प्रभावित पौधों के पत्तियों एवं तने पर धब्बे दिखने लगते है तथा उत्पादित पुष्प डण्डियां पूर्ण रूप से खिलने से पहले ही खराब हो जाती हैं|
रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए इसके घनकन्द को 2 ग्राम बिनोमिल एवं 2 ग्राम कैप्टान के घोल में 1 घंटा के लिए डुबो कर उपचारित करना चाहिए| ग्लेडियोलस में इस रोग का प्रकोप होने पर उस खेत में कम से कम 2 से 3 वर्ष तक इसकी खेती नहीं करनी चाहिए|
विल्ट (फ्यूजेरियम आर्थोसेरस किस्म ग्लेडियोलि)- गर्मी के मौसम में इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं| इस प्रकार के पौधों से बने घनकन्द जमीन में सड़ जाते हैं तथा जो घनकन्द बनते भी हैं वह भण्डारण के दौरान सड़ जाते हैं|
रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए घनकन्दों को उखाड़ने के बाद बिनोमिल के 0.2 प्रतिशत सांद्रता वाले घोल में 1 घंटा के लिए उपचारित करके एवं सूखाकर भंडारण करते हैं|
रस्ट (यूरोमाइसेस ट्रांस्वसंलिस)- रस्ट से प्रभावित ग्लेडियोलस के पौधों की पत्तियों के दोनों तरफ पीले धब्बे पड़ जाते हैं तथा बाद में पौधों का रंग भूरा होने लगता है| गर्मी के मौसम में यह रोग अधिक फैलता है इससे प्रभावित पौधों की वृद्धि एवं विकास की गति धीमी पड़ जाती है|
फूलों की कटाई
ग्लेडियोलस के घनकंदों के रोपाई के बाद अच्छी देखभाल करने पर लगभग 90 से 100 दिनों में पुष्प डण्डियों की कटाई शुरु हो जाती है| कभी-कभी इससे अधिक भी समय लगता है| इसके पुष्प डण्डियों को स्थानीय बाजार के लिए उस समय काटना चाहिए, जब निचली कली में रंग दिखाई देना शुरु हो जाए| पुष्प डण्डियों को सुबह के समय धारदार चाकू से काटना चाहिए तथा काटने के बाद बाल्टी में पानी में रखना चाहिए| पुष्प डण्डियों को काटते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि एक पौधे पर कम से कम 4 से 5 पत्तियां बनी रहें|
उपज
उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से एक हैक्टेयर क्षेत्रफल में लगी ग्लेडियोलस की फसल से लगभग 2.5 से 3 लाख पुष्प डण्डियां तथा उतना ही घनकंद की उपज होती है| पुष्प डण्डियों को लम्बाई एवं पुष्प कलिकाओं के आधार पर विभिन्न वर्गों में विभाजित कर लेते हैं, जैसे-
फैन्सी- जिस पुष्प डंडी की लम्बाई 107 सेंटीमीटर से अधिक और 16 स्पाइक की संख्या को इस वर्ग में रखते है|
स्पेशल- जिस पुष्प डंडी की लम्बाई 97 से 107 सेंटीमीटर तक और 15 स्पाइक संख्या को स्पेशल वर्ग में रखते है|
स्टेण्डर्ड- जिस पुष्प डंडी की लम्बाई 81 से 96 सेंटीमीटर तक और 12 स्पाइक संख्या को स्टेंडर्ड वर्ग में रखते है|
यूटीलिटी- जिस पुष्प डंडी की लम्बाई 81 सेंटीमीटर से कम और 10 स्पाइक संख्या को यूटिलिटी वर्ग में रखते है|
विभिन्न वर्ग के अनुसार 20 पुष्प डण्डियों का गुच्छा बनाते हैं| इन पुष्प गुच्छों को कागज के डिब्बों में पैक करके बाजार में भेजते हैं|
खुदाई और भंडारण
ग्लेडियोलस के पुष्प डण्डियों की कटाई करने के 60 से 70 दिन बाद पत्तियां बिल्कुल पीली पड़ जाती हैं| यह घनकन्दों की खुदाई का समय होता है| खुदाई करने के बाद घनकंदों एवं घनकंदिकाओं को आकार के अनुसार विभिन्न वर्गों में वर्गीकृत कर लेना चाहिए| इन घनकंदों एवं घनकंदिकाओं को 2 ग्राम बिनोमिल एवं 2 ग्राम कैप्टान के घोल में 1 घंटा के लिए डुबोकर उपचारित करना चाहिए|
इसके बाद इसे छायादार स्थान पर कुछ समय तक सुखा लेना चाहिए| जब यह सूख जाए इसके बाद इन्हें जालीदार जूट के बेग में रखकर हवादार कमरे में रख देना चाहिए| रोपण से 75 से 85 दिन पहले शीतगृह में भंडारण कर देना चाहिए|
यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है
Leave a Reply