भारत चना उत्पादन में प्रमुख स्थान रखता है, लेकिन कुछ प्रमुख कारणों से हम क्षेत्रफल के हिसाब से अन्य देशों से चना उत्पादन में पिछड़े है, इस लेख में भारत में चना के उत्पादन और उत्पादकता को प्रभावित करने वाले प्रमुख अवरोधकारी तत्वों को संक्षिप्त रूप में निम्न प्रकार से वर्णित किया जा रहा है, जिनको दूर कर के चना उत्पादक अपने चना उत्पादन में बढ़ोतरी कर सकते है| यदि आप चने की उन्नत खेती की पूर्ण जानकारी चाहते है, तो यहां पढ़ें- चने की खेती की जानकारी
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चना उत्पादन कम होने के कारण
1. मिट्टी में नमी कम होने के कारण चना उत्पादन में कमी होती है| हल्की मृदा में जल वाष्पोत्सर्जन की अधिकता और भारी मिट्टी में जल निकास की समस्या भी चना की उत्पादकता में कमी लाने का कारण है|
2. अच्छी वर्षा होने के बावजूद भी मिट्टी में नत्रजन, फास्फोरस और सल्फर की कमी होने के कारण पैदावार में कमी होती है| पोषक तत्वों की कमी के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति भी कम होती है, जिससे पैदावार पर प्रतिकूल असर पड़ता है|
3. विशेषतः हल्की कछारी, मिश्रित लाल और काली मिट्टी में मृदा पपड़ी बन जाती है, जो धीरे-धीरे सख्त हो जाती है और बीज अंकुरण एवं पौधे की वृद्धि को प्रभावित करती है| जिससे पौधों की औसत संख्या में कमी हो जाती है और परिणामस्वरूप चना उत्पादन में कमी आती है|
4. अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में जहाँ की मिटटी काली होती हैं, वहाँ पर मिट्टी में दरारें पड़ जाती हैं और जल निकास प्रभावित होता है, जिससे पौधे की वृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ता है और पैदावार में कमी आती है|
5. जल तथा मिट्टी संरक्षण उपायों का अभाव और वर्षाजल दोहन संरचनाएँ जैसे- ताल, तालाब, कुएँ इत्यादि| की अपर्याप्तता होना भी एक प्रमुख कारण है|
6. कृषि यंत्रों और मशीनरी जैसे-जुताई, अन्तः सस्य, बुवाई, कटाई, मढ़ाई इत्यादि का कम प्रयोग करना|
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7. उन्नत किस्मों के बीज की उपलब्धता में कमी, बीज विस्थापन दर का लक्ष्य 25 से 30 प्रतिशत के आसपास होना चाहिए|
8. भारत देश में उच्च उत्पादक किस्मों के क्षेत्रफल में कमी, चना की बीज प्रतिस्थापन दर 20 प्रतिशत से भी कम है|
9. उर्वरक प्रयोग, राष्ट्रीय औसत (90 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) से काफी कम (30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) है, हमारे देश में उर्वरक प्रयोग खरीफ ऋतु में 10 किलोग्राम एवं रबी में 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, सूक्ष्म तत्वों का प्रयोग नगण्य ही है|
10. चना में शुष्क जड़गलन रोग के प्रबन्धन के अपर्याप्त उपाय प्रायः फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं|
11. चना में फली भेदक कीट के प्रबन्धन हेतु एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन की अपर्याप्त जानकारी|
12. कीट एवं रोगाणुओं का चना को अधिक पसंद करना भी एक जैविक अवरोधक है, जिससे अनाज और तिलहन की तुलना में कीट व व्याधियों का अतिक्रमण अधिक होता है|
13. चना के पकते समय अधिक तापमान और नमी की कमी होने से खाली फलियाँ अधिक बनती हैं, फलस्वरूप चना उत्पादन में कमी आती है|
14. फसल के सफल होने की अनिश्चितता बनी रहना, ये भी चना उत्पादन में कमी का एक कारण है|
उपरोक्त बिंदु ध्यान में रखकर और उनका निदान कर के किसान बन्धु अपने चने की खेती का चना उत्पादन बढ़ा सकते है|
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