
रबी मौसम में बारानी और सिंचित स्थितियों में खेती किये जाने वाला चन्द्रशूर एक बहुत गुणकारी तथा लाभकारी औषधीय पौधा है| सरसों ( क्रुसीफेरी) कुल से संबन्धित इस पौधे को हालिम, हलम, असालिया, रिसालिया, असारिया, हालू, अशेलियो, चनसूर, चन्द्रिका, आरिया, अलिदा, गार्डन-कैस और लेपिडियम सेटाइवम आदि नामों से भी पुकारा जाता है|
इसे उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश में व्यावसायिक स्तर पर उगाया जाता है| चन्द्रशूर लगभग 2 से 3 फुट ऊंचाई प्राप्त करके लाल-लाल बीज उत्पन्न करता है| चन्द्रशूर के नौकाकार एवं बेलनाकार बीजों को पानी में भिगाने से लुआब उत्पन्न होता है|
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चन्द्रशूर की खेती के लिए उपयुक्त भूमि
इसके लिए अच्छे जल निकास एवं सामान्य पी एच मान वाली बलुई-दोमट मिट्टी में रबी सीजन में इसकी किसान भाई बड़े सफल रूप से खेती कर सकते हैं|
चन्द्रशूर की खेती के लिए बीज बुआई
चन्द्रशूर को बारानी और असिंचित अवस्था में पलेवा की गई नमी युक्त मिट्टी में अक्तूबर के दूसरे पखवाड़े में बीजा जा सकता है| सिंचित अवस्था में इसकी बिजाई अगर अक्तूबर से नवंबर में की जाए तो सर्वोत्तम रहती है| यदि जमीन खाली न हो या बढ़िया पानी की व्यवस्था न हो पाए तो भी 15 दिसंबर तक इसकी बिजाई की जा सकती है| अभी तक इसकी कोई किस्म विकसित नहीं हुई है|
चन्द्रशूर की खेती के लिए बीज की मात्रा
इसके बीज बहुत छोटे होते हैं, इसलिए एक एकड़ के लिए लगभग 1 से 2 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है|
चन्द्रशूर की खेती के लिए खेत की तैयारी
खेत की तैयारी- सिंचित बलुई दोमट मिट्टी के बतर आने पर दो बार हैरो चलाई गई भुरभुरी मिट्टी पर एक बार सुहागा अवश्य चलाएं|
बिजाई का तरीका- लाइनों से लाइनों की दूरी 30 सेंटीमीटर और बीज की गहराई 1 से 2 सेंटीमीटर ही रखें| बीज अधिक गहरा डालने पर अंकुरण पर दुष्प्रभाव पड़ने से कम जमाव होता है|
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चन्द्रशूर की खेती के लिए खाद और उर्वरक
चन्द्रशूर की खेती के लिए लगभग 6 टन गोबर की अच्छी गली सड़ी खाद एक सार प्रति एकड़ खेत की तैयारी से पहले डालें| 20 किलोग्राम नत्रजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस और आवश्यकतानुसार पोटाश खाद बिजाई के समय डालें|
चन्द्रशूर की खेती में सिंचाई प्रबंधन
चन्द्रशूर की फसल में अधिक सिंचाइयों की आवश्यकता नहीं होती| इसमें 2 से 3 सिंचाइयां ही पर्याप्त होती हैं, बीज जमाव के समय पर्याप्त नमी रहना आवश्यक है| इसलिए बिजाई के तुरन्त बाद हल्का-हल्का पानी लगाएं ताकि जमाव शीघ्र एवं बढ़िया हो जाए| दूसरा पानी दूधिया अवस्था में जरूर लगाएं| यदि सर्दी की वर्षा हो जाए तो सिंचाइयों की संख्या कम हो जाती है|
चन्द्रशूर की खेती में खरपतवार रोकथाम
चन्द्रशूर की स्वस्थ फसल प्राप्त करने के लिए दो निराई-गुड़ाई बिजाई के क्रमशः 3 एवं 6 सप्ताह बाद करनी चाहिए| लाईनों में बोई गई फसल में बाद में भी खरपतवार दिखाई दे सकते हैं, जिन्हें खुरपी, दरांती या हाथ आदि से निकाला जा सकता है| क्यारियों की डोलियों से भी खरपतवार नियंत्रण अवश्य करें|
चन्द्रशूर की खेती में कीट और रोग नियंत्रण
चन्द्रशूर की खेती पर कभी-कभी तेले का प्रकोप और पाऊडरी मिल्ड्यू की शिकायत आ जाती है| ऐसी अवस्थाओं में फसल को तेले से बचाने के लिए एक मिलीलीटर मैलाथियान प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें और पाऊडरी मिल्ड्यू से बचाने के लिए सल्फर डस्ट का छिड़काव करें|
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चन्द्रशूर फसल की कटाई और गहाई
चन्द्रशूर की फसल कटाई के लिए बीजाई के 110 से 120 दिन बाद तैयार हो जाती है| पत्तियां जब पीली पड़ने लग जायें तथा बीज का रंग लाल हो जाए तो फसल कटने के लिए तैयार हो जाती है| यह अवस्था कटाई के लिए उपयुक्त है| फसल को दो दिन खेत में सुखाकर गहाई करें| नमी रहित स्थान पर भंडारण करें|
चन्द्रशूर की फसल से पैदावार
चन्द्रशूर की उपरोक्त विधि से खेती करने पर प्रति एकड़ 7 से 9 क्विंटल बीज प्रति एकड़ प्राप्त होता है|
विशेष-
1. चन्द्रशूर को बरसीम में मिलाकर भी उत्तम चारे के लिए छिड़काव किया जा सकता है| बरसीम में जई, जापानी सरसों, चाइनीज़ कैबेज एवं इसको भी साथ मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है।
2. इसकी चटनी आदि बनाने के लिए छोटीछोटी क्यारियों के रूप में जैसे धनिया, पुदीना, प्याज, लहसुन, मूली, टमाटर आदि की क्यारियों और गृह वाटिका में भी लगाया जा सकता है|
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