चिकनी तोरई कद्दूवर्गीय सब्जियों में अत्यन्त ही महत्वपूर्ण स्वास्थवर्धक और पौष्टिक गुणों से भरपूर सब्जी है| इसका अंग्रेजी नाम स्पान्ज गार्ड एवं वानस्पतिक नाम लूफा सिलेन्ड्रिका या लूफा इजिप्टिका है| इसकी खेती देश के लगभग सभी राज्यों में सुगमता पूर्वक की जाती है| चिकनी तोरई के कोमल मुलायम फलों को सब्जी के लिए उपयोग में लाया जाता है|
इसके सूखे बीजों से तेल भी निकाला जाता है| फल में अधिक मात्रा में पानी होने के कारण इसकी तासीर ठंडी होती है| अन्य कद्दू वर्गीय सब्जियों की उन्नत खेती की जानकारी प्राप्त करने के लिए यहाँ पढ़ें- कद्दू वर्गीय सब्जियों की उन्नत खेती कैसे करें, जानिए आधुनिक जानकारी
चिकनी तोरई की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
चिकनी तोरई की खेती के लिए गर्म तथा आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है| इसकी खेती ग्रीष्म (जायद) व वर्षा (खरीफ) दोनों ऋतुओं में सफलतापूर्वक की जाती है| इसकी खेती के लिए 32 से 38 डिग्री सेन्टीग्रेट तापमान सर्वोत्तम होता है|
यह भी पढ़ें- कद्दू वर्गीय फसलों का संकर बीज उत्पादन कैसे करें
चिकनी तोरई की खेती के लिए भूमि चयन
चिकनी तोरई की खेती उचित जल निकास वाली जीवांशयुक्त सभी प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है| अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट या दोमट मिटटी अधिक उपयुक्त होती है| 6 से 7 पी एच स्तर वाली मिटटी इसकी खेती के लिए आदर्श होती है|
चिकनी तोरई की खेती के लिए उन्नत किस्में
काशी दिव्या- इस चिकनी तोरई के तने की लम्बाई 4.5 मीटर, फल बेलनाकार, हल्के हरे व 20 से 25 सेंटीमीटर लम्बे होते हैं| फल बुवाई के 48 से 50 दिनों के बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं| यह किस्म एन्छेक्नोज व डाउनी मिल्ड्यू के प्रति सहनशील है| इस किस्म की उत्पादन क्षमता 130 से 160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
पूसा स्नेहा- इस चिकनी तोरई किस्म के फल आकर्षक गहरे हरे एवं 20 से 25 सेंटीमीटर लम्बे होते हैं| बुआई के 50 से 55 दिन बाद फल तुड़ाई के लिए तौयार हो जाते है| इस किस्म की उत्पादन क्षमता 200 से 230 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
स्वर्ण प्रभा- इस किस्म के फल मध्यम आकार के होते हैं| जिनकी लम्बाई 20 से 25 सेंटीमीटर व औसत फल भार 150 से 200 ग्राम होता है| यह किस्म चूर्णिल आसिता एवं मृदरोमिल आसिता रोगों के लिए प्रतिरोधी है| बुवाई के 70 से 75 दिन बाद फल तुड़ाई के लिए तौयार हो जाते हैं| इस किस्म की उत्पादन क्षमता 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
कल्याणपुर हरी चिकनी- यह चिकनी तोरई की अगेती किस्म है| फल मध्यम आकार के पतले एवं गुदेदार होते है| फलों पर हल्की धारियाँ बनती है| पौधों पर फल अधिक दिन तक रहने के बाद भी मुलायम बने रहते हैं| इस किस्म की उत्पादन क्षमता 350 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
राजेन्द्र तोरई 1- इस चिकनी तोरई किस्म के फल हरे सफेद होते हैं और फलों की लम्बाई 25 से 30 सेंटीमीटर होती है| बुवाई के 62 से 65 दिन में फल तुड़ाई योग्य हो जाते हैं| यह खरीफ एवं जायद दोनों ऋतुओं में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है| इसकी औसत उपज 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
पंत चिकनी तोरई 1- इस चिकनी तोरई किस्म के फल हरे, बेलनाकार व लम्बे 25 सेंटीमीटर तक होते है| फल बुवाई के 25 दिन बाद तुड़ाई योग्य हो जाते है| इसकी उत्पादन क्षमता 140 से 170 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
यह भी पढ़ें- तोरई की खेती की जानकारी
चिकनी तोरई की खेती के लिए खाद और उर्वरक
चिकनी तोरई की अच्छी पैदावार के लिए 20 से 25 टन सड़ी गोबर की खाद खेत की तैयारी के समय खेत में मिलाते हैं| इसके अलावा 30 से 40 किलोग्राम नत्रजन, 25 से 30 किलोग्राम फास्फोरस तथा 25 से 30 किलोग्राम पोटाश की प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है| नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय खेत में डालते हैं| नत्रजन की शेष आधी मात्रा बुवाई के 30 से 40 दिन बाद टाप ड्रेसिंग के रूप में जड़ों के पास देना चाहिए|
चिकनी तोरई की खेती के लिए बुवाई का समय
ग्रीष्म कालीन चिकनी तोरई फसल की बुवाई फरवरी से मार्च तथा वर्षाकालीन फसल की बुवाई जून से जुलाई में की जाती है|
चिकनी तोरई की खेती के लिए बीज की मात्रा
एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में चिकनी तोरई की बुवाई के लिए 3 से 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है|
चिकनी तोरई की खेती के लिए बुवाई की विधि
बुवाई के लिए नाली विधि सबसे उत्तम है| इस विधि में खेत की तैयारी के बाद 2.5 से 3.0 मीटर की दूरी पर 45 सेंटीमीटर चौड़ी तथा 30 से 40 सेंटीमीटर गहरी नालियाँ बना लेते हैं| इन नालियों के दोनों किनारों (मेड़ों) पर 50 से 60 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज की बुवाई करते हैं| एक जगह पर कम से कम दो बीज लगाना चाहिए और बीज अंकुरण के बाद एक पौधा निकाल देते हैं|
यह भी पढ़ें- खीरा की उन्नत खेती कैसे करें
चिकनी तोरई की फसल में सिंचाई प्रबंधन
चिकनी तोरई की वर्षाकालीन फसल के लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है| वर्षा न होने की स्थिति में यदि खेत में नमी की कमी हो तो सिंचाई कर देनी चाहिए| ग्रीष्मकालीन फसल की पैदावार सिंचाई पर ही निर्भर करती है| गर्मियों में 5 से 6 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए|
चिकनी तोरई की फसल के पौधों को सहारा देना
सामान्यतया ग्रीष्मकालीन फसल में पौधों को चढ़ाने की आवश्यकता नहीं होती है| लेकिन वर्षा कालीन फसल में पौधों को बढ़ने के साथ ही ट्रेलिस या पण्डाल बनाकर चढ़ा देना चाहिए इससे गुणवत्तायुक्त तथा अधिक उपज प्राप्त होती है|
चिकनी तोरई की फसल में खरपतवार नियंत्रण
चिकनी तोरई फसल के खेत को खरपतवार मुक्त रखने के लिए अन्तः सस्य क्रियाएं जैसे निराई, गुड़ाई इत्यादि समय-समय पर करते रहना चाहिए|
चिकनी तोरई की खेती में पलवार का प्रयोग
चिकनी तोरई की बुवाई के बाद खेत में पलवार (मल्च) का प्रयोग करना लाभप्रद होता है| इससे मिटटी का तापमान बढ़ने व नमी संरक्षित होने के कारण बीजों का जमाव अच्छा होता है और खेत में खरपतवार नहीं उग पाते जिसके फलस्वरूप पैदावार पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है|
यह भी पढ़ें- घिया (लौकी) की उन्नत खेती कैसे करें
चिकनी तोरई की फसल में कीट देखभाल
रेड पम्पकिन बिटिल (कद्दू का लाल कीट)- इस कीट के प्रौढ व सुड़ियाँ दोनों ही चिकनी तोरई फसल को नुकसान पहुंचाते हैं| इसके प्रौढ़ कीट छोटे पौधों की मुलायम पत्तियों को खा जाते हैं, जिससे पौधे पत्ती रहित हो जाते हैं| इसकी सूड़ियाँ जमीन के नीचे पौधों की जड़ों एवं तनों में छेदकर देते है, जिससे पौधे मर जाते है|
रोकथाम- संक्रमण के समय कार्बारिल 80 डब्ल्य पी का 1 किलोग्राम सक्रिय तत्व (कार्बारिल घुलनशील चूर्ण 2 ग्राम प्रति लीटर पानी) या डाइक्लोरवास 70 ई सी की 1 से 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का बीजपत्रीय अवस्था में छिड़काव करें| खेत में सूड़ियों के गम्भीर संक्रमण के समय क्लोरपाइरोफास के 2 से 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल से मिटटी को अच्छी तरह तर कर दें और छिड़काव से पहले खाने योग्य फल की तुड़ाई अवश्य कर लें|
सफेद मक्खी- इस कीट के निम्फ व वयस्क दोनों पौधों का रस चूसते है एवं पत्तियों पर इनके द्वारा विसर्जित मल द्वारा काले कज्जली मोल्ड्स विकसित हो जाते हैं| जिससे पौधों में प्रकाश संश्लेषण बाधित होता है| इसके अतिरिक्त यह नेनुआ के येलो मोजैक रोग के विषाणु को भी एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलाती है|
रोकथाम- बीज को इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू पी या थाईमेथोक्साम 70 डब्ल्यू एस की 3 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित कर बुवाई करें| संक्रमण के समय इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 0.3 मिलीलीटर लीटर या थाईमेथोक्साम 0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें|
पर्ण सुरंगक कीट (लीफ माइनर)- इसके लार्वा चिकनी तोरई की पत्तियों में सुरंग बनाकर पर्ण हरित (क्लोरोफिल) को खाते है| जिसके कारण प्रकाश संश्लेषण प्रभावित होता है|
रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए 4 प्रतिशत नीम की गिरी के अर्क का छिड़काव प्रभावी होता है|
फूट फ्लाई (फल मक्खी)- इस कीट के मेगट चिकनी तोरई के नये विकसित फलों को गम्भीर क्षति पहुंचाते हैं| वयस्क मक्खियां मुलायम फलों के छिलके में छेदकर नीचे अंडे देती हैं और अण्डों से मेगट विकसित होते हैं जो कि फल को अन्दर से खाकर सड़ा देते हैं। ग्रीष्म कालीन वर्षा के समय अधिक आर्द्रता होने पर इनका संक्रमण अधिक होता है|
रोकथाम- जहरीले चारा (10 प्रतिशत गुण या शिरा के साथ मेलाथियान 50 ई सी, 2 मिलीलीटर प्रति लीटर या कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी, 2 ग्राम प्रतिलीटर पानी के मिश्रण का खेत में 250 स्पाट्स प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें|
ब्लिस्टर बिटल (फफोलक भृग)- इस कीट के वयस्क चिकनी तोरई की फसल में फूलों को या फूलों की कलियों को खाकर क्षति पहुंचाते हैं| सामान्यतया अगस्त से नवम्बर तक इनका संक्रमण अधिक होता है|
रोकथाम- नीम के बीज की गिरी के निचोड़ (एन एस के ई) 4 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें और घोल में 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से स्टीकर मिला दें|
मूल ग्रन्थि रोग- चिकनी तोरई की संक्रमित फसल में पौधों की वृद्धि कम हो जाती है| पत्तियां पीली पड़ जाती है तथा कभी-कभी पौधे मर जाते हैं|
रोकथाम- खेत में बुवाई के समय कार्बोफ्यूरान 3 जी की 1.5 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से डालें|
यह भी पढ़ें- कद्दू वर्गीय सब्जियों में जड़ गांठ सूत्रकृमि की रोकथाम कैसे करें
चिकनी तोरई की फसल में रोग देखभाल
मृदूरोमिल आसिता (डाउनी मिल्ड्यू)- यह रोग फंफूद के कारण होता है| अधिक आर्द्रता वाले क्षेत्रों में इसका प्रकोप अधिक होता है| इस रोग के लक्षण पत्तियों के उपरी सतह पर कोणीय पीले धब्बों के रुप में परिलक्षित होते है जो आगे चलकर पत्तियों के निचली सतह पर फैल जाते है तथा पत्तियां सूखकर गिर जाती है|
रोकथाम- रोग के संक्रमण के समय जिनेब 75 डब्ल्यू पी, 0.15 प्रतिशत या मैन्कोजेब के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए| अधिक संक्रमण के समय मेटालाक्सिल 8 प्रतिशत + मैन्कोजेब 64 प्रतिशत के 2.5 से 3.0 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव साप्ताहिक अन्तराल पर करना चाहिए|
चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू)- इस रोग का कारण फफूंद है| गम्भीर रुप से संक्रमित पत्तियां भूरे रंग की होकर सिकुड़ जाती है| परिपक्वता से पहले ही पत्तियां झड़ जाती है तथा लताएं मर जाती है|
रोकथाम- बुवाई से पहले थीरम/कैप्टान/कारबेन्डाजिम की 2.5 से 3.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करना चाहिए| संक्रमण के समय डेनोकैप 48 ई सी 0.03 प्रतिशत या सल्फर 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए|
कोलर राट- यह रोग फफूद जनित है, इसके कारण नवांकुरित पौधे मर जाते हैं| नये पौधों की अपेक्षा पुराने पौधे कम प्रभावित होते हैं|
रोकथाम- बुवाई के समय बीज को कैप्टान की 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए|
येल्लो मोजैक- यह एक विषाणुजनित रोग है| इसके कारण कभी-कभी फसल में 100 प्रतिशत तक नुकसान हो जाता है| इस रोग का लक्षण पौधों की नई पत्तियों पर पीले धब्बे के रुप में दिखाई देता है| गम्भीर संक्रमण के समय पौधों की पत्तियां छोटी चित्तीदार व विकृत हो जाती है तथा फल अनियमित आकार के हो जाते हैं| इस रोग का विशाणु सफेद मक्खी के द्वारा फैलता है|
रोकथाम- चिकनी तोरई के पीला मोजैक रोग के प्रबन्धन के लिए सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिये दिये गये उपायों को अपनायें| कीट और रोगों की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कद्दूवर्गीय सब्जी की फसलों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें
यह भी पढ़ें- करेला की उन्नत खेती कैसे करें
चिकनी तोरई फसल के फलों की तुड़ाई और भंडारण
चिकनी तोरई फसल के फलों की तुड़ाई हमेशा मुलायम अवस्था में करनी चाहिए, देर से तुड़ाई करने पर उसमें कड़े रेशे बन जाते हैं| फलों की तुड़ाई 6 से 7 दिनों के अन्तराल पर करनी चाहिए| पूरी फसल अवधि में लगभग 8 तुड़ाईयाँ की जा सकती है| फलों को तुड़ाई उपरान्त ताजा रखने के लिए ठण्डे छायादार स्थानों पर रखना चाहिए| फलों को ताजा बनाये रखने के लिए बीच-बीच में उन पर पानी का छिड़काव कर सकते हैं|
चिकनी तोरई की खेती से पैदावार
चिकनी तोरई की उपज किस्म और फसल की देखभाल पर निर्भर करती है| परन्तु उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से खेती करने पर 250 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है|
यह भी पढ़ें- कद्दू (पेठा) की उन्नत खेती कैसे करें
यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|
Leave a Reply