हमारे देश में उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की सब्जियों में टमाटर की फसल का प्रमुख स्थान है| यह लोगों के भोजन का प्रमुख अंग होने के अतिरिक्त, किसानों की आय बढ़ाने में भी मुख्य भूमिका निभाती है| टमाटर की खेती के अन्तर्गत आने वाला क्षेत्रफल 0.86 मिलियन हैक्टेयर है, लेकिन उत्पादकता स्तर काफी कम है| इसके उत्पादन में कमी का एक प्रमुख कारण फसल पर कीट, रोग और सूत्रकृमियों का अधिक प्रकोप होना है| टमाटर के मुलायम तथा कोमल होने की वजह से और इसकी खेती के दौरान वातावरण में उच्च नमी एवं अत्यधिक उर्वरकों आदि का प्रयोग होने के कारण भी इस फसल पर कीट व रोगों का प्रकोप अधिक होता है|
जिसके कारण उत्पादन में 20 से 30 प्रतिशत तक की कमी हो जाती है, अधिक पैदावार देने वाली, कम समय में पकने वाली, बेमौसमी संकर किस्मों का उपयोग नाशीजीवों के परिदृश्य में केवल बदलाव ही नहीं लाते हैं, अपितु इसके परिणाम स्वरूप कीटों, बीमारियों एवं सूत्र कृमियों को प्रचुर मात्रा में लगातार भोजन मिलता रहता है| जिससे इनकी उपस्थिति चिरस्थाई बनी रहने के साथ-साथ अधिक तेजी से बढ़ती है| इन नाशीजीवों के प्रकोप की रोकथाम हेतु इस फसल पर किसानों द्वारा जहरीले कीटनाशकों का अन्धाधुन्ध प्रयोग किया जाता है| यहां तक कि टमाटर की फसल पर, पर्याप्त उपज बढ़ोत्तरी के बिना 8 से 10 छिड़काव करना एक आम प्रचलन है|
जिसके कारण विषैले कीटनाशकों का समावेश इस सब्जी के खाए जाने वाले भाग में हो जाने के कारण उपभोगताओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव तो पड़ता ही है तथा साथ में निर्यात गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। इसलिए उपरोक्त समस्याओं को ध्यान में रखते हुए एवं किसानों में जागरूकता लाने के लिए तथा इस फसल के नाशीजीवों के बेहतर नियंत्रण के लिए समेकित नाशीजीव प्रबन्धन तकनीकी (आई पी एम) का विकास किया गया है| इस लेख में टमाटर की फसल में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें का विस्तृत उल्लेख है| टमाटर की जैविक खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- टमाटर की जैविक खेती कैसे करें
टमाटर की फसल के कीट और माइट्स
फल बेधक- इसके अण्डे पीलापन लिए हुए सफेद, धारीदार एवं गुम्बदाकार होते हैं| पूरी तरह विकसित सुंडियाँ हल्की पीली हरे रंग की होती हैं और दोनों किनारों पर हल्की पीली टूटी धारियाँ होती हैं| इस कीट की सुंड़ियाँ टमाटर के फलों में छेद कर घुस जाती हैं तथा आन्तरिक भाग को खाती रहती हैं|
मीली बग- क्रालर पत्तियों और तनों की बाहरी त्वचा में छेद करके रस चूसते हैं| अर्भक मधुरस मल त्याग करते हैं, जो फफूंदी को विकसित करता है| जिससे प्रकाश संशलेषण क्रिया बाधित होती है, वयस्क सफेद मोम जैसा पदार्थ भी निकालते हैं| सफेद मक्खी- इस कीट के अर्भक तथा वयस्क पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं| इस रोग से ग्रसित पत्तियाँ अन्दर की ओर मुड़ जाती|
थ्रिप्स- ये बहुत छोटे व पतले कीट हैं, जो पत्तियों पर पाए जाते हैं| कीट अपने अण्डे ऊतकों के भीतर देता है| शिशु व वयस्क दोनों पत्तियों के ऊतकों में प्रवेश करके उनका रस चूसते हैं| पत्तियाँ ऊपर से मुड़ जाती हैं, जिस पौधे पर कीट का आक्रमण होता है| पौधों बढ़वार रुक जाती है, पत्तियाँ गिर जाती हैं तथा ताजी कलिकाएं भंगुर होकर गिर जाती हैं|
पर्ण सुरंगक- पुराने पत्तों में सफेद लम्बी गोलाकार सुरंगें देखी जा सकती हैं| जबकि नए पत्तों में ये सुरंगें छोटी और पतली होती हैं| ज्यादा रसायन छिड़कने से भी इसका प्रकोप ज्यादा बढ़ता है|
लाल मकड़ी माइट- माइट पत्तियों की निचली सतह और टहनियों से रस चूसते रहते हैं| जिससे कि धीरे-धीरे पत्तियाँ लाल भूरे रंग की हो जाती हैं तथा अंततः सूख जाती हैं| ग्रीष्म ऋतु में माइट की तेजी से वृद्धि होती है|
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टमाटर की फसल के रोग
आर्द्र गलन- शुरूआत में बीमारी के लक्षण कुछ जगहों में दिखाई पड़ते हैं और 2 से 3 दिनों में पूरी नर्सरी में फैल जाते हैं| नर्सरी भूरे और सूखे धब्बों के साथ पीली-हरी दिखाई पड़ती है| पौधे अचानक ही सूख जाते हैं तथा जमीन पर गिर कर सड़ जाते हैं|
अगेती झुलसा- टमाटर की फसल में इस रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों के किनारे के भाग पर नियमित त्रिकोणीय धब्बे दिखाई देते हैं| इन धब्बों के बढ़ने के साथ ही पत्तियाँ गिर जाती हैं| यह रोग पौधे के सभी भागों में लग सकता है|
पछेती झुलसा- टमाटर की फसल में यह रोग पौधे की किसी भी अवस्था में लग सकता है| पौधे के किसी भी भाग पर भूरे बैंगनी या काले रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हैं| वातावरण में लगातार नमी रहने पर इस रोग का प्रकोप बढ़ जाता है| फलों के डंठल भी ग्रसित हो कर काले रंग के हो जाते हैं|
पर्ण कुचन- यह बीमारी सफेद मक्खी कीट द्वारा फैलाई जाती है| ग्रसित पौधों में पत्तियाँ मुड़ जाती हैं और फूल व फल छोटे तथा कम संख्या में लगते हैं| इस रोग से ग्रसित पौधों में टहनियों का आकार छोटा होने से पौधे भी छोटे हो जाते हैं| पुरानी पत्तियों के किनारे मोटे और अन्दर की ओर मुडे हुए दिखाई पड़ते हैं|
सनस्काल्ड- ग्रीष्म व सूखे मौसम में टमाटर के फलों का अचानक ही सीधी सूर्य की किरणों के सम्पर्क में आना सनस्काल्ड का कारण हो सकता है| फलों पर सूर्य की किरणों के सीधे सम्पर्क में आने वाले भाग की तरफ सफेद या पीले धब्बे प्रकट हो जाते हैं|
चक्षु सड़न रोग- यह रोग टमाटर के कच्चे फलों में पहले दिखता है| फलों पर पहले छोटे काले धब्बे दिखाई पड़ते हैं, जो कि धीरे-धीरे बड़े हो जाते हैं| इस रोग का एक मुख्य लक्षण है, कि फल के ग्रसित भाग के चारों ओर गोल-गोल हल्की भूरी रंग की वलय बन जाती है|
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टमाटर की फसल के सूत्रकृमि
मूल ग्रन्थि सूत्रकृमि- सूत्रकृमि ग्रसित पौधों की जड़ों में ग्रन्थियाँ बन जाती हैं तथा इन ग्रन्थियों पर अनेक रोग, जनक, कवकों व जीवाणुओं के आक्रामण से जड़ का विगलन हो जाता है| पौधे की वृद्धि रुक जाती है एवं वह कमजोर और पत्तियाँ छोटी व पीली पड़ जाती हैं| जब इन सूत्रकृमियों की संख्या ज्यादा हो तो पौधों की मृत्यु भी हो सकती है|
टमाटर की फसल के मित्र कीट
टमाटर की फसल में सामान्य रूप से दिखाई देने वाले प्राकृतिक शत्रुओं या मित्र कीटों की रक्षा की जानी चाहिए तथा इसके लिए रासायनिक नाशीजीव नाशियों का आवांछित एवं अतिरिक्त छिड़काव नहीं किया जाना चाहिए|
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टमाटर की फसल में समेकित नाशीजीव प्रबंधन
नर्सरी के दौरान-
1. अच्छी जल निकासी और जड़ सड़न रोग से बचाव के लिए हमेशा जमीन से 10 से 15 सेंटीमीटर ऊँची क्यारी बनाकर ही नर्सरी की बुवाई करें|
2. नर्सरी की बुआई से पहले मिट्टी को 0.45 मिलीमीटर मोटी पोलीथीन शीट से ढककर मिट्टी का सौरियकरण करें| ऐसा करने से मिट्टी जनित रोगों के नियंत्रण में सहायता मिलती है| इस दौरान मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहनी चाहिए|
3. नर्सरी के दौरान रोगों के नियंत्रण के लिए सक्षम ट्राइकोडर्मा स्ट्रेन की 50 ग्राम मात्रा को गोबर की सड़ी हुई बारीक खाद में अच्छी प्रकार मिलाकर चार वर्ग मीटर क्यारी की मिट्टी में मिला दें|
4. प्रचलित संकर किस्मों के बीजों का शोधन सक्षम ट्राइकोडर्मा स्ट्रेन 9 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या स्यूडोमोनॉस इनफलोरेसेस 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के अनुसार करना चाहिए|
5. पर्णकुंचन के प्रबन्धन के लिए 0.40 मिलीमीटर मोटी नायलोन जाली का इस्तेमाल करें|
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मुख्य फसल के दौरान-
1. टमाटर की फसल में प्रत्येक 16 पंक्तियों के बाद गेंदे की एक पंक्ति फसल प्रपंच के रूप में उगानी चाहिए| सुंडी अण्डे देने के लिए गेंदे के फूलों की तरफ आकर्षित होती है|
2. बीमारियों के फैलाव से बचाव के लिए टमाटर की किस्मों के लिए पंक्ति से पंक्ति व पौधे से पौधे की दूरी 60 x 45 सेंटीमीटर और संकर किस्मों के लिए 90 x 60 सेंटीमीटर की दूरी रखें|
3. सूत्रकृमियों के प्रकोप को कम करने के लिए 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नीम की खली भूमि में मिलाएं|
4. टमाटर की फसल में परजीवी पक्षियों के बैठने के लिए 10 स्टैण्ड प्रति एकड़ के अनुसार खेत में लगाएं|
5. टमाटर की पौध रोपने के 15 दिनों बाद सफेद मक्खी के प्रबंधन के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 35 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें|
6. टमाटर की फसल में नीम के बीज का अर्क 5 प्रतिशत की दर से छिड़काव करने से भी सफेद मक्खी का नियंत्रण किया जा सकता है|
7. टमाटर की फसल में फल बेधक की निगरानी हेतु खेत में गन्ध पाश 5 प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगाएं और 15 से 20 दिन के अन्तराल पर इनके ल्यूर को बदलते रहना चाहिए, फल बेधक के अण्डों के लिए पौधे के शीर्ष के तीन प्रणों की निगरानी करें|
8. अण्डे का परजीवी ट्राईकोग्रामा कीलोनिस को एक लाख प्रति हैक्टेयर की दर से एक सप्ताह के अन्तराल पर पौधों पर फूल आरम्भ होने की अवस्था में 4 से 5 बार छोड़ें|
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9. टमाटर की पौध रोपने के 25, 35 व 45 दिनों बाद एच ए एन पी वी (1 x 10\9 पीओबी/एमएल) 1500 एमएल प्रति हेक्टेयर की दर से फल बेधक के प्रबन्ध के लिए सांयकाल छिड़काव करें|
10. फल बेधक ग्रसित फलों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए| फल बेधक का प्रकोप आर्थिक हानि स्तर 5 प्रतिशत से अधिक होने पर क्लोरएन्ट्रानिलीप्रोल 18.5 प्रतिशत एस सी 30 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए|
11. टमाटर की फसल में पर्णकुंचन तथा उकठा रोग ग्रसित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें|
12. अगेती व पछेती झुलसा के लिए आवश्यकतानुसार मैन्कोजेब 1.1 से 1.5 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर या जीनेब 75 डब्ल्यू पी 1.1 से 1.5 किलोग्राम सक्रिय तत्व या कॉपर ऑक्सिक्लोराईड 1.25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सुरक्षात्मक छिडकाव करें|
13. आवश्यकतानुसार एजोक्सीस्ट्रोबीन 23 प्रतिशत एस सी 125 सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर या एजोक्सीस्ट्रोबीन+डाईफेनकोनाजोल 0.03 प्रतिशत की दर से अगेती व पछेती झुलसा के लिए छिड़काव करें|
14. अगेती झुलसा रोग के नियंत्रण के लिए आवश्यकतानुसार पाईराक्लोस्ट्रोबीन 20 डब्ल्यू जी 75 से 100 ग्राम सक्रिय तत्व, मेटीरेम 55+पाईराक्लोस्ट्रोबीन 5 डब्ल्यू जी 1500 से 1750 प्रति हेक्टेयर या टेबूकूनाजोल 50+ट्राईफ्लोक्सीस्ट्रोबीन 25 डब्ल्यू जी 350 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें|
15. टमाटर की फसल में पछेती झुलसा रोग के नियंत्रण हेतु आवश्यकतानुसार मन्डीप्रोपानीड 23.4 एस सी 0.02 प्रतिशत सक्रिय तत्व की दर से या साईमॉक्सिनिल 8+मेन्कोजेब 64 का 1500 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें|
16. चक्षु सड़न रोग के लिए डंडे लगाकर पौधों को सहारा दें तथा आवश्यकतानुसार प्रोपीनेब 70 डब्ल्यू पी 0.21 प्रतिशत सक्रिय तत्व का छिड़काव करें|
17. टमाटर की फसल में बैक्टीरियल धब्बे के लिए स्ट्रेप्टोसाईक्लीन 40 से 100 पीपीएम की दर से क्यारी में व रोपाई के बाद छिड़काव करें|
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नाशीजीव अवरोधी किस्में-
फल बेधक- अविनाश- 2, अविनाश- 3 अवरोधी किस्में है|
बैक्टीरियल सूखा- अर्का आभा, अर्को आलोक, शक्ति, अभिजीत, अर्को श्रेष्ठ अवरोधी किस्में है|
पर्ण कुंचन- परभणी यशीरी, एच- 24 अवरोधी किस्में है|
मूल ग्रन्थि सूत्रकृमि- हिसार अनमोल, एस एल- 120, पूसा हाईब्रिड- 2 अवरोधी किस्में है|
चुर्णील आसिता- अर्का आशीष अवरोधी किस्म है|
अगेती झुलसा- देवगिरी अवरोधी किस्म है|
फ्यूजेरियम म्लानि- पंत बहार अवरोधी किस्म है|
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