टमाटर फसल से इच्छित उपज प्राप्त करने के लिए रोग एवं कीट नियंत्रण आवश्यक है| वैसे तो टमाटर फसल पर अनेक रोगों और कीटों का आक्रमण होता है| लेकिन आर्थिक दृष्टि से कुछ प्रमुख रोग और कीट है, जो टमाटर फसल को अधिक हानी पहुचाते है| जिससे इसके उत्पादन में भारी कमी देखने को मिलती है|
इसलिए उत्पादकों को चाहिए की वे समय पर इन टमाटर फसल के हानिकारक रोग एवं कीटों की रोकथाम करें| इस लेख में टमाटर फसल के रोग एवं कीट और उनका नियंत्रण कैसे करें की जानकारी का उल्लेख है| टमाटर की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- टमाटर की उन्नत खेती कैसे करें
टमाटर फसल के रोगों का नियंत्रण
आर्द्रगलन- टमाटर फसल का यह एक गंभीर रोग है, जो फफूंद राइजोक्टोनिया एवं फाइोफ्थोरा कवकों के मिले जुले संक्रमण से होता है| इससे प्रभावित पौधे का निचला तना गल जाता है|
नियंत्रण-
1. बीजों को थायरम या केप्टान 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करके बोयें|
2. रोगी पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर दें|
3. खेत में जल निकास उत्तम रखें|
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पछेती अंगमारी (झुलसा)- टमाटर फसल में यह रोग फाइरोफ्थोरा इनफेस्टेन्स नामक कवक से होता है| शुरूवात में पत्तियों पर जलीय अनियमित आकार के धब्बे बनते है| जो बाद में भूरे से काले धब्बों में बदल जाते है|
नियंत्रण-
1. स्वस्थ रोगरहित पौध का उपयोग करें|
2. प्रभावित पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर दें|
3. फसल चक्र अपनावें|
4. प्रभावित फसल पर मेटालेक्सिल 4 प्रतिशत +मैंकाजेव 64 प्रतिशत डब्ल्यू पी 25 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें|
अगेती अंगमारी- टमाटर फसल में यह रोग अल्टरनेरिया सोलेनाई नामक कवक से होता है| प्रभावित पौधों की पत्तियों पर छोट काले रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हैं| जो बड़े होकर गोल छल्लेनुमा धब्बों में परिवर्तित हो जाते हैं| फल पर धब्बे शुष्क धंसे हुए और गहरे होते है|
नियंत्रण-
1. रोगग्रस्त पौधों को जलाकर नष्ट कर दे|
2. फसल चक्र अपनावें|
3. केप्टान 75 डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें|
4. रोग के लक्षण दिखाई देने पर मैंकोजेब 75 डब्ल्यू पी का 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें|
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उखटा रोग- टमाटर फसल में यह रोग फ्यूजियम ओक्सीस्पोरम लाइकोपर्सिकी नामक कवक से होता है| इसमें रोगी पौधे की निचली पत्तियां पीली पड़कर झुलस जाती है| पौधे मुरझा जाते हैं| पौधों की बढ़वार रूक जाती हैं व फल भी नहीं लगते हैं| मुख्य तने के संवहन तंतु के साथ भूरी धारियां देखी जा सकती है|
नियंत्रण-
1. गर्मियों में भूमि का सूर्योपचार करें|
2. बीजो को बेसिलम सबटिलीस या ट्राइकोडर्मा हरजिएनम 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें|
3. उक्त बायोएजेन्ट में 2.5 किलोग्राम को 50 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हेक्टर बुवाई पूर्व भूमि में मिलायें|
4. पौध रोपण से 30 दिन बाद कार्बेन्डाजिम 25 प्रतिशत + मैंकोजेब 50 प्रतिशत डब्ल्यू एस 0.1 प्रतिशत की दर से खेत को ड्रेन्च करें|
पर्ण कुंचन रोग- यह रोग टमाटर फसल में पर्ण कुंचन विषाणु द्वारा होता है और सफेद मक्खी के द्वारा फैलाया जाता है| संक्रमित पौधों की पत्तियां छोटी होती है व ऊपर की ओर मुड़ी हुई पीली दिखाई देती है| पौधे की बढ़वार रूक जाती है, फूल तथा फलों की संख्या अत्यंन्त कम हो जाती है|
नियंत्रण-
1. संक्रमित पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर देना चाहिए|
2. खेत को खरपतवार से मुक्त रखें|
3. रोगवाहक कीट को नष्ट करने के लिए ईमिडाक्लोक्रिड 17.8 एस एल 1 मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी या थायामिथाक्सॉम 25 डब्ल्यू पी 0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें|
मूल ग्रन्थि रोग- टमाटर फसल में यह रोग सूत्रकृमि मेलिडोगायनी जेवेनिका से होता है| इसमें पौधों की जड़ों में गांठे बन जाती है| भूमि में सूत्रक्रमि की संख्या अधिक होने पर पौधों के ऊपरी भाग पर लक्षण दिखाई देते है, जैसे- पीलापन, मुरझाना और बढ़वार रूकना इत्यादि| बीमारी घेरों में उभरती है|
नियंत्रण-
1. रोग अवरोधी किस्मों का प्रयोग करें|
2. मई से जून में भूमि की गहरी जुताई करें और खेत को पारदर्शी पॉलीथिन से ढ़क देवें|
3. फसल चक्र अपनावें|
4. ट्रेप फसल के रूप में सनई की बुवाई करें|
5. खेत में गैंदा फूल की फसल 2:1 में बोवें|
6. पौध रोपण से पूर्व पौध को कार्बोसल्फॉन 25 ई सी के 500 पी पी एम के घोल में डूबाकर लगाये|
7. कार्बोसल्फान 3 जी या फोरेट 10 जी 1.5 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर पौध रोपण के साथ तथा 30 से 40 दिन बाद प्रयोग करें|
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टमाटर फसल के कीटों का नियंत्रण
सफेद लट- यह टमाटर फसल को काफी नुकसान पहुँचाती है| इसका आक्रमण जड़ों पर होता है| इसके प्रकोप से पौधे मर जाते हैं|
नियंत्रण- फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3 जी 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई से पूर्व कतारों में पौधों की जड़ों के पास डालें|
कटवा लट- इस कीट की लटें रात में भूमि से बाहर निकल कर छोटे-छोटे पौधों को सतह के बराबर से काटकर गिरा देती है| दिन में मिट्टी के ढेलों के नीचे या दरारों में छिपी रहती है|
नियंत्रण- क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से भूमि में मिलावें|
सफेद मक्खी, थ्रिप्स, हरा तेला व मोयला- ये कीट पौधों की पत्तियों व कोमल शाखाओं से रस चूसकर कमजोर कर देते हैं| सफेद मक्खी टमाटर में विषाणु रोग फैलाती हैं| इनके प्रकोप से उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है|
नियन्त्रण- फास्फोमिड़ान 85 एस एल 0.3 मिलीलीटर या डाइमिथोएट 30 ई सी या मैलाथियान 50 ई सी एक मिलीलीटर का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें, आवश्यकता पड़ने पर यह छिड़काव 15 से 20 दिन बाद दोहरायें|
फल छेदक कीट- टमाटर फसल में कीट की लटें फलों में छेद करके अन्दर से खाती है| कभी कभी इनके प्रकोप से फल सड़ जाते है और उत्पादन में कमी के साथ-साथ फलों की गुणवत्ता भी कम हो जाती है|
नियन्त्रण- मैलाथियान 50 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करना चाहिये|
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