तिलहनी फसलें उन फसलों को कहते हैं, जिनसे वनस्पति तेल का उत्पादन होता है| तिलहनी फसलों में प्रमुख हैं, जैसे- तिल, सरसों, मूँगफली, सोयाबीन तथा सूरजमुखी| हमारे देश में तिलहनी फसलों की खेती अनुपजाऊ भूमि और पानी की कमी वाले क्षेत्रों में की जाती है| क्षेत्रफल की दृष्टि से खाद्यान्न फसलों के बाद भारत में तिलहनी फसलों का ही स्थान है
भारत में तिलहनों की पैदावार बढ़ाने के लिये पीत क्रांति की संकल्पना दी गयी लेकिन तिलहन खेती की जागरूकता के आभाव में किसानों को तिलहनी फसलों से उचित पैदावार प्राप्त नही हो पाती है| क्योंकि बहुत सी समस्याओं में से कीट एवं बीमारियाँ भी इन फसलों से उचित पैदावार में बाधक है|
कभी-कभी तो ये पूरी फसल को ही हानी पहुचाते है| इस लेख में तिलहन फसलों में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें की उपयोगी जानकारी का उल्लेख है, जिसको किसान भाई उपयोग में लाकर इन तिलहनी फसलों से अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते है|
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मुख्य कीट एवं प्रबंधन
तेला- तिलहनी फसलों पर यह कीट बहुत अधिक संख्या में पाया जाता है तथा बढ़ती टहनियों, फूलों एवं फलियों पर मध्य फरवरी से फसल कटाई तक रहता है| यह कीट रस चूसते है, जिसके कारण कीट ग्रसित पौधों में बीज कम बनते हैं|
प्रबंधन-
1. तिलहनी फसलों में येलो स्टिकी ट्रैप का प्रयोग करें|
2. तिलहनी फसलों में फूल आने से पहले ग्रस्त पौधों के ऊपरी भाग को नष्ट करें|
3. क्राइसोपरला कार्निया (ग्रीनलेसविंग) कम से कम 1000 ग्रब प्रति एकड़ या 2 से 3 ग्रब प्रति पौधा छोड़ें| जब मध्य शाखा में कम से कम 50 तेले या 4 मिलीमीटर में तेले हों तो फसल पर 750 मिलीलीटर साइपरमेथ्रिन का 750 से 800 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|
सावधानियां-
1. दवाई छिड़काव के बाद सरसों के पत्तों को साग के रूप में प्रयोग न करें, यदि फसल केवल साग के लिये उगाई गई है तथा उसमें तेले का प्रकोप हो तो स्टिकीट्रैप लगाएँ और मैलाथियान 50 ई सी, 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें, परन्तु पत्तों को साग के रूप में कम से कम सात दिन बाद प्रयोग करें|
2. केवल सुरक्षित और मित्र कीटों पर कम प्रभाव डालने वाले रसायनों का प्रयोग करें|
3. दवाई का छिड़काव दोपहर के समय न करें, क्योंकि इस समय ज्यादा संख्या में मधुमक्खियां खेतों में आती है|
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पर्णखनिक कीट- ये छोटे-छोटे कीट होते हैं| ये पत्तों पर सफेद चमकीली सुरगें बना देते हैं
प्रबंधन-
1. तिलहनी फसलों में ज्यादा ग्रसित पत्तियों को तोड़ कर नष्ट करें|
2. बीज की फसल पर 750 मिलीलीटर साइपरमेथ्रिन 10 ई सी, को 750 से 800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें|
3. तिलहनी फसलों में कीट व्याधिकारक दवाई मैटरिजियम का इस्तेमाल करें|
सरसों की सॉफ्लाई- इसकी सुण्डियां तिलहनी फसलों के कोमल पतों में छेद कर देती हैं और अधिक प्रकोप में सारे पत्ते खा जाती हैं|
प्रबंधन-
तिलहनी फसलों की आरम्भिक अवस्था में 500 मिलीलीटर मैलाथियान (साईथियान 50 ई सी) का 500 लीटर पानी में प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें|
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हेयरी कैटरपिलर- सुण्डियों के शरीर पर भूरे से लाल रंग के बाल होते हैं एवं यह झुण्ड में पलती है तथा पत्तों को खा जाती हैं|
प्रबंधन-
1. तिलहनी फसलों से सुण्डियों को इक्ट्ठा करके उन्हें नष्ट करें|
2. अण्ड परजीवी ट्राइकोग्रामा क्लिोनिस 50,000 अण्डे प्रति हैक्टेयर की दर से 2 से 3 बार
छोड़े|
3. 300 मिलीलीटर साइपरमेथ्रिन या 500 मिलीलीटर डाईक्लोरवास (न्यूवॉन) 750 से 800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें|
गोभी की सुण्डियां- ये सुण्डियां पत्तों और बनती हुई फलियों को खा जाती है| छोटी सुण्डियां समूह में एवं बड़ी अलग-अलग नुक्सान करती हैं|
प्रबंधन-
1. फसल में ट्राइकोग्रामा किलोनिस 50,000 प्रति हैक्टेयर की दर से छोड़ें|
2. तिलहनी फसलों से सुण्डियों को इक्ट्ठा करके नष्ट करें|
3. फेरोमोन ट्रैप का प्रयोग करें|
4. फसल में 1500 मिलीलीटर बैसीलस थूरिनर्जेन्सिस (डैलफिन बी टी) 1500 मिलीलीटर क्वीनलफास या डाईक्लोरोवास (न्यूवान) को 750 से 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें|
5. कीट व्याधिकारक दवाई ब्यूवेरिया का छिड़काव करें|
6. कीट व्याधिकारक दवाई ब्यूवेरिया/ मैटरिजियम को गोबर की खाद के साथ मिलाकर खेत में डालें|
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बीमारियाँ एवं प्रबंधन
झुलसा रोग- इससे तिलहनी फसलों के पत्तों एवं फलियों पर गोल तथा गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं, जिससे पौधे कमजोर होकर कम पैदावार देते हैं|
प्रबंधन-
1. तिलहनी फसलों की रोग प्रतिरोधी किस्में उगाएँ|
2. रोग रहित एव स्वस्थ बीज का प्रयोग करें|
3. बीज की इंडोफिल एम- 45 या कैप्टान 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचार करें|
4. फसल कटाई के बाद अवशेषों को इक्ट्ठा करके जला दें|
5. अधिक ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें|
6. बीमारी के लक्षण आने पर इंडोफिल एम- 45, 0.2 प्रतिशत का 10 से 15 दिनों के अंतर पर दो बार छिड़काव करें|
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सफेद रतुआ- पत्तों की निचली सतह पर सफेद छाले जैसे धब्बे प्रकट होते हैं, जिसके कारण उपर की सतह पर हल्का हरापन प्रकट होता है, बाद में यह फट जाते हैं, जिससे फफूद का सफेद पदार्थ प्रकट होता है| टहनियां एवं फूलों के भाग मोटे हो जाते हैं|
प्रबंधन-
1. तिलहनी फसलों की बुआई से पहले बीज का उपचार करें|
2. स्वस्थ और रोग रहित बीज उगाएँ|
3. तिलहनी फसलों की रोग प्रतिरोधी किस्में उगाएँ|
4. फसल पर इंडोफिल एम- 45, 0.25 प्रतिशत / कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या ब्लाइटॉक्स 50, 0.3 प्रतिशत का 10 से 15 दिनों के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करें|
अलसी का सूखा रोग- इसके आक्रमण से छोटे छोटे पौधे मर जाते है और बड़े पौधे पीले पड़ कर मुरझा जाते हैं|
प्रबंधन-
1. रोग प्रतिरोधी अनुमोदित किस्में जैसे हिमालिनी, नगरकोट, जानकी इत्यादि ही उगाएँ|
2. रोग ग्रस्त पौधों तथा उनके अवशेषों को नष्ट कर दें|
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पत्तों के धब्बे- विभिन्न आकार के भूरे धब्बे पत्तों पर प्रकट होते हैं तथा पत्ते समय से पहले गिर जाते हैं|
प्रबंधन-
बीमारी के लक्षण आते ही फसल में ईंडोफिल एम- 45/ ईंडोफिल जैड- 78, 6.25 प्रतिशत या कारबैंडाजिम 50 डब्लयू पी, 0.1 प्रतिशत का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें|
भूरा धब्बा- यह बीमारी सोयाबीन में फूल आने के समय आती है| यह रोग अनियमित कोणीय लाल-भूरे धब्बों के रूप में प्रकट होता है| अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां गिर जाती है|
प्रबंधन-
1. तिलहनी फसलों की बिजाई के लिए केवल रोग-रहित बीज का प्रयोग करें|
2. मध्यम रोग प्रतिरोधी किस्में, पालम सोया, हरित सोया, ली तथा बैग ही लगाएं|
बैक्टीरियल पस्चुयल- पत्तों की दोनों सतहों पर पीले उभरे हुए धब्बे प्रकट होते हैं, जो बाद में लाल भूरे हो जाते हैं| छोटे छोटे ऐसे धब्बे फलियों पर भी प्रकट होते हैं|
प्रबंधन-
1. रोग ग्रस्त क्षेत्रों में पंजाब नं. 1 किस्म न लगाएं|
2. रोग प्रतिरोधी किस्में, ली, पालम सोया, हरित सोया तथा बैग लगाएं|
3. रोगग्रस्त पौधों और उनके अवशेषों को नष्ट कर दें|
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