हमारे देश में तिल खरीफ और जायद की एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है| तिल की उन्नत किस्मों का चयन क्षेत्र की अनुकूलता को ध्यान में रखकर करने से पैदावार पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है| अनुवांशिक शुद्धता और 70 से 80 प्रतिशत वाले बीजों का चयन कृषक बन्धुओं को करना चाहिए, इस लेख में तिल की उन्नत किस्में और उनकी विशेषताओं के साथ साथ पैदावार का भी उल्लेख किया गया है| तिल की उन्नत खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- तिल की खेती- किस्में, रोकथाम और पैदावार
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तिल की किस्में
राज्य- पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश
बुवाई का उचित समय- खरीफ- जुलाई का प्रथम पखवाड़ा|
प्रमुख किस्में- पंजाब तिल- 1, आर टी- 125, हरियाणा तिल- 1, शेखर, टी- 12, टी- 13, टी- 14 आदि|
राज्य- हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड
बुवाई का उचित समय- जायद- फरवरी से मार्च, रबी- नवम्बर से दिसम्बर|
प्रमुख किस्में- बी- 67, तिलोथामा, रामा, उमा, माधवी गौरी, आर एस- 1 आदि|
राज्य- राजस्थान
बुवाई का उचित समय- खरीफ- जून के अंत से जुलाई के अंत तक|
प्रमुख किस्में- प्रताप, टी सी- 25, टी- 13, आर टी- 46, आर टी- 54, आर टी- 103, आर टी- 125 आदि|
राज्य- मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़
बुवाई का उचित समय- खरीफ- जुलाई के दूसरे पखवाड़े में, जायद- फरवरी अन्त से मार्च शुरू तक|
प्रमुख किस्में- एन- 32, जे टी- 2, टी के जी- 21, टी के जी- 22, टी के जी- 55, उमा, बी- 67, रामा आदि|
राज्य- गुजरात
बुवाई का उचित समय- खरीफ- जून के अंत से जुलाई के पहले सप्ताह तक, जायद- जनवरी से फरवरी, अर्ध रबी- अगस्त के अंत में|
प्रमुख किस्में- गुजरात तिल नं- 1, गुजरात तिल नं- 2, आर टी- 54, आर टी- 103, पूरवा- 1, आर टी- 103 आदि|
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राज्य- महाराष्ट्र
बुवाई का उचित समय- खरीफ- जून मध्य से जुलाई, जायद- फरवरी, रबी- सितम्बर से अक्तूबर
प्रमुख किस्में- फुले तिल नं-1, ताप्ती, पदमा, आर टी- 54, आर टी- 103, एन- 8, डी एम- 1, ताप्ती पूरवा- 1, आर टी- 54, आर टी- 103 आदि|
राज्य- बिहार और उड़ीसा
बुवाई का उचित समय- खरीफ- जून से जुलाई, जायद- फरवरी|
प्रमुख किस्में- कृष्ण, पटना- 64, कांके सफेद, विनायक, कालिका, कनक उमा, उषा, बी- 67 आदि|
राज्य- पश्चिम बंगाल और असम
बुवाई का उचित समय- खरीफ- मई के अंत से जून के अंत तक
प्रमुख किस्में- उमा, पंजाब तिल- 1, आर टी- 125, टी के जी- 21, टी के जी- 22, टी के जी- 55 आदि|
राज्य- तमिलनाडु और केरल
बुवाई का उचित समय- खरीफ- जून से जुलाई, रबी- नवम्बर से दिसम्बर, अर्ध रबी- अगस्त से सितम्बर जायद- जनवरी से फरवरी|
प्रमुख किस्में- टी एम वी- 4, टी एम वी- 5, टी एम वी- 6, वी आर आई- 1, प्यायूर- 1, सोमा, सूर्या, चिलक रामा, सूर्या, बी- 67, सूर्या, सी ओ- 1, सोमा आदि|
राज्य- आंध्र प्रदेश
बुवाई का उचित समय- खरीफ- जून से जुलाई, जायद- जनवरी के दूसरे पखवाड़े में|
प्रमुख किस्में- गौरी, माधवी, टी- 85, आर टी- 54, आर टी- 103 गौरी, माधवी, राजेश्वरी, वर्षा राजेश्वरी आदि|
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तिल की किस्मों की विशेषताएं और पैदावार
आर टी 46- तिल की यह 100 से 125 सेन्टीमीटर ऊंची किस्म है, जिसमें पत्ती व फली छेदक कीट और गॉलमक्खी कम लगती है तथा गमोसिस रोग कम लगता है| फूल 30 से 35 दिन में आते हैं और पौधों में 4 से 6 शाखायें होती हैं| फसल 75 से 90 दिन में पकती है एवं औसत उपज 6 से 8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है| बीज का रंग सफेद और तेल की मात्रा 49 प्रतिशत होती है| इसका दाना मध्यम आकार का, 1000 दानों का वजन 2.55 ग्राम होता है| शुष्क खेती व सिंचित क्षेत्रों दोनों के लिये उपयुक्त इस किस्म में मेक्रोफोमिना व आल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग के लिये अधिक प्रतिरोधक क्षमता है|
आर टी 125- तिल की यह किस्म भारी मिट्टी के लिये उपयुक्त 90 से 120 सेन्टीमीटर ऊंची, इस किस्म में 3 से 5 शाखायें होती हैं| 75 से 85 दिन में पकने वाली इस किस्म के बीज सफेद और इसकी सभी फलियां एक साथ पकती हैं| इसलिये झड़ने से नुकसान कम होता है| औसत उपज 9 से 12 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर है| इसकी यह विशेषता है, कि इसकी पत्तियां, तना व फलियाँ सहित सम्पूर्ण पौधा पकने की अवस्था पर पीला पड़ जाता है| यह बीमारियों व कीटों के प्रति सहनशील है| इस किस्म में फिल्लोडी का प्रकोप आर टी- 46 किस्म की तुलना में कम होता है| इसके 1000 दानों का वजन लगभग 2.5 से 3.15 ग्राम और तेल की मात्रा 48.8 प्रतिशत होती है|
आर टी 127- यह एक सूखा रोधी किस्म, जिसके पौधों की ऊंचाई 90 से 135 सेंटीमीटर हैं| इस किस्म में गॉल मक्खी व वरूथी (माइटस) का प्रकोप अन्य किस्मों की तुलना में अपेक्षाकृत कम होता है| इसमें जड़ व तना गलन रोग, फिलोड़ी और जीवाणु पत्ती धब्बा रोग के प्रति सहनशीलता है| इस किस्म में फूल 30 से 35 दिन में आते है और फसल 75 से 84 दिन में पककर तैयार हो जाती है एवं इसकी औसत उपज 6 से 9 क्विंटल प्रति हैक्टेयर हैं| इसके बीज सफेद, चमकदार, सुडौल होते हैं, जिसमें तेल की मात्रा 49.5 प्रतिशत होती है| इस किस्म की निर्यात गुणवत्ता उच्च है|
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आर टी 346 (चेतक)- तिल की यह किस्म राजस्थान के अलावा हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, पश्चिम उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र के सीमा निकटवर्ती भागों में बुवाई के लिये अधिसूचित की गयी है| सूखा सहने की क्षमता वाली इस किस्म की पकाव अवधि 83 दिन है| पर्ण कुंचन, फिलोडी के लिए प्रतिरोधी और तना व जड़ गलन, अल्टरनेरिया व सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा रोगों एवं फलीछेदक कीड़े के लिये मध्यम प्रतिरोधी है| इसमें तेल की मात्रा 50 प्रतिशत और औसत उपज 7 से 9 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर होती है| इस किस्म के बीज चमकीले सफेद रंग के होते हैं|
आर टी 351- सफेद चमकीले बीज वाली तिल की इस किस्म के पौधों पर फलियां चौगर्थी लगती है और फसल लगभग 85 दिन में पक जाती है| इसके बीजों में तेल की मात्रा 50 प्रतिशत और औसत उपज 7 से 10 क्विटल प्रति हैक्टर होती है| यह किस्म पर्ण कुंचन, फिलोडी और तना, जड़ गलन रोगों के लिए प्रतिरोधी एवं सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा व फली छेदक कीड़े के प्रति मध्यम प्रतिरोधी होती है|
हरियाणा तिल 1- तिल की इस किस्म की पकने की अवधि 85 से 90 दिन, तेल की मात्रा 48 से 50 प्रतिशत, औसत पैदावार 6 से 7 क्विंटल, असन्मुखी, एकल फलियाँ होती है|
पंजाब तिल 1- इस किस्म की पकने की अवधि 75 से 85 दिन, तेल की मात्रा 50 से 53 प्रतिशत, औसत पैदावार 5 से 7 क्विंटल, सन्मुखी, एकल फलियाँ होती है|
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शेखर- इस किस्म की पकने की अवधि 80 से 85 दिन, तेल की मात्रा 45 से 48 प्रतिशत, औसत पैदावार 6 से 8 क्विंटल, सन्मुखी, एकल फलियाँ होती है|
टी 78- तिल की इस किस्म की पकने की अवधि 80 से 85 दिन, तेल की मात्रा 45 से 48 प्रतिशत, औसत पैदावार 6 से 8 क्विंटल, सन्मुखी, एकल फलियाँ होती है|
टी 13- इस किस्म की पकने की अवधि 90 से 95 दिन, तेल की मात्रा 40 से 45 प्रतिशत, औसत पैदावार 6 से 7 क्विंटल, बीज सफेद असन्मुखी, एकल फलियाँ होती है|
गुजरात तिल 4- तिल की इस किस्म की पकने की अवधि 80 से 85 दिन, तेल की मात्रा 46 से 50 प्रतिशत, औसत पैदावार 7 से 9 क्विंटल, असन्मुखी, एकल फलियाँ होती है|
तरुण- तिल की इस किस्म की पकने की अवधि 80 से 85 दिन, तेल की मात्रा 50 से 52 प्रतिशत, औसत पैदावार 8 से 9 क्विंटल, असन्मुखी, एकल फलियाँ होती है|
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