दूधिया मशरूम का उत्पादन भारतवर्ष के अधिकतर उत्तरी भू-भाग में श्वेत बटन मशरूम की खेती की जा रही है, इसके बाद कुछ भागों में ढींगरी मशरूम की खेती का वर्चस्व कायम है| दूधिया मशरूम की खेती केवल दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में व्यवसायिक स्तर पर उगाई जा रही है| जबकि देश के पहाड़ी इलाकों को छोड़कर लगभग समस्त मैदानी भागों में दूधिया मशरूम की खेती की एक फसल ली जा सकती है, जहां कुछ महीनों के लिये तापमान 25 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है|
उत्तरी भारत के मौसमी मशरूम उत्पादक केवल श्वेत बटन मशरूम की खेती करते हैं| शरद ऋतु में श्वेत बटन मशरूम की एक फसल लेने के बाद वे अपने उत्पादन कार्य को स्थगित कर देते हैं, तथा तापमान में वृद्धि के कारण वर्ष भर मशरूम उत्पादन कार्य जारी नहीं रख पाते हैं| कुछ मशरूम उत्पादक ढींगरी मशरूम की एक-दो फसलें लेने का प्रयास करते हैं| यदि मशरूम उत्पादक दूधिया मशरूम की खेती को वर्तमान फसल चक्र में शामिल कर लें, तो अपने मशरूम उत्पादन क्षमता को बढ़ा सकते हैं, और वर्ष भर मशरूम उत्पादन से स्वरोजगार प्राप्त कर सकते हैं|
दूधिया मशरूम का वैज्ञानिक नाम कैलोसाईबीइंडिका है| दूधिया मशरूम का आकार व रूप श्वेत बटन मशरूम से मिलता-जुलता है| श्वेत बटन मशरूम की अपेक्षा दूधिया मशरूम का तना अधिक मांसल, लम्बा तथा आधार पर काफी मोटा होता है| टोपी बहुत ही छोटी तथा जल्दी खुलने वाला होता है, दूधिया मशरूम की तुड़ाई के बाद भण्डारण करने की अवधि अधिक होती है| मांग कम होने पर इस मशरूम की तुड़ाई दो से तीन दिन देर से भी करने पर गुणवत्ता में कमी नहीं आती है|
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उपयुक्त जलवायु
दूधिया मशरूम की खेती के लिये अधिक तापमान की आवश्यकता होती है| कवक जाल फैलाव या बीज जमाव के लिये 25 से 35 डिग्री सैल्शियस और 80 से 90 प्रतिशत नमी की आवश्यकता होती है| केसिंग परत बिछाने से लेकर फसल लेने तक तापमान 30 से 35 डिग्री सैल्शियस और नमी 80 से 90 प्रतिशत होनी चाहिए| अधिक तापमान 38 से 40 डिग्री सैल्शियस होने पर भी दूधिया मशरूम की खेती पैदावार देती रहती है|
सामग्री का चुनाव
ढींगरी मशरूम की तरह, दूधिया मशरूम को भी विभिन्न कृषि फसलों से प्राप्त अवशेषों पर आसानी से उगाया जा सकता है जैसे भूसा, पुआल, ज्वार, बाजरा व मक्का की कड़वी, गन्ना की खोई आदि|सामग्री नई व सुखी होनी चाहिए, बरसात में न भीगी हो| इस प्रकार उपलब्धता के अनुसार सामग्री का कोई एक माध्यम चुन लें| दूधिया मशरूम की खेती के लिये की खेती के लिये भूसा या पुआल का इस्तेमाल अधिक किया जा रहा है|
सामग्री का उपचार
सामग्री को हानिकारक सूक्ष्मजीवियों से मुक्त कराने और दूधिया मशरूम की वृद्धि हेतु उपयुक्त बनाने के लिये, इसको उपचारित करना आवश्यक होता है| चुनी हुई सामग्री को निम्नलिखित में से किसी एक विधि द्वारा उपचारित कर सकते हैं, जैसे-
1. गर्म पानी उपचार विधि
2. रासायनिक उपचार विधि
गर्म पानी से उपचार- इस विधि के अनुसार भूसा या धान के पुआल की कुट्टी को टाट के छोटे बोरे मे भरकर, इसे साफ पानी में अच्छी प्रकार से कम-से-कम 6 से 7 घंटे तक डुबोकर रखते हैं, ताकि भूसा या पुआल अच्छी तरह से पानी सोख ले| इसके पश्चात् इस गीले भूसे से भरे बोरे को उबलते हुए गर्म पानी में 40 मिनट तक डूबोकर रखते हैं| इस समय ध्यान देने योग्य बात यह है, कि भूसा डुबोने के बाद पानी 40 मिनट तक उबलता रहना चाहिए, तभी सामग्री का उपचार सफल हो सकता है|
इसके बाद भूसे को गर्म पानी से निकाल कर साफ फर्श पर फैला दें ताकि अतिरिक्त पानी निकल जाए और भूसा ठंडा हो जाए| भूसा डालने से पहले फर्श को धोकर उस पर 2 प्रतिशत फार्मेलिीन के घोल 50 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें| इस समय भूसे में पानी की मात्रा यानि नमी 65 से 70 प्रशित होनी चाहिए| इस स्थिति को जानने के लिए भूसे को मुठ्ठी में कसकर दबाकर रखें, दबाने पर यदि भूसे से पानी न निकले और हथेली मामूली सी नम हो जाये तो समझना चाहिए, कि भूसे में नमी की मात्रा ठीक है| इस प्रकार उपचारित भूसा बीजाई के लिये तैयार हो जाता है|
रासायनिक उपचार- गर्म पानी उपचार विधि को लघु स्तर पर उपयोग में लाना उचित है, परन्तु बड़े स्तर पर यह अधिक खर्चीले साबित होते हैं| अत: विकल्प के रूप में रासायनिक विधि को उपचारित करने का तरीका इस प्रकार है, जैसे-
दूधिया मशरूम की खेती के लिए किसी हौद या ड्रम में 90 लीटर पानी व उसमें 10 से 12 किलोग्राम भूसा भिगो दें| एक बाल्टी में 10 लीटर पानी ले और उसमें 7.5 ग्राम बॉविस्टीन साथ में 125 मिलीलीटर फार्मेलीन का घोल बना ले, इस घोल को ड्रम में भिगोये भूसे पर उड़ेल दें और ड्रम को पॉलीथीन से अच्छे से ढक दें| सामग्री को 12 से 17 घंटे बाद, ड्रम से भूसे को बाहर निकाल कर साफ फर्श पर फैला दें, ताकि भूसे से अतिरिक्त पानी निकल जाए| प्राप्त गीला भूसा बीजाई के लिये तैयार हो जाता है| उपरोक्त नमी रखना आवश्यक है|
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बीजाई करना
उपरोक्त बताई गई किसी एक विधि के माध्यम भूसा या पुआल को उपचारित कर उसमें 4 से 5 प्रतिशत गीले भूसे के वजन के अनुसार की दर से बीज मिलायें, यानि एक किलोग्राम गीले भूसे में 40 से 45 ग्राम बीज मिलाया जाता है| दूधिया मशरूम की बीजाई की विधि छिटकवां भी हो सकती है या फिर सतह में भी बीजाई की जा सकती है|
सतह में बीजाई करने के लिए पहले पॉलीथीन के बैग 15 से 16 इंच चौड़ा और 20 से 21 इंच ऊँचा में एक परत भूसे की बिछायें फिर उसके ऊपर बीज बिखेर दें| उसके ऊपर फिर भूसे की परत डालें, व बीज डालें, दो परतों के बीच का अंतर लगभग 3 से 4 इंच होना चाहिए| इस प्रकार सतह में बीजाई की जा सकती है, एक बैग में करीब 3 से 4 किलाग्राम उपचारित गीली सामग्री भरी जाती है।
बीजित बैगों को एक अंधेरे कमरे में रख दें, 15 से 20 दिन तक 25 से 35 डिग्री सैल्शियस तापमान तथा 80 से 90 प्रतिशत नमी बनाये रखें|
केसिंग मिश्रण बनाना और केसिंग परत बिछाना-
दूधिया मशरूम की बीजाई किये गये बैगों में 15 से 20 दिनों में बीज भूसे में फैल जाता है, व भूसे पर सफेद फफूद दिखाई देती है| ऐसी अवस्था केसिंग परत चढ़ाने के लिये उपयुक्त मानी जाती है| केसिंग मिश्रण, केसिंग करने के एक सप्ताह पहले तैयार करते हैं| केसिंग मिश्रण तैयार करने के लिए 3/4 भाग दोमट मिट्टी व 1/4 भाग बालू मिट्टी को मिलायें| अब इस मिश्रण के वजन का 10 प्रतिशत चाक पाउडर मिलायें और मिश्रण को 4 प्रतिशत फार्मेलीन 100 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी व 0.1 प्रतिशत बॉविस्टीन के घोल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी से गीला कर ऊपर से पॉलीथीन शीट से 7 से 9 दिन तक ढंक दें|
केसिंग करने के 24 घण्टे पूर्व ही केसिंग मिश्रण से पॉलीथीन हटायें और मिश्रण को बेलचे से उलट-पलट दें, ताकि फार्मेलीन की गंध निकल जाये| इस प्रकार तैयार केसिंग मिश्रण की 2 से 3 सेंटीमीटर मोटी परत बीज फैले हुए बैग के मुंह को खोलकर, सतह को चौरस कर बिछा देते हैं| इस दौरान तापमान 30 से 35 डिग्री सैल्शियस और नमी 80 से 90 प्रतिशत बनाये रखते हैं| लगभग 10 से 12 दिनों में कवक जाल यानि बीज के तंतु केसिंग मिश्रण में फैल जाते है|
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फसल देखभाल
दूधिया मशरूम की खेती के लिए केसिंग मिश्रण में कवक जाल फैलने के बाद, बैगों पर प्रतिदिन पानी का छिड़काव किया जाता है, कमरे में ताजी हवा दी जाती है और 30 से 35 डिग्री सैल्शियस तापमान और 80 से 90 प्रतिशत नमी रखी जाती है, जिससे 3 से 5 दिनों में दूधिया मशरूम की कलिकायें निकलना प्रारम्भ हो जाती है| जो लगभग एक सप्ताह में पूर्ण मशरूम का रूप ले लेती है, ढींगरी मशरूम की तरह, दूधिया मशरूम की बढ़वार के लिये भी प्रकाश की आवश्यकता होती है|
कीड़े और रोग
खरपतवार फफूद- दूधिया मशरूम के उत्पादन कक्ष में नमी व तापमान कीड़ों और रोगों के पनपने के लिए अनुकूल होता हैं। इसलिए साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए|
स्पॉन रन के समय लगने वाले रोग- दूधिया मशरूम के कवक जाल फैलने की अवस्था पर मुख्यतया खरपतवार वाली फफूद जैसे ट्राईकोडर्मा, एस्परजिलस, राइजोपस, म्यूकर, स्केलेरोशियम रोल्फसाइ और क्रोपाइन्स लगती है|
रोकथाम- भूसा ताजा फसल का निकला हो और बारिश से भीगा न हो, इनसे बचाव के लिए भूसे का उपचार ठीक से किया जाना चाहिये, भूसे में बीजाई के समय पानी की मात्रा अधिक नहीं होनी चाहिये, बीज की गुणवत्ता अच्छी होनी चाहिए और बीज हमेशा किसी प्रामाणिक प्रयोगशाला से ही लेने चाहिये ,पानी हमेशा नल का ही प्रयोग में लें, टैंकों में इकट्ठा किया पानी न लें, इस पानी में जीवाणु और सूत्रकृमि हो सकते हैं फिर भी यदि टेंक का पानी लेना पड़े तो पानी के अन्दर समय-समय पर 0.15 प्रतिशत ब्लीचिंग पाउडर डाल देना चाहिये|
पानी साफ होना चाहिये यह न अधिक खारा हो और न आधिक अम्लीय हो और उत्पादन कक्ष के अन्दर व कक्ष के बाहर अधिक पानी इकट्ठा नहीं होना चाहिये, यदि पानी इकट्ठा रहेगा तो कीड़े उसमें अंडे देगें और इन कीड़ो से फफूद के बीजाणु पनप जाते हैं, यदि उत्पादन कक्ष में कीड़े हो तो ये कीड़े बीमारियां पैदा करने वाली फफूद के बीजाणुओं का संवहन करते हैं इसलिए उत्पादन कक्ष में कीड़ों का प्रकोप नहीं होने देना चाहिये नही तो बीज बढ़वार अवस्था में ही भूसा खराब होने लगेगा|
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यदि उपरोक्त किसी भी दूसरी फफूद का संक्रमण भूसे पर दिखाई दे तो पहले उस जगह से थोड़ा थैली को काटकर उसमें से सक्रमित भाग को चिमटी की सहायता से हटा दें और उस स्थान पर बॉविस्टिन + केल्शियम कार्बोनेट 1 + 10 ग्राम मिश्रण का भुरकाव करना चाहिए, भुरकाव के बाद उस जगह पर पानी 48 घंटे तक नहीं डालना चाहिये, थैलियों में यदि संक्रमण 25 प्रतिशत से अधिक हैं तो इन थैलियों को हटा देना चाहिये इसी प्रकार यदि बेग में भी कहीं संक्रमण दिखाई दे तो उस स्थान का संक्रमित भूसा हटा दें और उसकी जगह बीजाई किया हुआ भूसा मिला देना चाहिये| इस तरह से संक्रमण से बचने के लिए दूधिया मशरूम उत्पादन में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिये|
कैसिंग मिट्टी पर लगने वाले रोग- कैसिंग करने के बाद कई बार कैसिंग मिश्रण का उपचार ठीक से न किया गया हो या यह मिश्रण नया हो तो दूसरी फफूद या खरपतवार मशरुम टोपी आ जाती है| इसके लिये निम्नलिखित सावधानियां रखनी चाहिये, जैसे-
कैसिंग मिट्टी अच्छी सड़ी हुई और कम से कम दो वर्ष पुरानी होनी चाहिये, यदि कैसिंग मिश्रण का उपचार ठीक से नहीं किया गया हो और कैसिंग मिश्रण का पीएच ठीक न हो न बहुत अम्लीय और न ही बहुत क्षारीय यानि पीएच 6.5 से 7.5 के बीच में होना चाहिये, कैसिंग मिश्रण पर छिड़का गया पानी पुराना हो और सक्रमित हो तो इससे कैसिंग मिश्रण पर दूसरी फफूद आने लगेगी, यदि कैसिंग मिश्रण में नाइट्रोजन और पोषक तत्वों की मात्रा ज्यादा होगी तो उस पर भी अन्य फफूद आने लगेगी, यदि कैसिंग जनित बीमारियां अधिक होने लगें तो पूरी कैसिंग को हटाकर नई केसिंग डाल दें|
रोकथाम- इनकी टोपी को कम करने के लिये हवा का आवागमन अच्छा हो तथा केसिंग का पीएच मान जाँच करना चाहिए, कैसिंग परत के ऊपर किसी भी तरह की फफूद लगने पर उस जगह के मिश्रण को हटा देना चाहिये और साफ कैसिंग मिश्रण जिसमें बाविस्टिन का उपचार किया गया हो लगाना चाहिये|
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दूधिया मशरूम पर लगने वाले रोग- दूधिया मशरूम पर मुख्यरुप से लगने वाले रोगों में प्रमुख दो तरह के रोग हैं, जैसे-
1. जीवाणु धब्बा रोग
2. जीवाणु गलन रोग
जीवाणु धब्बा रोग- यह रोग सिडोमोनास टोलासी बैक्टीरिया द्वारा फैलता हैं और मुख्य रुप से यह केसिंग से आता है| इस रोग के लक्षण छतरी एवं उठेल दोनों पर दिखाई देते हैं, सबसे पहले इसमें दूधिया मशरूम की सतह पर अन्दर धंसे हुए धब्बे दिखाई देते हैं, जो धीरे-धीरे बढ़ जाते है, यदि उत्पादन कक्ष में नमी अधिक होती है| तो ये धब्बे उग्र रूप ले लेते हैं और इनका आकार बड़ा हो जाता है| इस तरह की दूधिया मशरूम तोड़ने पर बदबू व सड़न पैदा करती है, जिससे यह खाने योग्य नहीं रहती और बाजार मुल्य नहीं मिलता|
रोकथाम- यह रोग एक प्रकार के जीवाणु जिसे सूडोमोनास तोलासाई कहते हैं, के द्वारा उत्पन्न होता है| ये जीवाणु कैसिंग मिश्रण में उपस्थित रहते हैं, एवं पानी, हवा, कृषि औजार के द्वारा संक्रमण करते हैं| इनके नियंत्रण के निम्न उपाय है, जैसे- कैसिंग मिश्रण पर 0.3 प्रतिशत केल्शियम क्लोराइड का छिड़काव मशरुम के पिन हेड बनने से लेकर तोड़ने तक पानी के छिड़काव के साथ करना चाहिये, जिन मशरुम पर जीवाणु धब्बा दिखाई दे उन्हें तोड़कर हटा देना चाहिये और नमी रहना आवश्यक है, अतः 0.1 प्रतिशत ब्लीचिंग पाउडर पानी में डालकर सप्ताह में एक बार छिड़काव अवश्य करें|
दूधिया मशरूम पर लगने वाले कीट- इसमें डिप्टेरियन और फोरोइड नामक मक्खी का प्रकोप अधिक होता है, स्पॉन रन के समय कवकजाल की गंध से ये अधिक आकर्षित होती है, इसलिए बीजाई से लेकर तुड़ाई तक साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिये, समय-समय पर उत्पादन कक्ष में डीडीवीपी 0.2 प्रतिशत नामक कीटनाशी का छिड़काव 7 दिन के अन्तराल में फर्श और दिवारों पर करना चाहिये, उत्पादन कक्ष के आसपास डीडीवीपी 0.2 प्रतिशत + फार्मलिन 0.8 प्रतिशत का छिड़काव 7 दिन के अन्तराल पर करना चाहिये, उत्पादन कक्ष के आसपास पानी इकट्ठा नहीं होना चाहिये, उत्पादन कक्ष में पीले रंग के कागज लाइट ट्रेप तेल में भिगोकर लटका दें ताकि कीड़े उस पर चिपक जायेगें, इन्हें ट्यूब लाइट या बल्ब के नीचे ही लगाना चाहिये और उत्पादन कक्ष में स्वच्छ हवा का आवागमन होना चाहिये|
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मशरूम का विपणन
सब्जी मण्डी यदि मशरुम उत्पादन स्थल के पास में है, तो मशरुम की तुड़ाई सुबह करके उसे सीधा सब्जी मण्डी में बेच सकते हैं| सब्जी मण्डी उत्पादन स्थल से दूर है, तो तुड़ाई शाम को देर से करके सुबह तक उसे बाजार में भेज सकते हैं|
तुड़ाई, पैदावार और आमदनी
तुड़ाई- दूधिया मशरूम की टोपी जब 5 से 6 सेंटीमीटर मोटी हो जाये तो इसे परिपक्व समझना चाहिए और अंगूठे व ऊँगली की सहायता से घुमाकर तोड़ लेना चाहिए| तने के निचले भाग को, जिसमें मिट्टी लगी होती है काट दिया जाता है और मशरूम को पॉलिथीन बैग में जिसमें 4 से 5 मिलीमीटर के कम से कम चार छेद हों पैक कर दिया जाता है|
पैदावार- दूधिया मशरूम भी ढींगरी मशरूम की तरह काफी अच्छी पैदावार देती है और इसकी उत्पादकता 100 प्रतिशत के करीब होती है, यानि 1 किलोग्राम सूखे भूसे या पुआल में 1 किलो ताजा मशरूम प्राप्त होता है|
आमदनी- दूधिया मशरूम की उत्पादन लागत अच्छी पैदावार होने पर करीब रूपये 10 से 15 प्रति किलोग्राम पड़ती है, और बाजार में यह 75 से 100 रूपये प्रति किलोग्राम के भाव से बिकती है|
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