हमारे देश में कपास खरीफ की प्रमुख फसल है| देसी कपास (Indigenous cotton) की अधिक उपज लेने के लिए किसानों को उसको सही समय पर बोने, अपने क्षेत्र की प्रचलित किस्म चुनने, उपयुक्त खाद देने तथा समय पर पौध संरक्षण उपाय अपनाने की ओर विशेष ध्यान देना चाहिये| देसी कपास की खेती कैसे करें और इसकी किस्में, देखभाल एवं पैदावार का उल्लेख है| कपास की खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कपास की खेती की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कपास की खेती कैसे करें
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देसी कपास की खेती के लिए उपयुक्त भूमि
देसी कपास हेतु रेतीली दोमट से चिकनी दोमट भूमि उपयुक्त रहती है| जिस भूमि में पानी का भराव रहता है| उनमें देशी कपास नहीं लेनी चाहिए एवं क्षारीय भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं रहती है|
देसी कपास की खेती के लिए भूमि की तैयारी
देसी कपास के लिए पड़त भूमि में तैयारी पिछली फसल काटते ही शुरू करनी चाहिए| कपास के लिए 2 से 3 बार जुताई एवं अंत में सुहागा देकर खेत तैयार करना चाहिए, ताकि खेत में खरपतवार न रहे, पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी करें|
फसल क्रम- 1. ग्वार या पड़त – देशी कपास, 2. चना – देशी कपास, 3. पड़त – देशी कपास|
देसी कपास की खेती के लिए उन्नत किस्में
हमारा सुझाव है, की किसान भाई अपने क्षेत्र की प्रचलित किस्मों में से ही उत्तम किस्म का चुनाव करके बुआई करें| यहाँ कुछ प्रचलित किस्मों को दर्शाया गया है, जो इस प्रकार है, जैसे-
उन्नत किस्में- एच डी-107, एच डी-123, एच डी- 324, एच डी- 432, आर जी- 18, एच डी- 123 एवं आर जी- 542 आदि प्रमुख है|
संकर किस्में- ए ए एच- 1 और राज डी एच- 9 आदि मुख्य है| किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- देसी कपास की उन्नत एवं संकर किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार
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देसी कपास की खेती के लिए पलेवा और भूमि उपचार
पलेवा की सिंचाई गहरी होनी चाहिए, पलेवा के बाद नमी युक्त स्थिति में एक या दो जुताई एवं सुहागा लगाकर खेत को तैयार करके यथा शीघ्र बुवाई करनी चाहिए| जहां रेतीली मिट्टी हो, वहां कोई जुताई न करें, ताकि रेत उड़कर पौधों को नहीं मारे| जुताई करने से पहले दीमक से प्रभावित खेतों में 7 से 9 किलोग्राम डस्ट क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत या मिथाईल पैराथियान 2 प्रतिशत प्रति एकड़ की दर से भूमि में मिलायें|
देसी कपास की खेती के लिए बीज दर एवं बुवाई
1. देसी कपास का बुवाई का उपयुक्त समय अप्रेल से मई के प्रथम सप्ताह तक उचित होता है| इसके बाद बोने पर पैदावार में कमी आ जाती है|
2. देसी कपास कस 4 से 6 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ की दर से बोना उपयुक्त है| इससे खेत में पौधों की वांछित संख्या उपलब्ध हो जाती है|
देसी कपास की खेती के लिए बीज उपचार
1. गुलाबी लट की रोकथाम के लिए साढ़े तीन से चालीस किलोग्राम तक बीज को 3 ग्राम एल्यूमिनियम फास्फाईड से धूमित करें और बीज को 24 घण्टे तक धूमित अवस्था में रखें| यदि घुमित करना सम्भव न हो तो बीज की पतली तह बनाकर तेज धूप में तपायें|
2. जड़गलन की समस्या वाले खेतों में बुवाई से पूर्व 10 से 15 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति एकड़ की दर से मिट्टी डालकर मिला दें|
3. बीजों को कार्बोक्सिन 70 डब्ल्यू पी, 0.3 प्रतिशत या कार्बेन्डेजिम 50 डब्ल्यू पी, 0.2 प्रतिशत, 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में भिगोकर छाया में सुखाने के बाद ट्राइकोडरमा हरजेनियम जीव या सूडोमोनास फ्लूरोसेन्स 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोये|
4. जिन खेतों में जड़ गलन के रोग का प्रकोप अधिक है, उन खेतों के लिए बुवाई के पूर्व 2.5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा हरजेनियम को 50 से 60 किलोग्राम आर्द्रता युक्त गोबर की खाद (एफ वाई एम) में अच्छी तरह मिलाकर 10 से 15 दिनों के लिए छाया में रख दें, इस मिश्रण को बुवाई के समय एक एकड़ में पलेवा करते समय मिट्टी में मिला दें, साथ में ट्राइकोडरमा जैव से बीज उपचार करें|
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देसी कपास की खेती के लिए बुवाई की विधि
1. देसी कपास नमी युक्त खेत में 60 से 65 सेंटीमीटर (सवा दो फीट) की दूरी पर स्थित कतारों में बोना चाहिए| यह ध्यान रहे कि बीज के ऊपर 4 से 5 सेन्टीमीटर से अधिक मिट्टी न गिरे, अन्यथा अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा|
2. देसी कपास की संकर किस्म की बुवाई बीज रोपकर (डिबलिंग) करें, कतार से कतार की दूरी 67.5 सेंटीमीटर रखें एवं पौधे से पौधे की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें|
देसी कपास की खेती में पौधे की छंटाई
देसी कपास में पहली सिंचाई के बाद आवश्यकता से अधिक पौधों की छंटनी करके पौधे से पौधे की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर कर देनी चाहिए|
देसी कपास की खेती में खाद व उर्वरक
किसान को गोबर की खाद अधिक मात्रा में फसल चक्र में डालनी चाहिये| इसके अतिरिक्त कपास के लिए 25 किलोग्राम नत्रजन एवं 25 किलोग्राम फास्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ देना चाहिए, इसके लिए नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले खेत की तैयारी के समय डालें| यदि किसी कारणवश बुवाई के समय नत्रजन की उपरोक्त मात्रा न दी जा सके तो पहली सिंचाई के समय तो अवश्य देंवे|
शेष बची हुई नत्रजन खड़ी फसल में अगस्त के प्रथम पखवाड़े में टॉप ड्रेसिंग विधि से देकर सिंचाई करें, नत्रजन की मात्रा मिट्टी परीक्षण के आधार पर घटाई-बढ़ाई जा सकती है| कपास में पोषक तत्वों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कपास में पोषक तत्व प्रबंधन कैसे करें
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देसी कपास की खेती में निराई-गुड़ाई
1. कपास के खेत में खरपतवार न पनपने दें, इसके लिए पहली निराई-गुड़ाई पहली सिंचाई के बाद करें, इसके बाद एक और निराई-गुड़ाई त्रिफाली से करें|
2. रसायन द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डामेथलीन 30 ई सी का फ्लेटफेन नोजल से बिजाई से पूर्व या बिजाई के तुरन्त बाद छिड़काव करें| प्रथम सिंचाई के बाद एक बार गुड़ाई करना अधिक लाभदायक रहता है|
देसी कपास की खेती में सिंचाई प्रबंधन
देसी कपास में पलेवा के अतिरिक्त 4 से 5 सिंचाईयाँ देनी चाहिए| पहली सिंचाई बोने के 35 से 40 दिन बाद करनी चाहिए एवं इसके बाद सिंचाईयाँ 25 से 30 दिन के अन्तर पर जून, जुलाई से अगस्त में करनी चाहिए, आखिरी सिंचाई सितम्बर के दूसरे पखवाड़े के बाद ही करें|
देसी कपास में फूल और टिण्डों गिरने की रोकथाम
देसी कपास में आपने आप गिरने वाले पुष्प कलियों एवं टिण्डों को बचाने के लिए एसीमोन या प्लानोफिक्स का 2.5 मिलीलीटर प्रति 100 से लीटर पानी में घोल बनाकर पहला छिड़काव कलियाँ बनते समय और दूसरा टिण्डों के बनाते शुरू होते ही करना चाहिए|
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देसी कपास की खेती में रोग नियंत्रण
जड़ गलन
जड़ गलन की समस्या वाले खेतों में बुवाई से पहले 10 से 15 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति एकड़ की दर से मिट्टी डालकर मिला दें| बोये जाने वाले बीजों को कार्बेन्डेजिम 50 डब्ल्यू पी, 0.2 प्रतिशत 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में के घोल में भिगोकर उपचारित करें| रेशे वाले बीजों को 8 से 10 व रेशे रहित बीजों को 3 से 4 घण्टे से अधिक न भिगोयें या उपरोक्त विधि से बीजों को उपचारित करें एवं कपास की दो कतारों के बीच मोठ की बुवाई करें|
मोठ को चाहे तो अगस्त के अन्त तक खेत से निकाल सकते हैं| पौधे के मुरझाते ही उन्हें जड़सहित खींचकर निकालकर जला दें, ऐसा करने से रोग आगे नहीं बढ़ेगा| अधिक रोग व कीट नियंत्रण की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कपास में एकीकृत कीट प्रबंधन कैसे करें, जानिए उपयोगी एवं आधुनिक विधियाँ
देसी कपास की चुनाई
देसी कपास की चुनाई समय पर करनी जरूरी है अन्यथा कपास नीचे गिर कर खराब होने की आशंका रहती है| आवश्यकतानुसार 4 से 5 चुनाई करना जरूरी है|
देसी फसल की कटाई
देसी कपास चुनने के बाद फसल की यथावधि कटाई कर उन्हें खेत से दूर हटायें, ताकि अगले वर्ष कीटों के प्रकोप में कमी आ सके|
देसी कपास की खेती से पैदावार
देसी कपास की उपरोक्त उन्नत खेती विधि अपनाने पर 7 से 15 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार ली जा सकती है|
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