हरी पत्ती और बीजिये मसालों में धनिया फसल का प्रमुख स्थान है| धनिया की फसल दानों एवं पत्तियों दोनों के लिए उगाई जाती है| धनिया भोजन को सुगन्धित व स्वादिष्ट बनाता है और औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है| धनिया की फसल को कीट एवं रोग हानी पहुचाकर उत्पादन को बहुत प्रभावित करते है|
धनिया फसल के उत्पादक अपनी फसल को समय पर कीट एवं रोगों से बचाकर इसकी फसल से अच्छी उपज प्राप्त कर सकते है| इस लेख में धनिया फसल के प्रमुख रोग एवं कीट और उनकी रोकथाम कैसे करें की पूरी जानकारी उपलब्ध है| धनिया फसल की उन्नत खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- धनिया की उन्नत खेती कैसे करें
धनिया फसल के कीटों की रोकथाम
मोयला (एफिड)- धनिया फसल में फूल आते वक्त या उसके बाद मोयला का प्रकोप होता है| ये कीट पौधों के कोमल भागों का रस चूसते हैं| जिससे पैदावार में भारी कमी आ जाती है|
रोकथाम- मोयला कीटों के नियंत्रण के लिए धनिया फसल पर मोनोक्रोटोफॉस 36 एस एल या मैलाथियान 50 ई सी का एक मिलीलीटर या क्यूनालफॉस 25 ई सी का दो मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर सांयकाल के समय छिड़काव करना चाहिए, जिससे मधुमक्खियों को नुकसान न हो|
कटवर्म एवं वायर वर्म- इस कीट की सूण्डी भूरे रंग की होती है| शाम के समय यह सूण्डी पौधों को जमीन की सतह के पास से काटकर गिरा देती है| इसका प्रकोप फसल की प्राथमिक अवस्था में होता है, जिससे फसल को अधिक नुकसान होता है|
रोकथाम- इस कीट के नियंत्रण के लिए मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत या मैलाथियान 5 प्रतिशत चूर्ण को 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से जुताई के समय भूमि में मिलावें|
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बरूथी (माइट्स)- बरूथी भी रस चूस कर पौधों को काफी हानि पहुँचाते हैं| बरूथी का प्रकोप दाना बनते समय होता है और पूरा पौधा हल्के पीले रंग का हो जाता है| इसका प्रकोप मुख्यतः नई पत्तियों व पुष्पकम पर होता है| पौधा छोटा रह जाता है, यह छोटा कीट पत्तियों की निचली सतह पर दिखाई देता है| लेकिन बरूथी के अधिक प्रकोप वाले स्थानों पर अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक बुवाई करने से इस कीट से फसल को कम हानि होती है|
रोकथाम- बरूथी कीट के नियंत्रण हेतु फसल पर मोनोक्रोटोफॉस 36 एस एल या मैलाथियान 50 ई सी का एक मिलीलीटर या क्यूनालफॉस 25 ई सी का दो मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर सांयकाल के समय छिड़काव करना चाहिए, जिससे मधुमक्खियों को नुकसान न हो|
धनिया फसल के रोगों की रोकथाम
छाछ्या (पाउडरी मिल्ड्यू)- पौधों की पत्तियों और टहनियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है| रोग का प्रकोप अधिक होने पर या तो बीज नहीं बनते या बहुत ही कम छोटे बीज बनते हैं, जिससे इनकी गुणवत्ता कम हो जाती है|
रोकथाम- उपचार के लिए गंधक का चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टर के हिसाब से भुरकाव करें या घुलनशील गंधक 0.2 प्रतिशत घोल, केराथेन 0.1 प्रतिशत, केलेक्सिन 0.05 प्रतिशत में से कोई एक दवा को 500 से 700 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टर के हिसाब से छिड़काव करें तथा आवश्यकता होने पर 15 से 20 दिन बाद छिड़काव दोहराएं|
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तना सूजन (स्टेम गाल)- इस रोग के कारण तने तथा पत्तियों पर विभिन्न आकार के फफोले पड़ जाते हैं| पौधों की बढ़वार रूक कर पीले पड़ जाते हैं| पुष्पक्रम पर आक्रमण होने पर बीजों के आकार से बीजों की शक्ल तक ही बदल जाती है| वातावरण में नमी अधिक होने पर बीमारी का प्रकोप बढ़ जाता है|
रोकथाम- नियंत्रण के रोगरोधी किस्म आर सी आर- 41 जैसी किस्म बोयें एवं नियंत्रण के लिए बीजों को बुवाई पूर्व थाइम 1.5 ग्राम और बाविस्टीन 1.5 ग्राम (1:1) प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें| खड़ी फसल में रोग के लक्षण दिखने पर बाविस्टीन 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें|
उखटा रोग (विल्ट)- इस रोग से धनिया फसल के पौधे हरे मुरझा जाते हैं| यह पौधे की छोटी अवस्था में ज्यादा होता है| परन्तु रोग का प्रकोप किसी भी अवस्था में हो सकता है|
रोकथाम- नियंत्रण के लिए गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें, उपयुक्त फसल चक अपनायें तथा बीज का उपचार बाविस्टीन 2.0 ग्राम या ट्राइकोडर्मा 4.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से करें|
झुलसा (ब्लाईट)- धनिया की फसल में इस रोग का प्रकोप होने पर पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं एवं पत्तियां झुलसी हुई दिखाई देती है| वर्षा होने पर रोग की सम्भावना बढ़ जाती है|
रोकथाम- धनिया फसल के इस रोग के उपचार हेतु बाविस्टीन 0.1 प्रतिशत या इन्डोफिल एम- 45, 0.2 प्रतिशत या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.3 प्रतिशत के घोल का छिड़काव करें|
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