धान व गेहूं फसल चक्र में जड़-गांठ सूत्रकृमि, धागे की तरह के पादप परजीवी सूक्ष्मजीव होते हैं, जो फसलों की जड़ों पर परजीवी के रूप में रहकर पौधों के भोजन पर ही अपना जीवन निर्वाह करते हैं| सूत्रकृमि पौधों की जड़ों में घाव उत्पन्न करके नई प्रकार की कोशिकायें बनाते हैं| जिससे पौधों में खाद्य पदार्थ, पानी एवं लवण सोखने और उनका वितरण प्रभावित होता है|
धान व गेहूं की फसलों में जड-गाँठ रोग, मिलाइडोगायनी प्रेमिनीकोला सूत्रकृमि से होता है| यह सूत्रकृमि उपरी क्षेत्र और कम वर्षा के पूर्वी इलाकों के धान उगाने वाले क्षेत्रों में ज्यादा सक्रिय होता है| यह सूत्रकृमि दोमट तथा बलूई दोमट मिट्टी में धान की फसल को ज्यादा क्षति पहुंचाता है और देश को प्रति वर्ष लगभग 100 करोड़ रूपयों की आर्थिक हानि होती है|
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धान व गेहूं फसल चक्र में जड़-गांठ सूत्रकृमि का जीवन चक्र
संक्रमित जड़ों का विच्छेदन करके सूक्ष्मदर्शी में देखने पर अक्सर गुच्छे के रूप में छोटे-छोटे सफेद, कुछ गोलाकार 0.5 से 1.0 मिलीमीटर की श्लेष्मी अंडे युक्त मादायें जड़ के कार्टेक्स की अन्त: कोशिकाओं में घुसी रहती हैं| धान व गेहूं तथा अन्य पौधों की महीन जड़ों से बाहर की ओर उभरी हुई अंडखोल (गाँठे) देखी जा सकती हैं| श्लेष्मी अँड मैट्रिक्स में 1 से 2 मिलीमीटर लंबे धागे सदृश्य कई नर एवं मादा पाये जाते हैं|
जड़ों को 0.1 प्रतिशत के एसिड फ्यूकसिन लैक्टोफीनॉल घोल में स्टेन करने पर लाल रंग की पूर्ण विकसित मादायें, नर, लार्वी एवं कई छोटे-छोटे अंडे दिखाई देते हैं| एक पूर्ण विकसित मादा के अंडों की कुल संख्या 200 से 700 तक हो सकती है| जड़-गाँठ सूत्रकृमि पूरे वर्ष अपना जीवन चक्र किसी न किसी पौधे पर बनाये रखते हैं| यह सूत्रकृमि 30 दिन में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेते हैं|
सूत्रकृमि जड़ों में अन्दर घुसकर पौधे पर परजीवी रहकर भोजन चूसते रहते हैं एवं जड़ों की कोशिकाओं को क्षति पहुँचाकर और प्रजनन करके एक मादा सूत्रकृमि जड़ों के अन्दर जिलेटीन जैली में अण्डे देकर अपना जीवन चक्र पूरा करती है| जिससे पौधे की जड़ों के छोर पर मोटी-मोटी गाँठे बन जाती हैं| इन जड़ गाँठों से सूत्रकृमि निकलकर नई जड़ों में घुसकर फसल को हानि पहुंचाते हैं| यह सूत्रकृमि एक फसल काल में 1 से 3 जीवन चक्र पूरा करते हैं|
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धान व गेहूं फसल चक्र में जड़-गांठ सूत्रकृमि रोग के लक्षण
आमतौर पर संक्रमित धान व गेहूं के पौधे कमजोर एवं इनकी पत्तियॉ पीली और मुरझा जाती हैं| पत्तियों में क्लोरोफिल की मात्रा कम हो जाती है| बृहद तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों के स्तर में कमी आ जाती है| जबकि सूत्रकृमि संक्रमण के कारण तनों में कैल्शियम और जड़ों में पोटेशियम की मात्रा में वृद्धि तथा नत्रजन की कमी हो जाती है| शर्करा और प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है, जो सूत्रकृमि के प्रति प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया प्रदान करती हैं|
जडों पर सर्पिल या घोड़े की नाल जैसी सदृश्य गाँठ इसका मुख्य लक्षण है| इस प्रकार की गाँठे धान व गेहूं के लगभग सभी खरपतवारों में भी देखे गए हैं| जे2 के संक्रमण, गमन एवं स्राव के कारण जडों की कार्टिकल कोशिकाओं में विघटन एवं अतिवृद्धि हो जाती है| धान व गेहूं की फसलें कमजोर हो जाती हैं और पौधों की संख्या में कमी आ जाती है|
धान व गेहूं में बालियाँ छोटी और कमजोर दाने की बनती हैं, जिससे पैदावार में कमी आ जाती है| गहरे पानी वाले धान में सूत्रकृमि संक्रमित पौधे पानी से ऊपर तक वृद्धि करने में अक्षम होने के कारण बौने रह जाते हैं और लगातार डूबे रहने के कारण पौधे पीले होकर नष्ट हो जाते हैं|
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धान व गेहूं फसल चक्र में जड़-गांठ सूत्रकृमि प्रबंधन
नर्सरी का उपचार
1. धान की नर्सरी को सूत्रकृमि रहित क्षेत्र में लगायें, धान की नर्सरी लगाने वाली जगह को पॉलीथीन से ढक कर 3 सप्ताह तक सूर्यतपन करें| इससे मिट्टी की उपरी सतह के सूत्रकृमि, सूर्यतपन से मर जाते हैं| ऐसी क्यारी में लगाई नर्सरी पूर्णरूप से स्वस्थ होगी व खेत में पौध रोपाई के बाद फसल की अच्छी पैदावार होगी|
2. स्युडोमोनास फ्लुरोसेन्स (8 x 10 सी एफ यू) को धान के पौधों को क्रमांगत रूप से गीला और सुखाकर 200 मिलीलीटर प्रति 750 मिलीलीटर पानी की दर से उपयोग करने पर नियंत्रण और अन्य उपचारित समिश्रणों से अधिक प्रभावशाली पाया गया है|
3. नर्सरी की क्यारियों में कार्बोफ्युरान- 3जी, (3.3 ग्राम प्रति वर्ग मीटर) की दर से उपचार करें|
4. धान की रोपाई से पहले खेत में हरी खाद के लिए सनई को 1 से 2 माह तक उगायें और बाद में जुताई करके खेत में मिला दें| इससे सूत्रकृमि की संख्या 30 से 40 प्रतिशत कम होती है तथा हरी खाद से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है|
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मुख्य खेत का उपचार-
1. धान की पौध रोपाई से पहले खेत में पानी भरकर अच्छी तरह पडलिंग करें|
2. गर्मियों के समय अप्रैल से मई में हल्की सिंचाई के बाद खेत की 8 से 10 दिन के अंतराल पर 2 से 3 बार गहरी जुताई करने से सूत्रकृमि सूर्यतपन से मर जाते हैं|
3. रोगी धान व गेहूं के खेत में 8 से 10 दिन तक पानी भरकर रखने से जड़-गाँठ सूत्रकृमि रोग कम हो जायेगा|
4. धान व गेहूं के खेत में जहाँ रोग हो, वहाँ पर कार्बोफ्युरान-3जी, 1 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालकर सूत्रकृमि का नियंत्रण कर सकते हैं|
5. धान व गेहूं खेत के फसल चक्र में मक्का, मूंगफली, घीया, तोरई, मूग, लोबिया, लहसुन, मिर्च और बैंगन आदि को खेत में लगाने से धान जड-गाँठ सूत्रकृमि का नियंत्रण होता है|
6. धान के खेत में खरपतवार की रोकथाम के लिये पेंडीमेथेलिन 1 से 1.5 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर छिड़काव करने के तत्पश्चात बीसपाइरीबेक सोडियम 20 से 25 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 25 से 30 दिन के बाद छिडकाव करें तथा गेहूं के खेत में खरपतवार की रोकथाम के लिये क्लोडिनाफोप 60 ग्राम और मैटसल्फ्युरान मिथाइल 5 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाकर छिड़काव करें|
समेकित प्रबन्धन-
उपरोक्त 2 से 3 विधियों को अपनाकर, किसान बन्धु धान व गेहूं सूत्रकृमि की संख्या को नियमित करके, सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण की दृष्टि से लाभदायक रहेगा तथा फसल उत्पादन में बचत या हानि का अनुपात भी सही रहेगा|
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