पपीता पोषक तत्वों से भरपूर एव अत्यन्त स्वास्थ्यवर्धक तथा बहुत ही कम समय में तैयार होने वाला फल है| जो बहुत ही स्वादिष्ट तथा रूचिकर होता है| इसका उत्पति स्थान अमेरिका के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र हैं| लेकिन भारत में इसकी खेती की लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढती जा रही है| क्षेत्रफल की दृष्टि से भी यह हमारे देश के पांच प्रमुख फलों में से एक है| पपीता खाने में जितना स्वादिष्ट है, उतना ही हमारी सेहत के लिए भी लाभकारी है|
पपीता फल विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों का खजाना है| यह केरोटीन, विटामिन ‘सी’, फ्लेवोनाइड्स एवं विभिन्न एंटीआक्सीडेन्ट्स का समृद्ध स्रोत है| इसके अतिरिक्त इसमें विटामिन ‘बी’ कॉम्पलेक्स, फॉलेट, पेंटाथोनिक एसिड, खनिज, पोटेशियम, मेग्निशियम और फाइबर भी उचित मात्रा में पाये जाते हैं|
पपीता विभिन्न प्रकार के रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं| इसमें उपलब्ध विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व शरीर की हृदय प्रणाली को सुचारू रूप से चलाने के लिए मदद करते हैं और कोलेस्ट्रोल के आक्सीकरण को रोकने में मदद करते हैं| इसके अलावा इसमें पाचक एन्जाइम पपेन भी अधिक मात्रा में पाया जाता है| इसलिए पपीता पूर्ण रूप से अति लाभकारी फल है|
हमारे देश में पपीते की खेती आमतौर पर गुजरात, कनार्टक, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और त्रिपुरा इत्यादि राज्यों में व्यवसायिक रूप से की जा रही है| पपीते के सफल उत्पादन के लिए उचित पोषक तत्व प्रबंधन की जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है| पपीता की बागवानी की अधिक जानकारी के लिए यहां पढ़ें- पपीते की खेती कैसे करें
यह भी पढ़ें- अंगूर की खेती कैसे करें
बागवानी का तरीका
पपीता के सफल उत्पादन के लिए इसकी खेती वैज्ञानिक तरीके से विभिन्न उन्नतशील पद्धतियों को अपनाकर किये जाना अति आवश्यक है| पपीते की सफल खेती में उचित तरीके से पोषक तत्व प्रबन्धन अति महत्वपूर्ण है| जैसा कि विदित है, कि यह मुख्य रूप से उष्ण जलवायु का फल है लेकिन इसे समशीतोष्ण जलवायु में भी उगाया जाता है| इसके सफल उत्पादन के लिए तुलनात्मक रूप से उच्च तापक्रम, कम आर्द्रता और पर्याप्त नमी की जरूरत होती है| पपीते की खेती समुद्र तल से 800 मीटर की ऊंचाई तक अच्छे तरीके से की जा सकती है|
पपीता की उन्नतशील प्रजातियों में मुख्यतः पूसा ड्वार्फ, पूसा नन्हा, कुर्ग हनीड्यु, कोयम्बटूर- 1, कोयम्बटूर- 3, वाशिंगटन, पंत पपीता- 1, सूर्या और रेड लेडी किस्में बहुत प्रचलित हैं, जो देश के विभिन्न भागों में उगाई जाती हैं| पपीता के पौधे लगाने से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई करके उसे समतल कर लेना चाहिए, ताकि सिंचाई के समय या वर्षा ऋतु में जलभराव न हो|
प्रत्येक गड्ढे में 25 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिला देने से मिट्टी जनित फफूद रोग कम होते हैं| जिन क्षेत्रों में दीमक का प्रकोप होता है, उन क्षेत्रों में क्लोरपाइरीफॉस की 2 मिलीलीटर मात्रा जल में मिलाकर प्रति गड्ढा उपचारित कर लेना चाहिए| पौधों को लगाते समय गडढे को मिट्टी से अच्छी तरह से भर दें, जिससे सिंचाई करते समय पौधों के तने पानी के सम्पर्क में न आयें नही तो तना गलन जैसे रोगों के होने का खतरा रहता है|
यह भी पढ़ें- केले की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार
पोषक तत्व प्रबंधन
पपीता जल्दी फलन शुरू कर देता है, इसलिए यदि इसकी खेती अधिक उपजाऊ भूमि में की जाये तो बहुत अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है| पपीते के पौधों को गड्ढे में लगाने से पूर्व लगभग 20 किलोग्राम अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद को पौध रोपण के 20 दिन पूर्व गड्ढे में भर दें| पपीते के प्रत्येक पौधे को वर्ष भर में लगभग 250 ग्राम नत्रजन, 300 ग्राम फास्फोरस और 400 ग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है| जिसे छः बराबर-बराबर भागों में बांटकर प्रति दो माह के अंतर से देना चाहिए|
इन्हें रसायनिक उर्वरकों द्वारा देने के लिए प्रति पौधा लगभग 90 ग्राम यूरिया, 250 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 110 ग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश को पौधे के थालों की मिट्टी में अच्छी तरह से मिला दें, तत्पश्चात सिंचाई करें| यदि पपीते की फसल दूसरे वर्ष भी लेनी हो तो इसी अनुपात में दोबारा उर्वरकों का उपयोग करें|
इसके साथ-साथ दोबारा 20 से 25 किलोग्राम गोबर की खाद, एक किलोग्राम बोन मील और एक किलोग्राम नीम की खली देना भी लाभकारी है| पपीता में रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग पौध लगाने के चार महीने के उपरान्त ही शुरू करना चाहिए|
पपीता में पोषक तत्वों की सबसे अधिक आवश्यकता फूल आने के पश्चात् होती है| इसलिए इस समय विशेष रूप से उचित पोषक तत्व प्रबंधन की जरूरत होती है| यदि हमें पपीते की पत्तियों में उपलब्ध विभिन्न पोषक तत्वों की उपयुक्त मात्रा की जानकारी हो, तो हम आवश्यकतानुसार पौधे की जरूरत के हिसाब से पोषक तत्वों का छिड़काव कर सकते हैं|
यह भी पढ़ें- अनार की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार
पपीता की पत्ती में एक आदर्श पोषक तत्व अनुपात इस प्रकार है, जैसे- छः महीने पुरानी और छठवीं पत्ती में नत्रजन 1.66 प्रतिशत, फास्फोरस 0.50 प्रतिशत, पोटाश 5.21 प्रतिशत, कैल्शियम 1.81 प्रतिशत, मैग्निशयम 0.67 प्रतिशत और सल्फर 0.38 प्रतिशत होना चाहिए| इसलिए हम पपीता की पत्तियों में पोषक तत्व परीक्षण कराकर इस मात्रा के हिसाब से पोषक तत्वों के प्रबन्धन की योजना बना सकते हैं|
जैव उर्वरकों का प्रयोग भी वर्तमान समय में बहुत प्रचलित है| जिनमें एजोस्पाइरिलम, पी एस बी और वैम सबसे अधिक उपयोग में लिए जाते हैं| तरल रसायनिक खादों और विभिन्न पोषक तत्वों का प्रयोग भी अति लाभकारी सिद्ध हुआ है| यदि पपीता की खेती में सिंचाई टपक पद्धति द्वारा की जाती है तो सिंचाई के जल के साथ-साथ उर्वरकों को भी पौधों की जड़ों के पास दिया जा सकता है| जिससे पौधों के उत्पादन में वृद्धि होती है|
सूक्ष्म पोषक तत्वों में मुख्यतः जस्ता, बोरोन, कॉपर और मैंगनीज की कमी देखी गई है| इसके लिए जिंक सल्फेट का 0.5 प्रतिशत घोल एवं बोरिक एसिड का 0.1 प्रतिशत घोल बनाकर पौध रोपण के चार महीने और 8 महीने पश्चात् दो छिड़काव करना काफी लाभप्रद पाया गया है| कॉपर सल्फेट का 0.25 प्रतिशत और मैंगनीज का 0.25 प्रतिशत घोल का छिड़काव पौधे लगाने के 3 महीने पश्चात करने से उपज और गुणवत्ता दोनों में सुधार पाया गया है|
इस प्रकार यदि पपीता का उचित तरीके से पोषक तत्व प्रबंधन किया जाये तो गुणवत्तायुक्त पपीता के फलों की अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है|
यह भी पढ़ें- आंवला की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार
यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|
Leave a Reply