पपीते की स्वच्छ नर्सरी (पौधशाला) का अपना महत्व है| क्योंकि पपीते का प्रवर्धन बीज द्वारा होता है और विश्व के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाने वाला महत्वपूर्ण फल है| केला के पश्चात् प्रति ईकाई अधिकतम उत्पादन देने वाला एवं औषधीय गुणों से भरपूर फलदार पौधा है| यदि बागान बन्धु इसकी बागवानी से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करना चाहते है| तो पपीता की स्वस्थ और वैज्ञानिक तकनीक से पौध तैयार करना आवश्यक है|
जिससे गुणवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त हो सके| इस लेख में कृषकों के लिए पपीते की वैज्ञानिक तकनीक से नर्सरी (पौधशाला) तैयार कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख किया गया है| पपीते के वैज्ञानिक तकनीक से बागवानी की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- पपीते की खेती कैसे करें
नर्सरी की तकनीक
पपीते में नर्सरी तैयार करते समय स्वस्थ प्रमाणित बीज 3 मीटर लम्बी, 1 मीटर चौड़ी और 3 से 5 सेंटीमीटर ऊँची क्यारी, गमले या पॉलीथीन बैग में उगाये जा सकते हैं| बीज के अच्छे जमाव के लिए नर्सरी बेड को फॉर्मलीन या पालीथीन से ढक कर उष्मा उपचार से उपचारित करना चाहिए| 4 से 5 दिनों बाद सीड बेड से पालीथीन हटा देना चाहिए या क्यारी को खुला छोड़ देना चाहिए, जिससे अतिरिक्त फॉर्मलीन उड़ जाए|
चूँकि पपीता को बीज से प्रवर्धित किया जाता है, इसलिए पूर्ण विकसित फलों से इसके बीज निकालना चाहिए तथा बीज में लगे चिकने पदार्थ को राख से रगड़कर अच्छी तरह हटा देना चाहिए| बीज को 1 सेंटीमीटर गहरे तथा एक दूसरे से 10 सेंटीमीटर की दूरी पर बोना चाहिए और उन्हें अच्छी कम्पोस्ट या पत्तियों या पॉलीथीन से ढक देना चाहिए| नर्सरी में पानी का हल्का छिड़काव हजारे द्वारा सुबह के समय करना चाहिए|
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खराब मौसम से बचाने के लिए पुआल या पॉलीथीन से ढकना आवश्यक होता है| कीड़ों से नर्सरी को बचाने के लिए 0.2 प्रतिशत किसी कीटनाशक (फॉलीडाल धूल 5 प्रतिशत) का बुरकाव करना चाहिए| नर्सरी में गलका रोग से बचाने के लिए बीज का उपचार थीरम फफूंदीनाशक दवा का प्रयोग 0.1 प्रतिशत की दर से करना चाहिए| बीज का जमाव बोने के 15 से 20 दिनों बाद हो जाता है|
यदि बीज को 1.5 मिलीलीटर मोल सांद्रता वाली जिब्रेलिक एसिड घोल से उपचारित करें तो जमाव अच्छा होता है| 35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर बीज का जमाव सबसे अच्छा होता है| बीज की शुद्धता तभी मिल सकती है, जब हम बीज या पौधे को किसी प्रमाणित नर्सरी से लेते हैं| एक हेक्टेयर भूमि में पौधे लगाने के लिए 500 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है|
जब हम बीज को पॉलीथीन बैग या गमलों में बोते हैं, तो 5 से 6 बीज प्रति बैग या गमले में बोना चाहिए 10 से 20 दिनों में बीज अंकुरित हो जाते हैं| पपीते के बीज की अंकुरण क्षमता शीघ्र समाप्त होती है, यदि इसका उचित भण्डारण नहीं किया जाता है| सामान्यतयाः बीज को फल से निकालने के 3 से 4 माह बाद अंकुरण क्षमता कम होने लगती है|
किन्तु यदि बीज को बंद डिब्बे, जिसमें हवा न जाय एवं ठंडे स्थान पर रखें तो अंकुरण क्षमता 8 से 10 माह तक बनी रहती है| पपीते के इन नये पौधों को डैम्पिंग ऑफ बीमारी से बचाने के लिए 2 ग्राम (कॉपर आक्सीक्लोराइड) 1 लीटर पानी में घोल बना कर 25 मिलीलीटर प्रति बैग प्रयोग करना चाहिए| क्यारी में उगे हुए पौधों में जब 2 से 3 पत्तियाँ आ जाएँ तो क्यारी से पॉलीथीन बैग में स्थानान्तरण करना चाहिए|
यदि पौधे पॉलीथीन बैग में हैं और एक से अधिक पौध हैं तो उन्हें भी अलग बैग में स्थानान्तरित कर देते हैं| जिससे एक ही स्थान पर सघनता न होने पायें| साधारणतयाः पौधे 30 से 45 दिनों बाद 15 से 20 सेंटीमीटर ऊँचाई के हो जाते हैं, तभी खेत में पौधे को लगाना चाहिए| पौध रोपण सदैव सायंकाल में किया जाना चाहिए|
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पपीते की नर्सरी से अधिकतम मादा व उभयलिंगी पौधे प्राप्त करने के लिए, पौधों में नियन्त्रित परागण कराने की आवश्यकता होती है| नर, मादा व उभयलिंगी फूल का जब हम नियंत्रित परागण कराते हैं तो इस प्रकार के पौधे प्राप्त होते है, जैसे-
फल जनक | पराग जनक | नर प्रतिशत | मादा प्रतिशत | उभयलिंगी प्रतिशत |
मादा | नर | 50 | 50 | – |
मादा | उभयलिंगी | – | 50 | 50 |
उभयलिंगी | उभयलिंगी | – | 33 | 67 |
उभयलिंगी | नर | 33 | 33 | 33 |
पीढ़ी वितरण
यदि हम पपीते में नियंत्रित परागण के द्वारा पीढ़ी वितरण देखें तो पता चलेगा कि मादा या उभयलिंगी फूल का परागण उभयलिंगी फूल से कराने पर नर पौधे नहीं होते हैं| परागण की प्रक्रिया फूल खिलने से ठीक पहले करनी चाहिए| इसमें मादा या उभयलिंगी फूल को कागज के लिफाफे से ढ़क देते हैं, जब तक कि फूल खिल न जाय|
फूल खुलने के बाद उभयलिंगी या नर फूल के परागकण द्वारा परागण करते हैं और पुनः लिफाफे से कुछ समय के लिए ढक देते हैं| जब फूल बैठ जाय तब लिफाफा हटा देते हैं| फुल के परिपक्व हो जाने के बाद बीज निकालते हैं|
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