पॉलीहाउस में वर्षभर सब्जियों का उत्पादन किया जा सकता है| इस पॉलीहाउस तकनीक द्वारा उगाई गई सब्जियों की गुणवता बहुत अच्छी होती है और अच्छे दाम मिलते हैं, खासकर जब बेमौसम में इनका उत्पादन किया जाये| इसलिए यह तकनीक हमारे देश में सब्जी उत्पादकों के लिए वरदान सिद्ध हो रही है तथा तेजी से प्रचलित भी हो रही है| पॉलीहाउस का वातावरण खुले वातावरण की अपेक्षा सब्जियों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए तो अनुकूल है, लेकिन इसके साथ-साथ यह वातावरण रोगों व कीटों के लिए भी उतना ही अनुकूल है|
जिससे कृषक इसके नियंत्रण के लिए साल भर में कम से कम 20 से 30 बार रसायनों का छिड़काव अपनी फसल पर करता है| इन रसायनों का 70 से 80 प्रतिशत भाग भूमि में चला जाता है तथा हर वर्ष मिट्टी में जमा होता रहता है, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है| इस तरह 7 से 8 वर्ष बाद भूमि बिल्कुल बंजर हो जाती है और कृषक की आय कम हो जाती है| इन सब्जियों के उत्पाद पर भी रसायनों के अवशेष रह जाते है|
जो कि उपभोकता के स्वास्थय के लिए हानिकारक हैं| इसलिए यह जानना आवश्यक हैं कि हम किस तरह पॉलीहाउस में कीटों तथा रोगों के प्रबन्धन में कम से कम तथा आवश्यकतानुसार रसायनों का प्रयोग करें और इसके साथ-साथ जैविक नियंत्रण विधि भी अपनाएं इस तरह एकीकृत प्रबन्धन करते हुए हम भूमि की उत्पादकता लम्बे समय तक बना कर रख सकते हैं| इस लेख में पॉलीहाउस में सब्जियों के कीट एवं रोग प्रबंधन हेतु भूमि उपचार कैसे करें का उल्लेख किया गया है|
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पॉलीहाउस में सब्जियों के कीट व रोग प्रबंधन हेतु भूमि उपचार
पॉलीहाउस में या अन्य जगह भूमि का उपचार दो तरह से किया जा सकता है, जैसे-
1. सौर ऊर्जा द्वारा
2. जैविक विधि द्वारा|
पॉलीहाउस में सब्जियों के कीट व रोग प्रबंधन हेतु सौर ऊर्जा द्वारा भूमि का उपचार-
इस तकनीक के अच्छे प्रभाव के लिए भूमि को अच्छी तरह से जुताई करने के बाद उसमें गोबर की खाद मिला लें तथा भूमि की हल्की सिंचाई करें| सिंचित भूमि को 100 गेज़ मोटे पारदर्शी पॉलीथीन शीट से गर्मियों में (मार्च से जून) 4 से 6 सप्ताह तक ढक दें| पॉलीथीन की चादर के किनारों को भूमि में अच्छी तरह से दबा देना चाहिए ताकि हवा से न उड़ सके| इस तकनीक से पौधशाला का क्षेत्र, पॉलीहाउस में अन्दर का क्षेत्र व बाहर की भूमि को भी उपचारित किया जा सकता है| सौर ऊर्जा से रोगकारक फफूंदों की प्रजातियों के बीजाणु या तो मर जाते हैं या निष्क्रिय हो जाते हैं|
पॉलीहाउस में सब्जियों के कीट व रोग प्रबंधन हेतु जैविक विधि द्वारा-
सूडोमोनास जीवाणु फॉर्मुलेशन द्वारा- सूडोमोनास फ्लोरिसेन्स जीवाणु पाऊडर फॉर्मूलेशन का उपयोग जीवाणु मुझन तथा जड़गांठ सूत्रकृमि आदि रोगों में लाभकारी है| इसका प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से कर सकते हैं, जैसे-
बीज का उपचार- 10 ग्राम ‘सूडोमोनास पाऊडर को 100 से 200 मिलीलीटर पानी में घोलकर पेस्ट बना लें तथा 1 किलोग्राम बीज को इस पेस्ट से उपचारित करें|
नर्सरी में क्यारियों का उपचार- 50 ग्राम स्यूडोमोनास को प्रति लीटर पानी में घोलकर प्रति वर्ग मीटर की दर से क्यारियों का उपचार करें|
भूमि उपचार- यदि आप बहुवर्षीय फसल उगा रहे हैं, तो बीज बोने के 30, 60 तथा 90 दिन बाद 20 ग्राम सूडोमोनास प्रति लीटर पानी में घोलकर भूमि की ड्रेचिंग करें|
सीधा या प्रत्यक्ष फील्ड में प्रयोग- 1 से 2 किलोग्राम स्यूडोमोनास को 100 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाएं तथा अब उचित नमी वाले मिश्रण को 15 दिन तक छाया में रहने दें, 15 दिन के बाद मिश्रण को दो टन गोबर की खाद में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र में प्रयोग करें|
ट्राईकोडरमा विरिडी या ट्राईकोडरमा हारजिएनम फफूद द्वारा- ट्राईकोडरमा का प्रयोग अवश्य करें, इससे पौधे की जड़ के चारों तरफ सुरक्षित परत बन जाती है| जिससे हानिकारक फफूंद आक्रमण नही कर सकती| इसका प्रयोग निम्न प्रकार से कर सकते हैं, जैसे-
बीज का उपचार- 10 ग्राम ट्राईकोडरमा पाऊडर को 100 से 200 मिलीलीटर पानी में घोलकर उसमें 1 किलोग्राम बीज को उपचारित करें|
नर्सरी में क्यारियों का उपचार- 5 से 10 ग्राम ट्राईकोडरमा प्रति लीटर पानी में घोलकर प्रति वर्ग मीटर की दर से क्यारियों को उपचारित करें|
पौध उपचार- पौध को लगाने से पहले 200 ग्राम ट्राईकोडरमा प्रति 20 लीटर पानी में घोल कर 10 मिनट तक डुबो कर रखें|
भूमि उपचार (ट्राईकोडरमा का सीधे भूमि में प्रयोग)- 1 से 2 किलोग्राम ट्राईकोडरमा को 1 किंवटल नमी वाली तथा अच्छी तैयार हुई गोबर की खाद में मिलाकर, छायावाली जगह में 10 से 15 दिन तक पॉलीथीन शीट से ढककर रख दें| हर तीसरे दिन इस मिश्रण को पलटते रहना चाहिए ताकि ट्राईकोडरमा सुचारू रूप से पनप सके| इस तरह यह मिश्रण (एक क्विटल) एक एकड़ भूमि में बिखेर कर मिट्टी में मिला दें|
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पॉलीहाउस में सब्जियों के कीट व रोग प्रबंधन हेतु जैविक फील्ड फार्मूलेशन द्वारा-
कड़वी, छॉबर, बोगेनविलिया, तुलसी, दूधली के पत्तों और दरेक के बीजों का बराबर – बराबर भाग लेकर उनको पीस लें तथा उसमें गाय मूत्र डाल दें और इस मिश्रण को 15 से 20 दिनों तक पड़ा रहने दें| जब यह अच्छी तरह सड़ जाए तो इसको निथार लें| इस प्रकार यह फील्ड फार्मुलेशन तैयार हो जाता है| अब इसमें 10 गुणा पानी मिलाकर फसल पर छिडकाव कर सकते हैं| ऐसा करने से एक तो फफूंद जनित रोगों तथा कीटों का नियंत्रण होता है, दूसरे कृषक की भूमि भी लम्बे समय तक उपजाऊ बनी रहती है और साथ ही पर्यावरण पर भी बुरा असर नहीं पड़ता|
पॉलीहाउस में सब्जियों के कीट व रोग प्रबंधन हेतु जैविक विधि से पौध संरक्षण-
1. सौर ऊर्जा के उपयोग से पौधशाला की भूमि को रोगाणु रहित करें|
2. पौधशाला में क्यारियां बनाने से एक महीना पहले नीम की खली 500 ग्राम से 1 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें और बाद में मिट्टी की सिंचाई कर लें|
3. पौधशाला में स्वस्थ व प्रमाणित बीजों का ही प्रयोग करें|
4. बीजों को पौधशाला में बोने से पहले भूमि में जैविक फफूंदनाशक ‘ट्राईकोडरमा विरिडी’ गोबर की खाद में मिलाकर 50 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से डालें|
5. पौधशाला का स्थान प्रति वर्ष बदल दें|
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