किसान बंधुओं- पौधों में जनन मुख्तया दो प्रकार का होता है, लैंगिक और अलैंगिक, इस लेख के माध्यम से आप जानेगे की पौधों में जनन लैंगिक और अलैंगिक में अन्तर क्या होता है, पौधों में जनन लैंगिक और अलैंगिक के फायदे और समस्याएं किस प्रकार की होती है, तो आइए जानते है पौधों में जनन के बारे में विस्तार से की इनकी क्रिया क्या होती है|
पौधों में लैंगिक जनन
इस लैंगिक जनन में मादा और नर कोशिकाओं के मिलन के फलस्वरूप बीज निर्माण द्वारा संतति की उत्पत्ति होती है| इस विधि में अर्धसूत्री विभाजन द्वारा गुणसूत्रों की संख्या आधी और निषेचन के बाद पुनः सामान्य हो जाती है| संतति में आधे गुणसूत्र नर और आधे मादा से आते है| नयी संतति में किसी पैतृक के स्वरूप, इनसे भिन्न और आपस में भी विविधता की सम्भावना होती है| बीज जनन लैंगिक जनन से सम्बोधित किया जाता है| प्रायः पौधों में प्रजनन लैंगिक में विविधता की अधिक सम्भावना रहती है, जिसके कारण प्रकृति में नयी-नयी किस्मों की उत्पत्ति होती रहती है|
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पौधों में अलैंगिक जनन
पौधे के बीज के अतिरिक्त अन्य किसी भाग से पौधों में प्रजनन को अलैंगिक या कायिक जनन कहते हैं| इनमें विविधता की कम सम्भावना होती हैं, जिसके परिणाम स्वरूप हजारों वर्षों तक किस्म विशेष के गुण संरक्षित रहते हैं| पौधे के किसी भाग से जब जड़, तना या पत्तियाँ निकलती हैं तो उसे अपस्थानिक मूल या अपस्थानिक प्ररोह कहते है| अपस्थानिक मूल का प्रार्दुभाव पौधे के किसी भाग, भूमिगत तने या पुरानी जड़ों से हो सकता है|
समसूत्री विभाजन पौधे की वृद्धि, इनसे पौधों में जनन और घाव भरने की आधार भूत प्रक्रिया है| इसी के कारण कायिक प्रवर्धन विभिन्न विधियों, जैसे- विभाजन, कलम बंधन, चश्मा आदि द्वारा सम्भव हो पाता है| इन विधियों द्वारा प्रवर्धित सभी पौधों की आनुवंशिक समरूपता विद्यमान होती है| अतः फल-वृक्ष प्रवर्धन की पूर्ति इसी विधि द्वारा सम्भव हो पाती है|
पौधों में लैंगिक प्रवर्धन
बीज द्वारा प्रर्वधन को लैंगिक प्रवर्धन कहते हैं| कुछ फल वृक्षों तथा मुख्यतः मूलवृंत (रूटस्टॉक) के लिए पौधे प्रायः बीज द्वारा ही प्रवर्धित किये जाते है| प्रारम्भ में जब कायिक विधियों की जानकारी नहीं थी, उस समय फल वृक्ष प्रवर्धन का यही एक मात्र व्यवसायिक सहारा था| पौधों में प्रजनन लैंगिक प्रवर्धन के फायदे और समस्याएं का संक्षिप्त विवरण नीचे दिया हुआ है, जो इस प्रकार है, जैसे-
पौधों में जनन लैंगिक के फायदे-
1. बीज द्वारा प्रवर्धन आसान और सस्ती विधि है|
2. बीजू पौधे दीर्घजीवी, अधिक फलोत्पादक तथा सहिष्णु होते हैं|
3. कुछ फल वृक्षों, जैसे पपीता इत्यादि जिनमें कायिक विधियों द्वारा प्रवर्धन नहीं हो पाता, उनके प्रवर्धन का यही एक मात्र साधन है|
4. बीज द्वारा प्रवर्धन करते रहने पर विविधता की अधिक सम्भावनायें रहती हैं, जिसमें कभी-कभी उत्तम किस्म के पौधों की उत्पत्ति हो जाती है|
5. जब कभी संकरण द्वारा फलोन्नति कार्य किया जाता है, तो संकर पौधा बीज द्वारा ही प्राप्त होता है|
6. कुछ फल वृक्षों जैसे नीबू प्रजाति में बहुभ्रूणता पाई जाती है, इनमें बीजांडकायिक पौधे, पैतृक समरूप होते हैं, अतः ऐसी अवस्था में बीज द्वारा ही प्रवर्धन अपरिहार्य हो जाता है|
7. मूलवृंत, जिन पर सांकुर शाखा का प्रत्यारोपण किया जाता है, का प्रवर्धन मुख्यतः बीज द्वारा ही किया जाता है|
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पौधों में प्रजनन लैंगिक समस्याएं-
1. बीजू पौधों में किशोरावस्था अधिक होने के कारण परिणाम स्वरूप फलन देर से शुरू होता है|
2. बीजू पौधे की वृद्धि, फलन और फलों के गुण में समरूपता नहीं होती है|
3. बीजू पौधे आकार में बड़े होते है, परिणाम स्वरूप उद्यानिक क्रियाओं जैसे फलों की तुड़ाई, दवाओं के छिड़काव, कटाई छंटाई आदि सुगमता पूर्वक नहीं किये जा सकते है|
4. पौधों में जनन, आमतौर पर बीजू पौधों से प्राप्त फल निम्नकोटि के होते है|
5. कुछ बीजोढ़ विषाणु जैसे नीबू में सोरोसिस, का संचरण बीज द्वारा होता है, अतः ऐसी अवस्था में बीज द्वारा प्रर्वधन का अनुमोदन नहीं किया जाता है|
6. चयन किये गये उन्नतशील फल-वृक्षों का प्रवर्धन बीज द्वारा करते रहने पर उनके गुणों का ह्रास होता रहता है, इसलिए ऐसी अवस्था में कायिक विधियों द्वारा प्रवर्धन आवश्यक होता है|
7. बीज द्वारा प्रवर्धन करने पर मूलवृंत लाभ नहीं मिल पाता है|
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पौधों में अलैंगिक या कायिक प्रवर्धन
बीज के अतिरिक्त पौधे के अन्य किसी भाग और असंगजनिक भ्रूण से प्रवर्धन को अलैंगिक या कायिक प्रवर्धन कहते है| आजकल फल वृक्षों का प्रवर्धन मुख्यतः कायिक विधियों द्वारा ही करने का प्रयास किया जा रहा है, कायिक प्रवर्धन के फायदे और समस्याएं इस प्रकार है, जैसे-
पौधों में जनन अलैंगिक के फायदे-
1. कायिक विधियों द्वारा प्रवर्धित सभी पौधे, पैतृक समरूप होते हैं, जिनके फलस्वरूप इनकी वृद्धि, फलोत्पादन और फलों के गुण में समानता पायी जाती है|
2. कुछ फल वृक्ष जैसे केला जिनका प्रवर्धन बीज द्वारा नहीं हो पाता, यानि जिनमें बीज निर्माण ही नहीं होता, उनके प्रवर्धन का यही एक मात्र उपाय है|
3. कायिक विधियों द्वारा प्रवर्धित पौधे आकार में छोटे होते हैं और इनमें किशोरावस्था कम होने के कारण फलन जल्दी प्रारम्भ हो जाता है, परिणाम स्वरूप इनकी देख-रेख में भी सुविधा रहती है|
4. अनुत्पादक और देशी किस्म के फल वृक्षों का अच्छे उत्पादक पौधों में परिवर्तन या जीर्णोद्वार कायिक विधियों द्वारा ही सम्भव होता है, यह प्रक्रिया कलम बंधन या चश्मा द्वारा की जाती है|
पौधों में जनन अलैंगिक की समस्याएं-
1. कायिक विधियों से प्रवर्धित पौधों की आयु बीजू पौधे अपेक्षाकृत कम होती है|
2. कायिक विधियों से प्रवर्धन करने पर विविधता की सम्भावना बहुत कम होती है|
3. कुछ फल वृक्षों में विषाणुओं का संचरण संक्रमित सांकुर शाखा से होता है, अतः विषाणु संक्रमित शाखा से प्रवर्धन करने पर फलोत्पादन कम होने की सम्भावना होती है|
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