प्रमुख सब्जियों में कीट नियंत्रण, सब्जियां हमारे प्रति दिन भोजन का एक आवश्यक हिस्सा है| शहरी आबादी में दिनोंदिन बढ़ोत्तरी होने से, शहरों के आस-पास गांवों में साग-सब्जी बोना एक लाभदायक व्यवसाय बन गया है| साग-सब्जियों का संतुलित खाने में अधिक महत्व है| क्योंकि इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, लवणएवं विटामिन प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं|
हमारे देश की आबादी बड़ी तेजी से बढ़ रही है इसलिए ऐसे में यह आवश्यक है, कि हम अपने खान-पान के ढंग में परिवर्तन लाएं और प्रमुख सब्जियों व साग को अपने भोजन में एक विशेष स्थान दें| इसलिए यह आवश्यक है, कि हम अधिक से अधिक साग-सब्जी उगायें| अच्छी फसल लेने हेतु जलवायु, मिट्टी, खाद और उर्वरक, उन्नतशील किस्में, बुआई का समय, बुआई कैसे करें, खरपतवार नियंत्रण, सिंचाई और कीटों एवं रोगों से फसल के बचाव विषय को अच्छी तरह से जानें|
लगभग हर प्रमुख सब्जियों के प्रयोग से हमारा विभिन्न बीमारियों से बचाव तो होता ही है, वैसे भी ये हमारे दैनिक भोजन का अभिन्न अंग हैं| इनके प्रयोग से हमारा भोजन संतुलित होता है. जिसमें विभिन्न मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, खनिज एवं विटामिन होते हैं| वर्ष भर में उगाई जाने वाली प्रमुख सब्जियों में कई प्रकार के रस चूसने तथा पत्तों व फलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों के आक्रमण से काफी हानि हो जाती है| इस वजह से प्रमुख सब्जियों की गुणवत्ता खराब हो जाती है और किसान भाइयों को आर्थिक नुकसान होता है|
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खेती तकनीकी अब हमारे देश में न केवल खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने का मूलभूत उपाय है वरन् इससे टिकाऊ विकास और पोषण सुरक्षा प्राप्त करना हमारा अगला लक्ष्य है| खेती उत्पादन की दक्षता में सुधार लाने की अत्यधिक आवश्यकता है, इसलिए समय-समय पर आधुनिक तकनीकियों का प्रसार अति आवश्यक है| वर्तमान में समेकित नाशीजीव प्रबंधन द्वारा जैविक आधारित टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने की सिफारिश की गई है|
नाशीजीव प्रबंधन इस प्रकार से करना चाहिए, कि रसायनिक कीटनाशक कम से कम मात्रा में इस्तेमाल हो।|इससे खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता खराब नहीं होती एवं पर्यावरण को भी संरक्षण प्राप्त होता है| प्रमुख सब्जियों फसलों का समेकित कीट प्रबंधन निचे लिखित प्रयासों द्वारा करना चाहिए, जैसे-
फसल टमाटर
प्रमुख फसल टमाटर प्रमुख सब्जियों की फसल में आता है, मुख्य रूप से फल छेदकों से भारी नुकसान होता है, जो इस प्रकार है, जैसे-
चने की सूण्डी ( हेलीकोवर्पा आर्मीजेरा)- यह बहुपौधभक्षी कीट प्रमुख रूप से टमाटर को भारी नुकसान करता है| इस कीट की सुंडी फल में गोल छेद बनाकर अपने शरीर का आधा भाग अंदर घुसाकर फल का गूदा खाती है, जिस कारण फल सड़ जाता है|
तम्बाकू की सुंडी ( स्पोडोप्टेरा लिटूरा)- यह एक प्रमुख बहुपौधभक्षी कीट है| इसकी सुंडियां चिकनी एवं काले रंग की होती हैं, यह टमाटर की फसल को काफी नुकसान पहुंचाती है| इसकी सुंडी प्रारंभ में समूह में रहकर पत्तियों की ऊपर सतह खुरचकर खाती हैं, पूर्ण विकसित सुंडियां पत्तियों को काटकर खाती हैं और ये रात के समय अधिक सक्रिय होती हैं| इसके अधिक प्रकोप होने पर पौधा पत्तीविहीन हो जाता है|
फुदका ( एमरैस्का बिगुटुला)- यह कीट प्रमुख रूप से पत्तियों और कोमल टहनियों का रस चूसता है| यह आकार में छोटा एवं हरे रंग का होता है| इसके प्रौढ व शिशु दोनों ही फसल को नष्ट करते हैं|
सफेद मक्खी- इस कीट का प्रौढ़ लगभग 1 मिलीमीटर लम्बा होता है| यह कीट भी फसल का रस चूसकर काफी नुकसान पहुंचाता है|
नियंत्रण-
1. खेत की गहरी जुताई करने से मिट्टी में मौजूद प्युपा एवं सुंडियां पक्षियों द्वारा खा लिये जाते हैं या तेज धूप द्वारा नष्ट हो जाते हैं|
2. प्रमुख पत्ती मरोड़क प्रतिरोधी किस्म उगायें तथा बीमारी से ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें|
3. टमाटर की रोपाई के दौरान प्रत्येक 10 से 15 कतार के बाद गेंदे के पौधों की एक कतार की रोपाई करें, ऐसा करने से हेलिकोवर्पा का नियंत्रण होता है|
4. इस प्रमुख फसल में रस चूसने वाले कीटों से बचाव के लिए थायामिथोक्साम 2 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी का प्रयोग करें|
5. ट्राइकोग्रामा काइलोनिस का प्रयोग फल छेदक के नियंत्रण के लिए करें|
6. फल छेदक की निगरानी के लिए पांच फेरोमोन ट्रेप प्रति हेक्टेयर की दर से लगायें|
7. एक या दो छिड़काव 1 ग्राम प्रति लीटर की दर से बी टी का 15 दिनों के अंतराल पर करें|
8. इस प्रमुख फसल हेतु Ha NPV का छिड़काव 250 एल ई का करें|
9. आवश्यकता होने पर लैम्डा-साइहैलोथ्रिन 5 मिलीलीटर प्रति 10 लीटर पानी या इन्डोक्साकार्ब 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें|
10. रासायनिक कीटनाशकों के छिड़काव से पूर्व फलों को तोड़ लें और क्षति ग्रस्त फलों को नष्ट कर दें|
11. प्रमुख रूप से एक ही कीटनाशी का प्रयोग बार-बार न करें|
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फसल बैंगन
बैंगन भी प्रमुख सब्जियों में आता है, इस को नुकसान पहुचने वाले कीट इस प्रकार है, जैसे-
बैंगन का प्ररोह और फल छेदक- यह कीट प्रमुख रूप से बैंगन की फसल का प्रमुख शत्रु है, इसकी सुंडी बैंगन की प्रारंभिक अवस्था से लेकर फल अवस्था तक सक्रिय रहती है| बैंगन के पौधे जब 30 से 40 दिन के होते हैं, तभी से इसका प्रकोप आरंभ हो जाता है| इस अवस्था में सुंडी नई पुष्प कलियों और तने में छेद करके सुरंग बनाती हुई अंदर घुस जाती है|
जिससे ऊपर का भाग मुरझाकर लटक जाता है तथा पौधे की बढ़वार रुक जाती है| फल अवस्था में यह उनके अन्दर का गूदा खाती है और फलों का बाजार मूल्य कम हो जाता है| इस कीट की सुंडियां सफेद पीले रंग की होती हैं, जिसके शरीर पर बैंगनी रंग की धारियां होती हैं और पतंगा सफेद रंग का होता है तथा पंखों पर काले-काले धब्बे होते हैं|
बैंगन का धब्बेदार पत्ती भुंग ( एपीलेकना या हड्डा शृंग)- यह भूरे रंग का अर्धगोल आकृति में होता है, इसके शरीर के उपरी भाग में 6, 12 या 28 काली बिंदियां पाई जाती हैं| वयस्क शृंग काफी तेजी से उड़ते हैं, इस कीट के वयस्क और शिशु दोनों ही पत्तियों में छेद बनाकर खाते हैं, जिससे शिरायें ही शेष रह जाती हैं। इससे ग्रसित पौधे सूखकर मर जाते हैं|
फुदका- यह कीट प्रमुख रूप से पत्तियों तथा कोमल टहनियों का रस चूसता है| यह आकार में छोटा और हरे रंग का होता है| इसके प्रौढ़ एवं शिशु दोनों ही फसल को नष्ट करते हैं| इस कीट के प्रभाव से पत्तियां ऊपर मुड़ जाती हैं| अधिक प्रभाव से पत्तियां पीली या भूरी हो जाती हैं|
नियंत्रण-
1. प्रमुख रूप से एक ही खेत में लगातार बैंगन की फसल को नहीं लेना चाहिए|
2. अपने क्षेत्र के लिए प्रमुख अनुमोदित जातियों के बीज उगाएं|
3. एपीलेकना या हड्डा भृग के अण्डों और शिशु को एकत्रित करके नष्ट कर दें|
4. फल छेदक की निगरानी के लिए फेरोमोन ट्रैप 5 प्रति हेक्टेयर लगायें|
5. मकड़ी और परभक्षी कीटों के विकास एवं गुणन के लिए मुख्य फसल के बीच-बीच में और चारों तरफ बेबी कॉर्न या ग्वार लगायें जो बर्ड पर्च का भी कार्य करती हैं|
6. इस प्रमुख फसल हेतु फल छेदक द्वारा क्षतिग्रस्त प्ररोहों को तोड़कर नष्ट कर दें|
7. रस चूसने वाले कीटों के लिए थायामिथोक्साम 2 ग्राम प्रति 10 लीटर का छिड़काव करें|
8. फल छेदक के नियंत्रण के लिए ट्राइकोग्रामा ब्रांसेलिअनसिस 1 लाख प्रति हेक्टेयर का उपयोग करें|
9. आवश्यकतानुसार फल छेदक के नियंत्रण के लिए साइपरमेथ्रिन 10 ई सी 5 मिलीलीटर प्रति 10 लीटर या लैम्डा-साइहैलोथ्रिन 5 मिलीलीटर 10 लीटर या इमामेक्टिन 2 ग्राम प्रति 10 लीटर या इकोनीम (10000 पीपीएम) 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का दो-तीन बार छिड़काव करें।
10. एक ही कीटनाशक का प्रयोग लगातार न करें|
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फसल भिण्डी
भिण्डी का प्ररोह एवं फल छेदक- इसकी चित्तीदार सुंडी होती है, अधिक नमी और उच्च तापमान पर इसका प्रकोप बढ़ जाता है| इसकी सुंडी तनों को छेदकर अन्दर घुस जाती है तथा पौधे का शीर्ष भाग सूख जाता है| फल लगने पर उसमें छेद बनाकर प्रमुख रूप से अंदर की गूदा खाती है व ग्रसित फल मुड़ जाते हैं, इसके बाद भिण्डी खाने योग्य नहीं रहती है| पूर्ण विकसित सुंडी का सिर काला और शरीर पर छोटे-छोटे बाल होते हैं|
भिण्डी का फुदका या तेला ( एमरेस्का बिगुटुला)- प्रमुख रूप से इसके शिशु और वयस्क दोनों ही हानिकारक होते हैं, ये पौधे की पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं| इससे ग्रसित पत्तियां पीली पड़ जाती हैं तथा अधिक प्रकोप होने पर मुरझाकर सूख जाती हैं, बदली के मौसम में इसका प्रकोप बढ़ जाता है| वयस्क कीट 2 से 3 मिलीमीटर लम्बे हरे रंग के होते हैं और ये हमेशा तिरछे चलते हैं|
सफेद मक्खी ( बेमैसिया टेबैकी)- यह सफेद रंग की छोटी मक्खी होती है और पत्तियों का रस चूसती हैं| यह भिण्डी में ‘येलो वेन मोजैक वायरस’ फैलाती हैं, जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं| इस बीमारी से पैदावार में काफी कमी आ जाती है एवं फल खाने योग्य नहीं रह जाता है|
माइट- यह बहुत ही सूक्ष्म लाल रंग के होते हैं, इनके द्वारा फसल की परिपक्वता वाली स्थिति में ज्यादा हानि होती है| यह पौधों की पत्तियों तथा तनों के ऊपर जाला सा बनाकर उन्हें कमजोर कर देते हैं| इनके प्रभाव से पत्तियां टेढ़ी पड़ जाती हैं व उन पर धब्बे पड़ जाते हैं|
नियंत्रण-
1. अपने क्षेत्र के लिए प्रमुख अनुमोदित तथा प्रमाणित जातियों के बीज ही प्रयोग में लाएं|
2. अगर संभव हो तो विषाणु प्रतिरोधी किस्में ही प्रयोग में लाएं एवं रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें|
3. मकड़ी और परभक्षी कीटों के विकास तथा गुणन के लिए मुख्य फसल के बीच-बीच में और चारों तरफ बेबीकॉर्न लगायें जो बर्ड पर्च का भी कार्य करती है|
4. रस चूसने वाले कीटों से बचाव के लिए बीजों को इमीडाक्लोप्रिड या थायामिथोक्साम द्वारा 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करें|
5. इस प्रमुख फसल के फल छेदक की निगरानी के लिए 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर लगायें|
6. फल छेदक के नियंत्रण के लिए ट्राइकोग्रामा काइलोनिस एक लाख प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें|
7. आवश्यकतानुसार 35 दिन पुरानी फसल पर इमीडाक्लोप्रिड 2 मिलीलीटर प्रति 10 लीटर पानी का छिड़काव रस चूसने वाले कीटों के लिए तथा 15 दिन के अंतराल पर साइपरमेथ्रिन 5 मिलीलीटर प्रति 10 लीटर पानी या लैम्डा-साइहैलोथ्रिन 5 मिलीलीटर प्रति10 लीटर या स्पाइनोसैड 2 मिलीलीटर प्रति 10 लीटर पानी का 1 से 2 बार छिड़काव फल छेदक के लिए करें|
8. इस प्रमुख फसल में कीटनाशी छिड़कने से पहले इसके फलों को तोड़ लें|
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फसल मिर्च
थ्रिप्स ( स्किथ्रिप्स डार्सेलिस)- प्रमुख रूप से इसके शिशु और वयस्क दोनों ही हानि पहुंचाते हैं, शिशु तथा वयस्क दोनों पत्तियों के हरे भाग को खरोंच कर खाते हैं, जिससे पत्तियों पर धब्बे पड़ जाते हैं| इतना ही नहीं यह फूल, कोमल तनों का रस भी चूसते हैं| परिणाम स्वरूप पत्तियां, फल, फूल और कलियां सिकुड़ जाती हैं| इसके अधिक प्रभाव से पौधों की बढ़वार रुक जाती है| इनके प्रभाव से विषाणु बीमारी भी मिर्च में फैलती है| थ्रिप्स का प्रभाव ऐसे खेतों में अधिक होता है, जहां खेत सूखे होते हैं| इस कीट का प्रकोप सितम्बर से अक्तूबर तक अधिक रहता है|
नियंत्रण- फिप्रोनिल 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के छिड़काव से अच्छे परिणाम मिले हैं|
माहू (एफिस गौसीपाई)- यह पंखदार और पंखविहीन दोनों ही प्रकार के होते हैं| पूर्ण विकसित माहू लगभग 1.75 से 1.90 मिलीमीटर लंबा होता है तथा पंख की फैली अवस्था में 3.25 मिलीमीटर लंबा होता है| पंखदार माहू के अंदर में धारियां भी पाई जाती हैं| यह पत्तियों, कोमल तनों में हजारों की संख्या में पाए जाते हैं और रस चूसकर पौधे को कमजोर कर देते हैं| इनके प्रमुख चूसने वाले मुखांग होते हैं, इनका रंग हल्का हरा, हल्का भूरा, पीलापन लिए अनेक प्रकार का होता है| कभी-कभी यह कीट पत्तियों के ऊपर भी मिलते हैं|
नियंत्रण- इनकी रोकथाम थ्रिप्स कीट की तरह करें, इसके अलावा डाइमेथोएट 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या कार्बोसल्फान 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के छिड़काव से भी अच्छे परिणाम मिले हैं|
माइट ( फायलोगोटासोनेमस लेटस)- प्रमुख रूप से इसका मिर्च पर बहुत अधिक प्रभाव होता है, इसके शिशु और वयस्क दोनों ही हानिकारक हैं, जो अपने थूक से पत्तियों पर जाला सा बुनकर हरा पदार्थ खाती रहती हैं| इन जालों में हजारों संख्या में माइट मिलती है, इनके प्रभाव से पत्तियां टेढ़ी भी पड़ जाती हैं तथा उन पर धब्बे पड़ जाते हैं, फलस्वरूप बहुत हानि होती है|
नियंत्रण- इस कीट को ओमाइट (प्रोपरगाइट) का 1.7 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के छिड़काव से नियन्त्रित किया जा सकता है|
फल छेदक- कीट की सुंडियां फलों के अन्दर घुसकर उन्हें नष्ट कर देती हैं।
प्रबंधन- फल छेदक के नियंत्रण के लिए स्पाइनोसैड (2 मिलीलीटर प्रति 10 लीटर या नोवालुरॉन 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें|
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गोभी वर्गीय सब्जियां
प्रमुख गोभी वर्गीय फसलों में प्रायः चेपा का प्रकोप अधिक रहता है, अगर इन कीटों द्वारा क्षति की पहचान कर ली जाए तो इनके नियंत्रण में आसानी होती है|
गोभी का हीरक पीठ शलभ या डायमंड बैकमॉथ (डी बी एम)- इसकी सुंडी हल्के हरे रंग की होती है तथा पूरी बढ़ने पर एक सेंटीमीटर लंबी, बीच में मोटी तथा दोनों तरफ पतली होती है| पत्तों को धीरे से हिलाने पर सुंडी नीचे की तरफ धागे जैसे पदार्थ की सहायता से लटक जाती है| प्रारंभिक अवस्था में सुंडी पत्तियों में छेद बनाकर हरित पदार्थ को खाती है और अधिक आक्रमण होने पर सुंडियां गोभी के फल को भी चट कर जाती हैं| पत्तियों पर सूडियों के मल के कारण काले फफूद की बीमारी हो जाती है|
गोभी की तितली ( पाइरिस ब्रेसिकी)- इसकी सुंडी गोभी में हर जगह पायी जाती है, इसका रंग हल्का पीला होता है, पूरी बढ़वार पर सुंडी 5 सेंटीमीटर लंबी होती है| छोटी सूंडी समूह में पायी जाती है एवं बड़ी होने पर इधर-उधर फैलकर हानि करती है| ये अधिकतर पत्तियों के बाहरी किनारों से खाना शुरू करके अंदर की ओर बढ़ती हैं| अधिक आक्रमण होने पर पत्तों की शिराएं ही बाकी रह जाती हैं|
तंबाकू की सुंडी ( स्पोडोप्टेरा लिटूरा)- इस कीट की सुंडियां काले रंग की होती हैं तथा रात में पत्तों और नई बढ़वार को खाती हैं एवं दिन में मिट्टी या पौधों के नीचे छुपी रहती हैं|
चेंपा- इस कीट के पंखहीन हल्के रंग के शिशु व प्रौढ गोभी के प्रमुख रूप से पत्तों के नीचे की ओर मिलते हैं, इस कीट के पीछे के भाग से निकले मीठे चिपचिपे पदार्थ से पत्तों पर काली फफूदी लग जाती है|
कूबड़ कीट- इसे सेमीलूपर भी कहते हैं, इसकी सुंडियां कुछ पीलापन लिए हरे रंग की होती हैं एवं चलने पर कूबड़ सा आकार बनाती हैं| सर्दियों में कई प्रकार की सब्जियों के पत्तों को खाकर इनमें गोलाकार छेद कर देती हैं|
हलूला- प्रमुख फसल के इस कीट को छेदक भी कहते हैं, यह प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों में छेद करता है और बाद में फल में भी छेद कर देता है|
नियंत्रण-
1. खेत की गहरी जुताई करें, ताकि कीट और रोग के जीवाणु पक्षियों द्वारा खा लिए जाएं या तेज धूप द्वारा नष्ट कर दिए जाएं, पौध के रोपण से पहले जड़ का इमीडाक्लोप्रिड द्वारा उपचार करें|
2. प्रमुख रूप से फसल की बढ़वार की अवस्था में नीम के अर्क (एन एस के ई) का 5 प्रतिशत घोल का दो-तीन बार छिड़काव करने पर कीटों के प्रकोप में कमी आ जाती है, यह छिड़काव दोपहर बाद करना चाहिए|
3. इस प्रमुख फसल में रस चूसने वाले कीटों से बचाव के लिए थायामिथोक्साम 2 ग्राम प्रति 10 लीटर का प्रयोग करें|
4. हीरक पीठ शलभ (डी बी एम) के नियंत्रण के लिए कार्टप 1 मिलीलीटर प्रति लीटर या बी टी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी से छिड़काव करें|
5. आवश्यकतानुसार स्पाइनोसैड 2 मिलीलीटर प्रति 10 लीटर या नोवालूरॉन 1 मिलीलीटर प्रति लीटर या क्लोरएन्ट्रानिलीप्रोल (1 मिलीलीटर प्रति 10 लीटर पानी का छिड़काव 15 दिन के अंतर पर करें|
6. एन पी वी 250 एल ई प्रति हेक्टेयर का छिड़काव फूल आने की अवस्था में तम्बाकू की सुंडियों के नियंत्रण के लिए करें|
7. सुंडियों के परजीवी कोटेशिया प्लूटेली का प्रयोग 1000 वयस्क प्रति हेक्टेयर की दर से करने पर कीटनाशकों के प्रयोग में कमी आती है|
8. प्रमुख मित्र कीटों (लेटी बर्ड बीटिल, सिर्फिड आदि) की बढ़ोत्तरी के लिए मुख्य फसल के चारों तरफ एवं बीच-बीच में बरसीम या रिजका या मेथी उगायें, इस कारण चेपा का प्रयोग भी कम हो जाता है|
9. एक ही कीटनाशक का प्रयोग बार-बार न करें।
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कद्दूवर्गीय फसलें
इन प्रमुख सब्जियों में फल मक्खी का प्रकोप अत्यधिक होता है, यह मक्खी करेला, लौकी, तौरी, कद्दू, खरबूजा, टिंडा, कुन्दरू और खीरा इत्यादि फसलों को हानि पहुंचाती है| वयस्क मादा अपने डंक द्वारा इन सब्जियों के फल में अंडे देती है तथा उनमें से लार्वा या सुंडी निकलकर फल के अंदर के गूदे को खाकर 7 से 9 दिन में पूर्णतया बड़े हो जाते हैं|
फिर ये लार्वा फलों से बाहर निकलकर नीचे छलांग लगा देते हैं एवं मिट्टी के अंदर जाकर प्यूपा बना देते हैं| 7 से 11 दिन बाद उनमें से वयस्क मक्खी निकलकर फिर से सब्जियों के अंदर अंडे देती हैं|
नियंत्रण-
यदि संभव हो तो संगठित आधार पर निम्नलिखित नीतियां अपनाई जानी चाहिए, जैसे-
1. इस प्रमुख कीट और रोग हेतु प्रतिरोधी प्रजाति का चुनाव करें|
2. प्रत्येक 4 से 5 दिन बाद संक्रमित फलों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें या प्लास्टिक के मजबूत थैलों में भरकर उनका मुंह बांध दें, इन थैलों को एक सप्ताह बाद खाली किया जा सकता है|
3. नरनाशी तकनीक का इस्तेमाल करें, इसके लिए क्यूलूर का फेरोमोन ट्रैप इस्तेमाल करें एवं दो सप्ताह पश्चात प्लाईवुड का टुकड़ा जिसमें क्यूलूर है, उसे बदल देना चाहिए|
4. प्रोटीन प्रलोभन का छिड़काव करें, यह सम्मिश्रण प्रोटीन एवं कीटनाशी से बनाया जाता है, इस मिश्रण का पूरे खेत में छिड़काव करने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि सीमित दायरे में छिड़काव पर्याप्त होता है|
5. छोटे फलों के मुरझा जाने का कारण फल मक्खी ही होती है, आवश्यकता होने पर स्पाइनोसैड 45 एस सी 2 मिलीलीटर प्रति 10 लीटर पानी का छिड़काव करें|
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