बागों के लिए हानिकारक है पाला, आज भारत फलोत्पादन में विश्व में दूसरे स्थान पर है, परन्तु देश में अधिकतर फलों की उत्पादकता बहुत ही कम है| कम उत्पादकता के कई कारण हैं| इन्हीं कारणों में से एक है, उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में पाले का पड़ना| यह बागों में फलों का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने में एक प्रमुख बाधा है|
इन क्षेत्रों में अधिकांश उपोष्ण जलवायु वाले फल जैसे आम, पपीता, केला, अमरूद, नींबू वर्गीय फल, लीची और बेर इत्यादि मुख्य रूप से उगाए जाते हैं एवं पाला लगभग इन सभी फलों को प्रभावित करता है| शुष्क क्षेत्रीय फलों में आंवले के बागों पर पाले का प्रभाव सर्वाधिक पड़ता है| इसकी वजह से आंवले का क्षेत्रीय प्रसार नहीं हो रहा है|
पिछले साल पाला सबसे ज्यादा लम्बे समय के लिए चलता रहा, यह दिसम्बर से लेकर लगभग 14 फरवरी तक देखा गया| यह अब तक का सबसे लम्बा समय था, जिससे भारत के उत्तरी क्षेत्रों जैसे- हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश एवं अन्य आदि राज्य में आम की फसल बहुत प्रभावित हुई| शुष्क क्षेत्र के बागों में इसके परिणाम अधिक घातक रहें है|
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पाला क्या है?
जब आसमान साफ हो, हवा न चल रही हो एवं तापमान गिरकर 0.5 डिग्री सेल्सियस के लगभग हो जाए, तब पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है, चूंकि भूमि से गर्मी का विकिरण (निकलना ) होता है| तापमान गिर जाने से भूमि से अधिक गर्मी निकल जाती है तथा भूमि के समीप वायुमण्डल का तापमान 0.5 डिग्री सेल्सियस या इससे नीचे चला जाता है, ऐसी अवस्था में ओस की बूंदें जम जाती हैं, इसी अवस्था को पाला कहते हैं|
पाले के प्रकार
1. काला पाला
2. सफेद पाला
काला पाला- उस अवस्था को कहते हैं, जब भूमि के समीप हवा का तापमान बिना पानी जमे 0.5 डिग्री सेल्सियस से कम हो जाए| वायुमण्डल में नमी इतनी कम हो जाती है, कि ओस का बनना रुक जाता है, जो पानी के जमने को रोकता है|
सफेद पाला (कोहरा)- सफेद पाले में वायुमण्डल का तापमान 0.5 डिग्री सेल्सियस से कम हो जाता है और इसके साथ वायुमण्डल में नमी अधिक होने के कारण ओस बर्फ के रूप में बदल जाती है| कोहरे की यह अवस्था सबसे ज्यादा हानि पहुंचाती है| यह कोहरा अधिक देर तक रहे तो पौधे मर सकते हैं| अनुसंधान कार्यों से पता चला है, कि आम, पपीता एवं केले के हरे बाग (नर्सरी) 24 घण्टे के अन्दर ही नष्ट हो जाते हैं|
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बचाने के उपाय
बागों के चारों ओर धुआं करना- ग्रामीण क्षेत्र में पुआल, सूखा गोबर, खरपतवार, सूखी पत्ती, कटाई -छंटाई से प्राप्त लकड़ी इत्यादि पर्याप्त मात्रा में पड़े रहते हैं| इनका प्रयोग धुआं करने के लिए किया जा सकता है, जिस रात पाला पड़ने की संभावना नजर आए तो शाम को बागों के बीचों-बीच में उपरोक्त पदार्थ इकट्ठा करके धुआं कर देना चाहिए| जिससे पास-पड़ोस के वायुमण्डल का तापमान बढ़ जाता है एवं पाले से नुकसान नहीं होता है|
सिंचाई- जाड़े के दिनों में पाले की संभावना को देखते हुए 10 से 12 दिन के अंतराल पर बागों की सिंचाई करते रहना चाहिए| जिससे बागों का तापमान तो बढ़ता ही है, पौधे की ऊतकीय कोशिकाओं में पर्याप्त जल होने से तापमान का संतुलन बना रहता है|
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