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बीटी कपास (कॉटन) की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल एवं पैदावार

Author by Bhupender Leave a Comment

बीटी कपास

बीटी कपास (कॉटन) की खेती, कपास रेशे वाली फसल है, यह कपड़े तैयार करने का नैसर्गिक रेशा है| हमारे देश में कपास की खेती सिंचित और असिंचित दोनों प्रकार के क्षेत्रों में की जाती है| पहले हमारे किसान भाई नरमा कपास की खेती करते थे, परन्तु इनकी पैदावार कम होने के कारण बाद में संकर बीज का उपयोग होने लगा|

यह भी पढ़ें- देसी कपास की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल एवं पैदावार

कुछ समय बाद संकर कपास मे इल्लियों का आक्रमण बहुत ज्यादा बढ़ गया| इस समस्या को देखते हुए वैज्ञानिकों द्वारा संकर कपास मे बीटी नामक जीन का समावेष किया गया, जिसके फलस्वरूप इल्लियों का आक्रमण होना बंद हो गया| आजकल किसानों के बीच बीटी कपास (कॉटन) की खेती बहुत लोकप्रिय है|

बीटी कपास (कॉटन) की खेती की अधिक पैदावार लेने के लिए किसानों को उसको सही समय पर बोने, अपने क्षेत्र की प्रचलित किस्म चुनने, उपयुक्त खाद एवं पानी देने तथा समय पर पौध संरक्षण उपाय अपनाने की ओर विशेष ध्यान देना चाहिये| इस लेख में बीटी कपास (कॉटन) की खेती कैसे करें और इसकी किस्में, देखभाल एवं पैदावार की जानकारी का उल्लेख है| कपास की खेती की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कपास की खेती कैसे करें

बीटी कपास (कॉटन) हेतु भूमि

बीटी कपास (कॉटन) की खेती के लिए मध्यम से भारी बलुई दोमट एवं गहरी काली भूमि जिसमें पर्याप्त जीवांश हो व पानी निकास की व्यवस्था हो, कपास के लिए अच्छी होती है|

यह भी पढ़ें- नरमा (अमेरिकन) कपास की खेती कैसे करें, जानिए उपयोगी एवं आधुनिक तकनीक

बीटी कपास (कॉटन) किस्में

किसान भाई आपने क्षेत्र की बीटी कपास (कॉटन) की प्रचलित किस्में ही उगाएं कुछ कम्पनियों द्वारा अनुमोदित प्रचलित किस्में इस प्रकार है, जैसे- बायोसीड 6588 बीजी- II, बायोसीड बंटी बीजी- II, आर सी एच 650 बीजी- II, एम आर सी एच- 6304 बीजी- I, एम आर सी एच- 6025, आर सी एच- 314 बीजी- I, आर सी एच – 134 बीजी- I, जे के सी एच- 1947, एम आर सी- 7017 बीजी- II, तुलसी- 4 बी जी, रासी- 314 और मरू बीटी संकर एम आर सी- 7017 आदि| किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- बीटी कॉटन (कपास) की उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं एवं पैदावार

बीज एवं बुवाई

बीज दर- बीटी कपास की बीजदर 4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखें|

बुआई की विधि- बीटी कपास की बुआई बीज रोपकर (डिबलिंग)108 सेंटीमीटर कतार से कतार और पौधे से पौधे 60 सेंटीमीटर की दूरी पर करें|

बीटी कपास के खेत की परिधि पर उसी किस्म की नॉन बीटी संकर (रिफ्युजिया) की बुवाई अवश्य करें, रिफ्युजिया के अन्तर्गत कुल बिजाई क्षेत्र का 20 प्रतिशत या 5 पंक्तियां, जो भी अधिक हो, रखें|

यह भी पढ़ें- कपास की जैविक खेती- लाभ, उपयोग और उत्पादन

खाद और उर्वरक

बीटी कपास के लिऐ नत्रजन की 75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा दें, एक तिहाई बुवाई के समय दें, और एक तिहाई मात्रा विरलीकरण के समय प्रथम सिंचाई के साथ एवं शेष मात्रा कलियाँ बनते समय सिंचाई के समय दें| साथ में पोटेशियम नाईट्रेट दो प्रतिशत की दर से दो पर्णीय छिड़काव चरम पुष्पन अवस्था और टिण्डे बनने की अवस्था पर करना चाहिये| फॉस्फोरस की पूरी मात्रा 35 से 40 प्रति हेक्टेयर किलोग्राम बुवाई के समय देनी चाहिए| पोटाश की मात्रा मिटटी परीक्षण के आधार पर दें| अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कपास में पोषक तत्व प्रबंधन कैसे करें, जानिए उत्तम पैदावार की विधि

सूक्ष्म तत्व सिफारिश- मिटटी जांच आधार पर जिंक तत्व की कमी निर्धारित होने पर बुवाई से पूर्व बीटी कपास में 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट को मिट्टी में मिलाकर उर कर या फैलाकर दिया जाना चाहिए| यदि बुवाई के समय जिंक सल्फेट नही दिया गया हो तो 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट के घोल का दो छिड़काव पुष्पन और टिण्डा वृद्धि अवस्था पर करने से अधिक उपज ली जा सकती है| इस उपचार से जड़ गलन रोग से भी छुटकारा मिलेगा| अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कपास में सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधन कैसे करें, जानिए अधिक पैदावार हेतु

सिंचाई प्रबंधन

बीटी कपास की प्रत्येक कतार में ड्रिप लाईन डालने की बजाय कतारों के जोड़े में ड्रिप लाईन डालने से ड्रिप लाईन का खर्च आधा होता है| इसमें पौधे से पौधे की दूरी 60 सेंटीमीटर रखते हुए जोडे में कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें और जोडे से जोडे की दूरी 120 सेंटीमीटर रखें| प्रत्येक जोडे में एक ड्रिप लाईन डाले, ड्रिप लाईन में ड्रिपर से ड्रिपर की दूरी 30 सेंटीमीटर हो और प्रत्येक ड्रिपर से पानी रिसने की दर 2 लीटर प्रति घण्टा हो|

सूखे में बिजाई करने के बाद लगातार 5 दिन तक 2 घण्टे प्रति दिन के हिसाब से ड्रिप लाईन चला दे, इससे अंकुरण अच्छा होता है| बुवाई के 15 दिन बाद बूंद-बूंद सिंचाई प्रारम्भ करें| बूंद-बूंद सिंचाई का समय संकर नरमा कपास के अनुसार ही रखे| वर्षा होने पर वर्षा की मात्रा के अनुसार सिंचाई उचित समय के लिये बन्द कर दें, पानी एक दिन के अन्तराल पर लगावें|

यह भी पढ़ें- कपास फसल की विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार प्रमुख कीट व रोग प्रकोप

कीट रोकथाम

रसचूसने वाले कीट

बीटी कपास में रस चूसने वाले कीटों व तम्बाकु की लट का प्रकोप बना रहता है| रस चूसने वाले कीटों में हरा तेला, सफेद मक्खी, थ्रिप्स, माइट एवं मीलीबग का प्रकोप अधिक होता है| हरा तेला तथा सफेद मक्खी के निम्फ व व्यस्क, पौधे की पत्तियों से रस चूसते है| ऐसी पत्तियों के किनारे पीले पड़ जाते है एवं नीचे की तरफ मुड़ जाती है, हरे तेले के कारण पत्तियों पर लाल बैंगनी रंग के जले जले से फफोले बन जाते है|

जिससे पत्तियाँ सूखकर नीचे गिर जाती हैं| सफेद मक्खी पत्तियों की निचली सतह से रस चूसती है और शहद जैसा चिपचिपा पदार्थ छोड़ती है, जिसके फलस्वरूप पत्तियों पर लाल कवक उत्पन्न हो जाता है एवं पत्तियाँ राख तथा तेलिया दिखाई देती है| रस चूसने वाले कीड़ो के रोकथाम के लिए आर्थिक स्तर के आधार पर निम्न रसायनों का छिड़काव करें, जैसे-

1. इमिडाक्लोप्रिड 200 एस एल, 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी|

2. थायोमेथोग्जाम 25 डब्ल्यू जी, 0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी|

3. एसिटामिप्रिड 20 एस पी, 0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी|

4. थायोक्लोप्रिड 240 एस सी 1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी|

5. डाईफेन्थूरान 50 डब्ल्यू पी, 2 ग्राम प्रति लीटर पानी|

यह भी पढ़ें- दीमक से विभिन्न फसलों को कैसे बचाएं, जानिए उपयोगी एवं आधुनिक उपाय

तम्बाकू की लट (स्पोडोपटेरा)

बीटी कपास (बीजी) की कुछ संकर किस्में तम्बाकू की लट के नियन्त्रण हेतु प्रभावी नही होती| यह लट सर्वभक्षी कीट है, कीट की लार्वा अवस्था अगस्त से अक्टूबर तक नुकसान पहुँचाती है| छोटी अवस्था में लार्वा काले स्लेटी भूरे रंग की बालों रहित होती है| बडी होने पर गहरे हरे रंग में बदल जाती है एवं शरीर पर काले तिकोने आकार के धब्बे बन जाते है|

कीट की तितली पत्तियों की निचली सतह पर समूह में अण्डे देती है तथा अण्डों का समूह बालों से ढका रहता है| बीटी कपास में तम्बाकू की लट के प्रभावी रोकथाम इस प्रकार कर सकते है, जैसे-

शस्य व यांत्रिक रोकथाम

1. बीटी कपास की सिफारिस की गई किस्मों को ही उगाये|

2. बीटी कपास की बुवाई 15 अप्रैल से 15 मई के अन्दर करें|

3. बीटी कपास के खेत के पास अरण्ड, मूंग, ढेंचा और भिंडी न लगाएं क्योंकि ये तम्बाकू की लट के पोशक पौधे है|

4. खेत को खरपतवारों से साफ रखें|

5. स्पोडोपटेरा कीट के अंण्डो के समूह से जो कि पत्तियों की नीचे वाली सतह पर होते हैं, उन्हें इकट्ठा करके नष्ट कर दें|

6. प्रकाश पाश का प्रयोग करें|

यह भी पढ़ें- संकर धान की खेती कैसे करें, जानिए किस्मे, देखभाल एवं पैदावार

रासायनिक नियन्त्रण

1. थायोडिकार्ब 75 एस पी 1.75 ग्राम प्रति लीटर पानी

2. क्लोरपाइरिफास 20 ई सी, 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी|

3. क्यूनालफॉस 25 ई सी, 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी|

4. एसीफेट 75 एस पी, 2 ग्राम प्रति लीटर पानी|

5. न्यूवालूरोन 10 ई सी, 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी|

6. इमामैक्टन बैनजोएट 5 एस जी, 0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी|

7. फलूबैन्डीयामाइड 480 एस सी, 0.4 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी|

मीलीबग कीट

कीट की पहचान- यह की 30 से 35 दिन के अपना जीवन काल पूरा करता है| मादा कीट अचल पंखरहित होती है, शरीर अंडाकार, चपटा, गोल तथा सफेद रूई जैसा मोमिया पदार्थ से ढका रहता है| कीट के मुखांग रस चूसने वाले होते है| नर कीट अल्पजीवी शरीर पतला हल्का गुलाबी रंग लिये होता है| अपरिपक्व मादा मीलीबग स्लेटी-गुलाबी रंग की होती है| शरीर मोम से ढका रहता है, मादा के शरीर पर 9 खण्ड पाये जाते है|

गुदा से मुखांग तक पूरे शरीर पर नालिया पाई जाती है| मादा कीट अण्डे पौधो पर एवं झिल्लीनुमा थैली में देती है एवं सफेद मोम की परत से ढके रहते है| अण्डों से निम्फ या क्राब्लर्स निकलते है, जो बहुत सक्रिय और पीले रंग के होते है| मिली बग की आमतौर दो प्रजातियाँ पाई जाती है- फीनोकोक्स सोलेनोपसिस और फिनोफोक्स सोलनी|

यह भी पढ़ें- देसी कपास की उन्नत एवं संकर किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार

कीट रोकथाम

1. फसल चक्र को अपनायें, एक ही खेत में लगातार कपास की फसल न लें|

2. मीलीबग की रोकथाम हेतु चीटियों का नियंत्रण करना जरूरी है, क्योंकि मीलीबग चीटिंयों की सहायता से एक खेत से दूसरे खेत में प्रवेश कर जाती है, इसके लिए खेत के चारों तरफ अवरोधक का घेरा बनायें एवं क्यूनालफॉस डस्ट का प्रयोग करें, भूमि में तैयार किये गये चीटियों के
बिलों को नष्ट कर दें|

3. खेत में ग्रसित फसलों के अवषेशों को इकट्ठा करके जला दें|

4. खेत में व खेत के चारों तरफ उगे खरपतवारों को नष्ट कर दें उन्हें नहरों या खालों में ना डालें, मीलीबग से ग्रसित खेत में काम में लिये गये औजारों की सफाई करके ही अन्य खेत में लेकर जायें|

5. मीलीबग कपास की छुट्टियों के अंदर रहते हैं, इसलिए झाड़ को फरवरी माह से पहले-पहले जला देना चाहिए, अवशेषों का खेत में ढेर नहीं लगाना चाहिए|

6. फसल के चारों तरफ बाजरा, मक्का एवं ज्वार की दो-दो कतार में उगाएं|

7. फसल के पास ग्वार, भिण्डी को न बोयें|
रोग व कीट नियंत्रण की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कपास में एकीकृत कीट प्रबंधन कैसे करें, जानिए उपयोगी एवं आधुनिक विधियाँ

पैदावार

उपरोक्त विधि से खेती करने पर बीटी कपास (कॉटन) की खेती से 27 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिल सकती है|

प्रिय पाठ्कों से अनुरोध है, की यदि वे उपरोक्त जानकारी से संतुष्ट है, तो अपनी प्रतिक्रिया के लिए “दैनिक जाग्रति” को Comment कर सकते है, आपकी प्रतिक्रिया का हमें इंतजार रहेगा, ये आपका अपना मंच है, लेख पसंद आने पर Share और Like जरुर करें| 

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