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बैंगन की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में देखभाल और पैदावार

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,बैंगन की जैविक खेती

बैंगन भारत की मूल फसल है| यह आलू और टमाटर के बाद भारत में तीसरी मुख्य सब्जी है| पूरे विश्व का एक चौथाई बैंगन उत्पादन क्षेत्र भारत में है| बैंगन के बहुत से उपयोग हैं, ज्यादातर इसका अचार और सब्जी के रूप में प्रयोग होता है| चूँकि इसका सीधा संबंध मानव आहर से है| तो बैंगन की जैविक खेती का अपना महत्व है| क्योंकि इसकी रसायनिक खेती में किसानों द्वारा न चाहते हुए भी कम से कम 8 से 10 कीटनाशकों के छिडकाव करने पड़ते है| जिससे बैंगन के फल विषेले हो जाते है और मानव शरीर में अनेक रोगों को जन्म देते है|

इसलिए बैंगन की जैविक खेती समय की आवश्यकता है| जिससे मानव और वातारण पर कोई दुष्प्रभाव नही होता है और फसल उत्पादन लागत भी कम होगी| बैंगन की जैविक खेती से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उचित खेती तकनीकें अपनानी बहुत महत्वपूर्ण हैं| इस लेख में बैंगन की जैविक खेती कैसे करें, उन्नत किस्मों, देखभाल और पैदावार की जानकरी का विस्तृत उल्लेख किया गया है| बैंगन की उन्नत खेती की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- बैंगन की उन्नत खेती कैसे करें

उपयुक्त जलवायु

बैंगन एक गर्म मौसम की फसल है और इसे औसतन 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान के साथ साथ लम्बे समय तक बढ़ती गर्मी वाला मौसम चाहिए| ठंड से होने वाली क्षति के प्रति अत्याधिक संवेदनशील होने की वजह से, देश के उत्तरी भागों तथा उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में दिसंबर से फरवरी माह में रात में कम तापमान होने की वजह से इसकी खेती बहुत बुरी तरह से प्रभावित हो सकती है|

यह भी पढ़ें- बैंगन की फसल में समेकित नाशीजीव प्रबंधन (आई पी एम) कैसे करें

भूमि का चयन

बैंगन की जैविक खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में विकास कर सकती है, मगर इसकी फसल के अच्छे विकास और उत्पादन के लिए उपजाऊ रेतीली दोमट मिट्टी, ढीली व भुरभुरी दोमट मिट्टी या कार्बनिक पदार्थों में धनी चिकनी दोमट मिट्टी उपयुक्त है| जिसका पी एच मान 5.5 से 6.6 के मध्यम हो| बैंगन की कुछ किस्में प्रतिकूल मिट्टी की स्थिति में अनुकूल होती हैं| इसलिए इलाके व मिट्टी के अनुसार अनुकूल किस्म का चुनाव फसल की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है|

उन्नत किस्में

जब नई किस्मों का चुनाव होता है, तब यह देखने के लिए कि आपकी परिस्थितियों में कौन सी किस्म अच्छे नतीजे देती है, कई किस्मों को जांचा जाता है| यदि पहले साल में किसी एक किस्म से अच्छे नतीजे प्राप्त नहीं होते हैं, तब अगले साल किसी दूसरी किस्म को बोया जाता है| यदि स्थानीय या उन्नत किस्मों को बोया जाता है, तो इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बीज अच्छे व अधिक फैलने वाले पौधे से प्राप्त किये गये हो, ताकि अच्छा उत्पादन मिल सके|

यदि बीज प्राप्त करने के लिए उपयुक्त तरीके का प्रयोग नहीं किया गया है तो परिणामस्वरूप मिलने वाली फसल भी अच्छी नहीं होगी| इसलिए यदि संभव हो सके तो अपने क्षेत्र की प्रचलित तथा अधिक उपज देने वाली किस्म उपयोग में लाएं और बैंगन की जैविक खेती के लिए जैविक प्रमाणित बीज का प्रयोग करें| बैंगन की कुछ प्रमुख किस्में इस प्रकार है, जैसे-

लम्बे फल- पूसा हाईब्रिड- 5, पूसा परपल लाँग, पूसा परपल क्लस्टर, पन्त सम्राट, पंजाब सदाबहार, पंजाब बरसाती, और पूसा क्रांति आदि प्रमुख है|

गोल फल- पूसा हाईब्रिड- 6, पूसा हाईब्रिड 9, पूसा परपल राउंड, पी एच- 4, पूसा अनमोल, पन्त, ऋतुराज, पूसा बिन्दु, पूसा उत्तम- 31, पूसा उपकार, पूसा अंकुर और टी- 3 आदि प्रमुख है|

संकर किस्में- अर्का नवनीत, पूसा हाइब्रिड- 5, 6, 9 और काशी संदेश आदि प्रमुख है| किस्मों की विस्तार से जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- बैंगन की संकर व उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार

यह भी पढ़ें- लौकी की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

नर्सरी और रोपण का समय

वर्ष भर में समय और विशिष्ट कृषि जलवायु क्षेत्र अनुसार बैंगन की बुवाई और प्रतिरोपण का समय अलग हो सकता है| यह 25 डिग्री सेल्सिअस तापमान पर अच्छे से उगता है, इसलिए ठंडे महीनों के दौरान पौधों को ट्रे में रख कर भीतर ही उगाना शुरू किया जा सकता है| नर्सरी और रोपण का समय इस प्रकार है, जैसे-

उत्तरी क्षेत्र- उत्तरी भारत में इसे जून से जुलाई में पतझड़-शीत ऋतु की के रूप में बोया जाता है| यदि बसंत-गर्मी की फसल चाहिए, तो रोपण नवंबर में किया जाना चाहिए|

पर्वतीय क्षेत्र- पहाड़ी इलाकों में इसे मार्च से अप्रैल माह के दौरान बोया जाता है|

अन्य क्षेत्र- देश के अन्य भागों में, इसे जून – सितम्बर में बोया जाता है|

मुख्य खेत में रोपण- प्रतिरोपण के चरण तक पहुँचने में 4 सप्ताह लग जाते हैं| लेकिन शरद ऋतु में पौध तैयार होने में 5 से 8 सप्ताह तक का समय लग जाता है|यानि की जब पौध 12 से 15 सेंटीमीटर की ऊँचाई पर पहुँच जाये और 3 से 4 पत्ते आ जाये, ये प्रतिरोपण के लिए तैयार हैं|

बीज की मात्रा- एक हेक्टेयर के लिए लगभग 400 से 450 ग्राम बीज उन्नत किस्मों का उपयुक्त है और संकर किस्मों का 250 से 275 ग्राम प्रति हेक्टेयर बीज उपयुक्त होता है|

पौधशाला (नर्सरी)

साधारणतया एक हेक्टेयर की रोपाई के लिए लगभग 40 से 50 वर्ग मीटर क्षेत्र में बीज बोया जाता है| पौधशाला के लिए भूमि का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए की भूमि सिचाई स्रोत के समीप हो तथा पानी के निकास भी पूरी व्यवस्था हो पौधशाला की भूमि रेतीली दोमट या हलकी दोमट होनी चाहिए| पौधशाला की भूमि की 4 से 5 खुदाई करके भुरभुरी कर देनी चाहिए, इसके उपरांत 15 सेंटीमीटर ऊँची व 0.75 चौड़ी और आवश्यकता अनुसार लम्बी क्यारियां बना लेनी चाहिए, दो क्यारियों के मध्य 30 सेंटीमीटर चौड़ी नाली छोडनी चाहिए, जो निकास तथा जल निकास के लिए उपयोग की जाती है| इन क्यारियों में भली-भांति सड़ी गली गोबर की खाद देनी चाहिए, बीज को बोने से पूर्व ट्राइकोडर्मा, गोमूत्र या नीम के तेल से उपचारित कर लेना चाहिए|

बीज को सदैव पंक्तियों में बोना चाहिए पंक्तियों की आपसी दुरी 6 से 7 सेंटीमीटर रखें बीज बोने के उपरांत उन्हें गोबर की खाद से एक सेंटीमीटर मोटी परत से ढक देना चाहिए और क्यारियों को सुखी घास से ढक देते है तथा हजारे से हल्की सिंचाई करते है| बीज को 1.5 सेंटीमीटर से अधिक गहरा नहीं बोना चाहिए अन्यथा अंकुरण में विलंब होगा जब अंकुरण भली-भांति हो जाए तो घास को हटा देना चाहिए| इसके बाद नियमित रूप से सिचाई तथा खरपतवार निकालते रहे कीट व रोगों से पौध को बचाने के लिए पौध संरक्षण उपाय अपनाए जाए|

यह भी पढ़ें- टमाटर की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

खेत की तैयारी

बैंगन की जैविक खेती के लिए खेत को अच्छे से तैयार करें ताकि अधिकतम उपज प्राप्त की जा सके| जो इस प्रकार से कर सकते है, जैसे-

1. प्रतिरोपण के 15 से 20 दिन पहले खेत में गोबर की खाद प्रचुर मात्रा में डालना अनुकूल होता है| अंतिम जुताई में 25 से 30 टन अच्छे से सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद डालने से उचित उर्वरता प्राप्त होती है|

2. आखिरी जुताई के समय 250 किलोग्राम प्रति एकड़ नीम खली का उपयोग करें|

3. 2.5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा विरडी को अच्छे से सड़ी गली गोबर खाद के साथ मिलाकर 7 से 10 दिन छावं में रख दें तथा उसमें उचित नमी बनाये रखें और आखरी जुताई के समय भी में बुरककर अच्छे से मिलाएं|

पौधरोपण

पौधशाला से पौध निकालने के 1 से 2 दिन पहले हलकी सिचाई कर दी जाती है| ताकि पौध सुगमता से उखड आए तथा जड़ो को कम से कम क्षति हो पौध की रोपाई तैयार खेत में पंक्तियों में शाम के समय करनी चाहिए लम्बे बैंगन की किस्मों को पंक्तियों में 60 सेंटीमीटर और पौधों की आपसी दुरी 60 सेंटीमीटर रखें गोल बैंगन की किस्मों को पंक्तियों में 75 सेंटीमीटर और पौधों को 60 सेंटीमीटर की दुरी पर रोपें| पौध रोपण के तुरंत बाद हलकी सिचाई कर देनी चाहिए ताकि पौधे भली-भांति स्थापित हो जाये|

खाद की मात्रा

उच्च उर्वरता और बेहतर परिस्थितियों वाली मिट्टी बैंगन की जैविक खेती के लिए अनुकूल होती है| प्रतिरोपण से पहले खेत में गोबर की खाद या हरी खाद प्रचुर मात्रा में डालना अनुकूल होता है| अंतिम जुताई में 25 से 30 टन अच्छे से सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद डालने से उचित उर्वरता प्राप्त होती है| खड़ी फसल में जीवामृत के 4 से 5 छिड़काव करें और रोपण के समय पौध का जैव उर्वरक से उपचार करें|

खरपतवार नियंत्रण

बैंगन की जैविक खेती के पौधे रोपने के 50 से 60 दिन तक खेत को खरपतवार मुक्त रखना आवश्यक है| इसके लिए 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई करने की आवश्यकता होती है| वर्षाकालीन फसल में 3 से 4 बार निराई-गुड़ाई करने चाहिए और यदि निराई गुड़ाई का खरपतवार कीट और रोग मुक्त है, तो उसका पलावर में प्रयोग किया जा सकता है| जिससे खरपतवार भी कम उगेगा और नमी संरक्षण भी होगा अन्यथा पलावर के लिए सुखी खास फूस का प्रयोग करें|

यह भी पढ़ें- प्याज की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में देखभाल और पैदावार

कीट एवं रोग रोकथाम

बैंगन की फसल में सबसे अधिक नुकसान कीट और रोगों से होता है| जिससे किसानों को इसकी फसल से उनकी इच्छित उपज नही मिल पाती है| बैंगन के कीटों में टहनी व फल छिद्रक, पत्ते खाने वाले झींगुर, लीफ हापर, लीफ रोलर, लाल घुन मकड़ी, सफेद खटमल, जालीदार पंख वाला खटमल और जड़ की गांठ का गोल कीट आदि प्रमुख है और रोगों में पानी से तर हो जाना, फोमोप्सिस हानि, लीफ स्पॉट, पत्तों के अल्टरनारिया धब्बे, फल सडन, वर्टीसीलिअम विल्ट, बैक्टीरियल विल्ट, बैंगन में लिटिल लीफ और मोजेक आदि प्रमुख है| बैंगन की जैविक खेती में इन सब कीटों और रोगों की रोकथाम के लिए यहाँ पढ़ें- बैंगन की फसल में जैविक विधि से कीट एवं रोग नियंत्रण कैसे करें

फलों की तुड़ाई

बैंगन के फलों की तुड़ाई तब की जाती है, जब यह एक उचित आकार तक पहुँच जाते है, बढ़िया रंग पा लेते है, कोमलता होती है और स्वच्छ गुणों सहित होते है| बाजार में अधिक मूल्य पाने के लिए, बैंगन का चमकदार तथा आकर्षक होना बहुत आवश्यक है| सब्जी की कटाई उसकी शाखा से जुडी नोक को काट कर की जाती है| कुछ किस्मों को हाथ द्वारा तोडा जाता है और अन्य को तोड़ने के लिए चाकू की आवश्यकता होती है| इन्हें तोड़ते समय ध्यान रखना चाहिए क्यूंकि कई किस्मों पर डंठल के साथ नोक होती है और बैंगन की फसल को लगातार उगाये रखा जा सकता है यदि वो रोग और कीट मुक्त है तो इसलिए जैसे ही फल तैयार हो जाते हैं, कटाई की जा सकती है|

इसलिए इसे हर कुछ दिनों में पूर्वाभ्यास की आवश्यकता होती है| छोटे फलों को बड़े फसलों की तुलना में अधिक बार काटा जाता है| यह चुनाव आपके आस पास के क्षेत्रों में खाने की जरूरतों पर निर्भर करता है| फलों की तुड़ाई दोपहर में करनी चाहिए और धूप से बचाव करने के लिए किसी छायांकित क्षेत्र ले जाना चाहिए| फलों की ताजगी को बरकरार रखने के लिए उन पर पानी का छिडकाव करना चाहिए|

पैदावार

बैंगन की जैविक खेती से पैदावार मृदा की उर्वरा शक्ति, किस्म तथा उसकी देखभाल पर निर्भर करती है| परन्तु उपरोक्त तकनीक से बैंगन की जैविक खेती करने पर आमतौर पर 250 से 400 क्विंटल पैदावार सामान्य किस्मों से और 650 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक संकर किस्मों से मिल जाती है|

भंडारण- फलों के अचल जीवन को लंबा करने के लिए अनुकूल भंडारण स्थितियाँ बहुत महत्वपूर्ण हैं| बैंगन का भंडारण सामान्य तापमान पर नहीं किया जा सकता| इसलिए इन्हें 10 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर 92 प्रतिशत आपेक्षिक नमी के साथ खुले डिब्बों की अपेक्षा छेद वाले पॉलीथीन में भंडारित किया जाता है| इन सभी स्थितियों का पालन यदि सही ढंग से किया जाये तो बैंगन की जैविक खेती से प्राप्त फलों का भंडारण काल 3 से 4 सप्ताह तक हो सकता है|

यह भी पढ़ें- आलू की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

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