रबी की दलहनी फसलों में मटर का प्रमुख स्थान है| अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए मटर की उन्नत किस्मों को ही उपयोग में लाना चाहिए| इसके साथ-साथ अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिकतम पैदावार देने वाली तथा विकार रोधी किस्म का चयन करना चाहिए| ताकि उत्पादकों को अधिकतम उत्पादन प्राप्त हो सके| इस लेख में मटर की उन्नत किस्में कौन-कौन सी है, उनकी विशेषताएं क्या है और उनसे किसानों को कितनी पैदावार मिल सकती है, की जानकारी का विस्तार से उल्लेख है| मटर की उन्नत खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मटर की उन्नत खेती कैसे करें
मटर की किस्में
महाराष्ट्र- जे पी- 885, अंबिका, इंद्रा (के पी एम आर- 400), आदर्श (आई पी एफ- 99-25) और आई पी एफ डी-10-12 आदि प्रमुख है|
गुजरात- जे पी- 885, आई पी एफ डी- 10-12, इन्द्रा और प्रकाश आदि प्रमुख है|
पंजाब- जय (के पी एम आर- 522), पंत मटर- 42, के एफ पी- 103, उत्तरा (एच एफ पी- 8909) और अमन (आई पी एफ- 5-19) आदि प्रमुख है|
हरियाणा- उत्तरा (एच एफ पी- 8909), डी डी आर- 27 (पूसा पन्ना), हरीयाल (एच एफ पी- 9907 बी), अलंकार, जयंती (एच एफ पी- 8712) और आई पी एफ- 5-19 आदि प्रमुख है|
राजस्थान- डी एम आर- 7 (अलंकार) और पंत मटर- 42 आदि प्रमुख है|
मध्यप्रदेश- प्रकाश (आई पी एफ डी-1-10) और विकास (आई पी एफ डी- 99-13) आदि प्रमुख है|
उत्तरप्रदेश- स्वाती (के पी एफ डी- 24), मालवीय मटर (एच यू डी पी- 15), विकास, सपना, (के पी एम आर- 1441) और आई पी एफ- 4-9 आदि प्रमुख है|
बिहार- डी डी आर- 23 (पूसा प्रभात) और वी एल मटर 42 आदि प्रमुख है|
छत्तीसगढ़- शुभ्रा (आई एम- 9101), विकास (आई पी एफ डी- 99-13), पारस और प्रकाश आदि प्रमुख है|
यहाँ ध्यान देने का विषय यह है, की जिन राज्यों के नाम से यहाँ किस्मे अंकित नही है वे अपने नजदीकी राज्य की किस्मों से चयन कर सकते है और सामान्यतः यह देखा गया है कि अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन की पैदावार व स्थानी किस्मों की उपज में लगभग 24 प्रतिशत का अन्तर है| यह अन्तर कम करने के लिये अनुसंधान संस्थानों व कृषि विज्ञान केन्द्र की अनुशंसा के अनुसार उन्नत कृषि तकनीक को अपनाना चाहिए|
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मटर किस्मों की विशेषताएं और पैदावार
पंत मटर 155- यह किस्म पंत मटर 13 x डी डी आर- 27 के संकरण से वंशावली विधि द्वारा विकसित की गयी है| इसकी औसत उपज 1731 किलोग्राम प्रति एकड़ पायी गई| जोकि मानक प्रजाति पंत मटर- 14 से 10.17 प्रतिशत एवं पंत मटर- 42 से 11.67 प्रतिशत अधिक थी| किसानों के खेतों में किये गये परीक्षणों में भी इसकी औसत उपज 2370 किलोग्राम प्रति एकड़ पायी गई| इस किस्म के 100 दानों का वजन लगभग 20 ग्राम है| यह प्रजाति मटर की प्रमुख बीमारी चूर्णी फफूदी एवं गेरुई रोगों के लिए और फली छेदक कीट के लिए अवरोधी है| इसकी परिपक्वता अवधि लगभग 125 से 130 दिन है|
पंत मटर 157- यह किस्म एफ सी- 1 x पंत मटर- 11 के संकरण से वंशावली विधि द्वारा विकसित की गयी है| इसकी औसत उपज 1695 किलोग्राम प्रति एकड़ पायी गई| जोकि मानक किस्मों से अधिक थी| किसानों के खेतों में किये गये परीक्षणों में भी इसकी औसत पैदावार 2290 किलोग्राम प्रति एकड़ पायी गई| इस किस्म के 100 दानों का वजन लगभग 19 ग्राम है| यह प्रजाति मटर की प्रमुख बीमारी चूर्णी फफूदी और गेरुई रोगों के लिए तथा फली छेदक कीट के लिए अवरोधी है| इसकी परिपक्वता अवधि 125 से 130 दिन है|
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वी एल अगेती मटर 7- यह अगेती किस्म की बौनी प्रजाति है| पौधों की लम्बाई 65 से 75 सेंटीमीटर और फूलों का रंग सफेद होता है| यह किस्म शीघ्र तैयार होने के कारण चूर्णिल आसिता रोग से बचाव करने में सक्षम है| इसकी औसत पैदावार 70 से 80 कुन्तल प्रति हैक्टेयर पाई गई है| फलियों की औसत लम्बाई 8 सेंटीमीटर, हल्की मुड़ी हुई, 7 से 8 दाने युक्त, भरी हुई और रंग हल्का हरा होता है| बीज सिकुड़े हुए हल्के हरे रंग के होते हैं| इस किस्म की अंकुरण क्षमता ठण्ड व कम नमी में भी काफी अच्छी है|
विवेक मटर 8- यह मध्यम समय में तैयार होने वाली बौनी किस्म है| इसकी फलियाँ भरी हुई, चिकनी, सीधी, मध्यम आकार की 6 से 7.5 सेंटीमीटर और हल्के ‘हरे रंग की होती है| यह किस्म चूर्णिल आसिता रोग के प्रति सहनशील है| इसके बीज सिकुड़े हुए हरे रंग के होते हैं| इसकी औसत पैदावार 70 से 75 कुन्तल प्रति हैक्टेयर पाई गई है|
विवेक मटर 9- यह मध्यम समय में तैयार होने वाली बौनी किस्म है| इसकी फलियाँ गहरे हरे रंग की थोड़ी मुड़ी हुई, दाने भरे हुए एवं मीठे होते हैं| यह किस्म भी विवेक मटर 8 की भांति चूर्णिल आसिता रोग के प्रति सहनशील है| इसके बीज हल्के हरे रंग के व कम सिकुड़े होते हैं| इसकी औसत पैदावार 70 से 80 कुन्तल प्रति हैक्टेयर पाई गई है|
अर्किल- यह एक अगेती व बौनी किस्म है| इसकी पौध की ऊँचाई 50 से 60 सेंटीमीटर तक होती है| फलियों की लम्बाई 8 से 10 सेंटीमीटर, मुड़ी हुई व गहरे हरे रंग की होती है| इसके बीच दाने सिकुड़े हुए तथा हल्के हरे रंग के होते हैं| इसकी पैदावार 65 से 70 कुन्तल प्रति हैक्टेयर पाई गई है| इस प्रजाति की अंकुरण क्षमता ठण्ड और कम नमी से प्रभावित होती है|
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आजाद मटर 1- यह मध्यम समय में तैयार होने वाली किस्म है| फलियाँ 8 से 10 सेंटीमीटर लम्बी, हल्की मुड़ी हुई और गहरे हरे रंग की होती हैं| बीज सिकुड़े हुए हल्के हरे रंग के होते हैं| इसकी औसत पैदावार 70 से 75 कुन्तल प्रति हैक्टेयर पाई गई है|
काशी नन्दिनी (वी आर पी- 5)- यह अगेती किस्म है| इसके पौधे छोटे लगभग 42 से 43 सेंटीमीटर तथा हरे होते हैं| बुआई के लगभग 35 दिन बाद 7 से 8 गांठ से फूल आने लगते हैं| इसकी फलियां हल्की मुड़ी होती हैं और उनमें 7 से 8 बीज होते हैं| पहली तुडाई बुआई के लगभग औसतन 55 दिन बाद की जा सकती है|
काशी उदय (वी आर पी- 6)- यह अगेती किस्म है| इसके पौधे मध्यम ऊँचाई 55 से 65 सेंटीमीटर के होते हैं| बुआई के 34 से 39 दिन बाद 8 से 9 गॉठ पर फूल आने लगते हैं| इसकी फलियां 8 से 9 सेंटीमीटर लम्बी तथा छोर पर मुड़ी होती हैं| जिनमें लगभग 8 बीज होते हैं| पहली तुडाई बुआई के 60 से 65 दिन बाद की जा सकती है| औसत पैदावार 110 से 130 कुन्तल प्रति हेक्टेयर होती है|
काशी मुक्ति (वी आर पी- 32)- यह अगेती किस्म है| इसके पौधे मध्यम ऊँचाई 50 से 60 सेंटीमीटर के होते हैं| बुआई के 33 से 35 दिन बाद 7 से 8 गांठ पर फल आने लगते हैं| इसकी फलियाँ 7 से 9 सेंटीमीटर लम्बी तथा सीधी होती हैं| जिनमें 8 से 10 बीज होते हैं, पहली तुडाई दुआई के 56 से 60 दिन बाद की जा सकती है| औसत पैदावार 90 से 110 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|
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आजाद मटर 3- यह अगेती किस्म है| इसके पौधे मध्यम ऊँचाई वाले, फलियाँ वाले, फलियाँ बड़ी, सुडोल और हरे रंग की होती है| बुआई के लगभग 70 दिन बाद पहली तुडाई होती है| इसकी औसत पैदावार लगभग 80 कुन्तल प्रति हेक्टेयर है|
आजाद मटर 1- यह मध्यम अवधि वाली किस्म है| इसके पौधे मध्यम ऊँचाई वाले होते हैं| पौधों में फलियाँ जोड़ो में लगती हैं| बुआई के लगभग 75 से 80 देन बाद फलियॉ तुडाई लायक हो जाती हैं| इसकी औसत पैदावार लगभग 75 से 80 कुन्तल प्रति हेक्टेयर है|
काशी शक्ति (वी आर पी 7)- इसके पौधे मध्यम ऊँचाई के लगभग 55 सेंटीमीटर होते हैं| बुआई के लगभग 55 दिन बाद 11 से 12 गांठ पर फूल आने लगते हैं| इसकी फलियाँ लगभग 10 सेंटीमीटर लम्बी तथा छोर पर हल्की सी मुड़ी होती हैं| जिनमें लगभग 8 बीज होते हैं| पहली तुडाई बुआई के 75 से 78 दिन बाद की जा सकती है|औसत पैदावार 130 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|
बोनविले- इस मटर की किस्म का बीज झुर्री दार होता है| यह मध्यम उचाई की सीधे उगने वाली किस्म है| यह मध्यम समय में तैयार होने वाली, फलियाँ बोवाई के 80 से 85 दिन बाद तोड़ने योग्य हो जाती है| फूल की शाखा पर दो फलियाँ लगती है, इसकी औसत पैदावार 125 से 140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त होती है|
अर्ली बैजर- यह मटर की अगेती किस्म है| बुवाई के 65 से 70 दिन बाद इसकी फलियाँ तोड़ने के लिए तैयार हो जाती है| फलियाँ हलके हरे रंग की लगभग 7 सेंटीमीटर लम्बी और मोटी होती है| दाने आकार में बड़े, मीठे व झुर्रीदार होते है| इसकी औसत पैदावार 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|
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अर्ली दिसंबर- यह मटर की किस्म टा- 19 व अर्ली बैजर के संस्करण से तैयार की गई है| यह अगेती किस्म है, जो 55 से 65 दिन में फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है| फलियों की लम्बाई 6 से 7 सेंटीमीटर व रंग गहरा हरा होता है| इसकी औसत पैदावार 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो जाती है|
असौजी- यह मटर की एक अगेती बौनी किस्म है| इसकी फलियाँ बोवाई के 55 से 65 दिन बाद तोड़ने योग्य हो जाती है| इसकी फलियाँ गहरे हरे रंग की 5 से 6 सेंटीमीटर लम्बी व दोनों सिरे से नुकीली, लम्बी होती है| प्रत्येक फली में 5 से 6 दाने होते है| इसकी औसत पैदावार 90 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|
जवाहर मटर- इस मटर की किस्म की फलियाँ बुवाई से 65 से 75 दिन बाद तोड़ने योग्य हो जाती है| यह मध्यम किस्म है, फलियों की औसत लम्बाई 7 से 8 होती है और प्रत्येक फली में 5 से 8 बीज होते है| फलियों में दाने ठोस रूप में भरे होते है|इसकी औसत पैदावार 125 से 140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|
टा 19- यह मटर की मध्यम किस्म है| इसकी फलियाँ 75 दिन में तोड़ने लायक हो जाती है| फसल अवधि 120 दिन है, पौधों का रंग गहरा हरा फूल सफ़ेद व बीज झुर्रीदार व हल्का हरापन लिए हुए सफ़ेद होते है| इसकी पैदावार 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|
टा 59- यह भी मटर की मध्यम अवधि की किस्म है| पौधे हलके हरे , सफ़ेद बीज झुर्रेदार होते है| हरी फलियाँ 75 दिन में तोड़ने लायक हो जाती है| प्रति हेक्टेयर 80 से 90 क्विंटल प्राप्त हो जाती है|
एन पी 29- यह मटर की अगेती किस्म है| फलियाँ 75 से 85 दिन में तोड़ने लायक हो जाती है| इसकी फसल अवधि 100 से 110 दिन है, बीज झुर्रीदार होते है| इसकी औसत पैदावार 100 से 120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
ध्यान दें- उपरोक्त किस्मों की पैदावार हरी फलियों की है|
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