मधुमक्खी ही केवल कीट प्रजाति का जीव है, जो मनुष्यों के लिए खाद्य पदार्थ (शहद) उत्पादित कर मानव सेवा में लगी हुई जो मित्र कीट के रूप में पहचानी जाती है| मधुमक्खी पालन से शहद के साथ-साथ फसलों में भी परागण की क्रिया तेज होने से 25 प्रतिशत से अधिक कृषि, उद्यानिकी व वानिकी फसलों की उपज बढ़ती है| वर्तमान में आबादी की बढ़ोतरी और सीमित संसाधनों के कारण रोजगार की समस्या दिन प्रतिदिन विकराल रूप धारण करती जा रही है|
कृषि, जोतों के निरन्तर बंटबारे के कारण एक मात्र कृषि कार्य के भरोसे पूरे परिवार का पालनपोषण नहीं हो सकता है, ऐसी स्थिति में मधुमक्खी पालन व्यवसाय एक ऐसी कृषि आधारित गतिविधि है, जो आसानी से ग्रामीण परिवेश में शुरू की जा सकती है| मधुमक्खी पालन बेरोजगार युवकों, भूमि-हीन, अशिक्षित एवं शिक्षित परिवारों को कम लागत से अधिक लाभ देने वाला व्यवसाय ही नहीं है, अपितु इससे कृषि उत्पादन में भी वृद्धि होती है|
आज देश में इस व्यवसाय को सुनियोजित ढंग से क्रियान्वित और अनुसरण करने की अत्यन्त जरूरत है, जिससे देश में हजारों लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सकेगा| यह एक प्रभावी गरीबी उन्मूलन की व्यवसायिक गतिविधि है, जिसके माध्यम से बेरोजगार युवक एवं कृषक इससे लाभ उठाकर अपना स्वयं का मधुमक्खी पालन व्यवसाय शुरू कर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर समृद्ध कृषि, स्वस्थ, स्वच्छ और श्रेष्ठ भारत निर्माण में भागीदार बन सकेंगे|
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मधुमक्खियों की आदतों को जानकर, उनकी इच्छाओं को समझकर, उनको कम से कम कष्ट पहुंचाकर अधिक से अधिक लाभ अर्जित करने को मधुमक्खी पालन कहते हैं| सामान्य अर्थों में व्यवसाय का तात्पर्य उन सभी आर्थिक मानवीय क्रियाओं के समावेश से है, जिसमें आर्थिक लाभ के साथ सेवा, साहस एवं जोखिम के तत्व भी मौजूद होते हैं|
आधुनिक समाज में अपनाये जा रहे विभिन्न व्यवसायों और उद्योगों ने प्राकृतिक संसाधनों के असंतुलित दोहन के साथ-साथ पर्यावरण के संतुलन को भी बिगाड़ा है| ऐसे में मधुमक्खी पालन एक पर्यावरण कल्याणकारी (ईकोफ्रेन्डली) उद्योग के रूप में सामने आया है| यह व्यवसाय न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों को बढावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, अपितु विदेशों में भारतीय शहद की बढती हुई मांग को देखते हुए विदेशी मुद्रा अर्जित करने में सार्थक योगदान दे सकता है|
मधुमक्खी पालन क्यों करें
1. रोजगार और आय के साधन हेतु|
2. यह सरल और सस्ता उद्योग है|
3. कृषि, उद्यानिकी एवं वानिकी फसलों में गुणवत्ता व उपज बढाने हेतु|
4. पर्यावरण सुरक्षा एवं पारिस्थितिकी विकास हेतु|
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मधुमक्खी पालन से प्रमुख लाभ
फसल उत्पादन में वृद्धि- ऐसी फसलें जिनमें पर परागण द्वारा निषेचन होता है, शस्य, उद्यानिकी वानिकी फसलों में पर परागण की क्रिया मधुमक्खी द्वारा की जाकर औसतन 15 से 30 प्रतिशत उत्पादन में वृद्धि होती है| इस वृधि के लिए कृषक को अपने स्त्रोतों से किसी प्रकार का निवेश नहीं करना पड़ता और इसके पालन से शहद उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है|
शहद (हनी) का उत्पादन- मधुमक्खियां संग्रहित पुष्परस को परिवर्तित और परिशोधित करके अपने छत्ते को कोषों में रखती हैं, जिसे त्वरित गति से दोहन करना चाहिए| इसके शहद खण्ड के छत्ते की मधुमक्खियों को शिशु खण्ड में झाड़ देते हैं एवं शहद खण्ड का छत्ता खाली हो जाता है| इन छत्तों को शहद निष्कासन मशीन में रखकर शहद निष्कासित कर लिया जाता है|
रायल जेली का उत्पादन- रायल जेली प्रकृति का सबसे अधिकतम प्राकृतिक पौष्टिक पदार्थ है, जिसका नियमित सेवन करने पर आयु लम्बी होती है एवं पुरूषार्थ कायम रहता है|
पराग (पोलन का उत्पादन)- श्रमिक मधुमिक्खयां फूलों से पराग को लाती हैं, जिसे पराग संग्रह यंत्र द्वारा आसानीपूर्वक एकत्रित किया जाता है|
मौना विष का उत्पादन- मौना विष का उत्पादन विष संग्रह यंत्र द्वारा किया जाता है| इस विष का उपयोग गठिया, जैसी बीमारियों में दवा के रूप में किया जाता है|
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मोम (बी वैक्स) कर उत्पादन- मोम का उत्पादन मोम निष्कासन और मोम परिष्करण द्वारा किया जाता है| यह शुद्ध और प्राकृतिक उत्पादित मोम होता है, जिसका उपयोग कॉस्मेटिक सामग्री तैयार करने में किया जाता है एवं मधुमक्खी पालन के लिए मोमी आधार शीट तैयार करने में होता है|
मोना गोंद (प्रोपोलिस) का उत्पादन- श्रमिक मधुमक्खियां अपने मौन गृहों के दरारों और उनके जोड़ों को वायुरूद्ध करने के लिए पौधे से गोंद ले जाती है, जिसे खरोंच कर एकत्रित कर लेते हैं| जिसका उपयोग चर्म रोग के उपचार में किया जाता है| प्रापोलिस का उत्पादन अधिकांश एपिस मैलीफेरा प्रजाति ही करती है|
मौन वंश उत्पादन- मौन वंश वृधि करके और उसकी नर्सरी स्थापित करके एक कुटीर उद्योग के रूप में मधुमक्खी पालन को स्थापित कर सकते है|
मधुमक्खी पालन की संभावनायें
भारत का एक बड़ा भू-भाग फसलों, सब्जियों, फलोद्यानों, फूलों, जड़ी-बूटियों, वनों आदि से आच्छादित है, जो प्रतिवर्ष फल एवं बीज के साथ ही मकरन्द और पराग को धारण करते है, किन्तु उसका भरपूर सदुपयोग नहीं हो पाता है, अपितु इस बहुमूल्य उपज के अंश का दोहन न किये जाने से धूप, वर्षा और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण प्रकृति में पुनः विलीन हो जाते हैं| जिसे प्राप्त करने के लिए मधुमक्खी पालन एक मात्र उपाय है|
भारत में मधुमक्खी पालन के लिए पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, पर्वतीय और दक्षिण भारत के राज्य जलवायु और फसलों की दृष्टि से उपयुक्त हैं|
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मधुमक्खियों की प्रजातियां
भारत वर्ष में मधुमक्खियों की पांच प्रजातियां हैं, जैसे-
1. एपिस डोरसेटा (भंवर मधुमक्खी)
2. एपिस फलोरिया (उरम्बी मधुमक्खी)
3. एपिस सेराना इण्डिका (भारतीय मधुमक्खी)
4. एपिस मेलिफेरा (इटालियन मधुमक्खी)
5. इगोना (लुत्ती मधुमक्खी)
एपिस डोरसेटा (भंवर मधुमक्खी)- यह बड़े आकार की मधुमक्खी होती है, जो ऊंचाई पर छत्ता बनाती है| स्वभाव से बहुत ही गुस्सैल प्रवृति की होती है| वर्ष में एक छत्ते से औसतन 20 से 25 किलोग्राम शहद प्राप्त होता है|
एपिस फलोरिया (उरम्बी मधुमक्खी)- यह सबसे छोटे आकार की मधुमक्खी होती है, जो मैदानी स्थानों पर झाडियों पर छत के कोने में छत्ता बनाती हैं| एक वर्ष से 200 ग्राम से 2 किलोग्राम शहद प्राप्त होता है|
एपिस सेराना इण्डिका (भारतीय मधुमक्खी)- यह भारतीय मूल की प्रजाति है, जो पहाडी व मैदानी क्षेत्रों में पाई जाती है| यह समान्तर दूरी पर पेड़ों, गुफाओं और छुपी हुई जगहों पर छत्ते बनाती है| एक वर्ष में छत्ते से 3 से 6 किलोग्राम शहद बनाती है|
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एपिस मेलिफेरा (इटालियन मधुमक्खी)- इस मधुमक्खी को इटेलियन मधुमक्खी भी कहते हैं| यह आकार और स्वभाव में एपिस इंडिका की तरह होती है, लेकिन इस प्रजाति की रानी मक्खी के अण्डे देने की क्षमता बहुत अधिक होती है, साथ ही भगछूट की प्रक्रिया कम होती है एवं शहद अधिक मात्रा में इकट्ठा करती है| एक वर्ष में दो खण्ड के बक्से से करीब 60 से 80 किलोग्राम शहद प्राप्त होता है, साथ ही रानी मक्खी के अधिक अण्डे देने से मधुमक्खियों के वंश की बढोत्तेरी भी अधिक होती है| इसलिए व्यावसायिक पालन की दृष्टि से यह श्रेष्ठ मधुमक्खी प्रजाति हैं|
इगोना (लुत्ती मधुमक्खी)- लुत्ती मधुमक्खी का भी व्यवसायकि दृष्टि से पालना लाभदायक नहीं है, क्योंकि इससे भी बहुत ही कम शहद प्राप्त होता है|
मधुमक्खी का परिवार
मधुमक्खियों के एक मौन गृह (परिवार) में औसतन 40 से 80 हजार मधुमक्खियां होती हैं, जिनमें से एक रानी मधुमक्खी एवं सौ नर (ड्रोन्स) और शेष मादा (श्रमिक) मधुमक्खियां होती हैं, जो परिवार के सदस्यों की संख्या में 95 प्रतिशत से भी ज्यादा होती है|
रानी मधुमक्खी
रानी मधुमक्खी पूर्ण विकसित मादा है, एक मौनवंश में एक ही रानी होती है, जो अण्डे देने का कार्य करती है| यह औसतन 2500 से 3000 अण्डे प्रतिदिन देती है| रानी का जीवन काल लगभग 3 वर्षों का होता है| रानी सुनहरे रंग एवं लम्बे उदर युक्त होती हैं, यह दो प्रकार के गर्भित और अगर्भित अण्डे देती है|
गर्भित अण्डे से मादा या श्रमिक व रानी एवं गर्भित अण्डे से नर विकसित होते हैं| युवा रानी, रानी कोष में विकसित होती हैं, जो अंगुली के शीर्षभाग (मूंगफली के दाने के बराबर) की भांति छत्ते में नीचे की ओर लटकी हुई होती है, अण्डे से युवा रानी विकसित होने में लगभग 15 से 16 दिन लगते हैं|
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मादा, केसरी एवं श्रमिक मधुमक्खी
श्रमिक मधुमक्खी अविकसित मादा है, मौमगृह में समस्त कार्य को श्रमिक ही करती है| इसमें इंक पूर्णतया विकसित होता है| एक मधुमक्खी वंश में कुल मादा मधुमक्खियों की संख्या में 95 प्रतिशत से भी अधिक होती है, उनकी आयु 40 से 45 दिन तक होती है, यह आयु के अनुसार कार्य सम्पन्न करती है| जैसे-जैसे इनकी आयु बढती है, वैसे-वैसे श्रमिक मधुमक्खी का कार्य बदलता रहता है|
इस प्रकार श्रमिक पैदा होने के तीसरे दिन से कार्य करना प्रारंभ कर देती है, श्रमिक के मुख्य कार्य रॉयल जेली श्रवित करना, मोम उत्पादित करना, छता बनाना, छत्ते की सफाई करना, कोषों की सफाई करना, वातायन करना, छत्ते का तापक्रम कायम रखना, वातानुकूलित करना, प्रवेश द्वार पर चैकीदारी करना, भोजन के स्त्रोतों को खोज करना, मकरन्द (पुष्प रस) और पराग के संग्रह का कार्य लगभग 2 से 3 किलोमीटर की दूरी तक करती है| श्रमिक का कोष षटकोणीय और नर के कोष से छोटे आकार का होता है|
नर या ड्रोन
नर मेटिंग का कार्य करता है, ये प्रजनन काल में बहुतायत में होते हैं, नर में इंक नहीं होता है| इसका उदर काला व गोल होता है| युवा रानी मेटिंग के लिए गंध (फेरोमोन) छोडती है, जिससे सभी नर आकर्षित होते हैं, युवा रानी मेटिंग हेतु उडती है| तब सभी नर उनका पीछा करते हैं, जो नर सर्वप्रथम रानी को पकड़ लेता है, उसी से मेटिंग हो जाती है| रानी मौनगृह में वापस आती है तथा नर मर जाता है, इसे नपरियल फ्लाइट कहते हैं| मेटिंग के दो तीन दिन पश्चात रानी अण्डे देने लगती है|
मधुमक्खी जीवन चक्र
मधुमक्खी में जीवन चक्र की चार अवस्थाएं होती हैं, जैसे-
(1) अण्डा (2) लार्वा (3) प्यूपा (4) वयस्क
अण्डा यदि नर कोष में है, तो उससे नर पैदा होंगे और इसी प्रकार यदि मादा कोष में है, तो मादा पैदा होगी| रानी, श्रमिक एवं नर में अण्डा अवस्था तीन दिन तक रहती है और वयस्क क्रमशः 15 से 16 दिन, 20 से 21 दिन व 23 से 24 दिन में तैयार होते हैं|
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मौन गृह मे मधुमक्खी पालन
प्राचीन काल से मधुमक्खी अपना छत्ता प्राकृतिक रूप से पेड़ के खोखले, दीवार की दरारों, छज्जों, मिट्टी के घरों, लकड़ी के संदूक आदि में छत्ते बनाती है, जिससे मधु का निष्कासन करने के लिए छत्ते को काट कर निचोडते थे, जिसके फलस्वस्प निचोडते समय अण्डा, लार्वा व प्यूपा का रस भी मधु में आ जाता था और छत्ता टूट जाने पर उसका वंश ही नष्ट हो जाता था|
इस प्रकार शुद्ध मधु भी प्राप्त नहीं होता था तथा मौनवंश भी नष्ट हो जाता था इससे बचने के लिए वैज्ञानिकों ने क्रमशः शोध एवं अध्ययन करके प्रकृति में बनाये गए छत्तों के सिद्धान्त के अनुरूप तथा उसी के आधार पर मधुमक्खियों को पालने हेतु मौनगृह (लकड़ी के बक्से) व मधु निष्कासन मशीन आदि उपकरणों का आविष्कार किया, जिससे मधुमक्खियों (मौनवंश) को आसानी से लकड़ी के बक्से में पाला जा सकता है|
पुष्प पंचाग (फ्लोरल कलेन्डर) प्रबन्धन
पोषण की योजना- मधुमक्खी पालक या किसान को मधुमक्खी पालन करने से पूर्ण इनके पोषण के लिए पूरे वर्ष की योजना बनाना अनिवार्य है| मधुमक्खी का पोषण पराग और मकरन्द है, जो इन्हें फूलों से प्राप्त होता है| इसलिए मधुमक्खी पालकों या कृषकों को चाहिए, कि वो इस पालन को अपनाने से पूर्व ये सुनिश्चित कर लें, कि किस माह में कि वनस्पति से पूरे वर्ष नेक्टर एवं पोलन बहुतायत से मिलते रहेंगे|
क्योंकि पोलन एवं नेक्टर प्राकृतिक रूप से प्राप्त नहीं होने की अवस्था में कृत्रिम भोजन चीनी के घोल के रूप में दिया जाता है, जिससे मात्र मधुमक्खियां जीवन निर्वाह ही कर पाती हैं| जिन वनस्पतियों से पराग व मकरन्द प्रचुर मात्रा में मिलता है, वे इस प्रकार हैं, जैसे- सरसों, तोरिया, धनियां, सौंफ, नींबू, अरहर, लीची, सहजना, करौंदा, बरसीम, कद्दूवर्गीय सब्जी, यूकेलिप्टस, करंज, आंवला, मूंग, शीशम, सूरजमुखी, नीम, खैर, मेंहदी, ज्वार, बाजरा, जवांसा, कटेरी, रोहिडा, लिसोडा, अनार, खेजडी, बांसा इत्यादि|
किसान को चाहिए, के अपने क्षेत्र का माहवार पुष्प कलेण्डर तैयार करें, कि किस माह में किस वनस्पति से मकरन्द और पराग उपलब्ध हो सकेगा| यदि वे वनस्पतियां पास के क्षेत्र में हो तो मधुमक्खी पालक, मधुमक्खी पेटिका (हाइव) को वहां पर ले जाकर मकरन्द और पराग प्राप्त कर सकते|
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स्थान निर्धारण व प्रबंधन
1. मधुमक्खी पालन के लिए स्थान चुनाव के लिए आवश्यक है कि 2 से 3 किलोमीटर क्षेत्र में पेड़-पौधे बहुतायत में हों, जिनमें पराग एवं मकरन्द वर्षभर मिल सकें|
2. तेज हवाओं का स्थान पर सीधा प्रभाव नहीं होना चाहिए, यदि स्थान छायादार पेड नही है तो वहां अप्राकृतिक रूप से छायादार स्थान बनाना चाहिए|
3. स्थान मुख्य सड़क से थोड़ा दूर होना चाहिए, भूमि समतल एवं पानी का निकास उचित होना चाहिए|
4. पास ही साफ और बहता हुआ पानी मधुमक्खी पालन के लिए आवश्यक है|
5. नया लगाया हुआ बगीचा इस के लिए उचित है, ज्यादा घना बगीचा भी गर्मी के मौसम में हवा को आने जाने से रोकता है|
6. स्थान के चारों तरफ तारबंदी या हेज लगाकर अवांछनीय आने वालों को रोका जा सकता है|
7. एपियरी में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 10 फुट एवं बाक्स से बाक्स की दूरी 3 फुट रखें, बक्सों को पंक्ति में बिखरे रूप में रखना चाहिए, एक स्थान पर 50 से 100 बक्से तक रखे जा सकते हैं|
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नवीन इकाई की स्थापना एवं प्रबंधन
मधुमक्खी पालक या किसान मधुमक्खी पालन 02 से लेकर 100 मौनगृह (हाइव) तक रख सकता है| एक मौनगृह में तलपट, शिशु खण्ड, मधु खण्ड, भीतर ढक्कन, ऊपरी ढक्कन व 20 चैखट मोमी शीट के साथ होती है| इसे दो मधुमक्खी कोलोनी से शुरू किया जा सकता है, एक मधुमक्खी कोलोनी में 8 चैखट मधुमक्खी एक रानी होती है और चौखट में अण्डा, लार्वा व प्यूपा भी होते है|
अच्छी कोलोनी में प्यूपा की मात्रा अधिक होती है, एक मौनगृह में 20 फ्रेम (चैखट) मधुमक्खी होती है, लेकिन 20 चैखट मधुमक्खी खरीदने पर व्यय ज्यादा करना पड़ता है| इसीलिए 8 फ्रेम कालोनी शुरूआत करने पर वर्ष भर में इतनी ही मधुमक्खी की कोलोनी और तैयार हो जाती है| इसीलिए एक वर्ष में पहले मौनगृह मजबूत करने चाहिए। एक मजबूत मौनगृह से औसतन 60 से 80 किलोग्राम शहद प्राप्त होता है|
यदि कृषक माइग्रेशन (स्थानान्तरण) पद्धति के द्वारा मधुमक्खी पालन करना चाहता है, तो उसे 10 से 50 मौनगृह से शुरूआत करनी चाहिए एवं कोशिश करनी चाहिए कि एक गांव या क्षेत्र में मौनपालक सामूहिक रूप से औसतन 150 मौनगृह स्थानान्तरण पद्धति यानी एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाकर मधुमक्खी पालन करें| इससे एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने और ले जाने पर होना वाला व्यय प्रति व्यक्ति कम आता है|
ऋतु मौन (मधुमक्खी)
प्रबंधन ऋतुओं के अनुरूप मधुमक्खी पालने और अधिक से अधिक उत्पादन करने के लिए जो व्यवस्था तथा प्रबन्ध करना होता है, उसे ऋतु मौन प्रबन्ध कहते है| यह 03 प्रकार का होता है, जैसे-
वर्षा ऋतु मौन प्रबन्धन-
1. मौनगृह को छाया में रखने अथवा पालीथीन से ढकना चाहिए|
2. मौनगृह के अन्दर नमी न रहने पाये, यदि नमी हो तो धूप दिखाकर सुखा देना चाहिए|
3. मोमी पतंगे का प्रकोप न होने पाये|
4. कृत्रिम भोजन चीनी का घोल गर्म करके सप्ताह में दो बार देना चाहिए|
5. यदि संभव हो तो पुष्प रस एवं पराग के सुलभता वाले क्षेत्र में स्थानान्तरित करें|
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शीत ऋतु मौन प्रबन्धन-
इस ऋतु में चीनी का घोल गर्म करके देना चाहिए, स्टार्टर देकर नये छत्ते बनवा लेना चाहिए, जिससे मौनवंश मधु उत्पादन और मौनवंश वृधि हेतु पूर्णतया अनुकूल हो| शीतकाल में यदि शीत लहर का प्रकोप हो तो पालीथीन से मौनगृह को ढकना चाहिए एवं गर्म पानी का घोल देते रहना चाहिए|
ग्रीष्म ऋतु मौन प्रबन्धन
बसन्त ऋतु के पश्चात ग्रीष्म का आगमन होता हैं, इस ऋतु में निष्कासित मधु का परिष्कण, विपणन तथा मौनगृह को छाया में रखने की व्यवस्था करनी चाहिए| ग्रीष्मकाल में पुष्परस, पराग और पानी का अभाव होता है| ऐसी स्थिति में कृत्रिम भोजन आधा चीनी एवं आधा पानी मिलाकर देते रहना चाहिए| इनके पीने हेतु ताजा जल की व्यवस्था तथा मौनगृह को बोरे आदि से ढक कर पानी से नम बनाये जाने का व्यवस्था करनी चाहिए|
इस प्रकार मधुमक्खी पालक और किसान भाई अपना मधुमक्खी पालन का व्यवसाय सफलतापुर्वक प्रारम्भ कर सकते है, जैसा की मधुमक्खी पालन का वर्णन एक लेख में संभव नही है, अगले कुछ लेखों में आप जानेगे की मधुमक्खी के दुश्मन किट कौन कौन से है, रोग रोकथाम और मधुमक्खी पालन में लागत कितनी आती है, और मुनाफा कितना प्राप्त होता है|
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