
मसूर की फसल से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उन्नत प्रजाति का चयन करना आवश्यक है| इसके साथ-साथ प्रजाति अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिक पैदावार देने वाली तथा विकार रोधी होनी चाहिए| हमारे देश में मसूर की दो प्रकार की अनेक किस्मे उपलब्ध है| पहली छोटे दाने वाली और दूसरी बड़े दाने वाली एक प्रगतिशील किसान को इन सब की जानकारी होना जरूरी है|
ताकि वो प्रजाति का सही से चयन कर के मसूर की खेती से अपनी इच्छित पैदावार प्राप्त कर सके| इस लेख में मसूर की उन्नत किस्में और उनकी विशेषताओं तथा पैदावार की जानकारी का विस्तृत वर्णन किया गया है| मसूर की उन्नत खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मसूर की खेती (Lentil farming) की जानकारी जलवायु, किस्में, रोकथाम व पैदावार
अनुमोदित उन्नत प्रजातियाँ
उकटा प्रतिरोधी प्रजातियाँ- पी एल- 02, वी एल मसूर- 129, वी एल- 133, वी एल- 154, वी एल- 125, पन्त मसूर (पी एल- 063), के एल बी- 303, पूसा वैभव (एल- 4147), आ- वी एल- 31 और आ पी एल- 316 प्रमुख है|
छोटे दाने वाली प्रजातियाँ- पन्त मसूर- 4, पूसा वैभव, पन्त मसूर- 406, आ पी एल- 406, पन्त मसूर- 639, डी पी एल- 32 पी एल- 5, पी ए- 6 और डब्लू बी एल- 77 आदि प्रमुख है|
बड़े दाने वाली प्रजातियाँ- डी पी एल- 62, सुभ्रता, जे एल- 3, नूरी (आई पी एल- 81), पी एल- 5, एल एच- 84-6, डी पी एल-15 (प्रिया), लेन्स- 4076, जे एल- 1, आई पी एल- 316, आई पी एल- 406 और पी एल- 7 आदि प्रमुख है|
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क्षेत्रवार प्रजातियाँ
मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़- मलिका (के- 75), आई पी एल- 81 (नूरी), जे एल- 3, एल- 4076, आई पी एल- 406, आई पी एल- 316, डी पी एल- 62 (शेरी), आर वी एल- 31, पन्त मसूर- 8 आदि प्रमुख है|
उत्तरप्रदेश- पी एल- 639, मलिका, एन डी एल- 1, डी पी एल- 62, आई पी एल- 81, आई पी एल- 316, एल- 4076, एच यू एल- 57, डी पी एल-15 आदि मुख्य है|
बिहार- पंत एल- 406, पी एल- 639, मलिका (के- 75), एन डी एल- 2, डब्लू बी एल- 58, एच यू एल- 57, डब्लू बी एल- 77, अरूण (पी एल- 777-12) आदि प्रमुख है|
गुजरात- मलिका (के- 75), एल- 4076, जे एल- 3, आई पी एल- 81 (नूरी), पन्त मसूर- 8 आदि प्रमुख है|
हरियाणा- पंत एल- 639, पंत एल- 4, डी पी एल-15, सपना, एल- 4147, डी पी एल- 62 (शेरी), आई पी एल- 406, हरियाणा मसूर- 1 आदि प्रमुख है|
पंजाब- पी एल- 639, एल एल-147, एल एच- 84-8,एल- 4147, आई पी एल- 406, एल एल- 931, पी एल- 7 आदि प्रमुख है|
राजस्थान- आई पी एल- 406 (अंगूरी), पंत एल- 8 (पी एल- 063), डी पी एल- 62 आदि प्रमुख है|
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महाराष्ट्र- जे एल- 3, आई पी एल- 81 (नूरी), पंत एल- 4, पन्त मसूर- 8, आई पी एल- 316 आदि प्रमुख है|
उत्तराखंड- वी एल मसूर- 103, पी एल- 5, वी एल- 507, पी एल- 6, वी एल- 129, वी एल मसूर- 514, वी एल-133, पी एल- 7, वी एल- 126 आदि प्रमुख है|
जम्मू और कश्मीर- वी एल- 507, एच यू एल- 57, पंत एल- 406, पी एल- 639, वी एल मसूर- 126, वी एल मसूर- 125 आदि प्रमुख है|
विशेषताएं और पैदावार
वी एल मसूर 1- इस मसूर की किस्म का काला छिलका, छोटा दाना, फसल पकने की अवधि 165 से 170 दिन, उकठा रोग प्रतिरोधी, उपज क्षमता 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
वी एल मसूर 4- इस मसूर की किस्म का काला छिलका, छोटा दाना, फसल पकने की अवधि 170 से 175 दिन, झुलसा तथा जड़ विगलन रोगों के प्रति सहिष्णुता, उपज क्षमता 12 से 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
वी एल मसूर 103- इस मसूर किस्म का भूरा छिलका, छोटे दाने, फसल की अवधि 170 से 175 दिन उकठा रोग रोधी एवं बीज गलन रोग हेतु सहनशील, उपज क्षमता 12 से 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
वी एल मसूर 125- इस किस्म का दाना काले रंग का, पौधे की ऊँचाई 30 से 32 सेंटीमीटर, फसल पकाव की अवधि 160 से 165 दिन तथा उकठा एव जड़ विगलन रोगों हेतु प्रतिरोधी और उपज क्षमता 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
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वी एल मसूर 126- इस किस्म का दाना काला, छोटा, पौधे की ऊँचाई 30 से 35 सेंटीमीटर, पकने की अवधि मध्यम किस्मों की 125 से 150 दिन और 195 से 205 दिन अधिक ऊँचाई वाली, उकठा व भूरा मोल्ड के प्रति अवरोधक, उपज क्षमता 12 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
वी एल मसूर- 129- इस किस्म के पौधे की ऊचाई 25 से 30 सेंटीमीटर, पकने की अवधि 145 से 150 दिन, छोटा दाना और रंग भूरा, जड़ विगलन तथा झुलसा रोग के प्रति सहनशील, उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों हेतु अनुमोदित और उपज लगभग 12 से 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
वी एल मसूर 507- इस मसूर की किस्म का मोटा दाना, रंग क्रीमी, भूरा व चपटा, पौधे की ऊचाई 45 से 48 सेंटीमीटर, पकने की अवधि 140 से 209 दिन, उकठा रोग हेतु प्रतिरोधी, उपज क्षमता 10 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
पन्त मसूर- 4- यह मसूर की किस्म पर्वतीय क्षेत्रों के अनुकूल, फसल की अवधि लगभग 160 से 170 दिन, छोटा दाना, उत्पादन क्षमता 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| यह प्रजाति उकठा रोग के लिये प्रतिरोधी भी पायी गयी है|
पन्त मसूर 5- यह मसूर की किस्म गेरूई, उकठा एवं झुलसा रोग के प्रति अवरोधी, समय से बुवाई एवं बड़े दाने वाली मसूर है| इस प्रजाति की अवधि पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग 160 से 170 दिन एवं उपज क्षमता 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| यह प्रजाति उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखण्ड हेतु संस्तुत है|
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पन्त मसूर 7- यह मसूर की किस्म गेरूई, उकठा रोग के प्रति अवरोधी, बड़े दाने वाली, 165 से 170 दिन में पक जाती है और उपज क्षमता 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
पन्त मसूर 8- यह गेरूई रोगों के प्रति अवरोधी, छोटे दाने वाली, यह लगभग 160 से 165 दिन में पकती है और इस प्रजाति की उपज क्षमता भी अच्छी है|
पन्त मसूर 9- उत्तराखण्ड के मैदानी एवं निचले घाटी क्षेत्रों हेतु उपयुक्त, छोटे आकार का दाना, दाने का रंग गहरा भूरा, यह प्रजाति गेरूई, उकठा रोग एवं फली छेदक कीट के लिए अवरोधी है| परिपक्वता अवधि लगभग 140 से 160 दिन है|
पूसा वैभव (एल 4147)- यह छोटे दाने वाली किस्म है| जो कि 130 से 140 दिन में पक कर तैयार होती है| बुआई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से मध्य नवम्बर तक कर लेनी चाहिए| इसकी औसत उपज क्षमता 17 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
पूसा शिवालिक (एल 4076)- बड़े आकार के दाने वाली किस्म है| जो 130 से 140 दिन में पक कर तैयार होती है| इसकी उपज क्षमता 25 से 26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हैं| इसकी बुआई का समय मध्य अक्टूबर से अंतिम सप्ताह नवम्बर तक है|
पंत मसूर 406- मसूर की यह किस्म 135 से 150 दिनों में पक कर तैयार होती है| इसकी उपज क्षमता 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| इसकी बुआई का समय 25 अक्टूबर से 25 नवम्बर तक है| यह पूरे उत्तर के लिए उपयुक्त है| साथ ही यह किस्म पैरा बुआई के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है|
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पंत मसूर 639- यह किस्म 135 से 140 दिनों में पक कर तैयार होती है| इसकी उपज क्षमता 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| इसकी बुआई का समय 25 अक्टूबर से नवम्बर तक है|
अरूण (पी एल 77-12)- यह प्रजाति लगभग 110 से 120 दिनों में पक कर तैयार होती हैं| इसकी उपज क्षमता 22 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| इसकी बुआई का समय 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक है| इसका दाना मध्यम बड़े आकार का होता है|
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