हम एक कृषि प्रधान देश है और आज भी लगभग 70 प्रतिशत आबादी जीवन निर्वहन के लिए खेती पर निर्भर है| फसल उत्पादन में मिट्टी अत्यन्त आवश्यक घटक है, जो पौधों को पोषण प्रदान करती है| इसलिये आवश्यक है, कि मिट्टी का स्वास्थ्य अच्छा हो और पौधों को आवश्यक तत्व उपलब्ध हो व जीवाणु वृद्धि के लिए भी उपयुक्त हो, वैज्ञानिक परीक्षण से यह ज्ञात हुआ है, कि प्रत्येक पौधे की समुचित वृद्धि के लिए 16 पोषण तत्व आवश्यक होते है| इन 16 तत्वों में एक की भी कमी से पौधे की वृद्धि पर दुष्प्रभाव देखा गया है|
आमतौर पर पौधे उनकी आवश्यकता अनुसार पोषक तत्व मिट्टी और वायुमंडल से जड़ों में पाये जाने वाले मूलरोमों तथा पत्तियों में पाये जाने वाले रन्ध्रावकाश के माध्यम से प्राप्त कर लेते है| यह पोषक तत्व आमतौर पर भूमि में कम या अधिक मात्रा से उपलब्ध रहते है| विभिन्न फसलों की आवश्यकतानुसार पोषक तत्व की उपलब्धता न होने से उत्पादन पर विपरीत प्रभाव देखा गया है|
मिट्टी में किसी विशेष पोषक तत्व की अधिकता या कमी हो सकती है, जो फसल की वृद्धि व पैदावार पर प्रभाव डालती है| इसलिये मिट्टी का परीक्षण सबसे महत्वपूर्ण और पहला कदम है| मिट्टी परीक्षण के अभाव में कभी-कभी किसान भाई उसी पोषक तत्वधारी उर्वरक का लगातार उपयोग करते हैं| जो पहले से ही मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है, पोषक तत्व की अधिकता से भी फसल की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है|
इसलिए वर्तमान परिस्थितियों में फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए आवश्यक है, कि खेत की मिट्टी का परीक्षण कराया जाये और परिणामों के आधार पर उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा का संतुलित रूप में प्रयोग सुनिश्चित किया जाये| परिणामस्वरूप खेती की लागत कम करने के साथ-साथ उपज में भी बढ़ोत्तरी प्राप्त की जा सकती है|
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जैविक कार्बन- नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों की संस्तुति के लिए जैविक कार्बन को आधार माना जाता है| क्योकि मिट्टी में जैविक कार्बन और सुलभ नाइट्रोजन एक निश्चित मात्रा में पाये जाते है| जैविक कार्बन की मात्रा ज्ञात होने पर भूमि में उपलब्ध नाइट्रोजन की मात्रा ज्ञात की जा सकती है|
फास्फोरस और पोटाश- मिट्टी परीक्षण में उपलब्ध फास्फोरस और पोटाश का विश्लेषण करने के बाद ही इन तत्वों की उचित मात्रा की संस्तुति की जाती है, ताकि इन तत्वों की उचित मात्रा उपलब्ध हो जाये, इन तत्वों की सिफारिश वर्तमान में किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से की जाती है|
मिट्टी का नमूना लेते समय आवश्यक सावधानियां
1. मृदा का रंग, ढलान, फसल उत्पादन इत्यादि गुणों के आधार पर अलग-अलग लगने वाले खेतों या उनके भागों से अलग-अलग नमूने तैयार करने चाहिए|
2. किसी भी दशा में नमूना का सम्पर्क राख, दवाई, खाद, उवर्रक बैटरी इत्यादि से नहीं होना चाहिए|
3. मृदा यदि गीली हो तो पेन के बजाय पेन्सिल से ही लेबल लिखकर थैली में रखें|
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मिट्टी परीक्षण की आवश्यकता क्यों?
1. परीक्षण से यह ज्ञात होता है, कि मिट्टी में किन तत्वों की कमी या अधिकता है, ताकि उसमें सुधार किया जा सके|
2. पौधों की अच्छी बढ़वार या वृद्धि के लिए 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, जिनकी कमी के कारण पौधे अपना जीवन काल पूरा नहीं कर सकते|
3. किसी क्षेत्र विशेष में मिट्टी में उत्पन्न दोष जैसे अम्लीयता, क्षारीयता, लवणता इत्यादि का पता लगाना एवं उनका सही उपचार करना|
4. मृदा की उपजाऊ शक्ति का पता लगाना और उसी के अनुसार विभिन्न फसलों के लिए खाद एवं उर्वरकों की संतुलित मात्रा के प्रयोग की सिफारिश करना|
5. किसी क्षेत्र में उर्वरकों के प्रयोग से होने वाली अतिरिक्त उपज का आंकलन करना|
6. मृदा परीक्षण के आधार पर मिट्टी उर्वरकता मानचित्र बनाना एवं उनमें होने वाले परिवर्तनों का समय-समय पर अध्ययन करना|
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मिट्टी परीक्षण के मूना लेने का समय
1. मिट्टी का परीक्षण फसल बुवाई एवं रोपाई के एक माह पूर्व करवाना चाहिए|
2. सघन खेती वाले खेतों का परीक्षण प्रति वर्ष करना चाहिए|
3. जिस खेत में वर्ष में एक फसल लेते है, वहा दो या तीन वर्ष में एक बार मिट्टी का परीक्षण अवश्य कराना चाहिए|
मिट्टी परीक्षण के नमूने लेने की विधि
1. खेत को समान गुणों वाले भागों में बांटकर अलग-अलग नमूने एकत्र करें|
2. अपने 0.5 हेक्टेयर खेत से एक नमूना लेना चाहिये|
3. जिस खेत का नमूना लेना हो उसके 15 से 20 स्थानों पर निशान लगा दें|
4. जिस स्थान पर निशान लगायें हैं, उस स्थान के ऊपरी सतह से घास-फूस, कंकड़, पत्थर हटा देना चाहिए|
5. मृदा नमूना फाबड़े या खुरपी की सहायता से व्ही v आकार का 15 सेंटीमीटर गहराई तक गढ्ढा खोदकर इनकी मिट्टी अलग कर दें, फिर इसको दीवार के साथ पूरी गहराई तक मिट्टी का समान मोटाई (दो सेंटीमीटर) में मिट्टी की परत काटकर निकाल लें|
6. इस प्रकार खेत के बाकी 15 से 20 स्थानों से भी मिट्टी का नमूना लें, इन सभी नमूनों का किसी साफ कपडे या पालिथीन पर अच्छी तरह मिला लें| नमूना लिये हुए मिट्टी को एक वर्गाकार या गोलाई में फैलाकर चार भागों में बांट ले और आमने-सामने के दो भागों को रखकर बाकी फेंक दें|
7. इस प्रक्रिया को तब तक दोहराना चाहिये, जब तक मिट्टी का कुल नमूना भार लगभग 500 ग्राम न रह जाए|
8. यदि मृदा सख्त हो तो इसके लिए बर्मे का प्रयोग भी किया जा सकता है और नरम मृदा के लिए ट्यूब ऑगर्स का प्रयोग किया जा सकता है|
9. इसके बाद मिट्टी के नमूने को लेकर एक साफ थैली में रखकर उस पर नाम, पता, नमूना संख्या और पहचान चिन्ह लिख दिया जाना चाहिए|
10. दो से चार दिनों में ही इन नमूनों को परीक्षण के लिए नजदीक के प्रयोगशाला में भेजना चाहिए|
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मिट्टी परीक्षण के नमूनों को प्रयोगशाला कैसे भेजें
मृदा के नमूने के साथ भेजे जाने वाले सूचना पत्र की तीन प्रतियां तैयार कर एक प्रति थैले के अंदर रखें और दूसरी थैली का मुंह बांधने के साथ बांध दें, एवं तीसरी प्रति किसान स्वयं अपने पास रखें, सूचना पत्र पर निम्नलिखित जानकारी अवश्य दें, जैसे-
1. किसान का नाम
2. खेत का खसरा नंबर या नाम
3. पूर्व में बोई गई फसल को दी गई उर्वरक की मात्रा
4. पत्र व्यवहार का पूरा पता
6. पिछली बोई गई और आगामी प्रस्तावित फसल
7. खेत की कोई भी समस्या यदि है तो
8. खेत की स्थलाकृत|
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मिट्टी परीक्षण जांच के आवश्यक बिंदु
मिट्टी पी एच मान- इसके द्वारा मृदा की अभिक्रिया का पता चलता है, कि मिट्टी सामान्य, अम्लीय या क्षारीय प्रकृति की है| मिट्टी से प्राप्त पोषक तत्वों को पौधों द्वारा बहुत सीमा तक मृदा पी एच मान 6.5 से 7.5 की बीच ग्रहण किया जाता है| पी एच मान 6.5 से कम होने पर भूमि अम्लीय और 7.5 से अधिक होने पर भूमि क्षारीय होती है|
अम्लीय भूमि के लिए चूने एवं क्षारीय भूमि के लिए जिप्सम की आवश्यक मात्रा ज्ञात करने के लिए मिट्टी की जांच की जाती है| समस्याग्रस्त क्षेत्रों में फसल की उपयुक्त किस्मों की संस्तुति की जाती है| जो कि अम्लीयता और क्षारीयता को सहन करने की क्षमता रखती हो|
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