हमारे देश में मिर्च की फसल प्रमुख नगदी फसलों में अपना स्थान रखती है| मिर्च के विशिष्ट गुणों की वजह से मसाला परिवार में इसका महत्वपूर्ण स्थान है| हरी और लाल दोनों अवस्था में मिर्च भोजन को स्वादिष्ट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है| मिर्च का तीखापन केप्सेसिन की मात्रा पर निर्भर करता है| स्वास्थ्य की दृष्टि से मिर्च में विटामिन ए व सी तथा कुछ खनिज लवण पाये जाते है| जो मानव स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है|
लेकिन इस फसल को अनेक रोग प्रभावित करते है| जिससे इसके उत्पादन पर काफी विपरीत प्रभाव पड़ता है| इसलिए इन रोग की रोकथाम आवश्यक है| इस लेख में मिर्च की फसल के प्रमुख रोग और उनका जैविक प्रबंधन कैसे करें का विस्तार से उल्लेख किया गया है| मिर्च की फसल में जैविक विधि से कीट नियंत्रण की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मिर्च की फसल के प्रमुख कीट और उनका जैविक प्रबंधन कैसे करें
मिर्च की फसल के प्रमुख रोग
शीर्ष मरण रोग (डाइ बैक) एवं फल सड़न- इस मिर्च की फसल के प्रमुख रोग से पौधों का ऊपरी भाग सूखना प्रारम्भ होता है तथा नीचे तक सूखता जाता है| प्रारम्भिक अवस्था में टहनियाँ गीली होती है व उस पर रोएँदार कवर दिखाई देती हैं| रोगग्रसित पौधों के फल सड़ने लगते हैं| इस रोग के लक्षण पके फलों पर मुख्यतः प्रकट होते हैं| फल की त्वचा पर एक छोटा गोलाकार काला धब्बा प्रकट होता है, जिससे फलों का आकार बिगड़ जाता है व फल सड़ जाते हैं|
पत्ती झुलसा रोग- यह मिर्च की फसल के प्रमुख रोग में से एक अत्यधिक वर्षा, उच्च आर्द्रता, पौधे की अत्यधिक संख्या तथा नाईट्रोजन की अधिक मात्रा से होता है| यह रोग पत्तियों, जड़ों और फलों पर आक्रमण करता है| पत्तियों पर छोटे गहरे हरे धब्बे दिखाई देते हैं| फिर यह धब्बे बड़े होकर भूरे व बदरंग हो जाते हैं| सामान्यतः यह रोग पुराने पौधों पर अधिक होता है| रोगग्रसित फलों पर शुरू में गहरे जलमग्न धब्बे बनते हैं| जिन पर सफेद मोल्ड की परत बन जाती है तथा अन्ततः फल सड़ जाते हैं|
मोजेक रोग- इस मिर्च की फसल के प्रमुख रोग में हल्के हरे या गहरे हरे निशान पत्तियों पर दिखाई देते हैं, जिससे पौधों की वृद्धि रूक जाती है तथा पौधे बोने रह जाते हैं| पीलापन लिए हुए पत्तियों का आकार मुड़कर छोटी-छोटी झाड़ीनुमा बन जाती है| ग्रसित पौधों में बहुत कम मात्रा में फूल व फल लगते हैं| यह चेपा के द्वारा होता है|
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आर्द्रगलन- यह मिर्च की फसल का प्रमुख रोग अधिक आर्द्रता से फैलता है| मुख्यतया नर्सरी में बीज अंकुरित होने से पहले ही मर जाते हैं या उगने के बाद पौधे की छोटी अवस्था में जमीन की सतह से जुड़े तने पर जलशक्त धब्बे बनने से पौधा गलकर मरने लगते हैं| इस रोग के अधिक प्रकोप से नर्सरी में एक के बाद एक पूरी पौध नष्ट हो जाती है|
पर्णकुंचन- यह मिर्च की फसल का प्रमुख रोग विषाणुजनित रोग है| इस रोग के विशिष्ट लक्षण पत्तियाँ छोटी, ऊपर की ओर मुड़ी हुई तथा एक जगह एकत्रित दिखाई देती है और पौधे बौने रह जाते हैं| अधिक प्रभावित पौधा पीला हो जाता है और उस पर फूल नहीं बनते| यह सफेद मक्खी के द्वारा फैलता है|
छाछया रोग- इस मिर्च की फसल के प्रमुख रोग में पौधों की पत्ती, तना और फल प्रभावित होते हैं| इस रोग में पौधों पर सफेद पाउडर के समान चिन्ह बन जाते हैं| अधिक प्रकोप पर पूरे पौधे पर भूरे सफेद मटमैले धब्बे फैलने से पौधा बौना रह जाता है और पत्तियाँ व फूल झड़ जाते हैं तथा फल बहुत कम छोटे आकार के बनते हैं|
पाउडरी मिल्ड्यू- इस मिर्च की फसल के प्रमुख रोग के कारण पत्तों की निचली सतह पर सफेद-सफेद धब्बे बनते हैं और उनके ऊपर फफूंद चूर्ण के रूप में उभर आती है| जिसके अनुरूप पत्तों की ऊपरी सतह पर पीले धब्बे बनते हैं तथा प्रभावित पत्ते समय से पहले गिर जाते हैं|
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मिर्च की फसल के रोगों का जैविक प्रबंधन
नर्सरी में प्रबंधन-
1. गर्मियों में पौधशाला में बीजों की बुवाई से पूर्व मिट्टी को 0.45 मोटी पॉलीथीन शीट से ढक्कर सौरियकरण विधि से निर्जलीकृत करें|
2. जल निकास एवं जड़ सड़न रोग से बचाव हेतु नर्सरी का निर्माण 10 सेंटीमीटर ऊँचाई पर करना चाहिए|
3. कमर तोड़ की रोकथाम हेतु क्यारियों को पंचगव्य से उपचारित करें|
4. पौधों के पास अधिक आर्द्रता नहीं होनी चाहिए, इसलिए समयानुसार ही पानी दें|
5. रोग व कीट ग्रसित अंकुरों को नर्सरी से निकालकर नष्ट कर देना चाहिए|
6. पौधशाला को खेत में एक ही जगह लगातार नहीं उगाना चाहिए|
7. रोपाई से पूर्व पौधों की जड़ों को ट्राईकोडर्मा विरिडी 100 ग्राम प्रति लीटर पानी से दस मिनट के लिए घोल में उपचारित करें|
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रोपाई से फसल की कटाई तक-
1. ग्रीष्मकालीन खेत की गहरी जुताई करें, ताकि ज़मीन में दबे कीट व फंफूद तेज गर्मी से नष्ट हो जाएं|
2. खेत में पड़े अवशेष, खरपतवार व अन्य वैकल्पिक पौधों को इकट्ठा कर नष्ट कर दें|
3. पौधों की रोपाई उचित दूरी व 6 से 10 इंच ऊँची मेढ़ बनाकर करें|
4. रोग मुक्त फसल हेतु स्वस्थ बीज व पौध लगायें|
5. आवश्यकतानुसार ही सिंचाई करें|
6. रोग व कीट से ग्रसित पत्तियों व फलों को तोड़कर नष्ट कर दें|
7. रोपाई के बाद 10 से 15 दिनों के अंतराल पर 5 प्रतिशत नीम के बीजों के पाउडर का छिड़काव करें|
8. आर्द्रगलन रोग के नियंत्रण हेतु बोर्डो मिश्रण 2 : 2 : 50 का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें|
9. बी टी 1.0 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|
10. चूर्ण आसिता रोग हेतु दूध में हींग मिलाकर (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें|
11. चूर्ण आसिता बीमारी के नियंत्रण के लिए 2 किलोग्राम हल्दी का चूर्ण तथा 8 किलोग्राम लकड़ी की राख का मिश्रण बनाकर पत्तों के ऊपर डालें|
12. अदरक के चूर्ण को 20 ग्राम प्रति लीटर पानी में डालकर घोल बनाएं तथा 15 दिन के अन्तराल पर तीन बार छिड़कने से चूर्ण आसिता और अन्य फफूंद वाली बीमारियों का प्रकोप कम होता है|
13. पत्तों का धब्बा रोग के लिए बीज को बीजामृत और ट्राईकोडर्मा से उपचारित करें|
14. मिर्च का वेनल मौटल रोग हेतु मक्का को अवरोधी फसल एवं अन्य फसलों के बीच में अन्तर फसल के रूप में लगाएं, जिससे रोगवाहक कीटों की संख्या में कमी आये|
15. मोजैक रोग एफिड से फैलता है, तो इसकी रोकथाम के लिए नीम तेल का 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें|
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