मूंगफली एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है| तिलहनी फसल होने के साथ ही यह एक महत्वपूर्ण पौष्टिक खाद्य फसल और पशुओं के राशन तथा चारे के रूप में भी प्रयोग की जाती है| मूंगफली दलहनी वर्ग की भी फसल मानी जाती है, क्योंकि इसकी जड़ग्रन्थियों में निवास करने वाले जीवाणुओं से वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का भूमि में यौगिकीकरण भी होता है| मूंगफली की खेती शुद्ध फसल के रूप में, मिश्रित या सहफसली खेती के रूप में सुविधापूर्वक उगाया जा सकता है|
इस प्रकार की महत्वपूर्ण फसल में मौसम की दशा के अनुसार कुछ कीट, रोग और खरपतवार आदि मूंगफली की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं| परन्तु समय रहते इन नाशीजीवों का उचित प्रबन्धन किया जा सके तो मूंगफली की खेती से भरपूर लाभ उठाया जा सकता है| इस लेख में मूंगफली में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें का उल्लेख है| मूंगफली की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मूंगफली की खेती कैसे करे
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मूंगफली फसल में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन क्रियाएं
कृषिगत प्रमुख क्रियाएं- गर्मी की जुताई, अवरोधी प्रजातियों का चयन, फसल चक्र सिद्धान्त का प्रयोग, फसल एवं खरपतवारों के अवशेषों को नष्ट करना, रोपाई एवं बुआई के समय में अनुकूल परिवर्तन, काट-छांट, विरलीकरण, सन्तुलित उर्वरकों का प्रयोग, खेत की सफाई, निराई व गुड़ाई, उचित सिंचाई प्रबन्धन, बीज शोधन और भूमि शोधन का प्रयोग आदि|
यांत्रिक क्रियाएं- कीटों की विभिन्न अवस्थाओं को नष्ट करना, जाली लगाना, खाई खोदना, अवरोध बनाना, गोंद लगाना, प्रकाश प्रपंच, फिरोमौन टैप का प्रयोग, खेत में पक्षी आश्रय लगाना इत्यादि|
जैविक नियंत्रण- मित्र जीवों का संरक्षण और प्रयोग के द्वारा हानिकारक कीटों को नष्ट किया जा सकता है, क्योंकि ये परभक्षी एवं परजीवी कीट हानिकारक कीटों को नष्ट करते हैं|
रासायनिक क्रियाएं- आकर्षी पदार्थों का प्रयोग, प्रतिकर्षी पदार्थों का प्रयोग, नाशी रसायनों का प्रयोग, बन्ध्यता पैदा करने वाले रसायनों का प्रयोग, वृद्धि अवरूध करने वाले रसायनों का प्रयोग आदि|
ध्यान दें- एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन में कृषिगत, यांत्रिक और जैविक क्रिया असफल होने पर ही रासायनिक क्रियाएँ उपयोग में लाई जाती है|
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मूंगफली फसल में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन
मूंगफली का पर्ण सुरंगक- मूंगफली में यह छोटे आकार का लगभग 1 सेंटीमीटर लम्बा कीट है| इसका रंग हल्का पीला होता है| इस कीट की मादा का उदर नर की अपेक्षा मोटा होता है|
जीवन-चक्र- मादा कीट प्रजनन के बाद अपने 70 से 120 अंडे एक-एक करके पत्तियों की निचली सतह पर देती है| तीन या चार दिन में अंडों से सूड़ियां निकलती हैं तथा ये निकलते ही पत्तियों में सुरंग बनाना प्रारंभ कर देती है| लगभग 10 से 15 दिन में 5 से 6 निर्मोक रूप के बाद सूड़ी पूर्ण रूप से विकसित हो जाती है| पूर्ण रूप से विकसित सूड़ी की लम्बाई लगभग 1 सेंटीमीटर होती है|
विकसित सूड़ियां रेशमी धागे द्वारा पत्तियों को आपस में जोड़कर उनके अन्दर प्यूपा में परिवर्तित हो जाती है| लगभग 4 दिन बाद प्यूपा से वयस्क कीट बाहर निकलता है| इस प्रकार लगभग 15 से 30 दिन में एक पीढ़ी पूरी हो जाती है| एक वर्ष में इसकी 5 से 6 पीढ़ियां पायी जाती हैं|
हानि की प्रकृति- अंडे से निकलने के बाद छोटी-छोटी सूड़ियां पत्तियों में सुरंग बनाकर पत्त्यिों को जालीनुमा बना देती हैं| जिससे पौधों का विकास रूक जाता है|
कृषिगत प्रबंधन-
1. प्रकाश प्रपंच का प्रयोग कर शलभ कीटों को आकर्षित कर नष्ट कर देना चाहिए|
2. फसल-चक्र का प्रयोग करना चाहिए|
3. मूंगफली में प्रारंभिक अवस्था में ही प्रभावित पत्तियों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए|
रासायनिक प्रबंधन- मूंगफली में निम्न में से किसी एक कीटनाशी का प्रयोग करें, जैसे-
1. मैलाथियान धूल 5 प्रतिशत का 40 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से बुरकाव करना चाहिए|
2. डाइमेथोएट 2 मिलीलीटर को प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर घोल बनाकर 7 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए|
3. मोनोक्रोटोफॉस का 2 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए|
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मूंगफली का तना वेधक- इस कीट का रंग गहरा भूरा होता है| इसकी लम्बाई 1.5 सेंटीमीटर होती है| इसके शरीर पर धारीदार धात्विक चमक होती है|
हानि की प्रकृति- इस कीट की भृंग अवस्था ही हानिकर होती है| अंडों से निकलने के बाद भृंग तने में छेद करके तने के अन्दर घुस जाते हैं तथा अन्दर ही अन्दर तने को खाते रहते हैं| जिससे पौधे की वृद्धि रूक जाती है या पूरा पौधा ही सूख जाता है|
कृषिगत प्रबंधन-
1. मूंगफली में कीटग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए|
2. खेत में निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए|
रासायनिक प्रबंधन- मूंगफली में निम्न में से कोई एक कीटनाशी का उपयोग करें, जैसे-
1. बोआई करते समय कुंडों में कार्बोफ्युरॉन की 20 से 25 किलोग्राम मात्रा मिला देनी चाहिए|
2. कीट का आक्रमण होने के बाद मोनोक्रोटोफॉस 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी मे साथ मिलाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करना चाहिए|
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सफेद भृंग- प्रौढ़ भृंग की लम्बाई लगभग 2 सेंटीमीटर और रंग हल्का भूरा होता है| प्रथम जोड़ी पंख एक कठोर आवरण के रूप में पीठ की सुरक्षा करते हैं| इसके मुखांग चबाने तथा काटने वाले होते हैं|
जीवन-चक्र- मादा भूगक प्रजनन के पश्चात् अपने अंडे भूमि में एक-एक करके देती है| अंडे लगभग 10 दिन में फूटते हैं, जिनसे छोटे भृंग बाहर निकलते हैं| ये 8 से 10 सप्ताह तक भूमि में पड़े हुए पौधों की जड़ों को खाते रहते हैं और पांच निर्मोक रूप के बाद पूर्ण विकसित भृंग बन जाते हैं| जब बरसात समाप्त हो जाती है तो ये भृंग मिटटी में ही लगभग 5 से 7 सेंटीमीटर नीचे जाकर प्यूपा से परिवर्तित हो जाते हैं| जून के महीने में पहली वर्षा होने पर मिटटी से वयस्क भृंग बाहर निकलते हैं|
हानि की प्रकृति- इस कीट के छोटे और वयस्क दोनों ही अवस्थाएं हानिकारक होती हैं| छोटे भृंग पौधे की जड़ों को खाकर पूरे पौधे को सुखा देते हैं तथा वयस्क पत्तियों और दानों को खाकर हानि पहुंचाते हैं|
कृषिगत प्रबंधन-
1. प्रकाश प्रपंच का प्रयोग कर वयस्क कीटों को नष्ट कर देना चाहिए|
2. खेत खाली होने पर गहरी जुताई करनी चाहिए, जिससे भृंग धूप तथा पक्षियों के सम्पर्क में आने पर नष्ट हो जाते हैं|
3. प्रभावित पौधों को जड़ से उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए|
जैविक प्रबंधन-
1. वैसिलस थ्यूनेनजिस (वी.टी.) जीवाणु का 1 से 2 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए|
2. विषाणु न्यूक्लिअर पॉलिहेड्रोसिस वाइस का 1000 एल ई प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए|
रासायनिक प्रबंधन- मूंगफली में निम्न में से किसी एक कीटनाशी का उपयोग करे, जैसे-
1. मूंगफली की बोआई करते समय कार्बोफ्युरॉन की 20 से 25 किलोग्राम मात्रा प्रति हैक्टर की दर से मिटटी में मिलाकर देनी चाहिए|
2. मोनोक्रोटोफॉस 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर 7 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए|
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मूंगफली का माहूं या एफिड- माहूं आकार में छोटा होता है| इसका शरीर अंडाकार एवं मुलायम होता है| इसके पंख का रंग काला होता है| इसके उदर के अन्तिम भाग पर दो नलकीकार रचनाएं होती हैं|
जीवन-चक्र- मूंगफली की फसल उगने के बाद पंखधारी मादा कीट खेत में प्रवेश कर जाती हैं और शिशुओं को जन्म देती हैं| ये शिशु अनिषेकजनन द्वारा नये को जन्म देने लगते हैं| इस प्रकार इनकी प्रजनन क्षमता अधिक होने के कारण इनकी संख्या इतनी बढ़ जाती है कि नियंत्रण करना कठिन हो जाता है| इनका एक जीवन-चक्र पूरा होने में लगभग 8 से 30 दिन का समय लगता है|
हानि की प्रकृति- इस कीट के शिशु और वयस्क, दोनों ही फसल की लिए हानिकारक होते हैं| ये अपने मुखांग को पौधे के मुलायम भागों में गड़ाकर उसका रस चूस लेते हैं| जिससे पौधे में आवश्यक तत्वों की कमी हो जाती है तथा पौधे पीले पड़ जाते हैं| ये विषाणु रोगों को एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलाने में सहायक होते हैं| यह कीट एक प्रकार का शर्करायुक्त द्रव उत्सर्जित करता है| इससे पत्तियों पर एक काले रंग का कवक पैदा हो जाता है, जिससे प्रकाश संश्लेषण क्रिया बाधित होती है|
कृषिगत प्रबंधन-
1. प्रारंभिक अवस्था में ही वयस्क कीटों को पकड़कर नष्ट कर देना चाहिए|
2. कीटग्रस्त भाग को तोड़कर उससे जलाकर नष्ट कर देना चाहिए|
जैविक प्रबंधन-
1. कॉक्सीनेला सेप्टमपंक्टैटा नामक भृंग और इसके भृंगक माहूं को खाते हैं|
2. सिरफिड की सूड़ी माहूं को पकड़कर खाती है|3. क्राइसोपा जाति इस कीट का परजीवी कीट है, इसके द्वारा इनको नियंत्रित किया जा सकता है|
रासायनिक प्रबंधन- मूंगफली में निम्न में से किसी एक कीटनाशी का उपयोग करें, जैसे-
1. इण्डोसल्फान 0.2 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए|
2. मोनोक्रोटोफॉस 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करना चाहिए|
3. मैलाथियान 5 प्रतिशत की 20 से 25 किलोग्राम मात्रा का प्रति हैक्टर की दर से बुरकाव करना चाहिए|
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हेयरी कैटरपीलर- जब फसल लगभग 40 से 45 दिन की हो जाती है, तो पत्तियों की निचली सतह पर प्रजनन करके असंख्य संख्यायें तैयार होकर पूरे खेत में फैल जाते हैं| पत्तियों को छलनी कर देते हैं, फलस्वरूप पत्तियां भोजन बनाने में अक्षम हो जाती हैं|
प्रबंधन-
1. बालदार सूड़ी की प्रथम अवस्था में गिडार झुण्ड में पाई जाती है, उस समय उन पत्तियों को तोड़कर एक बाल्टी मिट्टी के तेलयुक्त पानी में डालने पर गिडार नष्ट हो जाते हैं|
2. प्रथम व द्वितीय अवस्था में गिडरों की नियंत्रण हेतु मेथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत 20 किलोग्राम या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत धूल 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव किया जाना चाहिए|
3. पूर्ण विकसित गिडारों के नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरीफास 20 ई सी, या इन्डोसल्फान 35 ई सी या मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का बुरकाव करें|
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मूंगफली फसल में एकीकृत रोग प्रबंधन
मूंगफली क्राउन राट- अंकुतरित हो रही मूंगफली इस रोग से प्रभावित होती है| प्रभावित हिस्से पर काली फफूदी उग जाती है, जो स्पष्ट दिखाई देती है|
प्रबंधन-
1. इसके लिए बीज शोधन करना चाहिए|
2. जिन क्षेत्रों में तना सड़न प्रचलित हो, वहाँ अरंडी की खली का प्रयोग लाभदायक होता है|
डाईरूट राट चारकोल राट- नमी की कमी और तापक्रम अधिक होने पर यह बीमारी जड़ों में लगती है| जड़े भूरी होने लगती हैं तथा पौघा सूख जाता है|
प्रबंधन-
1. बीज शोधन करें और खेत में नमी बनाये रखें|
2. लम्बा फसल चक्र अपनायें|
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बडनेक्रोसिस- शीर्ष कलियां सूख जाती हैं, बाढ़वार रूक जाती है| बीमार पौधों में नई पत्तियां छोटी बनती है तथा गुच्छों में निकलती है| आमतौर पर अंत तक पौधा हरा बना रहता है, फूल-फल नहीं बनते|
प्रबंधन-
1. मूंगफली में बडनेक्रोसिस की रोकथाम के लिए सघन सस्य (बीज दर बढ़ाकर बोवाई) का पालन करना चाहिये|
2. बोआई जून के चौथे सप्ताह से पूर्व नहीं करनी चाहिए|
3. थ्रिप्स जो इस रोग का वाहक है, उसके नियन्त्रण के लिए डाईमेथोएट 30 ई सी की एक लीटर दवा को प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए|
मूंगफली का टिक्का रोग (पत्रदाग)- पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के गोल धब्बे बन जाते हैं| जिनके चारों तरफ निचली सतह पर पीले घेर होते हैं| उग्र प्रकोप से तने और पुष्प शाखाओं पर भी धब्बे बन जाते हैं|
प्रबंधन-
1. मूंगफली में टिक्का के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए|
2. फसल पर जिंक मैंग्नीज कार्बामेंट 2 किलोग्राम या जिनेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण या जिरम 27 प्रतिात तरल के 3 लीटर या जीरम 80 प्रतिशत का 2 किलोग्राम के 2 से 3 छिड़काव 10 दिन के अन्दर पर करना चाहिए|
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