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मूंग एवं उड़द की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

Author by Bhupender Leave a Comment

मूंग एवं उड़द

दलहनी फसलों में मूंग एवं उड़द की महत्वपूर्ण भूमिका है| इनसे पौष्टिक तत्व प्रोटीन प्राप्त होने के अतिरिक्त फलियाँ तोड़ने के उपरांत फसलों को भूमि में पलट देने से मिटटी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि कर रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में बचत होती है| मूंग की फसल को खरीफ, रबी और जायद तीनों मौसम में उगाया जा सकता है| उड़द को मुख्य रूप से खरीफ में उगाया जाता है| इस लेख में मूंग एवं उड़द की जैविक खेती कैसे करें तथा किस्में देखभाल और पैदावार की जानकरी का उल्लेख है|

मूंग की उन्नत खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मूंग की खेती- किस्में, रोकथाम व पैदावार

उड़द की उन्नत खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- उड़द की खेती- किस्में, रोकथाम व पैदावार

मूंग एवं उड़द हेतु भूमि

उचित जल निकास वाले खेत जिनका पी एच मान 6.5 से 7.5 के मध्य और हल्की से भारी दोमट मिटटी अधिक उपयुक्त रहती है|

यह भी पढ़ें- मूंग और उड़द की फसलों में लगने वाले प्रमुख रोग एवं उनका समेकित प्रबंधन

खेती की तैयारी

मध्यम व भारी भूमियों में रबी फसल कटने के बाद एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके गर्मी में खुला छोड़ दें| ऐसा करने से भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती है एवं तेज धूप से मिटटी में छिपे हुए रोग पैदा करने वाले फफूद, कीड़-मकोड़े और खरपतवार के बीज नष्ट हो जाते हैं| एक गहरी जुताई के बाद दो बार हैरो से जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लें|

मूंग एवं उड़द की किस्में

इनकी जैविक खेती हेतु किसान भाई कोशिश करें की वो जैविक प्रमाणित बीज ही उगाएं, कुछ प्रमुख उन्नत किस्मे इस प्रकार है,जैसे-

मूंग की किस्में

खरीफ फसल की किस्में- पन्त मूंग- 1, 2, और 3, नरेन्द्र मूंग- 1, मालवीय ज्योति, मालवीय जनचेतना, मालवीय जनप्रिया, मालवीय जनकल्याणी, मालवीय जाग्रति, सम्राट और आशा इत्यादि प्रमुख है|

ग्रीष्मकालीन (जायद)- फसल की किस्में, नरेन्द्र मूंग, पन्त मूंग, सम्राट मूंग और मालवीय जाग्रति इत्यादि प्रमुख है|

दोनों मौषम की किस्में- एचयूएम- 1, के- 851, जवाहर मूंग- 721 और टीजेएम- 3 इत्यादि प्रमुख है|

उड़द की किस्में

खरीफ व जायद- दोनों मौसम की किस्में इस प्रकार है जैसे-नरेन्द्र उड़द- 1, आजाद उड़द- 2, शेखर उड़द- 2 और टाइप 9 इत्यादि है, और केवल खरीफ के लिए- पन्त उड़द- 31 व यू 31, डब्लूवी- 108, शेखर- 3, आजाद उड़द- 3, पीडीयु- 1, पीयू- 30, जवाहर उड़द- 86, एलवी- 20 और आइपीयु- 94 इत्यादि प्रमुख किस्में है|

यह भी पढ़ें- मूंग में एकीकृत कीट और रोग नियंत्रण कैसे करें, जानिए आधुनिक तकनीक

बीजोपचार

बुवाई से पूर्व मृदाजनित रोगों से बचाव के लिए मूंग एवं उड़द के बीज को ट्राइकोडरमा 4.0 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करें, इसके पश्चात् बीज को राइजोबियम और फॉस्फोरस घोलक जीवाणु (पी एस बी) प्रत्येक का 5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करके ही बुवाई करें|

बुवाई का समय और बीज दर

मूंग एवं उड़द की बुवाई मानसून की वर्षा होने के साथ-साथ ही करें या वर्षा देरी से हो तो 30 जुलाई तक भी बुवाई की जा सकती है| बुवाई के लिए बीज भौतिक रूप से रोग मुक्त और अच्छी अंकुरण क्षमता (80 से 90 प्रतिशत) का प्रयोग करें| मूंग एवं उड़द में पर्याप्त पौध संख्या 33 से 40 पौध प्रति वर्गमीटर हेतु छोटे बड़े दानों को ध्यान में रखते हुए 16 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त है|

बुवाई की विधि व गहराई

अधिक उपज के लिये मूंग एवं उड़द की बुवाई सदैव कतार में करनी चाहिए| कतार से कतार की दूरी 30 से 40 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर एवं अच्छे अंकुरण हेतु गहराई 3 से 5 सेंटीमीटर रखें|

अन्तः सस्य फसलें

मूंग एवं उड़द को अन्र्तवर्तीय फसल के रूप में भी उगाया जा सकता है| खरीफ ऋतु में बोये जाने वाली फसलें जैसे मक्का व ज्वार (4:2 या 5:2) और अरहर (1:1 या 1:2) के साथ मूंग एवं उड़द की बुवाई कर करीब 3 से 5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अतिरिक्त उपज प्राप्त की जा सकती है|

यह भी पढ़ें- मूंग की बसंतकालीन उन्नत खेती कैसे करें, जानिए उपयोगी एवं आधुनिक तकनीक

पोषण प्रबंधन

5 से 10 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट 3 से 5 टनप्रति हेक्टेयर बोने के पहले मिटटी में बिखेर दें और कल्टीवेटर चलाकर अच्छी तरह मिला दें|

सिंचाई प्रबंधन

मूंग एवं उड़द को प्रायः वर्षा आधारित क्षेत्रों में ही बोया जाता है और इनमें सूखा सहने की क्षमता भी अधिक होती है| अतः सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती| सिंचाई की आवश्यकता पड़ने पर सिंचाई सुविधा उपयुक्त होने पर एक सिंचाई बुवाई के 45 से 50 दिन बाद (फूल आते समय) देने से अधिक पैदावार प्राप्त होती है|

खरपतवारों का प्रबंधन

उड़द को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए फसल को 20 से 40 दिन की अवस्था तक दो बार खुरपी या कुदाली से निंदाई गुड़ाई करें और बैल चलित कुलपा या हैण्ड हो से गुड़ाई करें|

पौध संरक्षण

मूंग एवं उड़द की जैविक खेती हेतु कुछ पौध संरक्षण उपाय इस प्रकार है, जैसे-

1. ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई 3 वर्ष में एक बार अवश्य करें|

2. फसल की समय पर बोनी करें|

3. उपयुक्त फसल ज्यामिति रखें|

यह भी पढ़ें- मूंग की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं एवं पैदावार

4. अन्र्तवर्तीय फसल पद्धति अपनायें|

5. प्रकाश प्रपंच, फेरामोन ट्रेप जैसे चेतावनी सूचक यंत्रों का प्रयोग करें|

6. वानस्पतिक कीटनाशकों जैसे नीम तेल निबोली सत 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की आवश्यकता होने पर उपयोग करें|

कटाई व मड़ाई

मूंग एवं उड़द अधिक पक जाने पर फलियॉ झड़ने लगती हैं, जिससे पैदावार में काफी नुकसान होता है| फलियों के झड़कर गिरने से होने वाली हानि को रोकने के लिए फलियों के पकाव और झड़ने से पहले फसल काट लेवें| खलिहान में फसल को लगभग एक सप्ताह तक धूप में सुखाकर बैलों या श्रेसर द्वारा मड़ाई करके भूसा उड़ाकर दाना अलग कर लें|

पैदावार

जैविक खेती की महत्वता को समझते हुए, बहुत से किसान भाई जैविक खेती अपना रहे है| लेकिन बात जहां तक पैदावार की है, शुरू के 1 से 2 वर्ष पैदावार सामान्य (रसायनिक) खेती की तुलना में 5 से 15 प्रतिशत तक कम रहेगी| लेकिन 2 वर्ष बाद यह धीरे धीरे सामान्य की तुलना में अधिक पहुच जाएगी| उपरोक्त विधि की खेती से सामान्यत: मूंग एवं उड़द की पैदावार इस प्रकार है|

मूंग- इसकी उपरोक्त तरीके से खेती करने पर खरीफ फसल की पैदावार 8 से 12 क्विंटल और जायद की 6 से 9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती है|

उड़द- इसकी जैविक खेती की पैदावार जायद के समय 10 से 13 क्विंटल और खरीफ के समय 12 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है|

यह भी पढ़ें- अरहर की खेती- किस्में, रोकथाम और पैदावार

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