मूंग की बसंतकालीन उन्नत खेती, संसार में दलहनी फसलों का सबसे अधिक क्षेत्रफल भारत में है| फसल पद्धतियों के विकास में दलहनी फसलों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है| एक और ये भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखती हैं, दूसरी और पोषक आहार के रूप में दाल हमारे भोजन का प्रमुख हिस्सा है| दाल के विशेष महत्व से हम सभी परिचित हैं| वैज्ञानिकों ने यह प्रमाणित किया है कि अन्य दालों की अपेक्षा मूंग की दाल में मौजूद प्रोटीन की शीघ्र पाचक होती है और मरीजों के लिये भी यह दाल लाभदायक है|
गर्मी के मौसम के दौरान सिंचित भूमि में मूंग का गैर मौसमी फसल के रूप में अपना स्थान बन गया है| इस अवधि में अधिकतर किसानों को अपनी भूमि और सिंचाई साधनों के उपयोग का मौका मिल गया है| इस मौसम में बीमारियों का प्रभाव भी कम रहता है| आधुनिक विधि से खेती करने से निश्चय ही यह फसल अच्छी उपज दे सकती है| यदि आप मूंग की परम्परागत खेती की जानकारी चाहते है, तो यहां पढ़ें- मूंग की खेती- किस्में, रोकथाम व पैदावार
मूंग की बसंतकालीन खेती के लिए उपयुक्त भूमि
मूंग की बसंतकालीन खेती के लिए उपजाऊ, अच्छी जल निकासी वाली, नमक रहित, मध्यम से भारी दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है|
मूंग की बसंतकालीन खेती के लिए खेत की तैयारी
रबी फसल की कटाई के बाद खेत को दो बार कल्टीवर या हैरो चला कर पाटा लगा देना चाहिए, ताकि खेत समतल हो जाए|
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मूंग की बसंतकालीन खेती के लिए बुआई का समय
उत्तर भारत में 20 मार्च के बाद मूंग की बुवाई कर देनी चाहिए|
मूंग की बसंतकालीन खेती के लिए बीज की मात्रा
मूंग की सफल खेती के लिए बीज की उपयुक्त मात्रा 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है|
मूंग की बसंतकालीन खेती के लिए बीज का उपचार
बुवाई से पहले बीज को 2 ग्राम थिरम + 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से अच्छी प्रकार उपचारित कर लेना चाहिए| इसके बाद राइजोबियम तथा पी एस बी जीवाणु टीका गुड के घोल में मिलाकर बीज से अच्छी तरह मिला दें| इसके बाद बीज को छाया में सुखाकर तुरन्त बुवाई कर दें|
मूंग की बसंतकालीन खेती के लिए बुवाई की विधि
कतार से कतार की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर और कतारों में पौधे से पौधे की दूरी 5 सेंटीमीटर होनी चाहिए| बुवाई 3 से 4 सेंटीमीटर गहरी की जानी चाहिए|
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मूंग की बसंतकालीन खेती के लिए उन्नत किस्में
मूंग की उन्नत किस्में इस प्रकार हैं, जैसे-
पूसा विशाल- यह 12 से 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देने वाली किस्म है| गर्मी के दिनों में 60 से 65 दिनों का समय लेती है| दाने बड़े और चमकदार हरे रंग के होते हैं| यह पीले मोजैक के प्रति अवरोधी होती है, धान-गेहूं-मूंग फसल चक्र के लिए यह किस्म उत्तम होती है|
पी एस 16- उत्तर-पूर्व के मैदानी इलाकों के लिए यह किस्म उपयुक्त है, इसकी उत्पादन क्षमता 15 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है और 60 दिनों में फसल पक जाती है| पीले मोजैक के प्रति यह भी अवरोधी होता है|
पी एस 2- यह उत्तरी क्षेत्र, पूर्व-पश्चिमी मैदानी क्षत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है| उत्पादन क्षमता 11 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है एवं फसल पकने में 65 दिन को समय लगता है|
पी डी एम 139- यह उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त किस्म है| उत्पादन क्षमता 11 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और फसल पकने में 60 से 65 दिन का समय लेती है|
एस एम एल 668- यह पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के लिए उपयुक्त किस्म है| इसकी उत्पादन क्षमता 11 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|
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मूंग की बसंतकालीन खेती में खाद और उर्वरक
अच्छी उपज के लिए लगभग 5 से 10 टन प्रति हेक्टेयर अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद बुआई से लगभग 20 से 25 दिन पहले खेत में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए| उर्वरकों की मात्रा निम्नलिखित प्रकार से होनी चाहिए, जैसे-
नाइट्रोजन- 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर,
फास्फोरस- 70 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर,
पोटाश- 40 से 45 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर,
गन्धक- 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर,
अगर फास्फोरस डी ए पी से दिया गया हो तो नाइट्रोजन अलग से देने की आवश्यकता नहीं है| अगर मिट्टी की जांच करके खाद दे रहे हैं, तो खाद की मात्रा उसके हिसाब से ज्यादा कम कर सकते हैं|
मूंग की बसंतकालीन खेती में खरपतवार प्रबंधन
गर्मी में लगाई गई मूंग की फसल में खरपतवारों की समस्या अधिक नहीं होती, परन्तु पहले एक महीने तक पौधे की बढवार धीमी गति से होने के कारण हमें विशेष सावधानी बरतनी चाहिए| निम्नलिखित रसायनों के प्रयोग से इन्हें नियंत्रित किया जा सकता हैं, जैसे-
फ्लुक्लोरेलिन या ट्राइफ्लोरेलिन 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बुवाई से पहले या पेन्डीमिथालिन 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या मेटाक्लोर 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पहले 750 से 800 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव कर लेना चाहिए|
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मूंग की बसंतकालीन खेती के लिए सिंचाई व्यवस्था
अच्छी फसल के लिए खेत की जुताई से पहले एक सिंचाई करते हैं और बुवाई के 30 एवं 45 दिनों के उपरांत सिंचाई की आवश्यकता होती है|
मूंग की बसंतकालीन खेती की देखभाल
कीट प्रबंधन- फोरेट 10 जी 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से कुंडों में डालें, इसके पश्चात कीट के प्रकार और क्षति की तीव्रता के अनसार क्युनालफॉस 25 ई सी 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर या मोनोक्रोटोफॉस 36 एस सी 0.8 लीटर प्रति हेक्टेयर के एक या दो छिड़काव करें, एक छिड़काव के लिए पानी की मात्रा 750 से 800 लीटर रखें|
रोग प्रबंधन- पीला मोजैक मूंग में लगने वाला सबसे भीषण रोग है, जो सफेद मक्खियों से फैलता है| इसके नियंत्रण के लिए थायोमिथॉकसाम 25 डब्ल्यू जी का ग्राम प्रति हेक्टेयर का मिथाइल डिमेटॉन का 0.8 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें|
पत्तियों पर होने वाले पर्ण धब्बा रोग की रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 0.5 किलोग्राम 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 35 और 45 दिन बाद दो छिड़काव करें|
जीवाणु जनित फफोलों के लिए रोग होने पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2 किलोग्राम +स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 200 ग्राम प्रति 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|
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मूंग की बसंतकालीन खेती और फसल चक्र
गेहूं या अन्य फसल की कटाई के बाद मूंग की फसल को या तो अकेले ही बोया जा सकता है या ईंख या कपास की फसल की कतारों के बीच में बुआई की जा सकती है| अविराम फसल पद्धति (रिले क्रॉपिंग) के अन्तर्गत गेहूं तथा मक्का की फसलों के बीच की अवधि में अकेली फसल के रूप में भी इसे बोया जा सकता है|
अविराम फसल पद्धति (रिले क्रॉपिंग) का अंग होने के कारण मूंग की बुआई गेहूं की फसल कट जाने के बाद की जाती है| गेहूं की कटाई के कुछ दिन पहले खेत में बुआई कर देनी चाहिए| फसल कटते ही मूंग को 40 से 50 सेंटीमीटर की दूरी पर मक्का की फसल को कतारों में बोया जा सके|
जून की शुरूआत में मूंग की फसल में सिंचाई की जाती है| कतारों के बीच में मक्का की बुआई हाथ से चलने वाले नजारे से कर दी जाती है| फलियों को तोड़ने के पश्चात 10 से 12 दिन में मूंग की फसल कट जाती है| इसी दौरान जून में वर्षा होने से ही मक्का के बीच अंकुरित हो जाते हैं और पौधे जड़ पकड़ लेते हैं|
मिश्रित फसल पद्धति के अन्तर्गत गर्मी के मौसम में मूंग को गणना या कपास के फसलों के बीच कतारों में बोया जा सकता है| इस विधि से फसल उगाने में अतिरिक्त सिंचाई या उर्वरक की जरूरत नहीं पड़ती| मुख्य फसल में लगाई गई लागत से ही मूंग की आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है|
धान के बाद आलू की फसल लेने के पश्चात आलू को कोड़ने से पहले मूंग की बुआई कर देनी चाहिए| उत्तर भारत के सिंचाई वाले इलाकों में अपनाये जाने वाला यह सर्वाधिक आय देने वाला फसल चक्र है|
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मूंग की बसंतकालीन फसल की कटाई व झड़ाई
बुआई के दो मास बाद फसल पर लगी अधिकतर फलियां पक जाती हैं और उन्हें चुन कर एकत्रित कर लिया जाता है| यदि फसल में कुछ फलियां रह गई हों एवं उनके तोड़ने में अधिक लागत न आये तो उन्हें 8 से 10 दिन बाद फिर तोड़ा जा सकता है या फसल को हरी खाद के रूप में फलियों के आने के तुरंत बाद में ही जोता जा सकता है|
कटाई के बाद चार पाँच दिन तक खेत में ही सूखने देना चाहिए, ताकि दानों में नमी की मात्रा 12 प्रतिशत हो जाए| इसके बाद इसकी गहाई कर के या अन्य यंत्र द्वारा निकल लेनी चाहिए|
मूंग की बसंतकालीन खेती से पैदावार
अकेली बोई गई मूंग फसल से 12 से 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिल जाती है| अन्य फसलों के साथ मिलाकर बोने से उपज 5 से 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो जाती है| दोनों ही अवस्थाओं में दो ढाई मास की अवधि में जितनी आय मिलती है वह अतिरिक्त होती है|
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