मेथी एक महत्वपूर्ण फसल है, मेथी की जैविक खेती का अपना महत्व है| क्योंकि इसकी पत्तियों का प्रयोग सब्जी के रूप में तथा बीज का उपयोग मसाले के रूप में किया जाता है| इसके बीज खाद्य पदार्थों को सरस एवं सुगंधित बनाने के काम में आता है| अचारों एवं सब्जियों को स्वादिष्ट बनाने में भी इसके बीज का व्यवहार होता है| इसके बीजों में मूत्रवर्द्धक, शक्तिवर्द्धक, वायुनाशक, पोषक, मधुमेह, भूख बढ़ाने, पाचन तंत्र नियमित करने, खून की कमी तथा जोड़ों के दर्द को ठीक करने की क्षमता है|
बीजों में डायोजेनिन स्टेराईड के कारण गर्भ निरोधक दवाओं में भी इसे प्रयुक्त किया जाता है| बीजों में नमी 13.7 प्रतिशत, प्रोटीन 26.2 प्रतिशत, वसा 5.8 प्रतिशत, खनिज 3 प्रतिशत, रेशा 7.2 प्रतिशत तथा कार्बोहाईड्रेट 4.4 प्रतिशत पाया जाता है| खनिज लवण और विटामिन में कैल्शियम, फास्फोरस, कैरोटीन, थायमिन, रिबोफ्लेविन तथा नाईसिन पाया जाता है| इसके बीजों से कई तरह के पाकवान बनाकर वृद्धावस्था में भूख बढ़ानें, पाचन तंत्र नियमित करने तथा जोड़ों के दर्द को ठीक करने में उपयोग किया जाता है|
किसान बन्धु यदि मेथी की उन्नत तकनीक से खेती करें तो कम उत्पादन लागत में अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है| लेकिन जानकारी के आभाव में ऐसा करना मुश्किल है| इस लेख में किसानों की जानकारी के लिए मेथी की जैविक उन्नत खेती कैसे करें का विस्तृत उल्लेख किया गया है|
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मेथी की जैविक खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
मैथी ठन्डे मौसम कि फसल है और यह पाले के प्रति काफी सहनशील है| इसकी वानस्पतिक बढ़वार के लिए लम्बे ठन्डे मौसम कि आवश्यकता होती है| अर्थात मैथी को ठंडी जलवायु कि आवश्यकता होती है| यह सामान्य से कम वर्षा वाले क्षेत्र इसके उत्पादन के लिए अच्छे माने गए है और अधिक़ वर्षा वाले क्षेत्र इसके उत्पादन में बाधक माने गए है|
मेथी की जैविक खेती के लिए भूमि का चयन
मैथी को बिभिन्न प्रकार कि मृदाओं में उगाया जा सकता है| परन्तु मेथी की जैविक खेती की अच्छी वृद्धि एवं उपज के लिए जीवांश युक्त दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है| वैसे मैथी कि जैविक खेती के लिए उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट भूमि भी अच्छी रहती है| मिटटी का पी एच मान 6 से 7 होना चाहिए क्योंकि इसमें मैथी कि अच्छी वृद्धि एवं विकास होता है| अधिक क्षारीय या अधिक अम्लीय मिटटी इसके सफल उत्पादन में बाधक मानी गई है|
मेथी की जैविक फसल के लिए खेत की तैयारी
इसकी जैविक खेती हेतु खेत की 2 से 3 जुताई करके पाटा लगाकर खरपतवार निकाल देना चाहिये| जुताई से पूर्व दीमक की रोकथाम के लिये नीम या करंज की खली 2 से 3 क्विंटल प्रति हेक्टर के हिसाब से मृदा में मिलाकर बुवाई कर देनी चाहिये| यह ध्यान रहे कि मेथी की जैविक खेती में किसी भी प्रकार के भूमि उपचार के लिए रासायनिक पदार्थों को काम में लेकर नहीं किया जाये| उनकी जगह 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर ट्राईकोडर्मा को उचित तकनीक से बुवाई से पूर्व व्यवहार में लायें|
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मेथी की जैविक खेती के लिए उन्नत किस्में
मेथी की जैविक खेती के लिए किसानों को स्थानीय किस्मों की अपेक्षा अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिक उपज देने वाली तथा विकार रोधी उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए| जहां तक संभव हो प्रमाणित जैविक बीज का ही प्रयोग करें| मेथी की कुछ प्रचलित किस्में इस प्रकार है, जैसे- हिसार सोनाली, हिसार सुवर्णा, हिसार मुक्ता, ए एफ जी- 1, 2 व 3, आर एम टी- 1 व 143, राजेन्द्र क्रांति, को- 1 और पूसा कसूरी आदि प्रमुख है| किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मेथी की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार
मेथी की जैविक खेती के लिए बीज की मात्रा
मेथी की जैविक खेती हेतु बीज दर प्रति हेक्टेयर 20 से 25 किलोग्राम उचित मानी गई है| बुवाई के समय और खेत की परिस्थितियों तथा बुवाई की विधि के अनुसार बीज दर कम या ज्यादा रख सकते है|
मेथी की जैविक खेती के लिए बुवाई का समय
मेथी की फसल से अच्छी उपज के लिए अक्टूबर के मध्य से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक बुआई का उपयुक्त समय माना गया है| देर से बुआई करने पर कीटों एवं रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है, जिससे उपज कम हो जाती है|
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मेथी की जैविक खेती के लिए बीज उपचार
मेथी की जैविक खेती हेतु बीजों को ट्राइकोडर्मा विरिडी 8 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें और प्रत्येक बीज पर दवा का लेप सुनिश्चित करें|
मेथी की जैविक खेती के लिए बुवाई की विधि
हमारे देश में मेथी को बहुत से क्षेत्रों में छिटकवा विधि से भी उगाया जाता है| परन्तु इसकी खेती से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए कतार विधि अच्छी मानी गई है| बीज की गहराई 5 सेंटीमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए| अंकुरण के लिए बुआई के समय मिटटी में पर्याप्त नमी आवश्यक है| कतार से कतार के बीच 30 सेंटीमीटर तथा कतार में पौधे से पौधे के बीच 10 सेंटीमीटर की दुरी उचित रहती है|
मेथी की जैविक फसल में पोषक तत्व प्रबंधन
मेथी की फसल से अच्छी उपज के लिए 40 किलोग्राम नत्रजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है| इन सब की पूर्ति के लिए बुवाई से 21 दिन पूर्व गोबर की खाद 15 से 20 टन प्रति हेक्टर खेत में मिलावें साथ में राईजोबियम 500 ग्राम प्रति हेक्टर और फॉस्फोबेक्ट्रीन शाकाणु (पीएसबी) से बीज उपचारित करके बोयें|
यदि बीजोपचार संभव नहीं हो तो 20 से 25 टन गोबर की सड़ी हुई खाद बुवाई से 21 दिन पूर्व खेत में मिलावें| पौधों की सजीवता बढ़ाने के लिए बी डी- 501 का 1 ग्राम प्रति 13 लीटर पानी के घोल से छिड़काव 20 दिन बाद करें|
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मेथी की जैविक फसल में सिंचाई प्रबंधन
इसकी जैविक खेती में पलेवा करके बीज बुवाई के बाद आवश्यकतानुसार 15 से 20 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिये| खेत में पानी निकासी का उचित प्रबंध बना के रखें| अच्छी जल धारण क्षमता वाली मिटटी में 4 से 5 सिंचाई की आवश्यकता पडती है|
मेथी की जैविक खेती में निराई-गुड़ाई
खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 30 दिन बाद निराई-गुड़ाई कर पौधों की छटनी कर देनी चाहिये| आवश्यकता हो तो एक छटनी और 10 से 15 दिन बाद करके 50 दिन बाद दूसरी निराई-गुड़ाई करें| खरपतवार नियंत्रण हेतु मेथी की जैविक खेती में किसी भी प्रकार के रसायन को काम में नहीं लेवें|
मेथी की जैविक फसल की देखभाल
मेथी में मुख्य रूप से मोयला कीट व छाछ्या व तुलासिता नामक बीमारियों का प्रकोप होता है| इनकी रोकथाम के लिए बुवाई के 60 व 75 दिन के बाद नीम आधारित घोल (अजेडिरेक्टिन की मात्रा 2 मिलीलीटर प्रति लीटर) पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करें| आवश्यकता होने पर 15 दिन बाद पुनः छिड़काव दोहराया जा सकता है|
चूर्णी फफूंद से संरक्षण हेतु बी डी- 501 का 1 ग्राम प्रति 13 लीटर पानी के घोल से छिड़काव (प्रथम रोग दिखने पर, द्वितीय एवं तृतीय 15 दिन अन्तराल पर ) का प्रयोग करें| माहू से संरक्षण हेतु नीम का तेल 10 मिलीलीटर लीटर प्रति 1 लीटर पानी के घोल से छिड़काव (प्रथम कीट प्रकोप दिखने पर एवं द्वितीय 15 दिन के अन्तराल पर) का प्रयोग करें|
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मेथी की जैविक फसल की कटाई
अक्टुबर में बोई गई फसल से पत्तियों की पांच व नवम्बर में बोई गई फसल से पत्तियों की चार कटाई लेनी चाहिए| उसके बाद फसल को बीज के लिए छोड़ देना चाहिये अन्यथा बीज नही बनेगा| पत्तियों की पहली कटाई बुआई के 30 दिन बाद करें फिर 15 दिन के अन्तराल पर कटाई करते रहे|
दाने के लिए उगाई गई मेथी की जैविक फसल के पौधों के ऊपर की पत्तियाँ पीली होने पर बीज के लिए कटाई करें| फल पूरी तरह सूखने पर बीज निकाल कर एवं सूखा कर साफ कर लें तथा भण्डारण करना चाहिए|
मेथी की जैविक खेती से पैदावार
मेथी की जैविक खेती से उपज अनेक कारकों पर निर्भर करती है| लेकिन उपरोक्त उन्नत तकनीक से खेती करने पर हरी पत्ती के लिए उगाई गई फसल से 80 से 100 क्विंटल हरी पत्तियाँ और 6 से 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दाने की उपज प्राप्त होती है और दाने या बीज के लिए उगाई गई फसल से 17 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है| प्रमाणित बीज के लिए किस्मों के बीच 25 मीटर की दूरी रखनी चाहिए|
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