हमारे देश में उगाई जाने वाली तिलहनी फसलों में राई-सरसों का मूंगफली के बाद दूसरा स्थान है| अगर हम इस फसल का पोषक तत्वों चुराते खरपतवारों पर नियंत्रण पा ले तो इसकी पैदावार और भी बढ़ाई जा सकती है| इस समय कुल खाद्य तेल उत्पादन का लगभग एक तिहाई तेल राई-सरसों द्वारा प्राप्त होता है| राई-सरसों की खेती हमारे देश में लगभग 62.3 लाख हेक्टर क्षेत्रफल में की जाती है| जिससे लगभग 59 लाख टन उत्पादन होता है|
लेकिन इसकी औसत पैदावार विश्व की औसत पैदावार की तुलना में काफी कम है| सिंचित क्षेत्रों में राई-सरसों के उत्पादन को बढ़ाने में आने वाली कठिनाईयों में सबसे महत्वपूर्ण है, इस फसल को नुकसान पहुंचाने वाले खरपतवार, जिसका यदि सही समय पर प्रभावी नियंत्रण न किया जाये तो ये फसल की पैदावार एवं गुणवत्ता में भारी कमी ला देते हैं| राई-सरसों की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सरसों की खेती की जानकारी
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राई-सरसों फसल के प्रमुख खरपतवार
देश में राई-सरसों की खेती मुख्यतः उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, असम, गुजरात, जम्मू कश्मीर आदि राज्यों में की जाती है| इसीलिये भौगोलिक परिस्थितियों, जलवायु एवं भूमि के प्रकार में परिवर्तन के अनुसार इनमें खरपतवारों की संख्या एवं प्रजाति में भी बदलाव आ जाता है| राई-सरसों की फसल को नुकसान पहुचने वाले कुछ प्रमुख खरपतवार इस प्रकार है, जैसे-
खरपतवार के प्रकार | वनस्पतिक नाम | हिंदी नाम |
चोडी पत्ती वाले | चेनोपोडियम एल्बम लेथाइरस अफाका मेडिकागो हिस्पिडा चिकोरियम इन्टाइब्स एस्फोडिलस टेन्यूफोलियस कानवालवुलस आरवेन्सिस विसिया सेटाइवा मेलीलोटस एल्बा एनागेलिस आरबेसिन्स सिरसियम हारवेन्स सोलेनम नाइग्रम आरजेमोन मेक्सिकाना | बथुआ जंगली मटर मरवारी चिकोरी (कासनी) प्याजी हिरनखुरी अकरी सेजी कृष्णनील —- मकोई सत्यानाशी |
संकरी पत्ती वाले | फेलारिस माइनर साइनुडान डेक्टीलान अवेना सिटाइवा | गेहूं का माँमा दूब जंगली जई |
मोथा कुल | साइपेरस रोटन्डस | मोथा |
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राई-सरसों फसल में खरपतवारों से हानियां
खरपतवार फसल के साथ पोषक तत्व, नमी, स्थान एवं प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करके राई-सरसों की पैदावार एवं तेल प्रतिशत में कमी कर देते है| एक सर्वेक्षण के अनुसार राई-सरसों की पैदावार में खरपतवारों की संख्या एवं प्रजाति के अनुसार 20 से 70 प्रतिशत तक कमी आंकी गई है| अनियंत्रित खरपतवार भूमि से 11 से 48 किलोग्राम नाइट्रोजन, 2 से 14 किलोग्राम फास्फोरस तथा 15 से 82 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टर शोषण करके फसल को पोषक तत्वों से वंचित कर देते हैं|
इसके अतिरिक्त सत्यानाशी नामक खरपतवार का बीज राई-सरसों के बीज के साथ मिलकर तेल की गुणवत्ता में कमी कर देता है तथा जिसके खाने में प्रयोग से “ड्राप्सी” नामक जानलेवा बीमारी का प्रकोप विगत वर्षों में देखा गया है|
राई-सरसों में खरपतवार नियंत्रण का उपयुक्त समय
राई-सरसों में खरपतवार नियंत्रण कार्यक्रम में समय का सर्वाधिक महत्व है| यदि खरपतवारों की रोकथाम, खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवस्था में न की गई तो उससे भरपूर लाभ नहीं मिल पाता है| राई-सरसों में यह अवस्था बुआई के बाद 10 दिन से 40 दिन तक रहती है| इसीलिये यह आवश्यक है, कि यदि हम शाकनाशी रसायनों का उपयोग कर रहे है तो उनका असर भूमि में कम से कम बुआई के बाद 40 दिन तक रहना चाहिये|
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राई-सरसों फसल में खरपतवार रोकथाम की विधियाँ
राई-सरसों में खरपतवार एक समस्या है, यह पौधे मूल फसल की खुराक खा जाते है और उनकी बढ़ोतरी पर प्रभाव डालते है| इनके नियंत्रण के लिये विभिन्न रूपों से कुछ विधियाँ है अगर किसान भाई इन्हें अपनाये तो इन पर आसानी से काबू पाया जा सकता है साथ ही साथ फसल की गुणवत्ता में भी बढ़ोत्तरी की जा सकती है|
निवारक विधि-
इस विधि में वे सभी क्रियाएं शामिल है जिसके द्वारा खरपतवारों के प्रवेश को रोका जा सकता है| जैसे प्रमाणित बीजों का प्रयोग, अच्छी सड़ी गोबर या कम्पोस्ट की खाद का प्रयोग, सिंचाई की नालियों की सफाई, खेत की तैयारी और बुआई के प्रयोग किये जाने वाले यंत्रों का प्रयोग से पूर्व अच्छी तरह से सफाई आदि|
यांत्रिक विधि-
इस विधि द्वारा खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है| फसल की प्रारंभिक अवस्था में बुआई के 10 से 40 दिन के बीच का समय खरपतवारों की प्रतियोगिता की दृष्टि से क्रांतिक समय है| अतः इसी बीच खुरपी या हैरो से दो बार निराई गुणाई, पहली बुआई के 20 दिन बाद तथा दूसरी 40 दिन बाद करने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है| इसके बाद उगने वाले खरपतवार फसल के नीचे दबकर रह जाते है तथा फसल से प्रतियोगिता नहीं कर पाते|
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रासायनिक विधि-
शाकनाशी रासायनों के प्रयोग से जहाँ एक ओर खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है| वहीं दूसरी ओर लागत कम आती है तथा समय की बचत होती है| शाकनाशी रासायनों के प्रयोग में ध्यान देने योग्य बात यह होती है, कि उनका प्रयोग सही समय पर, उचित मात्रा में तथा ठीक ढंग से होना चाहिये, अन्यथा लाभ की बजाय नुकसान उठाना पड़ सकता है| राई-सरसों में खरपतवार नियंत्रण शाकनाशी इस प्रकार है, जैसे-
खरपतवार नाशी रसायन का नाम | मात्रा (ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर) | उपयोग का समय |
आक्साडायजान | 750 | बोने के बाद परन्तु फसल उगने के पूर्व |
आइसोप्रोटुरान | 1000 | बोने के बाद परन्तु फसल उगने के पूर्व |
पेन्डीमेथालिन | 1000 | बोने के बाद परन्तु फसल उगने के पूर्व |
फलूक्लोरालिन | 1000 | फसल बुआई के पूर्व खेत में अच्छी तरह मिला दे |
क्यूजेलोफॉप | 60 | फसल बुआई के 20-25 दिन बाद |
विधि- खरपतवार नाशी की आवश्यक मात्रा को 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टर की दर से समान रूप से छिडकाव करना चाहिये|
विशेष-
उपरोक्त रासायनों का प्रयोग करते समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है| निदेशालय द्वारा राई-सरसों में खरपतवार नियंत्रण पर किये गये अनुसंधान के फलस्वरूप पता चला है, कि शाकनाशी रासायनों के प्रयोग से पैदावार एवं आय में वृद्धि होती है| इसीलिये खरपतवारों को नष्ट करने के लिये इनका प्रयोग करना चाहिये| नैपसैक स्प्रेयर एवं फ्लैट फेन नोजल का छिड़काव हेतु प्रयोग करें| खरपतवारनाशी रसायन हमेशा रसीद के साथ प्रमाणित स्थान या दुकान से खरीदे ताकि मिलावट की सम्भावना नही रहे|
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