लहसुन (Garlic) लिलयसि कुल की एक नगदी मसाला फसल है, जो की मुख्यतः रबी के मौसम में उगाई जाती है| इसका उपयोग अचार, चटनी, केचप व सब्जी बनाने आदि में होता है| इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व फॉस्फोरस प्रचुर मात्रा में होता है| लहसुन के प्रसंस्करण के लिए लघु उद्योग स्थापित कर रोजगार को उत्पन्न किया जा सकता हैं| हमारे देश में उत्पादित गुणवक्ता वाले लहसुन की अन्य देशों में बहुत मांग है|
इसलिए इससे निर्यात कर इससे विदेशी मुद्रा भी प्राप्त की जाती है| लहसुन के गुणों की बात करे तो इसमें गंधक युक्त यौगिक एलाएल प्रोपाइल डाईसल्फाइड तथा एलिन नामक अमीनो अम्ल पाये जाते है| सामान्य दशा में एलिन रंगहीन, गंधहीन और जल में घुलनशील होता हैं, परन्तु जब लहसुन काटा, छीला या कुचला जाता है|
तो इसमें उपस्थित एलिनेज एम्जाइम सक्रिय हो जाते है और एलिन को एलिसिन में बदल देते हैं| इसी परिवर्तन के कारण इसमें से विशिष्ट तेज गंध आने लगती है| जीवाणुओं के विरूद्ध सक्रियता भी इसी एलिसिन नामक पदार्थ के कारण होती है| लहसुन में निम्न गुण विद्यमान होते है| जो इस प्रकार है, जैसे-
औषधीय गुण- भोजन को पचाने व अवाोशण में लहसुन काफी लाभदायक है| यह रक्त कोलेस्ट्रोल की सांद्रता को कम करता है| इसका सेवन करने से कई बीमारियों जैसे- गठिया, बन्धयता, तपेदिक, कमजोरी, कफ और लाल आंखे आदि से छुटकारा पाया जा सकता है|
कीटनाशी गुण- लहसुन के रस में कीटनाशी गुण के कारण 10 मिलीलीटर अर्क प्रति लीटर पानी में घोलकर प्रयोग करने से मच्छर व घरेलू मक्खी की रोकथाम के लिए प्रभावकारी होता है|
जीवाणुनाशी प्रभाव- स्टेफाइलोकोकस आरियस नामक जीवाणु की रोकथाम लहसुन के प्रयोग से की जा सकती है| खाद्य पदार्थों में 2 प्रतिशत से अधिक लहसुन की मात्रा जहर पैदा करने वाले जीवाणु क्लोस्ट्रीडियम परिफ्रिन्जेन्स से रक्षा करती है| इसके अतिरिक्त इसमें अन्य कई प्रकार के हानिकारक जीवाणुओं से बचाने की क्षमता विद्यामान है|
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लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
लहसुन की वृद्धि के समय ठण्ड़ा व नम जलवायु और कंद परिपक्वता के समय शुष्क जलवायु उपयुक्त रहती है| ठण्ड़ी जलवायु का पौधा होने के कारण इसकी खेती फलदार बगीचों में भी की जा सकती है| अधिक तापमान व नमी में कलियों के सड़ने की संभावना रहती है और अंकुरण पर विपरित प्रभाव पड़ता है|
लहसुन की खेती के लिए भूमि का चयन
लहसुन की खेती किसी भी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, परन्तु इसके लिए जिवाशंम युक्त उपजाऊ व जल निकास युक्त दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है| भारी, चिकनी मिट्टी में कन्द का आकार छोटा व खुदाई में कठिनाई होती है| यह पाला व लवणीयता को भी कुछ स्तर तक सहन कर सकती है|
लहसुन की खेती के लिए भूमि की तैयारी
लहसुन की खेती के लिए दो गहरी जुताई और इसके बाद हैरो से भूमि की जुताई करना उपयुक्त रहता है| जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है| इसके बाद खरपतवार निकालकर खेत को समतल कर लेते है|
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लहसुन की खेती के लिए उन्नत किस्मे
लहसुन की उन्नत खेती से अधिक उत्पादन के लिए अपने क्षेत्र की प्रचलित किस्म का चुनाव किया जाता है, साथ में किस्म विकार रोधी और अधिकतम पैदावार देने वाली होनी चाहिए| भारतवर्ष की जलवायु के लिए उपयुक्त और प्रचलित उन्नत किस्में इस प्रकार है, जैसे-
यमुना सफेद (जी- 1), यमुना सफेद- 2 (जी- 50), यमुना सफेद- 3(जी- 282), यमुना सफेद- 5 (जी- 189), एग्रीफाउण्ड व्हाइट (जी- 41), एग्रीफाउण्ड पार्वती (जी- 313), पार्वती (जी- 323), जामनगर सफेद, गोदावरी (सेलेक्सन- 2), स्वेता (सेलेक्सन- 10), टी- 56-4, भीमा ओंकार, भीमा पर्पल, वीएल गार्लिक- 1 और वीएल लहसुन- 2 आदि प्रमुख है| किस्मों की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- लहसुन की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार
लहसुन की खेती के लिए बीज की मात्रा
लहसुन के लिए 5 से 6 क्विंटल प्रति हेक्टर बीज की आवश्यकता होती है| लेकिन मशीन द्वारा बुवाई करने पर इसकी मात्रा 6 से 7 क्विंटल तक होती है|
लहसुन की खेती के लिए रोपाई का समय
लहसुन की बुवाई अक्टूबर से नवम्बर माह में करते है| बुवाई के समय इसके लिए कतार से कतार की दूरी 15 सेंटीमीटर तथा पौध से पौध की दूरी 7 से 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए| लहसुन की अगेती बुवाई करने पर कली सड़न की समस्या अधिक होती है|
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लहसुन की खेती के लिए खाद और उर्वरक
खाद एवं उर्वरक की मात्रा मिटटी परीक्षण कराने के पश्चात आवश्यकतानुसार देनी चाहिए| सामान्यतः खेती की तैयारी के समय 25 से 30 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टर की दर से भूमि में मिलाकर जुताई करना चाहिए| कलियां लगाने से पहले 50 से 70 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस, 100 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टर की दर से बुवाई से पूर्व आवश्यकता होती है व कलियों को पी एस बी से उपचारित करके बोये| बुवाई के एक महिने बाद 50 किलोग्राम नाइट्रोजन खड़ी फसल में देना लाभकारी होता है| लहसुन की बुवाई के 55 से 60 दिन के बाद किसी भी प्रकार के रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए|
लहसुन की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन
भूमि में नमी की कमी हो तो कलियों की बुवाई के बाद एक हल्की सिंचाई करते है| इसके पश्चात वानस्पतिक वृद्धि व कंद बनते समय 7 से 8 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई व फसल के पकने की अवस्था पर 12 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें|
लहसुन की फसल में खरपतवार नियंत्रण
लहसुन की खेती से अच्छी पैदावार के लिए 3 से 4 गुड़ाई अवश्य करें| जिससे की कंद को हवा मिले और नई जड़ो का विकास हो सकें| एक माह बाद सिंचाई के तुरन्त बाद डण्ड़े या रस्सी से पौधो को हिलाने से कंद का विकास अच्छा होता है| खरपतवार रोकथाम हेतु पेन्डीमिथालिन 3 लीटर प्रति हेक्टर की दर से बुवाई के 1 से 3 दिन के अन्दर प्रयोग कर सकते है या ऑक्सीडायजन 1 किलोग्राम प्रति हेक्टर अंकुरण से पूर्व प्रयोग करने से खरपतवार नियंत्रण अच्छा होता है और उपज भी अच्छी प्राप्त होती है|
लहसुन की फसल में वृद्धि नियामक का प्रयोग
लहसुन की पैदावार में वृद्धि हेतु 0.05 मिलीलीटर प्लेनोफिक्स या 500 मिलीग्राम साईकोसिल या 0.05 मिलीलीटर इथेफान प्रतिलीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के 60 से 90 दिन पश्चात छिड़काव करना उचित रहता है| कंद की खुदाई से दो सप्ताह पहले 3 ग्राम मैलिक हाइड्रोजाइड प्रति लीटर पानी में छिड़काव करने से भण्डारण के समय अंकुरण नहीं होता है और कंद 10 माह तक सुरक्षित रखे जा सकते है|
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लहसुन की फसल में कीट और रोग रोकथाम
थ्रिप्स- इस कीट का आक्रमण मार्च महिने में दिखाई देता है और तापमान की वृद्धि के साथ.साथ इसका प्रकोप अधिक होता है| यह पत्तियों से रस चूसता है, जिससे पत्तियां कमजोर हो जाती है तथा प्रभावी स्थान पर सफेद चकते पड़ जाते है| जिसके फलस्वरूप पत्तियां मुड़ जाती है|
रोकथाम- इस कीट के नियंत्रण के लिए मेटासिस्टोक्स या मोनोक्रोटोफॉस 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव लाभकारी होता है|
चैपा (एफिड)- यह पौधे से रस चूसता है| जिसके कारण पौधा कमजोर हो जाता है|
रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए एण्डोसल्फान 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए|
माईट- इस कीट के प्रकोप से पत्ती का प्रभावित भाग पीला पड़ जाता है और नई पत्तियां मुडी हुई निकलती है|
रोकथाम- इसकी रोकथाम लिए घुलनशील गंधक 2 किलोग्राम प्रति हेक्टर या पैराथियोन 500 मिलीलीटर प्रति हेक्टर का छिड़काव लाभदायक होता है|
भंडारण कीट- भंडारण में रखे लहसुन को कीट (इफेस्टिया इलूटेला) की सूडी खाकर नुकसान पहुचाती है|
रोकथाम- इसके लिए 1 से 4 गोली फास्फीन प्रति घनमीटर के हिसाब से धुम्रक करने से इस कीट पर नियंत्रण पाया जा सकता है|
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कद सड़न- यह बीमारी मेक्रोफेमिना जनित है, जिसका प्रकोप भंडारण में होता है|
रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए कंद को 2 प्रतिशत बोरिक अम्ल से उपचार करके भंडारण के लिए रखना चाहिए| बीज के लिए यदि कंद को रखना हो तो 0.1 प्रतिशत मरक्यूरिक क्लोराइड से उपचारित करके भण्डारण करना चाहिए|
सफेद सड़न- इस बीमारी से कलिया सड़ने लगती है| जो कि स्कलेरोशियम सेपीवोरम फफूंद जनित है|
रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए 2 ग्राम बावेस्टिन प्रति किलोग्राम कलिकाओं के हिसाब से बीजोपचार करना चाहिए|
तुलासिता- रोगी पौधों की पत्तियों पर सफेद फफूंद लग जाती है और सफेद धब्बे पड़ जाते है| धब्बे बाद में बैंगनी रंग में बदल जाते है|
रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए डाईथेन एम- 45, 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करने से की जा सकती है|
फुटान- नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का अधिक प्रयोग करने से यह बीमारी फैलती है| इसके अलावा अधिक पानी और अधिक दूरी पर रोपाई के कारण फुटान अधिक होता है| इस बीमारी से लहसुन अपरिपक्व अवस्था में कई छोटे-छोटे फुटान देता हैं, जिससे कलियों का भोज्य पदार्थ वानस्पतिक वृद्धि में प्रयोग होता है|
रोकथाम- इसकी रोकथाम हेतु लहसुन की रोपाई कम दूरी पर और नाइट्रोजन व सिंचाई का प्रयोग नियंत्रित दर से करना चाहिए| लहसुन के कीट एवं रोग रोकथाम की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- प्याज व लहसुन की फसल में एकीकृत रोग एवं कीट प्रबंधन कैसे करें
लहसुन फसल की खुदाई
ऊपर की पत्तियां पीली या भूरी पड़ने और मुख्य तना मुड जाने पर लहसुन परिपक्व माना जाता है| इस प्रकार लहसुन के कंद को पकने में 4 से 5 माह का समय लगता है| खुदाई के पश्चात कंद को साफ करके उपर की पत्तीयों से बांधते है एवं 3 से 4 दिन के लिए किसी छाया दार स्थान पर रखते है| जिससे की खेत की गर्मी कदं से निकल सकें| इसके बाद ठण्डे कमरे में लहसुन को रखते है|
लहसुन की खेती से पैदावार
उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से लहसुन की खेती करने पर उन्नत किस्मों से 125 से 225 किवन्टल प्रति हेक्टर पैदावार प्राप्त होती है|
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